जहर भरा जाम हुई जिंदगी
“जहर भरा जाम हुई जिंदगी” स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया ‘नवल’ द्वारा हिंदी खड़ी बोली में रचित कविता है। इस कविता की रचना 27 अक्टूबर सन् 1979 में की गयी थी। इसमें कवि जीवन की कठिन राह पर दृष्टिपात कर रहा है। पढ़ें और आनंद लें “जहर भरा जाम हुई जिंदगी” कविता का–
जीने को जी रहे हैं ज़िन्दगी
जहर भरा जाम हुई जिंदगी।
कितने ही आशा-विश्वास के
एक साथ ही दिए जला लिए
कितने ही जोरदार आश्वासन
घूँट-घूँट करके ही पी लिए
किन्तु वो घड़ी कभी न आ सकी
दर्दो के नाम हुई ज़िन्दगी।
धन से न पेट कभी भर सके
उनसे क्या आशा कल्याण की
देवता समझ के पूज लें भलें
व्यर्थ कामना है वरदान की।
वासना को प्यार कह बुला रहे
यों ही बदनाम हुई ज़िन्दगी।
काँटों से प्यार ही किए रहे
क्योंकि फूल खिलने में देर है।
मन की हम बात किसके कहें
बादलों के घर भी अन्धेर है।
भरे हुए आँगन को भर रहे
अपनी नीलाम हुई ज़िन्दगी।
आज भी अभाव घाव रिस रहे
उम्र से भी लम्बी मज़बूरियाँ
बात पास आने की क्या कहें ?
बढ़ती ही जाती है दूरियाँ।
किस तरह कहें कि हुआ भोर है
मरघट की शाम हुई ज़िन्दगी।
दिनांक 27-10-79
स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया हिंदी खड़ी बोली और ब्रज भाषा के जाने-माने कवि हैं। ब्रज भाषा के आधुनिक रचनाकारों में आपका नाम प्रमुख है। होलीपुरा में प्रवक्ता पद पर कार्य करते हुए उन्होंने गीत, ग़ज़ल, मुक्तक, सवैया, कहानी, निबंध आदि विभिन्न विधाओं में रचनाकार्य किया और अपने समय के जाने-माने नाटककार भी रहे। उनकी रचनाएँ देश-विदेश की अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। हमारा प्रयास है कि हिंदीपथ के माध्यम से उनकी कालजयी कृतियाँ जन-जन तक पहुँच सकें और सभी उनसे लाभान्वित हों। संपूर्ण व्यक्तित्व व कृतित्व जानने के लिए कृपया यहाँ जाएँ – श्री नवल सिंह भदौरिया का जीवन-परिचय।