नीलम रत्न के फायदे और नुकसान
नीलम रत्न के फायदे और नुकसान जानने से पहले देखते हैं क्या हैं इस रहस्यमयी दिखने वाले पत्थर के विभिन्न नाम। संस्कृत में इसे नील, शौरिरत्न, इन्द्रनील, तृणग्राही और नीलमणि आदि नामों से पुकारा गया है। हिन्दी और पंजाबी में नीलम नाम प्रसिद्ध है। वहीं उर्दू-फारसी में इसे नीलम, याकूत व कबूद इत्यादि कहते हैं। अंग्रेजी में नीलम स्टोन को Sapphire नाम से जाना जाता है।
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असली नीलम रत्न की कीमत
अन्य रत्नों की ही तरह असली नीलम मिलना भी आजकल बहुत दुरूह हो गया है। जो नीलम मिलते भी हैं, वे प्रायः पूर्ण रूप से प्राकृतिक नहीं होते हैं और उनमें आभा आदि को बढ़ाने के लिए कुछ-न-कुछ परिवर्तन किए जाते हैं। लेकिन ज्योतिष की दृष्टि से ऐसे नीलमों का कोई महत्व नहीं होता है। अतः हर प्रकार से परीक्षण करने ही नीलम स्टोन खरीदना चाहिए। असली नीलम की कीमत निम्न तालिका से जानी जा सकती है–
वजन (कैरेट में) | कीमत (रुपये में) |
3 | 8,000 |
5 | 17,000 |
7 | 30,000 |
यहाँ दिए गए मूल्य औसत प्राइस के हिसाब से हैं। यानी कि उपर्युक्त तालिका में औसत कीमतें ही दर्शायी गई हैं। रत्न की गुणवत्ता जैसे-जैसे बढ़ती जाती है, वैसे-वैसे उसका प्राइस भी ऊपर जाता है।
कुरुन्दम समूह
माणिक्य की तरह नीलम भी कुरुन्दम समूह का रत्न है। वास्तव में तो लाल कुरुन्दम को तो “माणिक्य’ पुकारते हैं। इसके अतिरिक्त अन्य सभी रत्नों के कुरुन्दम वर्ग के रत्नों को नीलम कहते हैं, जैसे श्वेत नीलम, हरा नीलम, बेजनी नीलम आदि। परन्तु ‘नीलम’ नाम विशेषतः आसमानी, चमकीले, गहरे नीले, मखमली नीले और भूट्टे के फूल के रंग के नीलम को दिया जाता है।
प्राप्ति स्थान
(1) कश्मीर (भारत) का नीलम सर्वेश्रेष्ठ होता है। इसका रंग मोर की गर्दन के रंग का होता है। इसमें यदि एक बिन्दु रंग भी हो तो वह सम्पूर्ण नग को रंगीन रखता है। परन्तु यदि डक, पोल व दुरगेपन से रहित मिले तभी उसका नग सुन्दर बनता है। फिर इस पर विजातीय पदार्थ भी चिपका रहता है।
(2) बर्मा के नीलम में हरापन कम तथा सुन्दर नीला रंग होता है। विजातीय पदार्थ चिपका न होने के कारण नग बनाने में सुविधा रहती है।
(3) श्री लंका का नीलम ऊपर लिखे दोनों नीलमों से घटिया दर्जे का होता है। इसमें लाल रंग की आभा होती है। श्याम आभा भी बहुत होती है।
(4) स्याम देश के नीलम में कृष्णवर्ण की आभा तथा हरापन अधिक होता है। रंग गहरा होने के कारण यह काला दिखायी देता है। इसमें कठोरता व चिकनाई अधिक होती है।
(5) सलेम (दक्षिण भारत) के नीलम में हरापन स्याम के नीलम से अधिक होता है। पीला और नीला रंग मिश्रित रहता है।
(6) आस्ट्रेलिया के नीलम गहरे नीले रंग के होते हैं।
(7) मोटाना (अमरीका) के नीलम की चमक धातु की-सी चमक होती है। रोडेशिया (अफ्रीका), तथा त्रोयत्स्क मीस्क (रूस) में भी नीलम मिलते है पर घटिया दर्जे के होते हैं।
पुखराज, माणिक्य तथा नीलम स्टोन कभी-कभी एक ही क्षेत्र में पाये जाते हैं। इसलिये इनके क्रमशः श्वेत, लाल और नीले रंगों का एक दूसरे में मिश्रण हो जाता है। हाँ, इनकी कठोरता में अन्तर होता है। पुखराज से माणिक्य और माणिक्य से नीलम अधिक कठोर होता है।
कुछ ऐतिहासिक नीलम
सुन्दरतम नीलम रत्न भारत के काश्मीर राज्य से मिलते हैं। नीलम की खान वहाँ जांसकर पहाड़ी में 14940 फुट की ऊँचाई पर सूमजाम नामक गांव के समीप स्थित है। सम्भवतः बड़े-बड़े ज्ञात नीलम भारत की खानों से ही मिले हैं। रीवां राज्य के खजाने में जो नीलम 1827 में विद्यमान था, वह सबसे बड़ा और तोल में 951 कैरट था।
जार्डीन डेस प्लाटीन के संग्रह में दो सुन्दर नीलम हैं, इनमें से एक रास्पली नाम का बहुत ही सुन्दर और दोष रहित नीलम 132 कैरेट तोल का है। दूसरा नीलम 2 इंच लम्बा और 150 इंच चौड़ा है। डेवन शायर के ड्यूक के पास एक सुन्दर ज्वलन्त काट का नीलम 100 कैरट तोल का है।
ब्रिटिश म्यूजियम में खनिज विभाग में सोने की पिन पर रखी हुई भगवान बुद्ध की मूर्ति एक ही नीलम रत्न को काटकर बनायी गयी है। सबसे बड़ा लगभग 132 कैरेट तोल का भूरे रंग का नीलम रत्न पेरिस के खनिज संग्रहालय में है। लकड़ी के चम्मच बेचने वाले किसी व्यक्ति को यह बंगाल से मिला था। कभी स्काच रानी मेरी के पति डार्नले के अधिकार में रहा एक हृदय के आकार का नीलम अब शाही ताज में है। यह 1575 ई० का बताया जाता है। दो बड़े नीलम एक पादरी ने नेपोलियन को भेंट किये थे। ये फिर लुई नैपलियन तृतीय की सम्पत्ति बने।
दो भेद
भारतीय ग्रन्थों के अनुसार नीलम स्टोन दो प्रकार का होता है–
(1) जलनील
(2) इन्द्रनील
जिस नीलम के भीतर सफेदी हो और चारों ओर नीलिमा लघु हो, वह जलनील कहाता है और जिस नीलम के भीतर श्याम आभा हो, बाहर नीलिमा हो, अपेक्षया भारी हो वह इन्द्रनील कहलाता है। वस्तुतः तो इसका रंग नीले और लाल का मिला हुआ अर्थात् बैंगनी होता है।
श्रेष्ठ नीलम
बढ़िया नीलम स्टोन वह है कि जिसमें सात विशेषताएँ हों–
(1) दूसरे द्रव्य की परछाई को न लेकर अपनी चमक से उसको चमकाने वाला हो अथवा एक ही रंग का दिखायी दे
(2) दड़कदार हो
(3) चिकना हो
(4) पारदर्शक चमक का हो
(5) जिसका शरीर गठा हुआ हो
(6) छूने मे मुलायम लगे और जिसके भीतर से किरण फूटती प्रतीत हो
(7) नीलम मे ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र वर्ण की क्रमशः श्वेत, लाल, पीली और काले रंग की छाया होती है।
उत्तम जाति के नीलम रत्न की पहचान
पूर्णिमा के दिन खूब फैली हुई चाँदनी में खड़ी हुई गौर-वर्ण की सुन्दर स्त्री के हाथ में स्वच्छ दूध से भरा कटोरा दें और उस पात्र पर नीलम का प्रकाश डालें। यदि नीलम अपने प्रकाश से दूध, दूध के पात्र और सुन्दरी आदि पर तत्काल नीलिमा उत्पन्त कर दे तो नीलम रत्न उत्तम जाति का समझना चाहिये। उत्तम नीलम स्टोन की एक विशेषता यह भी है कि तिनका उसके समीप लाने पर उससे चिपक जाता है।
नकली नीलम
माणिक्य के समान नीलम के स्थान पर भी संश्लिष्ट नीलम, नीले रंग की संश्लिष्ट कटकिजमणि तथा काँच की अनुकृतियों का प्रयोग किया जाता है।
माणिक्य के पृष्ठ पर असली-नकली माणिक्य की पहचान के जो तरीक़े दिये गये हैं। वही यहाँ भी प्रयुक्त करने चाहिये। कृत्रिम नीलम में रंगो की मुड़ी हुई (वक्र) पट्टिकायें होती हैं। असली नीलम में ये धारियाँ सीधी होती हैं। श्री लंका के नीलम में ‘पर’ ‘पाये जाते है।
नीलम के फायदे
आयुर्वेदीय चिकित्सा पद्धति के अनुसार नीलम तिक्त रस का होता है। यह कफ, पित्त तथा वायु के उपद्रवों को नष्ट करता है। इसके अतिरिक्त यह दीपन, हृद्य, वृष्य, बल्य और रसायन है। मस्तिष्क की दुर्बलता, हृदय रोग, क्षय, खाँसी, दमा तथा कुष्ठ रोगों में इसका प्रयोग करते है।
रत्न चिकित्सा पद्धति के अनुसार बनायी हुई नीलमणि की गोलियों का प्रयोग-बेंगनी रंग की कभी से उत्पन्न रोगों में किया जा सकता है। गज, मूत्राशय, रूसी, जलोदर, खूजली, मृगी, वृक्क रोग, मस्तिष्क झिल्ली-प्रदाह, अधकपाली का दर्द, कर्णमूलप्रदाह, स्नायुशुल, संधिवात, शियाटिका (कटिशूल), रसौली आदि ऐसे रोग हैं।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यह शनि ग्रह का रत्न है। कुछ ज्योतिषी कहते हैं कि दिल पर धारण करने से यह उसको शक्ति प्रदान करता है। अन्य का विचार है कि इसके धारण करने से मन प्रशान्त होता है, बुरे विचार जाते रहते है। कुछ का मानना है कि नीलम से धनलाभ भी होता है। पश्चिमी ज्योतिष में शनि के प्रभावाधीन व्यक्ति अथार्त 14 जनवरी से 14 फरवरी तक अ्रवधि–जबकि सूर्य कुम्भ राशि में रहता है–में जन्मे व्यक्ति इसको धारण करते हैं।
नीलम के नुकसान
कहते है कि यह रत्न धारण करने के पश्चात् कुछ ही घंटो में अपना प्रभाव दिखाने लगता है। धारण करने के बाद यदि किसी को बुरे स्वप्न आने लगें या अन्य कोई अनिष्ट हो गया हो तो नीलम उतार देना चाहिये। नहीं तो आगे चलकर इससे और भी अधिक कष्ट प्राप्त हो सकता है।
धारण करने की विधि
नीलम घारण करने का मंत्र इस प्रकार है–
ऊँ शन्नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये। शंयोरभिस्नवन्तु न।
इसे प्रायः पंचधातु या चांदी में पहना जाता है। यह रत्न दाहिने हाथ की मध्यमा अंगुली में पहनने का विधान है। इसे शुक्ल पक्ष के शनिवार को सूर्यास्त के बाद धारण करना श्रेष्ठ रहता है। नीलम स्टोन धारण करने से पहले किसी ज्योतिषी की सलाह अवश्य लें।
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