स्वामी विवेकानंद के पत्र – श्री यज्ञेश्वर भट्टाचार्य को लिखित (5 जनवरी, 1890)
(स्वामी विवेकानंद का श्री यज्ञेश्वर भट्टाचार्य को लिखा गया पत्र)
इलाहाबाद,
५ जनवरी, १८९०
प्रिय फकीर,
एक बात मैं तुमसे कहना चाहता हूँ; इसे सदा स्मरण रखना कि मेरे साथ तुम लोगों का पुनः साक्षात्कार नहीं भी हो सकता है – नीतिपरायण तथ साहसी बनो, अन्तःकरण पूर्णतया शुद्ध रहना चाहिए। पूर्ण नीतिपरायण तथा साहसी बनो – प्राणों के लिए भी कभी न डरो। धार्मिक मत-मतान्तरों को लेकर व्यर्थ में माथापच्ची मत करो।
कायर लोग ही पापाचरण करते हैं, वीर पुरुष कभी भी पापानुष्ठान नहीं करते – यहाँ तक कि कभी वे मन में भी पाप का विचार नहीं लाते। प्राणिमात्र से प्रेम करने का प्रयास करो। स्वयं मनुष्य बनो तथा राम इत्यादि को भी, जो खासकर तुम्हारी ही देखभाल में हैं, साहसी, नीतिपरायण तथा दूसरों के प्रति सहानुभूतिशील बनाने की चेष्टा करो। बच्चों, तुम्हारे लिए नीतिपरायणता तथा साहस को छोड़कर और कोई दूसरा धर्म नहीं। इसके सिवाय और कोई धार्मिक मत-मतान्तर तुम्हारे लिए नहीं है। कायरता, पाप, असदाचरण तथा दुर्बलता तुममें एकदम नहीं रहनी चाहिए, बाकी आवश्यकीय वस्तुएँ अपने आप आकर उपस्थित होंगी। राम को कभी सिनेमा देखने के लिए या अन्य ऐसे किसी प्रकार के खेल-तमाशे में, जिससे चित्त की दुर्बलता बढ़ती हो, स्वयं न ले जाना और न जाने देना।
तुम्हारा,
नरेन्द्रनाथ