तुम मेरे गीतों में आओ
“तुम मेरे गीतों में आओ” स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया ‘नवल’ द्वारा हिंदी खड़ी बोली में रचित कविता है। सन् 1955 में लिखी गयी इस कविता में जीवनरूपी अमूर्त प्रिय से गीतों में आने का निवेदन है। पढ़ें और आनंद लें इस कविता का–
मेरे पास नहीं आते तो तुम मेरे गीतों में आओ।
मुझको प्यार नहीं करते तो मत मेरी पूजा ठुकराओ॥
माना मैंने नहीं पुजारी बनकर
तुम पर दीप चढ़ाये
माना मैंने नहीं कभी भी
लम्बे-लम्बे केश बढ़ाये
पर मैं तो उर के मन्दिर की
रखवाली करता आया हूँ
तुम्हें रिझाने हेतु युगों से
मैं मरकर जीता आया हूँ।
मेरे पुण्य नहीं भाते तो
तुम मेरे पापों में आओ।
पाषाणी मुस्कान तुम्हारी,
कब मुझको वरदान बनेगी?
कब तेरी करुणा मेरे दु:ख
जलनिधि की जलयान बनेगी?
गूंज रहे हैं अब भी देखो
मौन हृदय में तार तुम्हारे
सजल स्वप्न बनकर नयनों से
बरस रही जलधार हमारे
मेरा हास नहीं भाता तो
तुम मेरे रोदन में आओ।
(सन् 1955)
स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया हिंदी खड़ी बोली और ब्रज भाषा के जाने-माने कवि हैं। ब्रज भाषा के आधुनिक रचनाकारों में आपका नाम प्रमुख है। होलीपुरा में प्रवक्ता पद पर कार्य करते हुए उन्होंने गीत, ग़ज़ल, मुक्तक, सवैया, कहानी, निबंध आदि विभिन्न विधाओं में रचनाकार्य किया और अपने समय के जाने-माने नाटककार भी रहे। उनकी रचनाएँ देश-विदेश की अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। हमारा प्रयास है कि हिंदीपथ के माध्यम से उनकी कालजयी कृतियाँ जन-जन तक पहुँच सकें और सभी उनसे लाभान्वित हों। संपूर्ण व्यक्तित्व व कृतित्व जानने के लिए कृपया यहाँ जाएँ – श्री नवल सिंह भदौरिया का जीवन-परिचय।