स्वतंत्रता की कीमत (राष्ट्र पर्व 15 अगस्त 1960)
“स्वतंत्रता की कीमत” स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया ‘नवल’ द्वारा हिंदी खड़ी बोली में रचित कविता है। यह कविता 15 अगस्त सन् 1960 को लिखी गयी थी।
जैसा कि कविता के नाम से ही साफ़ है, इसमें देशवासियों से आज़ादी का मूल्य पहचानने और तदनुरूप व्यवहार करने का आह्वान किया गया है। पढ़ें यह कविता–
पहले स्वतन्त्रता की कीमत पहचानो –
तब आजादी का पावन पर्व मनाना
है स्वतन्त्रता का मूल्य प्राण से बढ़कर
इतिहास बनाता आया है यह हमको
जिनको प्राणों का मोह बना रहता है
आज़ादी कभी न मिल सकती है उनको
प्राणों की बलि देकर, आजादी पाई
उसकी रक्षा भी बलि देकर ही होगी
निज प्राणों का जो मोह किया करते हैं
आजादी उनकी दूर भागती होगी।
पहले जीवन का दाँव लगाना जानो ।
तब फिर अपने घर बन्दनवार सजाना।
एक लुटेरा गया किन्तु अब और तुम्हें तकते हैं
सावधान यदि नहीं रहे तो तुम्हें लूट सकते हैं
देखों तो सीमा पर तू, कितनी बारूद बिछी है
आज हिमालय की छाती पर प्रलय घटा उमड़ी है।
आस्तीन का साँप बन गया आज पड़ौसी हमको
सावधान हो जाओ अब सब उसे कुचलना तुमको
बतला दो भारत की सीमा कोई खेल नहीं हैं
जो कोई चाहे ढुलना दे, ऐसा ढेल नहीं है।
यह ऋषियों की भूमि न कोई इसको यों ढुलकते
अब भी इसमें शक्ति छिपी है कोई भी अजमाये
यह सिंहों का देश गीदड़ों से क्या कभी डरेगा
मेढ़क नल ढुलकाये तो वह ही स्वयं मरेगा।
कितने ही तूफान कहां पर तनिक न विचलित होना
कितने ही बादल घिर आयें, कभी न धीरज खोना
अडिग पाँव पीछे न हटेगा, हो शूलों का घेरा
अंगारों में भी मुस्काना नारा होगा तेरा
तब पूरी रक्षा होगी इस आज़ादी सीता की
कर्म-भाव से भरी हुई पावन पोथी गीता की
पहले तुम अर्जुन, भीम बनो और अपना बल पहचानो
तब आज़ादी का पावन पर्व मनाना।।
स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया हिंदी खड़ी बोली और ब्रज भाषा के जाने-माने कवि हैं। ब्रज भाषा के आधुनिक रचनाकारों में आपका नाम प्रमुख है। होलीपुरा में प्रवक्ता पद पर कार्य करते हुए उन्होंने गीत, ग़ज़ल, मुक्तक, सवैया, कहानी, निबंध आदि विभिन्न विधाओं में रचनाकार्य किया और अपने समय के जाने-माने नाटककार भी रहे। उनकी रचनाएँ देश-विदेश की अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। हमारा प्रयास है कि हिंदीपथ के माध्यम से उनकी कालजयी कृतियाँ जन-जन तक पहुँच सकें और सभी उनसे लाभान्वित हों। संपूर्ण व्यक्तित्व व कृतित्व जानने के लिए कृपया यहाँ जाएँ – श्री नवल सिंह भदौरिया का जीवन-परिचय।