धर्मध्वज की रानियाँ – विक्रम बेताल की कहानी
धर्मध्वज की कहानी बेताल पच्चीसी की ग्यारहवीं कथा है। यह विक्रम बेताल की राजा विक्रमादित्य की तीव्र मेधा और चातुर्य को दर्शाती है। बेताल पच्चीसी की शेष कहानियाँ पढ़ने के लिए कृपया यहाँ जाएँ – विक्रम बेताल की कहानियाँ।
मदनसेना की कहानी सुनाकर बेताल फिर अदृश्य हो गया। राजा विक्रमादित्य ने वापस जाकर वृक्ष से पुनः बेताल को नीचे उतारा और उसे कंधे पर डालकर चल पड़ा। चलते हुए राजा के कंधे पर बैठे बेताल ने कहा, “’राजन, उस योगी के कहने में आकर सचमुच तुम बहुत परिश्रम कर रहे हो। तुम्हारे मार्ग का श्रम कुछ दूर हो इसलिए मैं तुम्हे यह कथा सुनाता हूँ।”
पुराने समय में उज्जयिनी नगरी में धर्मध्वज नामक राजा राज करता था। उसकी तीन अत्यंत सुन्दर रानियां थीं, जो उसे समान रूप से प्रिय थीं। उन तीनों के नाम थे–इंद्रलेखा, तारावली और मृगांकवती। राजा उनके साथ रहकर सुखपूर्वक अपने राज्य का संचालन करता था।
एक बार जब बसंत ऋतु का उत्सव आया, तब वह राजा अपनी प्रियाओं के साथ क्रीड़ा करने के लिए उद्यान में गया। वहां उसने पुष्पों से झुकी हुई लताएं देखीं, जो कामदेव के धनुष जैसी लग रही थीं। उनमें गुन-गुन करते भौंरों का समूह प्रत्यंचा के समान लगता था, जिसे मानो बसंत ने स्वयं ही सजाया हो।
ऐसे ख़ूबसूरत वातावरण में राजा ने अपनी स्त्रियों के पीने से बची उस मदिरा को पीकर प्रसन्नता पाई, जो उनके निःश्वास से सुगंधित थी और उनके होंठों की तरह लाल थी। राजा ने खेल-ही-खेल में रानी इंद्रलेखा की चोटी पकड़कर खींची, जिससे उसके कानों पर से कमल का फूल खिसककर उसकी गोद में आ गिरा। उस फूल के आघात से उस कुलवती रानी की जांघ पर घाव हो गया और वह हाय-हाय करती हुई मूर्छित हो गई।
यह देखकर राजा और उसके अनुचर घबरा गए। राजा ने जल मंगवाकर रानी के मुंह पर पानी के छींटे मारे तो रानी होश में आई। अनन्तर, राजा उसे अपने महल में लाया और राजवैद्य से उसका उपचार करने को कहा। दो वैद्य तत्काल ही रानी के उपचार में जुट गए।
उस रात इंद्रलेखा की हालत में सुधार देखकर राजा अपनी दूसरी पत्नी तारावली के साथ चंद्र-प्रासाद नामक महल में गया। वहां तारावली राजा की गोद में सो गई। उसके वस्त्र खिसक गए थे, जबकि उसके शरीर पर खिड़की की जालियों से होकर चंद्र देव की किरणें पड़ीं। किरणों का स्पर्श होते ही रानी तारावली जाग उठी और ‘हाय जल गई’ कहती हुई अचानक पलंग से उठकर अपने अंग मलने लगी। घबराकर राजा भी उठ बैठा! राजा ने देखा कि तारावली के उस अंग पर सचमुच ही फफोले पड़ गए थे।
तारावली ने बताया, “स्वामी, नंगे शरीर पर पड़ी हुई चंद्रमा की किरणों ने मेरी यह हालत की है।” तब राजा ने परिचारिकाएं बुलाईं और उन्होंने रानी के लिए गीले कमल-पत्रों की सेज बिछाई एवं उसके शरीर पर चंदन का लेप लगाया। इसी बीच तीसरी रानी मृगांकवती भी जाग उठी। तारावली के कक्ष से आती आवाजें सुनकर उसकी नींद उचट गई थी।
राजा के पास जाने की इच्छा से वह अपने कक्ष से निकलकर तारावली के कक्ष की ओर चल पड़ी। अभी वह कुछ ही कदम चली थी कि उसने दूर से किसी के घर धान कूटे जाने की आवाज सुनी। मूसल की आवाज सुनकर वह विकल हो उठी और ‘हाय मरी’ कहते हुए मार्ग में ही बैठ गई। परिचारिकाओं ने जब रानी की जांच की तो उन्होंने उसकी हथेलियो पर काले, गहरे धब्बे देखे। परिचारिकाएं दौड़ती हुईं राजा के पास पहुंचीं और सारा वृत्तांत राजा को बताया। सुनकर राजा भी घबरा गया और तुरंत अपनी रानी की हालत देखने उनके साथ चल पड़ा।
रानी के पास पहुंचकर राजा धर्मध्वज ने उससे पूछा, “प्रिय! यह क्या हुआ?” तो आंखों में आंसू भरकर रानी मृगांकवती ने उसे अपने दोनों हाथ दिखाते हुए कहा, “स्वामी, मूसल की आवाज सुनने से मेरे हाथों में यह निशान पड़ गए हैं।” तब आश्चर्य और विषाद में पड़े राजा ने उसके हाथों पर दाह का शमन करने वाले चंदन आदि का लेप लगवाया।
राजा सोचने लगा, “मेरी एक रानी को कमल के गिरने से घाव हो गया, चंद्रमा की किरणों से दूसरी के अंग जल गए और इस तीसरी के हाथों में मूसल का शब्द सुनने से ही ऐसे निशान पड़ गए! हाय, देवयोग से मेरी इन तीनों ही प्रियाओं का अभिजात्य गुण एक साथ ही दोष का कारण बन गया।”
राजा ने वह रात बड़ी कठिनाई से काटी। सवेरा होते ही उसने राज्य भर के सभी कुशल वैद्यों और शल्य-क्रिया करने वालों को बुलवाया और अपनी रानियों का उपचार करने को कहा। उन वैद्यो और शल्यक्रिया जानने वालों के संयुक्त प्रयास से जब रानियां शीघ्र ही स्वस्थ हो गईं, तब राजा धर्मध्वज निश्चिंत हुआ।
यह कथा राजा विक्रम को सुनाकर उसके कंधे पर बैठे हुए बेताल ने पूछा, “राजन, अब तुम यह बतलाओ कि इन तीनों रानियों में सबसे अधिक सुकुमारी कौन-सी थी? जानते हुए भी यदि तुम मेरे इस प्रश्न का उत्तर न दोगे तो तुम पर पहले कहा हुआ शाप पड़ेगा।”
यह सुनकर राजा ने कहा, “बेताल! धर्मध्वज की तीनों रानियों में सबसे सुकुमारी थी रानी मृगांकवती। जिसने मूसल को छुआ भी नहीं, केवल उसकी आवाज से ही उसके हाथों मे दाग़ पड़ गए थे। बाक़ी दोनों को तो कमल एवं चंद्र-किरणों के स्पर्श से घाव तथा फफोले हुए थे। अतः वे दोनों उसकी बराबरी नहीं कर सकतीं।”
राजा ने जब बेताल को ऐसा सटीक उत्तर दिया तो बेताल संतुष्ट होकर पुनः उसके कंधे से उड़कर उसी शिंशपा-वृक्ष की ओर चला गया। राजा विक्रमादित्य एक बार फिर उसे लाने के लिए उसी दिशा में चल पड़ा।
राजा विक्रमादित्य बेताल को लाने के लिए पुनः शिंशपा वृक्ष के नीचे पहुँच गया। उसने बेताल को उतारकर अपने कंधे पर डाला और चलना शुरू किया। बेताल ने राजा विक्रम को फिर से यह कहानी सुनानी शुरू की – यशकेतु की कथा