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पंचतंत्र की कहानी – दोस्ती की ताकत

“दोस्ती की ताकत” पंचतंत्र के दूसरे तंत्र मत्र-संप्राप्ति की पहली कहानी है। इस कहानी में एकता की जीत और मित्रता की शक्ति को बहुत ही रोचक तरीक़े से बताया गया है। किस तरह कबूतर जाल लेकर उड़ जाते हैं और उनका दोस्त चूहा उनके जाल काट देता है–इसकी सीख बहुत शिक्षाप्रद है। अन्य कहानियाँ पढ़ने के लिए कृपया यहाँ देखें – पंचतंत्र की कहानियां

दक्षिण प्रदेश के एक बड़े नगर के बाहर बरगद का पुराना पेड़ था, उस पेड़ की घनी छाया में आने-जाने वाले मुसाफिर बैठकर विश्राम किया करते थे। उस पेड़ पर एक कौवा रहता था। एक बार यह कौवा नगर की ओर उड़ा जा रहा था कि रास्ते में एक शिकारी को जाल फैलाए हुए देखा। उसे देखकर कौवे ने सोचा कि यह शिकारी आज अपने बरगद के वृक्ष की ओर चला गया तो न जाने कितने पक्षियों को जाल में फंसाकर ले जाएगा। यही सोचकर कौवा वहीं से वापस आ गया और आते ही उसने बरगद पर रहने वाले पक्षियों को तत्काल बुलाया और बोला–

भाइयो! यह सामने से जो आदमी आ रहा है, इसके पास जाल है। हमें फांसने के लिए दाना डालेगा। इस दाने को तुम लोग जहर समझना।

अभी कौवा यह बात कह ही रहा था कि वह शिकारी वृक्ष के नीचे आ गया। उसने आते ही वृक्ष के नीचे चारों ओर दाना बिखेर दिया और अपना जाल फैलाकर दूर आराम से बैठ गया। बरगद पर बैठे सभी पक्षी तो कौवे की बात मानकर अपनी जान बचा कर चुप बैठे तमाशा देख रहे थे।

इसी बीच कबूतरों का एक झुंड इधर से आ निकला। बिखरे हुए दाने को देख उनके मुंह में पानी भर आया। वहां पर बैठे दूसरे पक्षियों ने उन्हें मना किया किन्तु वे नहीं माने और उस दाने पर टूट पड़े। बस फिर क्या था, दाना खाने की बजाए वे सब के सब शिकारी के जाल में फंस गए थे। किसी विद्वान ने ठीक ही कहा है–

जबान के स्वाद के कारण जल में रहने वाली मछली के समान लालची अज्ञानी लोगों की हत्या होती है।

“जैसे रामायण के अनुसार रावण ने पराई स्त्री को हरण कर अपने पाप को स्वीकार नहीं किया।”
श्रीराम ने सोने का हिरण होने की असंभावना क्यों न जानी?”
महाभारत की कथा के अनुसार धर्मपुत्र युधिष्ठिर जुए की चाल में कैसे फंस गए?”

वास्तव में जब भी इंसान पर कोई मुसीबत आती है तो उसकी बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है।

इधर वह शिकारी उन पक्षियों को जाल में फंसे देखकर अपने स्थान से दौड़ा। उन पक्षियों के सरदार ने कहा, “भाइयो, तुम डरो मत। मुसीबत में घबराने से काम नहीं चलता। दुःखों में बुद्धि से काम लेना चाहिए। बुद्धिमान लोग दुःख और सुख को समान ही समझते हैं। जैसे सूर्य का रंग सुबह और शाम एक ही जैसा लाल होता है। इसलिए हमें हिम्मत से काम लेते हुए इस जाल समेत ही उड़ जाना चाहिए। यह पापी शिकारी देखता ही रह जाएगा। यदि हम ऐसा नहीं करेंगे तो सब के सब मारे जाएंगे।

बस फिर क्या था।

देखते-ही-देखते कबूतर उस जाल समेत ही वहां से उड़ गये। शिकारी बेचारा कुछ देर तो उनके पीछे भागा, इस आशा पर कि शायद यह नीचे गिर जाएं।

किन्तु वह बेचारा हाथ मलता ही रह गया। शिकार तो उसे क्या मिलना था। उसका तो जाल भी साथ गया।

ऊपर कबूतर बेचारे जाल में फंसे उड़े जा रहे थे। उनको इस बात की चिन्ता सता रही थी कि इस जाल की रस्सियों को कौन काटेगा। सहसा कबूतरों के सरदार को अपने पुराने मित्र चूहे की याद आई, जो इसी जंगल में वृक्ष के नीचे रहता था। उसे दोस्ती की ताकत पर भरोसा था। यही सोचकर वे सब के सब उस चूहे के पास पहुंच गए। उस कबूतर ने बिल के पास पहुंचकर चूहे को आवाज देकर कहा–

“अरे भाई! जल्दी से बाहर आओ। हम लोग बड़ी मुसीबत में फंस गए हैं।”
“चूहे ने अन्दर से ही आवाज दी – अरे भाई, तुम कौन हो? कहां से आए हो? क्या काम है? यह सब बताओ।”
“मैं कबूतरों का सरदार तुम्हारा पुराना मित्र हूं| तुम जल्दी से बाहर आओ। बहुत जरूरी काम है।”

चूहा अपने मित्र की आवाज सुनकर बाहर निकल आया। चूहे ने अपने मित्र और उसके साथियों को जाल में फंसे देखकर कहा, “मित्र! यह क्या?”

“भाई, जानते हुए क्या पूछते हो। वास्तव में जैसा करें, वैसा हो भोगना पड़ता है। अब तो हमें इस जाल से निकालो।”

चूहे ने कबूतर की आवाज सुनकर कहा, “जो पक्षी दूर से माल को देख लेता है, वह जाल को भूल जाता है। बुद्धिमान पुरुषों की सुस्ती देखकर तो मेरा यही विचार होता है कि भाग्य बड़ा बलवान होता है और आकाश में उड़ने वाले पक्षी भी मुसीबत में फंस जाते हैं। गहरे सागर में रहने वाली मछलियां भी मारी जाती हैं। इससे पता चलता है कि क्या पाप है, क्या पुण्य।”

यह कह कर वह कबूतरों के बन्धन काटने लगा। कबूतरों का सरदार बोला, “भाई, देखो पहले मेरे साथियों के बन्धन काटो। बाद में मेरा काटना।”

चूहे ने कहा, “भाई, देखो पहले तुम आज़ाद हो जाओ। फिर इनके बारे में सोचना।”

“भाई, देखो यह सब मेरे मित्र हैं और अपने-अपने परिवारों को छोड़कर मेरे साथ आए हैं। मैं इनका सम्मान कैसे करूं?” कहा है–

जो राजा अपने सेवकों का सम्मान करता है, धन का अभाव होने पर भी वे लोग राजा का साथ नहीं छोड़ते और विश्वास ही सब चीजों की जड़ है। तभी तो हाथी अपने झुंड का राजा कहलाता है और पशुओं का राजा होते हुए भी शेर के पास कोई पशु नहीं जाता। दूसरे, यदि मेरा जाल काटते हुए तुम्हारा एक भी दांत टूट गया या फिर पापी शिकारी भी आ गया तो मेरे लिए नरक में गिरना होगा। कहा भी है–

सदाचारी सेवकों के दुःखी रहते जो राजा आनन्द मनाता है, वह इस जन्म में दुःखी रहता है और मर कर नरक में जाता है।

मेरे भाई! मैं राजधर्म को नहीं जानता हूं। मैं तो केवल तुम्हारी परीक्षा ले रहा था। तुमने अपने मन में दोस्ती की ताकत को दिखा दिया है। अब मैं पहले तुम्हारे साथियों के बन्धन काटूंगा, फिर तुम्हारे। इस प्रकार आप भारी परिवार वाले होंगे और फले-फूलेंगे। इसीलिए कहा है कि जो राजा अपने नौकरों पर सदा दया दृष्टि रखता है और योग्यता अनुसार उन्हें वेतन आदि देता है । वह तीनों लोकों की रक्षा करने की हिम्मत रखता है। यह कह उसने उन सबके बन्धन काट दिए और कबूतर से बोला – मित्र! यदि जीवन में कभी मेरी जरूरत पड़े तो आना। यह कहकर चूहा अपने बिल में घुस गया। कबूतर भी अपने साथियों के साथ उड़ गया।

ठीक ही कहा जाता है कि अच्छे मित्र वाले अत्यन्त कठिन कामों को भी पूरा कर लेते हैं, क्योंकि दोस्ती की ताकत महान है। इसलिए अपने अच्छे मित्र बनाने चाहिए।


कौवा कबूतर के बन्धन और सारी कहानी को सुनकर हैरानी से सोचने लगा कि इस चूहे की कैसी बुद्धि और क़िले जैसा रक्षा-स्थान है। इसी तरह बन्धन से छुटकारा पाने की इन पक्षियों की तरकीब भी कैसी रही। चंचल स्वभाव होने के कारण मैं किसी पर विश्वास नहीं करता, पर फिर भी उस चूहे को मित्र बनाऊंगा। मैं भी दोस्ती की ताकत बढ़ाऊंगा। कहा भी है–

सब गुण होते हुए भी बुद्धिमानों को अच्छे मित्र अवश्य बनाने चाहिए, जैसे सागर सब कुछ होते हुए भी चंद्रमा के निकलने की प्रतीक्षा करता है। यह सोचकर कौवा वृक्ष से उतर कर चूहे के बिल के पास जाकर कबूतर जैसी आवाज़ निकालकर उसे बुलाने लगा, “आओ भाई, बाहर आओ।”

उसकी आवाज़ सुनकर चूहे ने सोचा – शायद और कोई कबूतर बन्धन काटने से रह गया है, जो मुझे फिर से बुला रहा है। चूहा बोला–

“भाई तुम कौन हो?”
“मैं एक कौवा हूं मित्र!”

वह सुनते ही चूहा जल्दी से बिल के नीचे घुसकर बोला, “यहां से जल्दी ही किसी और स्थान पर चले जाओ।”

“मैं तो आपके पास बहुत जरूरी काम से आया हूं। क्या तुम मुझसे मिलोगे?”
“नहीं भाई! मैं आपसे नहीं मिल सकता।”
“भाई, मैंने तुम्हें कबूतरों के बन्धन काटते देखा। इसलिए मुझे तुमसे प्यार हो गया है। यदि मैं कभी किसी जाल में फंस गया, तो मैं भी तुम्हारी सहायता से छूट सकूंगा। इसलिए आओ हम मित्रता कर लें।”

चूहा बोला – वैसे तुम मेरे शिकारी हो और मैं तुम्हारा शिकार। भला तुम्हारी और हमारी मित्रता कैसी? कहा भी है–

जिनमें धन और कुल की समानता हो उन्हीं में विवाह होता है, निर्बल और ताक़तवर में नहीं। और जो लोग अपने से कम बुद्धि वाले अथवा अधिक बुद्धि वाले लोगों से मित्रता करते हैं, वे हंसी का पात्र बनते हैं। इसलिए आप जाइये।

“भाई! मैं आपके द्वार पर बैठा हूं। यदि तुम मुझसे मित्रता नहीं करोगे तो मैं अपनी जान दे दूंगा।”

“अरे भाई, तुम मेरे शत्रु हो। मैं तुमसे मित्रता कैसे करूं?”
कौवे ने हंसकर कहा, “अरे भैया! आज तक हमने एक-दूसरे को देखा भी नहीं, फिर हमारी दुश्मनी कैसी? बल्कि दोस्ती की ताकत तो महान है।”

देखो दुश्मनी दो प्रकार की होती है – १. स्वाभाविक शत्रुता और २. की हुई शत्रुता। तो तुम हमारे स्वाभाविक हो। कहा भी गया है – कृत्रिम शत्रुता एक बार कृत्रिम गुणों से नष्ट भी हो जाती है, परन्तु जन्मजात बैर जान लिए बिना नहीं जाता।

“भैया! दोनों प्रकार की दुश्मनी के लक्षण बताओ।”

“भाई! जो किसी कारण से शत्रुता हो जाए, वह तो कृत्रिम होती है। वह इस कारण से दूर हो जाने पर समाप्त हो जाती है। पर स्वाभाविक शत्रुता कभी नहीं जाती। जैसे सांप और नेवले की मांसाहारी और घासाहारी की, आग और पानी की, देव और राक्षसों की, कुत्ते और बिल्ली की, अमीर और ग़रीब की, सौतों की, सिंह और हाथी की, शिकारी और हिरण की, ब्राह्मण और दुष्ट की। यद्यपि इनमें से किसी ने किसी को समाप्त नहीं किया। पर फिर भी एक-दूसरे को देखकर जलते रहते हैं।”

चूहे की बात सुनकर कौवा बोला – भाई, यह सब बेकार की बातें हैं। मेरी बात सुनो। किसी कारण से ही मित्रता और किसी कारण से शत्रुता होती है। संसार में बुद्धिमानों से मित्रता करनी चाहिए, शत्रुता नहीं। इसलिए तुम मुझसे मित्रता करो, मेरे भाई। हम दोनों मिलकर रहेंगे।

चूहा बोला, “भैया! नीति का सार सुनो। जो दुष्ट एक ही बार देखे गए से मित्रता करना चाहता है, वह उसी प्रकार मृत्यु को बुलाता है जैसे खच्चरी गाभिन होकर मर जाती है। यों तो मैं गुणी हूं जो मेरे साथ बैर न करेगा, ऐसा भी नहीं है। कहा गया है–शास्त्रकार जैमिनी मुनि को हाथी ने मार दिया और छन्द-शास्त्र के प्रणेता पिंगलाचार्य को सागर तट पर मगर खा गया।”

“प्रिय भाई चूहे! यह सब तो ठीक है, पर सुनो। उपकार से सदाचारी लोग, किसी कारणवश, पशु-पक्षियों से भय और लोभ से सूचों में और सज्जनों में दर्शन से ही मित्रता हो जाती है। दोपहर से पहले और बाद की छाया के समान दुष्टों और सज्जनों में मित्रता होती है। दोपहर के पहले की छाया पहले लम्बी फिर छोटी और फिर धीरे-धीरे समाप्त हो जाती है। बाद की छाया धीरे-धीरे बढ़ती जाती है। सो मैं सज्जन हूं और फिर कसम खाकर आपको निर्भय कर दूंगा।”

“मुझे तुम्हारी कसम का विश्वास नहीं। कहा भी गया है – कसम खाकर संधि करने वाले शत्रु का विश्वास न करो। सुनते हैं सौगंध खाकर भी इन्द्र ने वृत्र को मार डाला और विश्वास दिलाकर अपनी विमात के गर्भ को नष्ट कर डाला। अच्छे काम करके मित्रता कर लेना यह चाणक्य नीति है। मित्र संगठन द्वारा बल बढ़ाना यह नीति शुक्राचार्य की है। किसी पर विश्वास न करना यह बृहस्पति की नीति है। यह तीन प्रकार की नीति कही गई है। महान् पुरुष भी शत्रु व स्त्री पर विश्वास करके नष्ट होता है।”

चूहे की बातें सुनकर कौवा समझ गया कि वास्तव में ही यह बड़ा ज्ञानी है। इससे मित्रता करके मैं बहुत कुछ सीख सकता हूँ, किन्तु इसका संदेह!

कुछ देर सोचने के पश्चात् कौवे के दिमाग में एक नई बात आ गई थी। वह झट से बोला – देखो मित्र, यदि तुम्हें मुझपर विश्वास नहीं है, तो तुम एक मित्र के नाते बिल के अन्दर से ही बातचीत कर लिया करो। इससे तुम्हारा डर जाता रहेगा और मैं तुम्हारी मित्रता से लाभ उठाता रहूंगा। हमारी मित्रता से दोस्ती की ताकत भी बढ़ेगी।

कौवे की बात सुनकर चूहे ने सोचा कि यह तो बड़ा चतुर और सच्चा प्राणी लगता है। इससे मित्रता करना ठीक ही रहेगा। यह सोच कर वह बोला – देखो, तुम कभी मेरे बिल में पांव भी न रखना। कहा गया है कि शत्रु पहले धीरे-धीरे सरकता है। फिर जोर से भागता है। जैसे कामी पुरुष स्त्री पर धीरे-धीरे डोरे डालता है।

कौवा खुश हो गया और बोला – देखो भैया, मुझे केवल तुम्हारी मित्रता चाहिए। दोस्ती की ताकत चाहिए। जैसे भी तुम कहोगे, वैसे ही मैं करूंगा।


बस इस प्रकार ये दोनों सच्चे मित्र बनकर रहने लगे। दोनों में बहुत प्यार हो गया। दोनों ही जो भोजन लाते, मिल बांट कर खा लेते। कहा भी गया है कि देना-लेना, गुप्त बातें कहना, पूछना, खाना तथा खिलाना – ये छः प्रकार की नीति के लक्षण हैं। इस प्रकार इन दोनों मित्रों में दिन-प्रतिदिन प्यार बढ़ने लगा।

एक दिन कौवे ने रोते हुए चूहे से आकर कहा, “भैया, अब तो इस देश से मन खट्टी हो गया है| अब कहीं और जाऊंगा।”

“भैया! यह मन खट्टा होने का कारण क्या है?”

“भाई चूहे! इस देश में वर्षा न होने से अकाल पड़ गया है। जिसके कारण लोग भूखे मर रहे हैं। अपनी भूख मिटाने के लिए लोगों ने घर-घर में जाल फैला रखे हैं। मैं भी एक जाल में फंस गया था। यह मेरी तकदीर अच्छी थी, जो उस जाल से निकल आया।”

“तो फिर अब तुम कहां जाओगे?”

दूर कहीं घने जंगलों के बीच एक तालाब है। वहां पर तुम्हारे जैसा मेरा एक प्रिय मित्र कछुआ रहता है। वह मुझे मछलियों के मांस के टुकड़े देगा। बस, उन्हें खा-खाकर मैं अपना बुरा समय काट दूंगा। अब मैं यहां पर रहकर पक्षियों को जाल में फंस-फंस कर मरते देखना नहीं चाहता। कहा गया है कि विद्वान के लिए विदेश क्या है। मीठा बोलने वाले के लिए पराया क्या है?”

“अरे भाई, यदि यह बात है तो मैं भी तुम्हारे साथ चलता हूं”, चूहे ने कहा।
“मगर मित्र, तुम्हें यहां क्या दुःख है?”
“यह बात मैं तुम्हें वहीं पर चलकर बताऊंगा।”
“लेकिन भैया, मैं आकाश में उड़ने वाला पक्षी हूं। मैं तो उड़कर जाऊंगा। किन्तु तुम?”
“अरे मित्र! क्या तुम मुझे अपने परों पर बैठाकर नहीं ले जा सकते?”
“वाह! तुमने भी यह बात क्या कह दी। अरे, मैं तो मित्र के लिए अपनी जान दे सकता हूं, परों पर बैठाना तो बहुत छोटी-सी बात है। तो फिर क्या सोच रहे हो। चलो, हम तो यारों के यार हैं। यारों के साथ जिएंगे और यारों के साथ मरेंगे।”

इतना कहने के पश्चात् चूहा कौवे के परों पर बैठ गया और कौवा उड़ता हुआ उसे उस तालाब तक ले गया। तालाब पर जाकर उसने अपने मित्र कछुए को आवाज़ दी।

कछुआ अपने मित्र की आवाज़ सुन पानी से बाहर निकल आया। दोनों मित्र किनारे पर बैठ बातें करने लगे। फिर कछुए ने पास बैठे चूहे की ओर देखकर पूछा–

“अरे भाई, यह कौन है?”
“यह मेरा मित्र है। इसे मैं अपनी पीठ पर लादकर यहां तक लाया हूं।”
“क्या कह रहे हो, भाई! यह चूहा तो तुम्हारा भोजन है। यदि तुम इसे मित्र बनाकर लाए हो तो ज़रूर कोई खास बात है।”
“मित्र तो जान से प्यारा होता है। जब मैंने अकाल पड़ने पर उस देश को छोड़ना चाहा, तो यह भी कहने लगा कि हम तो मित्र के साथ ही जिए हैं, उसके साथ ही मरेंगे।”
“मगर इसका कारण क्या है?”
“इसका कारण मैंने वहां पर पूछा था। लेकिन इसने कहा कि मैं यह कारण तालाब पर चलकर ही बताऊंगा।”
“चलो मित्र, अब तुम हमें वह कारण बताओ तो”, चूहे से कौवे ने कहा।

उत्तर में चूहा कहानी सुनाने लगा था – धन की शक्ति।

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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