सौ-सौ नमन करो (15 अगस्त 1972)
“सौ-सौ नमन करो” स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया ‘नवल’ द्वारा हिंदी खड़ी बोली में रचित कविता है। यह कविता 15 अगस्त सन् 1972 को लिखी गयी थी। इसमें स्वतंत्रता और उसके लिए जिन्होंने अपना सर्वस्व न्यौछावर किया उनके प्रति कृतज्ञता का भाव प्रदर्शित होता है। पढ़ें यह कविता–
नये राष्ट्र के नये सूर्य को सौ – सौ नमन करो।
वीर शहीदों के मस्तक पर झुक रज चरण धरो॥
कोटि-कोटि कंठों से मिलकर छेड़ो नया तराना
युग-युग से शापित मानव को हमको आज उठाना
जाति-पाँति अरु छुआ-छूत की जो दीवार खड़ी है
रोक न पाए राह हमारी उसको आज गिराना।
आज एकता नया देवता उसको नमन करो।
वीर शहीदों के मस्तक पर झुक रज चरण धरो॥
बन्द बुद्धि के द्वार खोल दे हिकमत ऐसी गाँठो
सत्य-अहिंसा और प्यार का चन्दन घर-घर बाँटो
कोई दुःखी न रहने पाये हर आँसू ढुलराओ
भेद भाव की जो दरार हो मिलकर उसको पाटो।
तुम मनुष्यता के प्रतीक बन गुंजित गगन करो
वीर शहीदों के मस्तक पर झुक रज चरण धरो॥
देख चुका जग शक्ति तुम्हारी अब कैसा टकराना
लेकिन तुमको तो युद्धों का ही अस्तित्व मिटाना
सीटो-नाटो ना कर पाये वह तुमको करना है
अपने ही दुश्मन को तुमको अपने गले लगाना।
नई मान्यता मानवता की मिलकर ग्रहण करो
वीर शहीदों के मस्तक पर झुक रज चरण धरो॥
लेकिन अब भी खूनी पंजे कुछ ऐसे फैले हैं
ऊपर से उजले हैं लेकिन भीतर से मैले हैं
सावधान रहना है हरदम उनकी बुरी नियत है
एक हाथ में बम्ब दूसरे में डालर थैले हैं।
अग्निपरीक्षा यही तुम्हारी उनका दमन करो
वीर शहीदों के मस्तक पर झुक रज चरण धरो॥
स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया हिंदी खड़ी बोली और ब्रज भाषा के जाने-माने कवि हैं। ब्रज भाषा के आधुनिक रचनाकारों में आपका नाम प्रमुख है। होलीपुरा में प्रवक्ता पद पर कार्य करते हुए उन्होंने गीत, ग़ज़ल, मुक्तक, सवैया, कहानी, निबंध आदि विभिन्न विधाओं में रचनाकार्य किया और अपने समय के जाने-माने नाटककार भी रहे। उनकी रचनाएँ देश-विदेश की अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। हमारा प्रयास है कि हिंदीपथ के माध्यम से उनकी कालजयी कृतियाँ जन-जन तक पहुँच सकें और सभी उनसे लाभान्वित हों। संपूर्ण व्यक्तित्व व कृतित्व जानने के लिए कृपया यहाँ जाएँ – श्री नवल सिंह भदौरिया का जीवन-परिचय।