धर्म

सूरह अस साफ़्फ़ात हिंदी में – सूरह 37

शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान, निहायत रहम वाला है।

क़सम है क़तार दर क़तार सफ़ बांधने वाले फ़रिश्तों की। फिर डांटने वालों की झिड़क कर | फिर उनकी जो नसीहत सुनाने वाले हैं। कि तुम्हारा माबूद (पूज्य) एक ही है। आसमानों और ज़मीन का रब और जो कुछ उनके दर्मियान है और सारे मश्रिक्रों (पूर्वी दिशाओं) का रब। (1-5)

हमने आसमाने दुनिया को सितारों की ज़ीनत (शोभा) से सजाया है। और हर शैतान सरकश से उसे महफ़ूज़ किया है। वे मलए आला (आकाश लोक) की तरफ़ कान नहीं लगा सकते और वे हर तरफ़ से मारे जाते हैं, भगाने के लिए। और उनके लिए एक दाइमी (स्थाई) अज़ाब है। मगर जो शैतान कोई बात उचक ले तो एक दहकता हुआ शोला उसका पीछा करता है। (6-10)

पस उनसे पूछो कि उनकी पैदाइश ज़्यादा मुश्किल है या उन चीज़ों की जो हमने पैदा की हैं। हमने उन्हें चिपकती मिट्टी से पैदा किया है। बल्कि तुम तअज्जुब करते हो और वे मज़ाक़ उड़ा रहे हैं। और जब उन्हें समझाया जाता है तो वे समझते नहीं। और जब वे कोई निशानी देखते हैं तो वे उसे हंसी में टाल देते हैं। और कहते हैं कि यह तो बस खुला हुआ जादू है। क्या जब हम मर जाएंगे और मिट्टी और हड़िडियां बन जाएंगे तो फिर हम उठाए जाएंगे। और क्या हमारे अगले बाप दादा भी। कहो कि हां, और तुम ज़लील भी होगे। (11-18)

पस वह तो एक झिड़की होगी, फिर उसी वक़्त वे देखने लगेंगे और वे कहेंगे कि हाय हमारी कमबख़्ती यह तो जज़ा (बदले) का दिन है। यह वही फ़ैसले का दिन है जिसे तुम झुठलाते थे। जमा करो उन्हें जिन्होंने ज़ुल्म किया और उनके साथियों को और उन माबूदों को जिनकी वे अल्लाह के सिवा इबादत करते थे, फिर उन सबको दोज़ख़ का रास्ता दिखाओ और उन्हें ठहराओ, इनसे कुछ पूछना है। तुम्हें क्या हुआ कि तुम एक दूसरे की मदद नहीं करते। बल्कि आज तो वे फ़रमांबरदार हैं। (19-26)

और वे एक दूसरे की तरफ़ मुतवज्जह होकर सवाल व जवाब करेंगे। कहेंगे तुम हमारे पास दाईं तरफ़ से आते थे। वे जवाब देंगे, बल्कि तुम ख़ुद ईमान लाने वाले नहीं थे। और हमारा तुम्हारे ऊपर कोई ज़ोर न था, बल्कि तुम ख़ुद ही सरकश लोग थे। पस हम सब पर हमारे रब की बात पूरी होकर रही, हमें उसका मज़ा चखना ही है। हमनें तुम्हें गुमराह किया, हम ख़ुद भी गुमराह थे। पस वे सब उस दिन अज़ाब में मुशतरक (सह भागी) होंगे। (27-33)

हम मुजरिमों के साथ ऐसा ही करते हैं। ये वे लोग थे कि जब उनसे कहा जाता कि अल्लाह के सिवा कोई माबूद (पूज्य) नहीं तो वे तकब्बुर (घमंड) करते थे। और वे कहते थे कि क्या हम एक शायर दीवाने के कहने से अपने माबूदों को छोड़ दें। बल्कि वह हक़ लेकर आया है। और वह रसूलों की पेशीनगोइयों (भविष्यवाणियों) का मिस्दाक़ (पुष्टि रूप) है। बेशक तुम्हें दर्दनाक अज़ाब चखना होगा। और तुम उसी का बदला दिए जा रहे हो जो तुम करते थे। (34-39)

मगर जो अल्लाह के चुने हुए बंदे हैं। उनके लिए मालूम रिज़्क़ होगा। मेवे, और वे निहायत इज़्ज़त से होंगे, आराम के बाग़ों में | तख़्तों पर आमने सामने बैठे होंगे। उनके पास ऐसा प्याला लाया जाएगा जो बहती हुई शराब से भरा जाएगा। साफ़ शफ़्फ़ाफ़ पीने वालों के लिए लज़्ज़त। न उसमें कोई ज़रर (हानिकारकता) होगा और न उससे अक़्ल ख़राब होगी। और उनके पास नीची निगाह वाली, बड़ी आंखों वाली औरतें होंगी। गोया कि वे अंडे हैं जो छुपे हुए रखे हों। (40-49)

फिर वे एक दूसरे की तरफ़ मुतवज्जह होकर बात करेंगे। उनमें से एक कहने वाला कहेगा कि मेरा एक मुलाक़ाती था। वह कहा करता था कि क्या तुम भी तस्दीक़ (पुष्टि) करने वालों में से हो। क्या जब हम मर जाएंगे और मिट्टी और हड़िडियां हो जाएंगे तो कया हमें जज़ा मिलेगी। कहेगा, क्या तुम झांक कर देखोगे। तो वह झांकेगा और उसे जहन्नम के बीच में देखेगा। कहेगा कि ख़ुदा की क़सम तुम तो मुझे तबाह कर देने वाले थे। और अगर मेरे रब का फ़ज़्ल न होता तो मैं भी उन्हीं लोगों में होता जो पकड़े हुए आए हैं। क्या अब हमें मरना नहीं है, मगर पहली बार जो हम मर चुके और अब हमें अज़ाब न होगा। बेशक यही बड़ी कामयाबी है। ऐसी ही कामयाबी के लिए अमल करने वालों को अमल करना चाहिए। (50-61)

यह ज़ियाफ़त (सत्कार) अच्छी है या ज़क़्करूम का दरख़्त। हमने उसे ज़ालिमों के लिए फ़ितना बनाया है। वह एक दरख़्त है जो दोज़ब की तह से निकलता है। उसका ख़ोशा ऐसा है जैसे शैतान का सर। तो वे लोग उससे खाएंगे। फिर उसी से पेट भरेंगे। फिर उन्हें खौलता हुआ पानी मिलाकर दिया जाएगा। फिर उनकी वापसी दोज़ख़ ही की तरफ़ होगी। उन्होंने अपने बाप दादा को गुमराही में पाया। फिर वे भी उन्हीं के क़दम बक़दम दौड़ते रहे, और उनसे पहले भी अगले लोगों में अक्सर गुमराह हुए। और हमने उनमें भी डराने वाले भेजे। तो देखो, उन लोगों का अंजाम क्या हुआ जिन्हें डराया गया था। मगर वे जो अल्लाह के चुने हुए बंदे थे। (62-74)

और हमें नूह ने पुकारा तो हम क्‍या ख़ूब पुकार सुनने वाले हैं। और हमने उसे और उसके लोगों को बहुत बड़े ग़म से बचा लिया। और हमने उसकी नस्ल को बाक़ी रहने वाला बनाया। और हमने उसके तरीक़े पर पिछलों में एक गिरोह को छोड़ा। सलाम है नूह पर तमाम दुनिया वालों में। हम नेकी करने वालों को ऐसा ही बदला देते हैं। बेशक वह हमारे मोमिन बंदों में से था। फिर हमने दूसरों को ग़र्क़ कर दिया। (75-82)

और उसी के तरीक़े वालों में से इब्राहीम भी था। जबकि वह आया अपने रब के पास क़ल्बे सलीम (पाक दिल) के साथ। जब उसने अपने बाप से और अपनी क्रौम से कहा कि तुम किस चीज़ की इबादत करते हो। कया तुम अल्लाह के सिवा मनगढ़त माबूदों को चाहते हो तो ख़ुदावंद आलम के बारे में तुम्हारा क्या ख्याल है। (83-87)

फिर इब्राहीम ने सितारों पर एक नज़र डाली। पस कहा कि मैं बीमार हूं। फिर वे लोग उसे छोड़कर चले गए। तो वह उनके बुतों में घुस गया, कहा कि क्या तुम खाते नहीं हो | तुम्हें क्या हुआ कि तुम कुछ बोलते नहीं। फिर उन्हें मारा पूरी क़ुब्वत के साथ। फिर लोग उसके पास दौड़े हुए आए। इब्राहीम ने कहा, क्या तुम लोग उन चीज़ों को पूजते हो जिन्हें ख़ुद तराशते हो। और अल्लाह ही ने पैदा किया है तुम्हें भी और उन चीज़ों को भी जिन्हें तुम बनाते हो। उन्होंने कहा, इसके लिए एक मकान बनाओ फिर इसे दहकती आग में डाल दो। पस उन्होंने उसके ख़िलाफ़ एक कार्रवाई करनी चाही तो हमने उन्हीं को नीचा कर दिया। और उसने कहा कि मैं अपने रब की तरफ़ जा रहा हूं, वह मेरी रहनुमाई फ़रमाएगा। ऐ मेरे रब, मुझे नेक औलाद अता फ़रमा। तो हमने उसे एक बुर्दबार (संयमी) लड़के की बशारत (शुभ सूचना) दी। (88-101)

पस जब वह उसके साथ चलने फिरने की उम्र को पहुंचा, उसने कहा कि ऐ मेरे बेटे, मैं ख़्वाब में देखता हूं कि तुम्हें ज़बह कर रहा हूं पस तुम सोच लो कि तुम्हारी क्या राय है। उसने कहा कि ऐ मेरे बाप, आपको जो हुक्म दिया जा रहा है उसे कर डालिए, इंशाअल्लाह आप मुझे सब्र करने वालों में से पाएंगे। पस जब दोनों मुतीअ (आज्ञाकारी) हो गए और इब्राहीम ने उसे माथे के बल डाल दिया। और हमने उसे आवाज़ दी कि ऐ इब्राहीम, तुमने ख़ाब को सच कर दिखाया। बेशक हम नेकी करने वालों को ऐसा ही बदला देते हैं। यक्ऩीनन यह एक खुली हुई आज़माइश थी और हमने एक बड़ी कुर्बानी के एवज़ उसे छुड़ा लिया। और हमने उस पर पिछलों में एक गिरोह को छोड़ा। सलामती हो इब्राहीम पर। हम नेकी करने वालों को इसी तरह बदला देते हैं। बेशक वह हमारे मोमिन बंदों में से था। और हमने उसे इस्हाक़ की ख़ुशख़बरी दी, एक नबी सालेहीन नेकों) में से। और हमने उसे और इस्हाक़ को बरकत दी। और इन दोनों की नस्ल में अच्छे भी हैं और ऐसे भी जो अपने नफ़्स पर सरीह ज़ुल्म करने वाले हैं। (102-113)

और हमने मूसा और हारून पर एहसान किया। और उन्हें और उनकी क़ौम को एक बड़ी मुसीबत से नजात दी। और हमने उनकी मदद की तो वही ग़ालिब आने वाले बने। और हमने उन दोनों को वाज़ेह किताब दी। और हमने उन दोनों को सीधा रास्ता दिखाया। और हमने उनके तरीक़े पर पीछे वालों के एक गिरोह को छोड़ा। सलामती हो मूसा और हारून पर। हम नेकी करने वालों को ऐसा ही बदला देते हैं। बेशक वे दोनों हमारे मोमिन बंदों में से थे। (114-122)

और इलयास भी पैग़म्बरों में से था। जबकि उसने अपनी क़ौम से कहा, क्या तुम डरते नहीं। क्या तुम बअल (एक बुत का नाम) को पुकारते हो और बेहतरीन ख़ालिक़ को छोड़ देते हो, अल्लाह को जो तुम्हारा भी रब है और तुम्हारे अगले बाप दादा का भी। पस उन्होंने उसे झुठलाया तो वे पकड़े जाने वालों में से होंगे। मगर जो अल्लाह के ख़ास बंदे थे। और हमने उसके तरीक़े पर पिछलों में एक गिरोह को छोड़ा। सलामती हो इलयास पर | हम नेकी करने वालों को ऐसा ही बदला देते हैं। बेशक वह हमारे मोमिन बंदों में से था। (123-132)

और बेशक लूत भी पैग़म्बरों में से था। जबकि हमने उसे और उसके लोगों को नजात दी। मगर एक बुढ़िया जो पीछे रह जाने वालों में से थी। फिर हमने दूसरों को हलाक कर दिया। और तुम उनकी बस्तियों पर गुज़रते हो सुबह को भी और रात को भी, तो क्या तुम नहीं समझते। (133-138)

और बेशक यूनुस भी रसूलों में से था। जबकि वह भाग कर भरी हुई कश्ती पर पहुंचा। फिर क़ुरआ (कई में से एक का चयन) डाला तो वही ख़तावार निकला | फिर उसे मछली ने निगल लिया। और वह अपने को मलामत कर रहा था। पस अगर वह तस्बीह करने वालों में से न होता तो लोगों के उठाए जाने के दिन तक उसके पेट ही में रहता। फिर हमने उसे एक मैदान में डाल दिया और वह निढाल था। और हमने उस पर एक बेलदार दरख़्त उगा दिया। और हमने उसे एक लाख या इससे ज़्यादा लोगों की तरफ़ भेजा। फिर वे लोग ईमान लाए तो हमने उन्हें फ़ायदा उठाने दिया एक मुदृदत तक। (139-148)

पस उनसे पूछो क्या तुम्हारे रब के लिए बेटियां हैं और उनके लिए बेटे। क्‍या हमने फ़रिश्तों को औरत बनाया है और वे देख रहे थे। सुन लो, ये लोग सिर्फ़ मनगढ़त के तौर पर ऐसा कहते हैं कि अल्लाह औलाद रखता है और यक्रीनन वे झूठे हैं। क्या अल्लाह ने बेटों के मुक़ाबले में बेटियां पसंद की हैं। तुम्हें क्या हो गया है, तुम कैसा हुक्म लगा रहे हो। फिर क्‍या तुम सोच से काम नहीं लेते। क्या तुम्हारे पास कोई वाज़ेह दलील है। तो अपनी किताब लाओ अगर तुम सच्चे हो। (149-157)

और उन्होंने ख़ुदा और जिन्‍नात में भी रिश्तेदारी क़रार दी है। और जिन्‍नों को मालूम है कि यक्नीनन वे पकड़े हुए आएंगे। अल्लाह पाक है उन बातों से जो ये बयान करते हैं। मगर वे जो अल्लाह के चुने हुए बंदे हैं। पस तुम और जिनकी तुम इबादत करते हो, ख़ुदा से किसी को फेर नहीं सकते। मगर उसे जो जहन्नम में पड़ने वाला है। और हम में से हर एक का एक मुअय्यन (निश्चित) मक़ाम है। और हम ख़ुदा के हुज़ूर बस सफ़बस्ता (पंक्तिबद्ध) रहने वाले हैं। और हम उसकी तस्बीह करने वाले हैं। (158-166)

और ये लोग कहा करते थे कि अगर हमारे पास पहलों की कोई तालीम होती तो हम अल्लाह के ख़ास बंदे होते। फिर उन्होंने उसका इंकार कर दिया तो अनक़रीब वे जान लेंगे। और अपने भेजे हुए बंदों के लिए हमारा यह फ़ैसला पहले ही हो चुका है। कि बेशक वही ग़ालिब किए जाएंगे। और हमारा लश्कर ही ग़ालिब रहने वाला है। तो कुछ मुद्दत तक उनसे रुख़ फेर लो और देखते रहो, अनक़रीब वे भी देख लेंगे। (167-175)

क्या वे हमारे अज़ाब के लिए जल्दी कर रहे हैं। पल जब वह उनके सेहन में उतरेगा तो बड़ी ही बुरी होगी उन लोगों की सुबह जिन्हें उससे डराया जा चुका है। तो कुछ मुदृदत के लिए उनसे रुख़ फेर लो। और देखते रहो, अनक़रीब वे ख़ुद देख लेंगे। पाक है तेरा रब, इज़्जत का मालिक, उन बातों से जो ये लोग बयान करते हैं। और सलाम है पैग़म्बरों पप। और सारी तारीफ़ अल्लाह के लिए है जो रब है सारे जहान का। (176-182)

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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