कविता

जनतंत्र जवान हो गया (26 जनवरी 1986)

“जनतंत्र जवान हो गया” स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया ‘नवल’ द्वारा हिंदी खड़ी बोली में रचित कविता है।

यह कविता 26 जनवरी सन् 1986 को लिखी गयी थी। इसमें संविधान लागू होने के 20 वर्ष होने पर देश की जनतांत्रिक व्यवस्था में आयी परिपक्वता का वर्णन है। पढ़ें यह कविता–

अब जनतंत्र जवान हो गया।

लगा बीसवाँ वर्ष आज के ही दिन इसका जन्म हुआ था
शहनाई थी बजी, तिरंगे ने उठकर आकाश हुआ था
पूर्ण स्वतंत्र हो गये थे हम, हमने गाये नये तराने
हम्हीं चले थे अपनी धरती पर फिर ऊँचा स्वर्ग झुकाने
नयी-नयी योजना बनाई हमने खुशहाली लाने दो
नहरें खोदी बाँध बनाये अन्न समस्या सुलझाने को
इसी बीच में लड़ी लड़ाई मनेट जेट उड़ाये हमने
पैंटन टैंक हमी ने तोड़े, आँख खोलकर देखा जग ने
एक बार दुनिया चिल्लाई भारत पुनः महान हो गया

अब जनतंत्र जवान हो गया॥

इन वर्षों में मानव का मिल, हमने इस्पात ढाला है
हर नारी झाँसी वाली है, हर इंसान यहाँ पर झाला है
कोई भी टकराकर देखे, शीश फूट जायेगा उसका
विन्ध्य हिमालय बना हुआ है, देखो बच्चा जिसका
मत धोखे में भी अब कोई, सीमा पर निज पैर बढ़ाये
मेरी गंगा यमुना पर अब कोई, शत्रु न आँख गड़ाये
हरा-भरा यह चमन हमारा नहीं उजाड़ सकेगा कोई
सौ-सौ दुश्मन भी चढ़ आवें नहीं बिगाड़ सकेगा
कोई क्योंकि आज भारत का कण-कण ही तूफान हो गया

अब जनतंत्र जवान हो गया

हम तो मानवतावादी हैं, सत्य अहिंसा के पोषक हैं
हम केवल उनके दुश्मन हैं, मानवता के जो शोषक हैं
हम अपने घर में रहते हैं हमें किसी का घर न चाहिए
गुजर बसर अपनी करते हैंहमें किसी का जर न चाहिए
निर्माणों में आज लगे हम नई जिंदगी को लायेंगे
हरी-भरी फसलें झूमेंगी बैठ मेंढ़ पर मुस्करायेंगे
श्रम से कभी न डरना सीखा हम श्रम ही करते जायेंगे
नये स्वरों में देश प्रेम के नये गीत मिलकर गायेंगे
आज देश का हर किसान ही गीता और कुरान हो गया

अब जनतंत्र जवान हो गया॥

आज न कोई भी मुस्लिम है आज न कोई ईसाई
आज न कोई बौद्ध सिक्ख है, आज सभी भाई-भाई
भेद भाव सब आज भुलाकर जनगणमन मिलकर गाओ
घर-घर पर, पर्वत शिखरों पर ध्वजा तिरंगा लहराओ
युग निर्माता ! उठकर बदलो जन-जन की तकदीर को
सृजन देवता, बनकर बदलो भारत की तस्वीर को
शान्तिदूत बनकर के बाँटो, सारे जग में ज्ञान को
सदा ध्यान में रक्खो अपनी मर्यादा अरु मान को
क्योंकि आज अभिशाप तुम्हारा ही देखो वरदान हो गया

अब जनतंत्र जवान हो गया॥

नवल सिंह भदौरिया

स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया हिंदी खड़ी बोली और ब्रज भाषा के जाने-माने कवि हैं। ब्रज भाषा के आधुनिक रचनाकारों में आपका नाम प्रमुख है। होलीपुरा में प्रवक्ता पद पर कार्य करते हुए उन्होंने गीत, ग़ज़ल, मुक्तक, सवैया, कहानी, निबंध आदि विभिन्न विधाओं में रचनाकार्य किया और अपने समय के जाने-माने नाटककार भी रहे। उनकी रचनाएँ देश-विदेश की अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। हमारा प्रयास है कि हिंदीपथ के माध्यम से उनकी कालजयी कृतियाँ जन-जन तक पहुँच सकें और सभी उनसे लाभान्वित हों। संपूर्ण व्यक्तित्व व कृतित्व जानने के लिए कृपया यहाँ जाएँ – श्री नवल सिंह भदौरिया का जीवन-परिचय

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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