स्वामी विवेकानंद के पत्र – एक अमेरिकन महिला को लिखित (13 दिसम्बर, 1896)
(स्वामी विवेकानंद का एक अमेरिकन महिला को लिखा गया पत्र)
लन्दन,
१३ दिसम्बर, १८९६
प्रिय श्रीमती जी,
नैतिकता का क्रमविन्यास समझ लेने के बाद सब चीजें समझ में आने लगती हैं।
त्याग, अप्रतिरोध, अहिंसा के आदर्शों को सांसारिकता, प्रतिरोध और हिंसा की प्रवृत्तियों को निरंतर कम करते रहने से प्राप्त किया जा सकता है। आदर्श सामने रखो और उसकी ओर बढ़ने का प्रयत्न करो। इस संसार में बिना प्रतिरोध, बिना हिंसा और बिना इच्छा के कोई रह ही नहीं सकता। अभी संसार उस अवस्था में नहीं पहुँचा कि ये आदर्श समाज में प्राप्त किये जा सकें।
सब प्रकार की बुराइयों में से गुजरते हुए संसार की जो उन्नति हो रही है, वह उसे धीरे धीरे तथा निश्चित रूप से इन आदर्शों के उपयुक्त बना रही है। अधिकांश जनता को तो इस मंद विकास के साथ चलना पड़ेगा, पर असाधारण लोगों को वर्तमान परिस्थितियों में इन आदर्शों की प्राप्ति के लिए अपना मार्ग अलग बनाना पड़ेगा।
जो जिस समय का कर्तव्य है, उसका पालन करना सबसे श्रेष्ठ मार्ग है और यदि वह केवल कर्तव्य समझकर किया जाय तो वह मनुष्य को आसक्त नहीं बनाता।
संगीत सर्वोत्तम कला है और जो उसे समझते हैं उनके लिए वह सर्वोत्तम उपासना भी है।
हमें अज्ञान और अशुभ का नाश करने का भरसक प्रयत्न करना चाहिए, केवल यह समझ लेना है कि शुभ की वृद्धि से ही अशुभ का नाश होता है।
शुभाकांक्षी,
विवेकानन्द