रामेश्वर ज्योतिर्लिंग – Rameshwaram Jyotirlinga
रामेश्वर ज्योतिर्लिंग की स्थापना मर्यादा-पुरुषोत्तम भगवान् श्री रामचन्द्र जी ने की थी। यह शिवलिंग तमिलनाडु प्रांत के रामनाथपुरम जनपद में स्थित है।
अन्य ज्योतिर्लिंगों के नाम, स्थान व महिमा आदि जानने के लिए कृपया यहाँ जाएँ – 12 ज्योतिर्लिंग
रामेश्वर ज्योतिर्लिंग की कथा
रामेश्वरम के विषय में यह कथा कही जाती है–
श्रीराम की शिव-उपासना
जब भगवान् श्री राम लंका पर चढ़ाई करने के लिये जा रहे थे, तब इसी स्थान पर उन्होंने समुद्रतट की बालुका से शिवलिंग बनाकर उसका पूजन किया था। ऐसा भी कहा जाता है कि इस स्थान पर ठहरकर भगवान् राम जल पी रहे थे कि आकाशवाणी हुई – ‘मेरी पूजा किये बिना ही जल पीते हो?’ इस वाणी को सुनकर भगवान् श्रीराम ने बालुका से शिवलिंग बनाकर उसकी पूजा की तथा भगवान् शिव से रावण पर विजय प्राप्त करने का वर माँगा। उन्होंने प्रसन्नता के साथ यह वर भगवान श्री राम को दे दिया। भगवान शिव ने लोक कल्याणार्थ ज्योतिर्लिंग के रूप में वहाँ निवास करने की सबकी प्रार्थना भी स्वीकार कर ली। तभी से रामेश्वर ज्योतिर्लिंग यहाँ विराजमान है।
रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग की एक अन्य कथा
इस ज्योतिर्लिंग के विषय में एक दूसरी कथा इस प्रकार कही जाती है। जब भगवान् श्री राम रावण का वध करके लौट रहे थे, तब उन्होंने अपना पहला पड़ाव समुद्र के इस पार गन्धमादन पर्वत पर डाला था। वहाँ बहुत-से ऋषि और मुनिगण उनके दर्शन के लिये उनके पास आये। उन सभी का आदर सत्कार करते हुए भगवान राम ने उनसे कहा कि पुलस्त्य के वंशज रावण का वध करने के कारण मुझ पर ब्रह्महत्या का पाप लग गया है। आप लोग मुझे इससे निवृत्ति का कोई उपाय बताइये।
यह बात सुनकर वहाँ उपस्थित सारे ऋषियों मुनियों ने एक स्वर से कहा कि आप यहाँ शिवलिंग की स्थापना कीजिये। इसमें आप ब्रह्म हत्या के पाप से छुटकारा पा जाएंगे। भगवान श्री राम ने उनकी यह बात स्वीकार कर हनुमान जी को कैलास पर्वत जाकर वहाँ से शिवलिंग लाने का आदेश दिया। श्री हनुमान तत्काल ही वहाँ जा पहुँचे, किन्तु उन्हें उस समय वहाँ भगवान् शिव के दर्शन नहीं हुए। अत: वे उनका दर्शन प्राप्त करने के लिये वहीं बैठकर तपस्या करने लगे। कुछ काल पश्चात् शिव जी के दर्शन प्राप्त कर बजरंगबली शिवलिंग लेकर लौटे, किन्तु तब तक शुभ मुहूर्त बीत जाने की आशंका से यहाँ सीता जी द्वारा लिंग-स्थापन कराया जा चुका था।
श्री राम द्वारा शिव-महिमा का वर्णन
श्री हनुमान जी को यह सब देखकर बहुत दुःख हुआ। उन्होंने अपनी व्यथा भगवान श्री राम से कह सुनायी। भगवान ने पहले ही लिंग स्थापित किये जाने का कारण हनुमान जी को बताते हुए कहा कि यदि तुम चाहो तो इस लिंग को यहाँ से उखाड़कर हटा दो। रामभक्त हनुमान अत्यन्त प्रसन्न होकर उस लिंग को उखाड़ने लगे, किन्तु बहुत प्रयत्न करने पर भी वह टस-से-मस नहीं हुआ। अन्त में उन्होंने उस शिवलिंग को अपनी पूँछ में लपेटकर उखाड़ने का प्रयत्न किया, फिर भी वह ज्यों-का-त्यों अडिग बना रहा। उलटे अंजनिसुत हनुमान ही धक्का खाकर एक कोस दूर मूर्छित होकर जा गिरे। उनके शरीर से रक्त बहने लगा। यह देखकर सभी लोग अत्यन्त व्याकुल हो उठे। माता सीता जी पुत्र से भी प्यारे अपने हनुमान के शरीर पर हाथ फेरती हुईं विलाप करने लगीं। मूर्छा दूर होने पर हनुमान जी ने भगवान राम को परम ब्रह्म के रूप में सामने देखा। भगवान ने उन्हें शंकर जी की महिमा बताकर उनका प्रबोध किया। हनुमान जी द्वारा लाये गये लिंग की स्थापना भी वहीं पास में करवा दी। स्कन्द पुराण में रामेश्वर ज्योतिर्लिंग (Rameshwaram Jyotirlinga) की महिमा विस्तार से वर्णित है।
sandeep ji bahut accha karya kar rahe hai. hardik aabhar
पं० जयकृष्ण शर्मा जी, टिप्पणी कर हमारा उत्साहवर्धन करने के लिए धन्यवाद। इसी तरह हमारा मार्गदर्शन करते रहें।