धर्म

वाल्मीकि रामायण बालकाण्ड सर्ग 42 हिंदी में – Valmiki Ramayana Balakanda Chapter – 42

अंशुमान् और भगीरथकी तपस्या, ब्रह्माजी का भगीरथको अभीष्ट वर देकर गंगाजी को धारण करने के लिये भगवान् शङ्कर को राजी करने के निमित्त प्रयत्न करने की सलाह देना

श्रीराम! सगरकी मृत्यु हो जानेपर प्रजाजनोंने परम धर्मात्मा अंशुमान्को राजा बनानेकी रुचि प्रकट की॥ १ ॥

रघुनन्दन! अंशुमान् बड़े प्रतापी राजा हुए। उनके पुत्रका नाम दिलीप था। वह भी एक महान् पुरुष था॥ २ ॥

रघुकुल को आनन्दित करने वाले वीर! अंशुमान् दिलीप को राज्य देकर हिमालय के रमणीय शिखर पर चले गये और वहाँ अत्यन्त कठोर तपस्या करने लगे॥ ३ ॥

महान् यशस्वी राजा अंशुमान्ने उस तपोवनमें जाकर बत्तीस हजार वर्षोंतक तप किया। तपस्याके धनसे सम्पन्न हुए उस नरेशने वहीं शरीर त्यागकर स्वर्गलोक प्राप्त किया॥ ४ ॥

अपने पितामहों के वधका वृत्तान्त सुनकर महातेजस्वी दिलीप भी बहुत दु:खी रहते थे। अपनी बुद्धि से बहुत सोचने-विचारने के बाद भी वे किसी निश्चय पर नहीं पहुँच सके॥ ५ ॥

वे सदा इसी चिन्ता में डूबे रहते थे कि किस प्रकार पृथ्वीपर गंगाजीका उतरना सम्भव होगा? कैसे गंगाजलद्वारा उन्हें जलाञ्जलि दी जायेगी और किस प्रकार मैं अपने उन पितरों का उद्धार कर सकूँरुगा॥ ६ ॥

प्रतिदिन इन्हीं सब चिन्ताओंमें पड़े हुए राजा दिलीपको, जो अपने धर्माचरणसे बहुत विख्यात थे, भगीरथ नामक एक परम धर्मात्मा पुत्र प्राप्त हुआ॥ ७ ॥

महातेजस्वी दिलीपने बहुत-से यज्ञोंका अनुष्ठान तथा तीस हजार वर्षोंतक राज्य किया॥ ८ ॥

पुरुषसिंह! उन पितरोंके उद्धारके विषयमें किसी निश्चयको न पहुँचकर राजा दिलीप रोगसे पीड़ित हो मृत्युको प्राप्त हो गये॥ ९ ॥

पुत्र भगीरथ को राज्य पर अभिषिक्त करके नरश्रेष्ठ राजा दिलीप अपने किये हुए पुण्यकर्मके प्रभावसे इन्द्रलोकमें गये॥ १० ॥

रघुनन्दन! धर्मात्मा राजर्षि महाराज भगीरथके कोई संतान नहीं थी। वे संतान-प्राप्तिकी इच्छा रखते थे तो भी प्रजा और राज्य की रक्षा का भार मन्त्रियों पर रखकर गंगा जी को पृथ्वी पर उतारने के प्रयत्न में लग गये और गोकर्ण तीर्थ में बड़ी भारी तपस्या करने लगे॥ ११-१२ ॥

महाबाहो! वे अपनी दोनों भुजाएँ ऊपर उठाकर पञ्चाग्निका सेवन करते और इन्द्रियोंको काबूमें रखकर एक-एक महीनेपर आहार ग्रहण करते थे। इस प्रकार घोर तपस्यामें लगे हुए महात्मा राजा भगीरथके एक हजार वर्ष व्यतीत हो गये॥ १३ १/२ ॥

इससे प्रजाओंके स्वामी भगवान् ब्रह्माजी उनपर बहुत प्रसन्न हुए। पितामह ब्रह्माने देवताओंके साथ वहाँ आकर तपस्यामें लगे हुए महात्मा भगीरथसे इस प्रकार कहा—॥ १४-१५ ॥

‘महाराज भगीरथ! तुम्हारी इस उत्तम तपस्यासे मैं बहुत प्रसन्न हूँ। श्रेष्ठ व्रतका पालन करनेवाले नरेश्वर! तुम कोई वर माँगो’॥ १६ ॥

तब महातेजस्वी महाबाहु भगीरथ हाथ जोड़कर उनके सामने खड़े हो गये और उन सर्वलोकपितामह ब्रह्मासे इस प्रकार बोले—॥ १७ ॥

‘भगवन्! यदि आप मुझपर प्रसन्न हैं और यदि इस तपस्याका कोई उत्तम फल है तो सगरके सभी पुत्रोंको मेरे हाथसे गंगाजीका जल प्राप्त हो॥ १८ ॥

‘इन महात्माओंकी भस्मराशिके गंगाजीके जलसे भीग जानेपर मेरे उन सभी प्रपितामहोंको अक्षय स्वर्गलोक मिले॥ १९ ॥

‘देव! मैं संततिके लिये भी आपसे प्रार्थना करता हूँ। हमारे कुल की परम्परा कभी नष्ट न हो। भगवन्! मेरे द्वारा माँगा हुआ उत्तम वर सम्पूर्ण इक्ष्वाकुवंश के लिये लागू होना चाहिये’॥ २० ॥

राजा भगीरथके ऐसा कहनेपर सर्वलोकपितामह ब्रह्माजीने मधुर अक्षरोंवाली परम कल्याणमयी मीठी वाणीमें कहा—॥ २१ ॥

‘इक्ष्वाकुवंश की वृद्धि करने वाले महारथी भगीरथ! तुम्हारा कल्याण हो। तुम्हारा यह महान् मनोरथ इसी रूपमें पूर्ण हो॥ २२ ॥

‘राजन्! ये हैं हिमालयकी ज्येष्ठ पुत्री हैमवती गंगाजी। इनको धारण करनेके लिये भगवान् शङ्करको तैयार करो॥ २३ ॥

‘महाराज! गंगाजीके गिरनेका वेग यह पृथ्वी नहीं सह सकेगी। मैं त्रिशूलधारी भगवान् शङ्करके सिवा और किसी को ऐसा नहीं देखता, जो इन्हें धारण कर सके’॥ २४ ॥

राजासे ऐसा कहकर लोकस्रष्टा ब्रह्माजी ने भगवती गंगा से भी भगीरथ पर अनुग्रह करने के लिये कहा। इसके बाद वे सम्पूर्ण देवताओं तथा मरुद्गणोंके साथ स्वर्गलोक को चले गये॥ २५ ॥

इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके बालकाण्डमें बयालीसवाँ सर्ग पूरा हुआ॥ ४२॥

सुरभि भदौरिया

सात वर्ष की छोटी आयु से ही साहित्य में रुचि रखने वालीं सुरभि भदौरिया एक डिजिटल मार्केटिंग एजेंसी चलाती हैं। अपने स्वर्गवासी दादा से प्राप्त साहित्यिक संस्कारों को पल्लवित करते हुए उन्होंने हिंदीपथ.कॉम की नींव डाली है, जिसका उद्देश्य हिन्दी की उत्तम सामग्री को जन-जन तक पहुँचाना है। सुरभि की दिलचस्पी का व्यापक दायरा काव्य, कहानी, नाटक, इतिहास, धर्म और उपन्यास आदि को समाहित किए हुए है। वे हिंदीपथ को निरन्तर नई ऊँचाइंयों पर पहुँचाने में सतत लगी हुई हैं।

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