स्वामी विवेकानंद के पत्र – श्री प्रमदादास मित्र को लिखित (31 मार्च, 1890)
(स्वामी विवेकानंद का श्री प्रमदादास मित्र को लिखा गया पत्र)
गाजीपुर,
३१ मार्च, १८९०
प्रिय महोदय,
मैं पिछले कई दिनों से यहाँ नहीं था और आज फिर बाहर जा रहा हूँ। मैंने भाई गंगाधर को यहाँ बुलाया है और यदि वह आता है, तो हम दोनों साथ-साथ आपके यहाँ आयेंगे। कुछ विशेष कारणों से मैं इस स्थान से कुछ दूरी पर एक गाँव में गुप्तवास करूँगा और उस स्थान से पत्र लिखने का वहाँ कोई साधन नहीं है, जिसके कारण आपके पत्र का उत्तर इतने समय तक नहीं लिख सका।
भाई गंगाधर के आने की काफी सम्भावना है, अन्यथा मेरे पत्र का उत्तर मुझे मिल जाता। भाई अखंडानन्द वाराणसी में डॉक्टर प्रिय के यहाँ ठहरा है। हमारा एक दूसरा भाई मेरे साथ था, पर वह अब अभेदानन्द के स्थान को चला गया है। उसके पहुँचने का समाचार नहीं मिला और चूँकि उसका स्वास्थ्य ठीक न था, इसलिए मैं उसके लिए थोड़ा चिन्तित हूँ। मैंने उसके साथ बड़ी निष्ठुरता बरती – अर्थात् मैंने उसे इतना परेशान किया कि उसे मेरा साथ छोड़ना पड़ा। आप जानते हैं कि कोई चारा नहीं है, क्योंकि मैं अत्यन्त दुर्बल हृदय हूँ! और प्रेमजन्य विक्षेपों से पराभूत हो जाता हूँ। आशीर्वाद दीजिए कि मैं कठोर हो सकूँ। मैं अपने मन की दशा आपसे क्या कहूँ! वह ऐसा है, मानो रात-दिन उसमें नरक की ज्वाला जल रही हो। कुछ भी नहीं, अभी तक मैं कुछ भी नहीं कर सका! यह जीवन व्यर्थ में उलझ गया प्रतीत होता है। मैं पूर्णरूपेण किंकर्तव्यविमुढ़ हूँ! बाबाजी मधुसिक्त शब्दों की वर्षा करते हैं और मुझे जाने से रोकते हैं। आह, मैं क्या कहूँ? मैं आपके प्रति सैकड़ों अपराध कर रहा हूँ, कृपया उन्हें मानसिक व्यथा से पीड़ित एक पागल की भूलें समझकर क्षमा करें। अभेदानन्द पेचिश से पीड़ित है। बड़ी कृपा होगी, यदि आप कृपया उसकी हालत को जान लें और यदि वह हमारे यहाँ से आये हुए भाई के साथ जाने को राजी हो, तो उसे हमारे मठ भेज दें। मेरे गुरुभाई अवश्य ही मुझे कठोर और स्वार्थी समझते होंगे। ओह, मैं क्या कर सकता हूँ? मेरे मन की गहराई में पैठकर कौन देख सकता है? कौन जानता है कि रात-दिन मैं कौनसी यंत्रणा भोग रहा हूँ? आशीर्वाद दीजिए कि मुझमें अविरल धैर्य और अध्यवसाय उत्पन्न हो। असंख्य प्रणाम स्वीकार करें।
आपका,
नरेन्द्रनाथ
पुनश्च – अभेदानन्द सोनारपुरा में डॉ. प्रिय के घर में ठहरा है। मेरी कमर का दर्द वैसा ही है।
नरेन्द्र