धर्म

सूरह यूनुस – सूरह 10

सूरह यूनुस कुरान शरीफ का दसवां सूरह है, जिसमें कुल 109 आयतें हैं। यह सूरह मक्की है, जिसका नाम पैगम्बर यूनुस के नाम पर पड़ा। सूरह यूनुस की 98वीं आयत में इसका ज़िक्र किया गया है। कहते हैं सूरह यूनुस का पाठ करने वाले इंसान को पैगम्बर यूनुस के दरबार में इनाम मिलता है। यह सूरह दुश्मनों और बदख़्वाहों को कम करके हर तरह की मुश्किलों में फतह दिलाता है। यही नहीं जो भी ख़ुदा का बंदा सूरह युनूस को 21 बार पढ़ता है वह कब्र की कठोरता से सुरक्षित रहता है और जन्नत नसीब करता है। यह भी कहा जाता है कि यदि कोई व्यक्ति सूरह यूनुस का पाठ दो या तीन महीने में एक बार भी अल्लाह को याद करते हुए करता है, तो उन्हें काफिरों के बीच जाने का कोई डर नहीं रहता बल्कि कयामत के दिन पैगंबर यूनुस के समुदाय में मौजूद लोगों के बराबर बख्शीश मिलती है। सूरह यूनुस के ज़रिये से कोई भी इंसान अपने आमिल में से चोरों की पहचान कर सकता है। इसके लिए सूरह को कागज़ के ऊपर लिखा जाता है और उसके नीचे घर या कार्यस्थल में मौजूद सभी लोगों के नाम लिखा जाता है जिन पर चोरी का संदेह हो सकता है और फिर इस कागज़ को घर में रखा जाता है। इससे कुछ समय बाद पता चलता है कि चोर कौन है। आइए, इस करिश्माई सूरह यूनुस का पाठ करें और पाएँ इसके तिलिस्मी वरदान को।

शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है। 

अलिफ़० लाम० रा०। ये पुरहिक्मत (तत्वदर्शितामय) किताब की आयतें हैं। क्यों लोगों को इस पर हैरत है कि हमने उन्हीं में से एक शख्स पर “वही! (प्रकाशना) की कि लोगों को डराओ और जो ईमान लाएं उन्हें ख़ुशख़बरी सुना दो कि उनके लिए उनके रब के पास सच्चा मर्तबा है। मुंकिरों ने कहा कि यह शख्स तो खुला जादूगर है। (1-2) 

बेशक तुम्हारा रब अल्लाह है जिसने आसमानों और ज़मीन को छः दिनों (चरणों) में पैदा किया, फिर वह अर्श पर क़ायम हुआ। वही मामलात का इंतिज़ाम करता है। उसकी इजाज़त के बगैर कोई सिफ़ारिश करने वाला नहीं। यही अल्लाह तुम्हारा रब है पस तुम उसी की इबादत करो, क्या तुम सोचते नहीं। उसी की तरफ़ तुम सबको लौट कर जाना है, यह अल्लाह का पक्का वादा है। बेशक वह पैदाइश की इब्तिदा करता है, फिर वह दुबारा पैदा करेगा ताकि जो लोग ईमान लाए और उन्होंने नेक काम किए उन्हें इंसाफ़ के साथ बदला दे। और जिन्होंने इंकार किया उनके इंकार के बदले उनके लिए खौलता पानी और दर्दनाक अज़ाब है। (3-4)

अल्लाह ही है जिसने सूरज को चमकता बनाया और चांद को रोशनी दी और उसकी मंज़िलें मुक़र्रर कर दीं ताकि तुम वर्षों का शुमार और हिसाब मालूम करो। अल्लाह ने ये सब कुछ बेमक़्सद नहीं बनाया है। वह निशानियां खोल कर बयान करता है उनके लिए जो समझ रखते हैं। यक़्ीनन रात और दिन के उल्लनट फेर में और अल्लाह ने जो कुछ आसमानों और ज़मीन में पैदा किया है उनमें उन लोगों के लिए निशानियां हैं जो डरते हैं। बेशक जो लोग हमारी मुलाक़ात की उम्मीद नहीं रखते और दुनिया की ज़िंदगी पर राज़ी और मुतमइन हैं और जो हमारी निशानियों से बेपरवा हैं, उनका ठिकाना जहन्नम होगा इस सबब से कि जो वे करते थे। बेशक जो लोग ईमान लाए और नेक काम किए, अल्लाह उनके ईमान की बदौलत उन्हें पहुंचा देगा। उनके नीचे नहरें बहती होंगी नेमत के बाग़ों में। उसमें उनका क़ौल होगा कि ऐ अल्लाह तू पाक है। और मुलाक़ात उनकी सलाम होगी। और उनकी आख़िरी बात यह होगी कि सारी तारीफ़ अल्लाह के लिए है जो रब है सारे जहान का। अगर अल्लाह लोगों के लिए अज़ाब उसी तरह जल्दी पहुंचा दे जिस तरह वह उनके साथ रहमत में जल्दी करता है तो उनकी मुददत ख़त्म कर दी गई होती। लेकिन हम उन लोगों को जो हमारी मुलाक़ात की उम्मीद नहीं रखते उनकी सरकशी में भटकने के लिए छोड़ देते हैं। और इंसान को जब कोई तकलीफ़ पहुंचती है तो वह खड़े और बैठे और लेटे हमें पुकारता है। फिर जब हम उससे उसकी तकलीफ़ को दूर कर देते हैं तो वह ऐसा हो जाता है गोया उसने कभी अपने किसी बुरे वक़्त पर हमें पुकारा ही न था। इस तरह हद से गुज़र जाने वालों के लिए उनके आमाल ख़ुशनुमा बना दिए गए हैं। और हमने तुमसे पहले क्रौमों को हलाक किया जबकि उन्होंने ज़ुल्म किया। और उनके पैग़म्बर उनके पास खुली दलीलों के साथ आए और वे ईमान लाने वाले न बने | हम ऐसा ही बदला देते हैं मुजरिम लोगों को। फिर हमने उनके बाद तुम्हें मुल्क में जानशीन (उत्तराधिकारी) बनाया ताकि हम देखें कि तुम कैसा अमल करते हो। (5-14)

और जब उन्हें हमारी खुली हुई आयतें पढ़कर सुनाई जाती हैं तो जिन लोगों को हमारे पास आने का खटका नहीं है वे कहते हैं कि इसके सिवा कोई और क़ुरआन लाओ या इसको बदल दो। कहो कि मेरा यह काम नहीं कि मैं अपने जी से इसको बदल दूं। मैं तो सिर्फ़ उस “वही” (ईश्वरीय वाणी) की पैरवी करता हूं जो मेरे पास आती है। अगर मैं अपने रब की नाफ़रमानी करूं तो मैं एक बड़े दिन के अज़ाब से डरता हूं। कहो कि अगर अल्लाह चाहता तो मैं इसको तुम्हें न सुनाता और न अल्लाह इससे तुम्हें बाख़बर करता। मैं इससे पहले तुम्हारे दर्मियान एक उम्र बसर कर चुका हूं, फिर क्या तुम अक़्ल से काम नहीं लेते, उससे बढ़कर ज़ालिम और कौन होगा जो अल्लाह पर झूठ बोहतान बांधे या उसकी निशानियों को झुठलाए। यक्रीनन मुजरिमों को फ़लाह हासिल नहीं होती। (15-17)

और वे अल्लाह के सिवा ऐसी चीज़ों की इबादत करते हैं जो उन्हें न नुक़्सान पहुंचा सकें और न नफ़ा पहुंचा सकें। और वे कहते हैं कि ये अल्लाह के यहां हमारे सिफ़ारिशी हैं। कहो, क्या तुम अल्लाह को ऐसी चीज़ की ख़बर देते हो जो उसे आसमानों और ज़मीन में मालूम नहीं। वह पाक और बरतर है उससे जिसे वे शरीक करते हैं। और लोग एक ही उम्मत थे। फिर उन्होंने इख्तेलाफ़ किया। और अगर तुम्हारे रब की तरफ़ से एक बात पहले से न ठहर चुकी होती तो उनके दर्मियान उस अग्न (मामले) का फ़ैसला कर दिया जाता जिसमें वे इख़्तेलाफ़ कर रहे हैं। (18-19)

और वे कहते हैं कि नबी पर उसके रब की तरफ़ से कोई निशानी क्‍यों नहीं उतारी गई, कहो कि ग़ैब की ख़बर तो अल्लाह ही को है। तुम लोग इंतिज़ार करो, मैं भी तुम्हारे साथ इंतिज़ार करने वालों में से हूं। और जब कोई तकलीफ़ पड़ने के बाद हम लोगों को अपनी रहमत का मज़ा चखाते हैं तो वे फ़ौरन हमारी निशानियों के मामले में हीले बनाने लगते हैं। कहो कि ख़ुदा अपने हीलों में उनसे भी ज़्यादा तेज़ है। यक्रीनन हमारे फ़रिश्ते तुम्हारी हीलाबाज़ियों को लिख रहे हैं। (20-21)

वह अल्लाह ही है जो तुम्हें ख़ुश्की और तरी में चलाता है। चुनांचे जब तुम कश्ती में होते हो और कश्तियां लोगों को लेकर मुवाफ़िक् हवा से चल रही होती हैं और लोग उससे ख़ुश होते हैं कि यकायक तुंद हवा आती है और उन पर हर जानिब से मौजें उठने लगती हैं और वे गुमान कर लेते हैं कि हम घिर गए। उस वक़्त वे अपने दीन को अल्लाह ही के लिए ख़ालिस करके उसे पुकारने लगते हैं कि अगर तूने हमें इससे नजात दे दी तो यक़ीनन हम शुक्रगुज़ार बंदे बनेंगे। फिर जब वह उन्हें नजात दे देता है तो फ़ौरन ही ज़मीन में नाहक़ की सरकशी करने लगते हैं। ऐ लोगो तुम्हारी सरकशी तुम्हारे अपने ही ख़िलाफ़ है, दुनिया की ज़िंदगी का नफ़ा उठा लो, फिर तुम्हें हमारी तरफ़ लौट कर आना है, फिर हम बता देंगे जो कुछ तुम कर रहे थे। (22-23)

दुनिया की ज़िंदगी की मिसाल ऐसी है जैसे पानी कि हमने उसे आसमान से बरसाया तो ज़मीन का सब्ज़ा ख़ूब निकला जिसे आदमी खाते हैं और जिसे जानवर खाते हैं। यहां तक कि जब ज़मीन पूरी रौनक़ पर आ गई और संवर उठी और ज़मीन वालों ने गुमान कर लिया कि अब यह हमारे क़ाबू में है तो अचानक उस पर हमारा हुक्म रात को या दिन को आ गया, फिर हमने उसे काट कर ढेर कर दिया गोया कल यहां कुछ था ही नहीं। इस तरह हम निशानियां खोल कर बयान करते हैं उन लोगों के लिए जो ग़ौर करते हैं। और अल्लाह सलामती (शांति) के घर की तरफ़ बुलाता है और वह जिसे चाहता है सीधा रास्ता दिखा देता है। जिन लोगों ने भलाई की उनके लिए भलाई है और उससे अधिक भी | और उनके चेहरों पर न स्याही छाएगी और न ज़िल्लत। यही जन्नत वाले लोग हैं, वे उसमें हमेशा रहेंगे। और जिन्होंने बुराइयां कमाई तो बुराई का बदला उसके बराबर है। और उन पर रुस्वाई छाई हुई होगी। कोई उन्हें अल्लाह से बचाने वाला न होगा। गोया कि उनके चेहरे अंधेरी रात के टुकड़ों से ढांक दिए गए हैं। यही लोग दोज़ख़ वाले हैं, वे उसमें हमेशा रहेंगे। (24-27)

और जिस दिन हम उन सबको जमा करेंगे, फिर हम शिर्क करने वालों से कहेंगे कि ठहरो तुम भी और तुम्हारे बनाए हुए शरीक भी | फिर हम उनके दर्मियान तफ़रीक़ (विभेद) कर देंगे और उनके शरीक कहेंगे कि तुम हमारी इबादत तो नहीं करते थे। अल्लाह हमारे दर्मियान गवाही के लिए काफ़ी है। हम तुम्हारी इबादत से बिल्कुल बेख़बर थे। उस वक़्त हर शख्स अपने उस अमल से दो चार होगा जो उसने किया था और लोग अल्लाह अपने मालिके हक़ीक़ी की तरफ़ लौटाए जाएंगे और जो झूठ उन्होंने गढ़े थे वे सब उनसे जाते रहेंगे। कहो कि कौन तुम्हें आसमान और ज़मीन से रोज़ी देता है। या कौन है जो कान पर और आंखों पर इस़्तियार रखता है। और कौन बेजान में से जानदार को और जानदार में से बेजान को निकालता है। और कौन मामलात का इंतिज़ाम कर रहा है। वे कहेंगे कि अल्लाह। कहो कि फिर क्या तुम डरते नहीं। पस वही अल्लाह तुम्हारा परवरदिगार (पालनहार) हक़ीक़ी है। तौफ़ीक़ के बाद भटकने के सिवा और क्या है, तुम किधर फिरे जाते हो, इसी तरह तेरे रब की बात सरकशी करने वालों के हक़ में पूरी हो चुकी है कि वे ईमान न लाएंगे। (28-33)

कहो, क्या तुम्हारे ठहराए हुए शरीकों में कोई है जो पहली बार पैदा करता हो फिर वह दुबारा भी पैदा करे। कहो, अल्लाह ही पहली बार भी पैदा करता है फिर वही दुबारा भी पैदा करेगा। फिर तुम कहां भटके जाते हो। कहो, क्या तुम्हारे शरीकों में कोई है जो हक़ की तरफ़ रहनुमाई करता हो, कह दो कि अल्लाह ही हक़ की तरफ़ रहनुमाई करता है। फिर जो हक़ की तरफ़ रहनुमाई करता है वह पैरवी किए जाने का मुस्तहिक़ है या वह जिसे ख़ुद ही रास्ता न मिलता हो बल्कि उसे रास्ता बताया जाए। तुम्हें क्या हो गया है, तुम कैसा फ़ैसला करते हो। उनमें से अक्सर सिर्फ़ गुमान की पैरवी कर रहे हैं। और गुमान हक़ बात में कुछ भी काम नहीं देता। अल्लाह को ख़ूब मालूम है जो कुछ वे करते हैं। (34-36)

और यह कुरआन ऐसा नहीं है कि अल्लाह के सिवा कोई इसको बना ले। बल्कि यह तस्दीक़ (पुष्टि) है उन पेशीनगोइयों (भविष्यवाणियों) की जो इसके पहले से मौजूद हैं। और किताब की तफ़्सील है, इसमें कोई शक नहीं कि वह ख़ुदावंदे आलम की तरफ़ से है। क्या लोग कहते हैं कि इस शख्स ने इसको गढ़ लिया है। कहो कि तुम इसकी मानिंद कोई सूरह ले आओ। और अल्लाह के सिवा तुम जिसे बुला सको बुला लो, अगर तुम सच्चे हो। बल्कि ये लोग उस चीज़ को झुठला रहे हैं जो उनके इल्म के इहाते में नहीं आई | और जिसकी हक़ीक़त अभी उन पर नहीं खुली। इसी तरह उन लोगों ने भी झुठलाया जो इनसे पहले गुज़रे हैं, पस देखो कि ज़ालिमों का अंजाम क्या हुआ। और उनमें से वे भी हैं जो कुरआन पर ईमान ले आएंगे और वे भी हैं जो उस पर ईमान नहीं लाएंगे। और तेरा रब मुफ़्सिदों (उपद्रवियों) को ख़ूब जानता है। और अगर वे तुम्हें झुठलाते हैं तो कह दो कि मेरा अमल मेरे लिए है और तुम्हारा अमल तुम्हारे लिए। तुम उससे बरी हो जो मैं करता हूं और मैं उससे बरी हूं जो तुम कर रहे हो। और उनमें कुछ ऐसे भी हैं जो तुम्हारी तरफ़ कान लगाते हैं तो क्या तुम बहरों को सुनाओगे जबकि वे समझ से काम न ले रहे हों। और उनमें से कुछ ऐसे हैं जो तुम्हारी तरफ़ देखते हैं तो क्या तुम अंधों को रास्ता दिखाओगे अगरचे वे देख न रहे हों। अल्लाह लोगों पर कुछ भी ज़ुल्म नहीं करता मगर लोग ख़ुद ही अपनी जानों पर ज़ुल्म करते हैं। (37-44)

और जिस दिन अल्लाह उन्हें जमा करेगा, गोया कि वे बस दिन की एक घड़ी दुनिया में थे। वे एक दूसरे को पहचानेंगे। बेशक सख्त घाटे में रहे वे लोग जिन्होंने अल्लाह से मिलने को झुठलाया और वे राहेरास्त (सन्मार्ग) पर न आए। हम तुम्हें उसका कोई हिस्सा दिखा दें जिसका हम उनसे वादा कर रहे हैं या तुम्हें वफ़ात (मौत) दे दें, बहरहाल उन्हें हमारी ही तरफ़ लौटना है, फिर अल्लाह गवाह है उस पर जो कुछ वे कर रहे हैं। और हर उम्मत के लिए एक रसूल है। फिर जब उनका रसूल आ जाता है तो उनके दर्मियान इंसाफ़ के साथ फ़ैसला कर दिया जाता है और उन पर कोई ज़ुल्म नहीं होता। (45-47)

और वे कहते हैं कि यह वादा कब पूरा होगा अगर तुम सच्चे हो। कहो मैं अपने वास्ते भी बुरे और भले का मालिक नहीं, मगर जो अल्लाह चाहे। हर उम्मत के लिए एक वक़्त है। जब उनका वक़्त आ जाता है तो फिर न वे एक घड़ी पीछे होते और न आगे। कहो कि बताओ, अगर अल्लाह का अज़ाब तुम पर रात को आ पड़े या दिन को आ जाए तो मुजरिम लोग इससे पहले क्‍या कर लेंगे। फिर क्‍या जब अज़ाब वाक़ेअ (घटित) हो चुकेगा तब उस पर यकीन करोगे। अब क़ायल हुए और तुम इसी का तक़ाज़ा करते थे, फिर ज़ालिमों से कहा जाएगा कि अब हमेशा का अज़ाब चखो। यह उसी का बदला मिल रहा है जो कुछ तुम कमाते थे। (48-52)

और वे तुमसे पूछते हैं कि क्या यह बात सच है। कहो कि हां मेरे रब की क़सम यह सच है और तुम उसे थका न सकोगे। और अगर हर ज़ालिम के पास वह सब कुछ हो जो ज़मीन में है तो वह उसे फ़िदये (आर्थिक दंड) में दे देना चाहेगा और जब वे अज़ाब को देखेंगे तो अपने दिल में पछताएंगे। और उनके दर्मियान इंसाफ़ से फ़ैसला कर दिया जाएगा और उन पर ज़ुल्म न होगा। याद रखो जो कुछ आसमानों और ज़मीन में है सब अल्लाह का है, याद रखो अल्लाह का वादा सच्चा है मगर अक्सर लोग नहीं जानते। वही ज़िंदा करता है और वही मारता है और उसी की तरफ़ तुम लौटाए जाओगे। ऐ लोगो, तुम्हारे पास तुम्हारे रब की जानिब से नसीहत आ गई और उसके लिए शिफ़ा (निदान) जो सीनों में होती है और अहले ईमान के लिए हिदायत और रहमत। कहो कि यह अल्लाह के फ़ज्ल और उसकी रहमत से है। अब चाहिए कि लोग ख़ुश हों, यह उससे बेहतर है जिसे वे जमा कर रहे हैं। कहो, यह बताओ कि अल्लाह ने तुम्हारे लिए जो रिज़्क़ उतारा था, फिर तुमने उसमें से कुछ को हराम ठहराया और कुछ को हलाल। कहो, क्या अल्लाह ने तुम्हें इसका हुक्म दिया है या तुम अल्लाह पर झूठ लगा रहे हो। और क़ियामत के दिन के बारे में उन लोगों का क्‍या ख्याल है जो अल्लाह पर झूठ लगा रहे हैं। बेशक अल्लाह लोगों पर बड़ा फ़ज़्ल फ़रमाने वाला है, मगर अक्सर लोग शुक्र अदा नहीं करते। (53-60)

और तुम जिस हाल में भी हो और क्रुरआन में से जो हिस्सा भी सुना रहे हो और तुम लोग जो काम भी करते हो, हम तुम्हारे ऊपर गवाह रहते हैं जिस वक़्त तुम उसमें मशगूल होते हो। और तेरे रब से ज़र्रा बराबर भी कोई चीज़ छुपी नहीं, न ज़मीन में और न आसमान में और न इससे छोटी न बड़ी, मगर वह एक वाज़ेह किताब में है। सुन लो, अल्लाह के दोस्तों के लिए न कोई ख़ौफ़ होगा और न वे ग़मगीन होंगे। ये वे लोग हैं जो ईमान लाए और डरते रहे, उनके लिए ख़ुशख़बरी है दुनिया की ज़िंदगी में भी और आख़िरत में, अल्लाह की बातों में कोई तब्दीली नहीं, यही बड़ी कामयाबी है। और तुम्हें उनकी बात ग़म में न डाले। ज़ोर सब अल्लाह ही के लिए है, वह सुनने  वाला जानने वाला है। (61-65)

सुनो, जो आसमानों में हैं और जो ज़मीन में हैं सब अल्लाह ही के हैं। और जो लोग अल्लाह के सिवा शरीकों को पुकारते हैं वे किस चीज़ की पैरवी कर रहे हैं, वे सिर्फ़ गुमान की पैरवी कर रहे हैं और वे महज़ अटकल दौड़ा रहे हैं। वह अल्लाह ही है जिसने तुम्हारे लिए रात बनाई ताकि तुम सुकून हासिल करो। और दिन को रोशन बनाया। बेशक इसमें निशानियां हैं उन लोगों के लिए जो सुनते हैं। कहते हैं कि अल्लाह ने बेटा बनाया है। वह पाक है, बेनियाज़ (निस्पृष्ठ) है। उसी का है जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में है। तुम्हारे पास इसकी कोई दलील नहीं | क्या तुम अल्लाह पर ऐसी बात गढ़ते हो जिसका तुम इल्म नहीं रखते | कहो, जो लोग अल्लाह पर झूठ बांधते हैं वे फ़लाह नहीं पाएंगे। उनके लिए बस दुनिया में थोड़ा फ़ायदा उठा लेना है। फिर हमारी ही तरफ़ उनका लौटना है। फिर उनको हम इस इंकार के बदले सख्त अज़ाब का मज़ा चखाएंगे। (66-70)

और उनको नूह का हाल सुनाओ। जबकि उसने अपनी क़ौम से कहा कि ऐ मेरी क़ौम, अगर मेरा खड़ा होना और अल्लाह की आयतों से नसीहत करना तुम पर गिरां (भार) हो गया है तो मैंने अल्लाह पर भरोसा किया। तुम अपना मुत्तफ़िक़ा फ़ैलला कर लो और अपने शरीकों को भी साथ ले लो, तुम्हें अपने फ़ैसले में कोई शुबह बाक़ी न रहे। फिर तुम लोग मेरे साथ जो कुछ करना चाहते हो कर गुज़रो और मुझको मोहलत न दो। अगर तुम एराज़ (उपेक्षा) करोगे तो मैंने तुमसे कोई मज़दूरी नहीं मांगी है। मेरी मज़दूरी तो अल्लाह के ज़िम्मे है। और मुझको हुक्म दिया गया है कि मैं फ़रमांबरदारों में से हूं। फिर उन्होंने उसे झुठला दिया तो हमने नूह को और जो लोग उसके साथ कश्ती में थे नजात दी और उन्हें जानशीन (उत्तराधिकारी) बनाया। और उन लोगों को ग़र्क़ कर दिया जिन्होंने हमारी निशानियों को झुठलाया था। देखो कि क्या अंजाम हुआ उनका जिन्हें डराया गया था। (71-73)

फिर हमने नूह के बाद कितने रसूल भेजे। वे उनके पास खुली खुली दलीलें लेकर आए, मगर वे उस पर ईमान लाने वाले न बने जिसे पहले झुठला चुके थे। इसी तरह हम हद से निकल जाने वालों के दिलों पर मुहर लगा देते हैं। फिर हमने उनके बाद मूसा और हारून को फ़िरऔन और उसके सरदारों के पास अपनी निशानियां देकर भेजा, मगर उन्होंने घमंड किया और वे मुजरिम लोग थे। फिर जब उनके पास हमारी तरफ़ से सच्ची बात पहुंची तो उन्होंने कहा, यह तो खुला हुआ जादू है। मूसा ने कहा कि क्‍या तुम हक़ को जादू कहते हो जबकि वह तुम्हारे पास आ चुका है। कया यह जादू है, हालांकि जादू वाले कभी फ़लाह नहीं पाते। उन्होंने कहा कि क्या तुम हमारे पास इसलिए आए हो कि हमें उस रास्ते से फेर दो जिस पर हमने अपने बाप दादा को पाया है, और इस मुल्क में तुम दोनों की बड़ाई क़ायम हो जाए, और हम कभी तुम दोनों की बात मानने वाले नहीं हैं। (74-78) 

और फ़िरऔन ने कहा कि तमाम माहिर जादूगरों को मेरे पास ले आओ। जब जादूगर आए तो मूसा ने उनसे कहा कि जो कुछ तुम्हें डालना है डालो। फिर जब जादूगरों ने डाला तो मूसा ने कहा कि जो कुछ तुम लाए हो वह जादू है। बेशक अल्लाह इसको बातिल (विनष्ट) कर देगा, अल्लाह यक़ीनन मुफ़िसिदों (उपद्रवियों) के काम को सुधरने नहीं देता। और अल्लाह अपने हुक्म से हक़ को हक़ कर दिखाता है चाहे मुजरिमों को वह कितना ही नागवार हो। फिर मूसा को उसकी क़ौम में से चन्द नौजवानों के सिवा किसी ने न माना, फ़िरऔन के डर से और ख़ुद अपनी क़ौम के बड़े लोगों के डर से कि कहीं वे उन्हें किसी फ़ितने में न डाल दे, बेशक फ़िरऔन ज़मीन में ग़लबा (संप्रभुत्) रखता था और वह उन लोगों में से था जो हद से गुज़र जाते हैं। और मूसा ने कहा ऐ मेरी क़ौम, अगर तुम अल्लाह पर ईमान रखते हो तो उसी पर भरोसा करो, अगर तुम वाक़ई फ़रमांबरदार हो। उन्होंने कहा, हमने अल्लाह पर भरोसा किया, ऐ हमारे रब, हमें ज़ालिम लोगों के लिए फ़ितना न बना। और अपनी रहमत से हमें मुंकिर लोगों से नजात दे। (79-86) 

और हमने मूसा और उसके भाई की तरफ़ “वही” (प्रकाशना) की कि अपनी क़ौम के लिए मिस्र में कुछ घर मुक़ररर कर लो और अपने इन घरों को क़रिबला बनाओ और नमाज़ क्रायम करो। और अहले ईमान को ख़ुशख़बरी दे दो। और मूसा ने कहा, ऐ हमारे रब, तूने फ़िरऔन को और उसके सरदारों को दुनिया की ज़िंदगी में रौनक़ और माल दिया है। ऐ हमारे रब, इसलिए कि वे तेरी राह से लोगों को भटकाएं। ऐ हमारे रब, उनके माल को ग़ारत कर दे और उनके दिलों को सख्त कर दे कि वे ईमान न लाएं यहां तक कि दर्दनाक अज़ाब को देख लें। फ़रमाया, तुम दोनों की दुआ क्रुबूल की गई। अब तुम दोनों जमे रहो और उन लोगों की राह की पैरवी न करो जो इल्म नहीं रखते। और हमने बनी इस्राईल को समुद्र पार करा दिया तो फ़िरऔन और उसके लश्कर ने उनका पीछा किया। सरकशी और ज़्यादती की ग़रज़ से। यहां तक कि जब फ़िरऔन डूबने लगा तो उसने कहा कि मैं ईमान लाया कि कोई माबूद (पूज्य) नहीं मगर वह जिस पर बनी इस्राईल ईमान लाए। और मैं उसके फ़रमांबरदारों में हूं। क्या अब, और इससे पहले तू नाफ़रमानी करता रहा और तू फ़साद बरपा करने वालों में से था। पस आज हम तेरे बदन को बचाएंगे ताकि तू अपने बाद वालों के लिए निशानी बने और बेशक बहुत से लोग हमारी निशानियों से ग़ाफ़िल रहते हैं। (87-92)

और हमने बनी इस्राईन को अच्छा ठिकाना दिया और उन्हें सुथरी चीज़ें खाने के लिए दीं। फिर उन्होंने इख़्तेलाफ़ (मतभेद) नहीं किया मगर उस वक़्त जबकि इल्म उनके पास आ चुका था। यक़ीनन तेरा रब क्रियामत के दिन उनके दर्मियान उस चीज़ का फ़ैसला कर देगा जिसमें वे इख्तेलाफ़ करते रहे। पस अगर तुम्हें उस चीज़ के बारे में शक है जो हमने तुम्हारी तरफ़ उतारी है तो उन लोगों से पूछ लो जो तुमसे पहले से किताब पढ़ रहे हैं। बेशक यह तुम पर हक़ आया है तुम्हारे रब की तरफ़ से, पस तुम शक करने वालों में से न बनो। और तुम उन लोगों में शामिल न हो जिन्होंने अल्लाह की आयतों को झुठलाया है, वर्ना तुम नुक़्सान उठाने वालों में से होगे। बेशक जिन लोगों पर तेरे रब की बात पूरी हो चुकी है वे ईमान नहीं लाएंगे, चाहे उनके पास सारी निशानियां आ जाएं जब तक कि वे दर्दनाक अज़ाब को सामने आता न देख लें। पस क्‍यों न हुआ कि कोई बस्ती ईमान लाती कि उसका ईमान उसे नफ़ा देता, यूनुस की क़ौम के सिवा। जब वे ईमान लाए तो हमने उनसे दुनिया की ज़िंदगी में रुस्वाई का अज़ाब टाल दिया और उन्हें एक मुदृदत तक बहरामंद (सुखी-सम्पन्न) होने का मौक़ा दिया। (93-98)

और अगर तेरा रब चाहता तो ज़मीन पर जितने लोग हैं सबके सब ईमान ले आते। फिर क्या तुम लोगों को मजबूर करोगे कि वे मोमिन हो जाएं। और किसी शख्स के लिए मुमकिन नहीं कि वह अल्लाह की इजाज़त के बगैर ईमान ला सके। और अल्लाह उन लोगों पर गंदगी डाल देता है जो अक़्ल से काम नहीं लेते। कहो कि आसमानों और ज़मीन में जो कुछ है उसे देखो और निशानियां और डरावे उन लोगों को फ़ायदा नहीं पहुंचाते जो ईमान नहीं लाते। वे तो बस उस तरह के दिन का इंतिज़ार कर रहे हैं जिस तरह के दिन उनसे पहले गुज़रे हुए लोगों को पेश आए। कहो, इंतिज़ार करो मैं भी तुम्हारे साथ इंतिज़ार करने वालों में हूं फिर हम बचा लेते हैं अपने रसूलों को और उन्हें जो ईमान लाए। इसी तरह हमारा ज़िम्मा है कि हम ईमान वालों को बचा लेंगे। (99-103)

कहो, ऐ लोगो अगर तुम मेरे दीन के मुताल्लिक़ शक में हो तो मैं उनकी इबादत नहीं करता जिनकी इबादत तुम करते हो अल्लाह के सिवा। बल्कि मैं उस अल्लाह की इबादत करता हूं जो तुम्हें वफ़ात (मौत) देता है और मुझको हुक्म मिला है कि मैं ईमान वालों में से बनूं। और यह कि अपना रुख़ यकसू (एकाग्र) होकर दीन की तरफ़ करूँ। और मुश्रिकों में से न बनूं। और अल्लाह के अलावा उन्हें न पुकारो जो तुम्हें न नफ़ा पहुंचा सकते हैं और न नुक़्सान। फिर अगर तुम ऐसा करोगे तो यक़ीनन तुम ज़ालिमों में से हो जाओगे। और अगर अल्लाह तुम्हें किसी तकलीफ़ में पकड़ ले तो उसके सिवा कोई नहीं जो उसे दूर कर सके। और अगर वह तुम्हें कोई भलाई पहुंचाना चाहे तो उसके फ़ज़्ल को कोई रोकने वाला नहीं। वह अपना फ़ज़्ल अपने बंदों में से जिसे चाहता है देता है और वह बख्छने वाला मेहरबान है। कहो, ऐ लोगो तुम्हारे रब की तरफ़ से तुम्हारे पास हक़ आ गया है। जो हिदायत क़ुबूल करेगा वह अपने ही लिए करेगा और जो भटकेगा तो उसका वबाल उसी पर आएगा, और मैं तुम्हारे ऊपर ज़िम्मेदार नहीं हूं। और तुम उसकी पैरवी करो जो तुम पर “वही” (प्रकाशना) की जाती है और सब्र करो यहां तक कि अल्लाह फ़ैसला कर दे और वह बेहतरीन फ़ैसला करने वाला है। (104-109)

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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