स्वामी विवेकानंद के पत्र – डॉ. नंजुन्दा राव को लिखित (27 अप्रैल, 1893)
(स्वामी विवेकानंद का डॉ. नंजुन्दा राव को लिखा गया पत्र)
खेतड़ी, राजपूताना
२७ अप्रैल, १८९३
प्रिय डॉक्टर,
अभी आपका पत्र मिला। मुझ अयोग्य पर प्रीति के लिए मैं आपका विशेष कृतज्ञ हूँ। बेचारे बालाजी के पुत्र के देहान्त का समाचार सुन मुझे अत्यन्त दुःख हुआ! ‘प्रभु ने ही दिया, पुनः प्रभु ने ही ले लिया – धन्य है प्रभु का नाम।’1 हम तो केवल इतना ही जानते हैं कि न तो कुछ नष्ट होता है और न नष्ट हो सकता है। हमें उनकी ओर से जो भी कुछ मिले, उसे पूर्ण शान्ति के साथ नतमस्तक होकर स्वीकार करना चाहिए। सेनापति यदि अपने अधीनस्थ सिपाही से तोप के मुँह में जाने के लिए कहे, तो उसमें किसी प्रकार की आपत्ति अथवा उस आदेश की किंचिन्मात्र की भी अवहेलना करने का उसका कोई अधिकार नहीं। इस शोक में प्रभु बालाजी को सान्त्वना प्रदान करें और यह शोक उनको उस परम करुणामयी जननी के वक्षःस्थल के निकट से निकटतर ले जाय।
कहाँ से जहाज पर सवार हों, इसके बारे में मेरा कहना यह है कि मैंने पहले ही बम्बई से जाने की व्यवस्था कर ली है। भट्टाचार्य महोदय से कहना कि राजा (खेतड़ी के महाराज) अथवा मेरे गुरुभाइयों की ओर से मेरे संकल्प में किसी प्रकार की बाधा पहुँचने की कोई भी आशंका नहीं। मेरे प्रति राजाजी का अगाध प्रेम है।
और एक बात यह है कि – चेटी की जबान को ठीक नहीं कहा जा सकता। मैं कुशलपूर्वक हूँ। दो-एक सप्ताह के अन्दर ही मैं बम्बई रवाना हो रहा हूँ।
सच्चिदानन्द की यही निरन्तर प्रार्थना है कि सर्वशुभविधाता आप लोगों के ऐहिक तथा पारलौकिक मंगल विधान करे।
पुनश्च – जगमोहन से मैंने आपका नमस्कार कहा है। वे भी मुझसे आपको प्रतिनमस्कार लिखने के लिए कह रहे हैं।
- ‘The Lord gave and Lord hath taken away; blessed be the name of the Lord’.