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सूरह अत तूर हिंदी में – सूरह 52

शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान, निहायत रहम वाला है।

क़सम है तूर की। और लिखी हुई किताब की, कुशादा वरक़ में। और आबाद घर की। और ऊंची छत की। और उबलते हुए समुद्र की। बेशक तुम्हारे रब का अज़ाब वाक़ेअ होकर रहेगा। उसे कोई टालने वाला नहीं। जिस दिन आसमान डगमगाएगा और पहाड़ चलने लगेंगे। पस ख़राबी है उस दिन झुठलाने वालों के लिए जो बातें बनाते हैं खेलते हुए। जिस दिन वे जहन्नम की आग की तरफ़ धकेले जाएंगे। यह है वह आग जिसे तुम झुठलाते थे। कया यह जादू है या तुम्हें नज़र नहीं आता। इसमें दाखिल हो जाओ। फिर तुम सब्र करो या सब्र न करो। तुम्हारे लिए यकसां (समान) है। तुम वही बदला पा रहे हो जो तुम करते थे। बेशक मुत्तक्ी (ईश-परायण) लोग बाग़ों और नेमतों में होंगे। वे ख़ुशदिल होंगे उन चीज़ों से जो उनके रब ने उन्हें दी होंगी, और उनके रब ने उन्हें दोज़ख़ के अज़ाब से बचा लिया। खाओ और पियो मज़े के साथ अपने आमाल के बदले में। तकिया लगाए हुए सफ़-ब-सफ़ तख्तों के ऊपर। और हम बड़ी-बड़ी आंखों वाली हूरें उनसे ब्याह देंगे। (1-20)

और जो लोग ईमान लाए और उनकी औलाद भी उनकी राह पर ईमान के साथ चली, उनके साथ हम उनकी औलाद को भी जमा कर देंगे, और उनके अमल में से कोई चीज़ कम नहीं करेंगे। हर आदमी अपनी कमाई में फंसा हुआ है। और हम उनकी पसंद के मेवे और गोश्त उन्हें बराबर देते रहेंगे। उनके दर्मियान शराब के प्यालों के तबादले हो रहे होंगे जो लग़वियत (बेहूदगी) और गुनाह से पाक होगी। और उनकी ख़िदमत में लड़के दौड़ते फिर रहे होंगे। गोया कि वे हिफ़ाज़त से रखे हुए मोती हैं। वे एक दूसरे की तरफ़ मुतवज्जह होकर बात करेंगे। वे कहेंगे कि हम इससे पहले अपने घर वालों में डरते रहते थे। पस अल्लाह ने हम पर फ़ज़्ल फ़रमाया और हमें लू के अज़ाब से बचा लिया। हम इससे पहले उसी को पुकारते थे, बेशक वह नेक सुलूक वाला, मेहरबान है। (21-28)

पस तुम नसीहत करते रहो, अपने रब के फ़ज़्ल से तुम न काहिन (भविष्य वक्‍ता) हो और न मजनून। क्या वे कहते हैं कि यह एक शायर है, हम इस पर गर्दिशे ज़माना (काल-चक्र) के मुंतज़िर हैं। कहो कि इंतज़ार करो, मैं भी तुम्हारे साथ इंतज़ार करने वालों में हूं। क्या उनकी अक़््लें उन्हें यही सिखाती हैं या ये सरकश लोग हैं। कया वे कहते हैं कि यह क्ुरआन को ख़ुद बना लाया है। बल्कि वे ईमान नहीं लाना चाहते। पस वे इसके मानिंद कोई कलाम ले आएं, अगर वे सच्चे हैं। (29-34)

क्या वे किसी ख़ालिक़ (सृष्टा) के बगैर पैदा हो गए या वे ख़ुद ही ख़ालिक़ हैं। क्या ज़मीन व आसमान को उन्होंने पैदा किया है, बल्कि वे यक्लीन नहीं रखते। क्या उनके पास तुम्हारे रब के ख़ज़ाने हैं या वे दारोग़ा (संरक्षक) हैं। क्या उनके पास कोई सीढ़ी है जिस पर वे बातें सुन लिया करते हैं, तो उनका सुनने वाला कोई खुली दलील ले आए। क्या अल्लाह के लिए बेटियां हैं और तुम्हारे लिए बेटे। (35-39)

क्या तुम उनसे मुआवज़ा मांगते हो कि वे तावान (अधिभार) के बोझ से दबे जा रहे हैं। क्या उनके पास गैब है कि वे लिख लेते हैं। क्या वे कोई तदबीर करना चाहते हैं, पस इंकार करने वाले ख़ुद ही उस तदबीर में गिरफ़्तार होंगे। क्या अल्लाह के सिवा उनका और कोई माबूद (पूज्य) है। अल्लाह पाक है उनके शरीक बनाने से। और अगर वे आसमान से कोई टुकड़ा गिरता हुआ देखें तो वे कहेंगे कि यह तह-ब-तह बादल है। पस उन्हें छोड़ो, यहां तक कि वे अपने उस दिन से दो चार हों जिसमें उनके होश जाते रहेंगे। जिस दिन उनकी तदबीरें उनके कुछ काम न आएंगी और न उन्हें कोई मदद मिलेगी। और उन ज़ालिमों के लिए इसके सिवा भी अज़ाब है, लेकिन उनमें से अक्सर नहीं जानते। (40-47)

और तुम सब्र के साथ अपने रब के फ़ैसले का इंतज़ार करो। बेशक तुम हमारी निगाह में हो। और अपने रब की तस्बीह करो उसकी हम्द (प्रशंसा) के साथ, जिस वक़्त तुम उठते हो। और रात को भी उसकी तस्बीह करो, और सितारों के पीछे हटने के वक़्त भी। (48-49)

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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