स्वामी विवेकानंद के पत्र – प्रोफेसर जॉन हेनरी राइट को लिखित (18 जून, 1894)
(स्वामी विवेकानंद का प्रोफेसर जॉन हेनरी राइट को लिखित)
५४१, डियरबोर्न एवेन्यू,
१८ जून, १८९४
प्रिय अध्यापक जी,
अन्य पत्रों को भेजने में देर हुई, क्षमा करेंगे। वे मुझे पहले नहीं मिल सके। एक सप्ताह में मैं न्यूयार्क जाऊँगा।
मैं एनिस्क्वाम जाऊँगा या नहीं, नहीं कह सकता। जब तक मैं पुनः आपको न लिखूँ, आप उन पत्रों को मुझे न भेजें। बोस्टन के पत्र के मेरे विरोधी उस लेख से श्रीमती बैग्ली विचलित सी हो गयी लगती हैं।1 डिट्रॉएट से उन्होंने मुझे उसकी एक प्रति भेज दी और मुझसे पत्राचार बन्द कर दिया। उनपर प्रभु का आशीर्वाद हो। यह मेरे प्रति अत्यंत कृपालु रही हैं।
मेरे भाई, आप जैसे वीरहृदय सब नहीं होते! हम लोगों का संसार एक बड़ा विलक्षण स्थान है। लेकिन मुझे – मुझ जैसे एक निरे अजनबी को, जिसके पास कोई परिचयपत्र भी न था – इस देश के लोगों से जितनी सहृदयता मिली है, उसके लिये मैं प्रभु का अत्यंत आभारी हूँ। सब कुछ ही अंततः मंगलमय ही होता है।
आपका चिर आभारी,
विवेकानन्द
पुनश्च – बच्चों के लिए ईस्ट इंडिया कम्पनी के डाक टिकट भेज रहा हूँ। अगर उन्हें पसन्द हों।
वि.
- स्वामी जी को बोस्टन के पत्र में प्रकाशित लेख भेजने के उपरान्त श्रीमती बैग्ली के मौन का अर्थ स्वामी जी ने अन्यथा लगाया, किन्तु सत्य यह है कि चारों ओर से घिर जाने पर उन्होंने सोचा कि श्रीमती बैग्ली का उन पर विश्वास नहीं रहा, और इससे उन्हें काफी क्लेश हुआ होगा। स०