कविता

तेरा चित्र नहीं बन पाया

“तेरा चित्र नहीं बन पाया” स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया ‘नवल’ द्वारा हिंदी खड़ी बोली में रचित कविता है। इस कविता की रचना 12 अप्रैल सन् 1968 में की गयी थी। इसमें कवि अपने स्नेहमय विरोध को अमूर्त जीवनरूपी प्रिय से व्यक्त कर रहा है। पढ़ें और आनंद लें “तेरा चित्र नहीं बन पाया” कविता का–

बहुतक चित्र बनाये मैंने, तेरा चित्र नहीं बन पाया।

भोली कलियों की मुस्कानें,
कब तेरी समता कर पाईं।
तेरे काले केशों पर मिल,
कितनी श्याम घटा शरमाईं।

नयनों की दो मूक पुतलियाँ,
गंगायमुना का संगम है।
अथवा झाँक रहे इन्दीवर,
झूम उठा लख जड़ जंगम है।

मुख को चन्दा ही कह दूँ, तो भी उपमान नहीं मिल पाया।

पुष्पों से कोमल तन तेरा,
वज्रों से निष्ठुर बन जाता।
भृकुटि विलास जगत में तेरा,
नाश सृजन का क्रम कहलाता।

भ्रमित देखती दुनिया सारी,
तुम जग को भरमाये हो।
सदा दूर औ सदा पास रह,
मायावी तुम कहलाये हो।

कितनी पोथी पढ़-पढ़ हारा, तेरा ज्ञान नहीं मिल पाया।

क्षण-क्षण में नूतन परिवर्तन,
सुन्दरता की परिभाषा है।
जो उर में स्पन्दन भर दे-
कहलाती असली भाषा है

फूल-फूल तुमसे खिल उठता
किरन-किरन स्मित ले आती
सुरभित साँसों के बसन्त में
कोइलिया भाषा बन जाती

मूक बना सुनता रहता जग, पर अनुमान नहीं लग पाया।

रात दिवस तेरी गलियाँ हैं
जिनमें चक्कर मैंने काटे
हर पल-छिन के चौराहे पर
रुककर ढूँढ़े रिश्ते-नाते

लेकिन रिश्ता बहुत पुराना
तुमसे ही मेरा निकला है
मेरे ही दर्पण ने मेरा
बिम्ब और प्रतिबिम्ब छला है

कैसे चित्र बनाऊँ तेरा निज का चित्र नहीं बन पाया।

नवल सिंह भदौरिया

स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया हिंदी खड़ी बोली और ब्रज भाषा के जाने-माने कवि हैं। ब्रज भाषा के आधुनिक रचनाकारों में आपका नाम प्रमुख है। होलीपुरा में प्रवक्ता पद पर कार्य करते हुए उन्होंने गीत, ग़ज़ल, मुक्तक, सवैया, कहानी, निबंध आदि विभिन्न विधाओं में रचनाकार्य किया और अपने समय के जाने-माने नाटककार भी रहे। उनकी रचनाएँ देश-विदेश की अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। हमारा प्रयास है कि हिंदीपथ के माध्यम से उनकी कालजयी कृतियाँ जन-जन तक पहुँच सकें और सभी उनसे लाभान्वित हों। संपूर्ण व्यक्तित्व व कृतित्व जानने के लिए कृपया यहाँ जाएँ – श्री नवल सिंह भदौरिया का जीवन-परिचय

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी पथ
error: यह सामग्री सुरक्षित है !!