स्वामी विवेकानंद

स्वामी विवेकानंद के पत्र – श्री प्रमदादास मित्र को लिखित (2 सितम्बर, 1889)

(स्वामी विवेकानंद का श्री प्रमदादास मित्र को लिखा गया पत्र)
श्री श्री दुर्गा शरणम्

बागबाजार, कलकत्ता,
२ सितम्बर, १८८९

पूज्यपाद,

कुछ दिन हुए, मुझे आपके दो कृपापत्र प्राप्त हुए थे। आपमें ज्ञान और भक्ति का इतना आश्चर्यपूर्ण समन्वय है, यह जानकर मुझे बड़ा हर्ष हुआ। आपने मुझे जो यह उपदेश दिया है कि मैं तर्क और विवाद करना छोड़ दूँ, यह सचमुच बहुत ठीक है।

वास्तव में वैयक्तिक जीवन का यही लक्ष्य है – ‘जिसको आत्म-दर्शन होता है, उसकी हृदय की ग्रंथियाँ खुल जाती हैं, उसके सारे संशय दूर हो जाते हैं ओर कर्मों का नाश हो जाता है।’1 किन्तु जैसा गुरुदेव कहा करते थे कि जब घड़े को पानी में डुबाकर भरा जाता है, उस समय उससे भक् भक् ध्वनि ही होती है। परन्तु भर जाने के बाद उसमें से कोई ध्वनि नहीं होती, मेरी दशा ठीक वैसी ही है। दो-तीन सप्ताह के भीतर आपके दर्शन भी कर सकूँगा। परमात्मा मेरी यह इच्छा पूर्ण करे।

आपका,
नरेन्द्र


  1. भिद्यते हृदयग्रंथिश्छिद्यन्ते सर्वसंशयाः।
    क्षीयन्ते चास्य कर्माणि तस्मिन् दृष्टे परावरे॥ – मुंडकोपनिषद् ॥२।२।८॥

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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