तन्हा मैं
तन्हा ये रात है,
तन्हाई की बात है!!!
न दोस्त, न साथी, न और कोई…
बस तू अकेला ही तेरे साथ है!!!
ये बन्द दरवाज़े, ये खिड़कियाँ
जो कभी बन्द न हुए, आज खुलते नहीं,
वो जो कभी आज़ाद परिन्दे थे…
अब इस क़ैद से बाहर निकलते नहीं!!!
ये कैसा है मंज़र, ये कैसा जहाँ है…
दूर तलक खाली रास्ते हैं बस…
और ऊपर!!! खुला आसमाँ है!!!
अब तो इस बन्द कमरे की चार दीवारें भी
एक शोर-सा करने लगी हैं,
मेरे खालीपन को देख के…
अफ़सोस-सा करने लगी हैं!!!
मगर, इस खालीपन को भी
सुकून से जिया है मैंने,
किसी ने जो सुना तक नहीं…
इतने शोर से शोर किया है मैंने!!!