धर्म

कामाख्या चालीसा – Kamakhya Chalisa

कामाख्या चालीसा पढ़ने से जीवन में सारी सिद्धियाँ सहज ही प्राप्त हो जाती हैं। कामाख्या देवी का स्मरण और कामाख्या मंदिर में दर्शन करने से भक्त को सभी सुख और भोगों की प्राप्ति होती है। माता की अपार अनुकम्पा का वर्णन करना शब्दों के सामर्थ्य से बाहर है। देवी का ध्यान योगियों को ऋद्धि-सिद्धि देने वाला माना जाता है। कामाख्या चालीसा (Kamakhya Chalisa) का प्रत्येक वर्ण सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने में समर्थ है। हृदय में प्रेम और भक्ति से भरकर जो कामाख्या चालीसा का पाठ करता है, देवी का दर्शन करता है और पूजन के अन्त में कामाख्या देवी की आरती गाता है, ऐसे भक्त की हर अभिलाषा शीघ्र ही पूरी होती है। करें कामाख्या चालीसा (Kamakhya Devi Chalisa) का नित्य पाठ–

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॥ दोहा॥
सुमिरन कामाख्या करुँ,
सकल सिद्धि की खानि।
होइ प्रसन्न सत करहु माँ,
जो मैं कहौं बखानि॥

जै जै कामाख्या महारानी।
दात्री सब सुख सिद्धि भवानी॥

कामरुप है वास तुम्हारो।
जहँ ते मन नहिं टरत है टारो॥

ऊँचे गिरि पर करहुँ निवासा।
पुरवहु सदा भगत मन आसा॥

ऋद्धि सिद्धि तुरतै मिलि जाई।
जो जन ध्यान धरै मनलाई॥

जो देवी का दर्शन चाहे।
हृदय बीच याही अवगाहे॥

प्रेम सहित पंडित बुलवावे।
शुभ मुहूर्त निश्चित विचारवे॥

अपने गुरु से आज्ञा लेकर।
यात्रा विधान करे निश्चय धर।

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पूजन गौरि गणेश करावे।
नान्दीमुख भी श्राद्ध जिमावे॥

शुक्र को बाँयें व पाछे कर।
गुरु अरु शुक्र उचित रहने पर॥

जब सब ग्रह होवें अनुकूला।
गुरु पितु मातु आदि सब हूला॥

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नौ ब्राह्मण बुलवाय जिमावे।
आशीर्वाद जब उनसे पावे॥

सबहिं प्रकार शकुन शुभ होई।
यात्रा तबहिं करे सुख होई॥

जो चह सिद्धि करन कछु भाई।
मंत्र लेइ देवी कहँ जाई॥

आदर पूर्वक गुरु बुलावे।
मन्त्र लेन हित दिन ठहरावे॥

शुभ मुहूर्त में दीक्षा लेवे।
प्रसन्न होई दक्षिणा देवै॥

ॐ का नमः करे उच्चारण।
मातृका न्यास करे सिर धारण॥

षडङ्ग न्यास करे सो भाई।
माँ कामाक्षा धर उर लाई॥

देवी मन्त्र करे मन सुमिरन।
सन्मुख मुद्रा करे प्रदर्शन॥

जिससे होई प्रसन्न भवानी।
मन चाहत वर देवे आनी॥

जबहिं भगत दीक्षित होइ जाई।
दान देय ऋत्विज कहँ जाई॥

विप्रबंधु भोजन करवावे।
विप्र नारि कन्या जिमवावे॥

दीन अनाथ दरिद्र बुलावे।
धन की कृपणता नहीं दिखावे॥

एहि विधि समझ कृतारथ होवे।
गुरु मन्त्र नित जप कर सोवे॥

देवी चरण का बने पुजारी।
एहि ते धरम न है कोई भारी॥

सकल ऋद्धि – सिद्धि मिल जावे।
जो देवी का ध्यान लगावे॥

तू ही दुर्गा तू ही काली
माँग में सोहे मातु के लाली॥

वाक् सरस्वती विद्या गौरी।
मातु के सोहैं सिर पर मौरी॥

क्षुधा, दुरत्यया, निद्रा तृष्णा।
तन का रंग है मातु का कृष्णा।

कामधेनु सुभगा और सुन्दरी।
मातु अँगुलिया में है मुंदरी॥

कालरात्रि वेदगर्भा धीश्वरि।
कंठमाल माता ने ले धरि॥

तृषा सती एक वीरा अक्षरा।
देह तजी जानु रही नश्वरा॥

स्वरा महा श्री चण्डी।
मातु न जाना जो रहे पाखण्डी॥

महामारी भारती आर्या।
शिवजी की ओ रहीं भार्या॥

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पद्मा, कमला, लक्ष्मी, शिवा।
तेज मातु तन जैसे दिवा॥

उमा, जयी, ब्राह्मी भाषा।
पुर हिं भगतन की अभिलाषा॥

रजस्वला जब रुप दिखावे।
देवता सकल पर्वतहिं जावें॥

रुप गौरि धरि करहिं निवासा।
जब लग होइ न तेज प्रकाशा॥

एहि ते सिद्ध पीठ कहलाई।
जउन चहै जन सो होई जाई॥

जो जन यह चालीसा गावे।
सब सुख भोग देवि पद पावे॥

होहिं प्रसन्न महेश भवानी। 
कृपा करहु निज – जन असवानी॥

॥ दोहा॥
कहे गोपाल सुमिर मन,
कामाख्या सुख खानि।
जग हित माँ प्रगटत भई,
सके न कोऊ खानि॥

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विदेशों में बसे कुछ हिंदू स्वजनों के आग्रह पर कामाख्या चालीसा (Kamakhya Chalisa) को हम रोमन में भी प्रस्तुत कर रहे हैं। हमें आशा है कि वे इससे अवश्य लाभान्वित होंगे। पढ़ें कामाख्या चालीसा रोमन में–

Read Kamakhya Chalisa

॥ dohā॥
sumirana kāmākhyā karu~,
sakala siddhi kī khāni।
hoi prasanna sata karahu mā~,
jo maiṃ kahauṃ bakhāni॥

jai jai kāmākhyā mahārānī।
dātrī saba sukha siddhi bhavānī॥

kāmarupa hai vāsa tumhāro।
jaha~ te mana nahiṃ ṭarata hai ṭāro॥

ū~ce giri para karahu~ nivāsā।
puravahu sadā bhagata mana āsā॥

ṛddhi siddhi turatai mili jāī।
jo jana dhyāna dharai manalāī॥

jo devī kā darśana cāhe।
hṛdaya bīca yāhī avagāhe॥

prema sahita paṃḍita bulavāve।
śubha muhūrta niścita vicārave॥

apane guru se ājñā lekara।
yātrā vidhāna kare niścaya dhara।

pūjana gauri gaṇeśa karāve।
nāndīmukha bhī śrāddha jimāve॥

śukra ko bā~yeṃ va pāche kara।
guru aru śukra ucita rahane para॥

jaba saba graha hoveṃ anukūlā।
guru pitu mātu ādi saba hūlā॥

nau brāhmaṇa bulavāya jimāve।
āśīrvāda jaba unase pāve॥

sabahiṃ prakāra śakuna śubha hoī।
yātrā tabahiṃ kare sukha hoī॥

jo caha siddhi karana kachu bhāī।
maṃtra lei devī kaha~ jāī॥

ādara pūrvaka guru bulāve।
mantra lena hita dina ṭhaharāve॥

śubha muhūrta meṃ dīkṣā leve।
prasanna hoī dakṣiṇā devai॥

oṃ kā namaḥ kare uccāraṇa।
mātṛkā nyāsa kare sira dhāraṇa॥

ṣaḍaṅga nyāsa kare so bhāī।
mā~ kāmākṣā dhara ura lāī॥

devī mantra kare mana sumirana।
sanmukha mudrā kare pradarśana॥

jisase hoī prasanna bhavānī।
mana cāhata vara deve ānī॥

jabahiṃ bhagata dīkṣita hoi jāī।
dāna deya ṛtvija kaha~ jāī॥

viprabaṃdhu bhojana karavāve।
vipra nāri kanyā jimavāve॥

dīna anātha daridra bulāve।
dhana kī kṛpaṇatā nahīṃ dikhāve॥

ehi vidhi samajha kṛtāratha hove।
guru mantra nita japa kara sove॥

devī caraṇa kā bane pujārī।
ehi te dharama na hai koī bhārī॥

sakala ṛddhi – siddhi mila jāve।
jo devī kā dhyāna lagāve॥

tū hī durgā tū hī kālī।
mā~ga meṃ sohe mātu ke lālī॥

vāk sarasvatī vidyā gaurī।
mātu ke sohaiṃ sira para maurī॥

kṣudhā, duratyayā, nidrā tṛṣṇā।
tana kā raṃga hai mātu kā kṛṣṇā।

kāmadhenu subhagā aura sundarī।
mātu a~guliyā meṃ hai muṃdarī॥

kālarātri vedagarbhā dhīśvari।
kaṃṭhamāla mātā ne le dhari॥

tṛṣā satī eka vīrā akṣarā।
deha tajī jānu rahī naśvarā॥

svarā mahā śrī caṇḍī।
mātu na jānā jo rahe pākhaṇḍī॥

mahāmārī bhāratī āryā।
śivajī kī o rahīṃ bhāryā॥

padmā, kamalā, lakṣmī, śivā।
teja mātu tana jaise divā॥

umā, jayī, brāhmī bhāṣā।
pura hiṃ bhagatana kī abhilāṣā॥

rajasvalā jaba rupa dikhāve।
devatā sakala parvatahiṃ jāveṃ॥

rupa gauri dhari karahiṃ nivāsā।
jaba laga hoi na teja prakāśā॥

ehi te siddha pīṭha kahalāī।
jauna cahai jana so hoī jāī॥

jo jana yaha cālīsā gāve।
saba sukha bhoga devi pada pāve॥

hohiṃ prasanna maheśa bhavānī।
kṛpā karahu nija – jana asavānī॥

॥ dohā॥
kahe gopāla sumira mana,
kāmākhyā sukha khāni।
jaga hita mā~ pragaṭata bhaī,
sake na koū khāni॥

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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