विवेकानंद जी के संग में – Talks with Swami Vivekananda
“विवेकानंद जी के संग में” पुस्तक स्वामी जी के शिष्य श्री शरच्चन्द्र चक्रवर्ती के साथ उनके संवादों का संग्रह है। यह मूल बांग्ला पुस्तक “स्वामी-शिष्य सम्वाद” के दोनों खण्डों का अनुवाद है। एक शिष्य के तौर पर समय-समय पर श्री चक्रवर्ती की स्वामी विवेकानन्द से भेंट होती थी। उस दौरान उनके बीच विभिन्न विषयों पर जो वार्तालाप हुआ है वही इस पुस्तक में उद्धृत किया गया है। पढ़ें स्वामी जी व उनके शिष्य के संवादों को हिंदी में-
- स्वामीजी के साथ शिष्य का प्रथम परिचय
- चेतना का लक्षण
- स्वामीजी में अद्भुत शक्ति का विकास
- श्रीरामकृष्ण की मूर्ति की प्रतिष्ठा
- दक्षिणेश्वर में श्रीरामकृष्ण का अन्तिम जन्मोत्सव
- स्वामीजी का शिष्य को दीक्षादान
- स्त्रीशिक्षा के सम्बन्ध में स्वामीजी का मत
- शिष्य का स्वयं भोजन पकाकर स्वामीजी को भोजन कराना
- रामकृष्ण मिशन समिति का संगठन
- स्वामीजी का शिष्य को ऋग्वेद पढ़ाना
- स्वामीजी से कुछ लोगों का संन्यास-दीक्षाग्रहण
- गुरु गोविंदसिंहजी शिष्यों को किस प्रकार की दीक्षा देते थे
- मठ में श्रीरामकृष्णदेव की जन्मतिथिपूजा
- नये मठ की भूमि पर श्रीरामकृष्ण की प्रतिष्ठा
- स्वामीजी की बाल्य व यौवन अवस्था की कुछ घटनाएँ तथादर्शन
- काश्मीर में अमरनाथजी का दर्शन
- स्वामीजी की संस्कृत रचना
- निर्विकल्प समाधि पर स्वामीजी का व्याख्यान
- स्वामीजी द्वारा शिष्य को व्यापार वाणिज्य करने के लिएप्रोत्साहित करना
- “उद्बोधन” पत्र की स्थापना
- भगिनी निवेदिता आदि के साथ स्वामीजी का अलीपुर पशुशालादेखने जाना
- श्रीरामकृष्ण मठ को अद्वितीय धर्मक्षेत्र बना लेने की स्वामीजीकी इच्छा
- भारत की उन्नति का उपाय क्या है?
- ज्ञानयोग व निर्विकल्प समाधि
- शुद्ध ज्ञान व शुद्ध भक्ति एक हैं
- धर्म प्राप्त करना हो तो गृहस्थ व संन्यासी दोनों के लिएकामकांचन के प्रति आसक्त्ति का त्याग करना एक जैसा ही आवश्यक है
- खाद्याखाद्य का विचार कैसे करना होगा – मांसाहार किसे करना उचित है
- भारत की बुरी दशा का कारण
- स्थान, काल आदि की शुद्धता का विचार कब तक
- ब्रह्मचर्य रक्षा के कठोर नियम
- स्वामीजी की नागमहाशय से भेंट
- ब्रह्म, ईश्वर, माया व जीव के स्वरूप
- स्वामीजी का कलकत्ता जुबिली आर्ट एकेडेमी के अध्यापक श्री रणदाप्रसाद दासगुप्त के साथ शिल्प के सम्बन्ध में वार्तालाप
- स्वामीजी की देह में श्रीरामकृष्णदेव की शक्ति का संचार
- स्वामीजी का मनःसंयम
- स्वामीजी का इन्द्रियसंयम, शिष्यप्रेम, रन्धन में कुशलता तथाअसाधारण स्मृति-शक्ति
- आत्मा अति निकट है, फिर भी उसकी अनुभूति आसानी सेक्यों नहीं होती
- यह देखकर कि इच्छा के अनुसार कार्य अग्रसर नहीं हो रहाहै स्वामीजी के चित्त में खेद
- मठ के सम्बन्ध में नैष्ठिक हिन्दुओं की पूर्व धारणा
- श्रीरामकृष्ण का जन्मोत्सव भविष्य में सुन्दर बनाने की योजना
- स्वामीजी जीवन के अन्तिन दिनों में किस भाव से मठ में कहाकरते थे
- वराहनगर मठ में श्रीरामकृष्णदेव के संन्यासी शिष्यों कासाधनभजन
- बेलुड़ मठ में जप-ध्यान का अनुष्ठान
- मठ में कठिन विधि-नियमों का प्रचलन
- स्वामीजी की अहंकारशून्यता
- जातीय आहार, पोशाक व आचार छोड़ना दोषास्पद है
स्वामी विवेकानंद और श्री शरच्चन्द्र चक्रवर्ती के मध्य वार्तालापों का मुख्य विषय प्रायः धर्म और अध्यात्म है। फिर भी इनके अतिरिक्त अनेकानेक विषयों यथा समाज, अर्थतंत्र, शिल्प, संस्कृति, भाषा व राष्ट्र आदि पर “विवेकानंद जी के संग में” नामक इस पुस्तक से उनके विचार जाने जा सकते हैं। मारे देश का पुनरुत्थान किस प्रकार हो सकता है तथा हम अपनी खोयी हुई मानसिक एवं आध्यात्मिक शक्ति को फिर कैसे प्राप्त कर सकते हैं यह भी इसमें भलीभाँति दर्शाया गया है।
शिष्य श्री चक्रवर्तीजी ने मौलिक बंगला पुस्तक लिखकर उसे स्वामीजी के अन्य साथी संन्यासीयों को भी दिखला ली थी तथा उनसे परामर्श प्राप्त किया था। इस प्रकार यह पुस्तक और भी अधिक विश्वसनीय हो गयी है।