स्वामी विवेकानंद के पत्र – भगिनी निवेदिता को लिखित (6 अप्रैल, 1900)
(स्वामी विवेकानंद का भगिनी निवेदिता को लिखा गया पत्र)
सैन फ़्रांसिस्को,
६ अप्रैल, १९००
प्रिय मार्गट,
मुझे यह जानकर ख़ुशी हुई कि तुम लौट चुकी हो – और जब मैंने यह सुना कि तुम पेरिस जा रही हो, तो और भी ख़ुशी हुई। मैं भी पेरिस जाऊँगा इसमें कोई सन्देह नहीं है, किन्तु कब तक जाऊँगा, कह नहीं सकता।
श्रीमती लेगेट कह रही हैं कि अभी मेरा जाना उचित है एवं मुझे फ़्रेंच भाषा भी सीखनी चाहिए। मैं तो यह कहता हूँ कि जो होना है होगा-तुम भी ऐसा ही करो।
तुम अपनी पुस्तक समाप्त कर डालो और उसके उपरान्त हम पेरिस में फ़्रांसीसियों को जीतने के लिए चल देंगे। ‘मेरी’ कैसी है? उससे मेरा स्नेह कहना। यहाँ का मेरा कार्य समाप्त हो चुका है। ‘मेरी’ यदि वहाँ रहे, तो १५ दिन के अन्दर ही मैं शिकागो रवाना हो रहा हूँ ; वह शीघ्र ही पूर्व की ओर रवाना होनेवाली है।
आशीर्वादक,
विवेकानन्द
पुनश्च – मन सर्वव्यापी है। जिस किसी स्थल से भी इसका स्पन्दन सुना और अनुभव किया जा सकता है।
वि.