स्वामी विवेकानंद के पत्र – श्री ल्यान लैण्ड्सवर्ग’ को लिखित (13 सितम्बर, 1894)
(स्वामी विवेकानंद का श्री ल्यान लैण्ड्सवर्ग’1को लिखा गया पत्र)
होटल वेल्लेवुये,
बोस्टन,
१३ सितम्बर, १८९३
प्रिय ल्यान,
तुम कुछ बुरा न मानना, पर गुरु होने के नाते तुम्हें उपदेश देने का मुझे अधिकार है, और इसलिए मैं यह साधिकार कहना चाहता हूँ कि तुम अपने लिए कुछ वस्त्रादि अवश्य खरीदना, क्योंकि उपयुक्त वस्त्रों के बिना इस देश में कोई भी कार्य करना तुम्हारे लिए कठिन होगा। एक बार काम शुरू हो जाने पर फिर तुम अपनी इच्छानुसार वस्त्र धारण कर सकते हो, तब कोई भी किसी प्रकार की बाधा नहीं डालेगा।
मुझे धन्यवाद देने की कोई आवश्यकता नहीं, क्योंकि यह मेरा कर्तव्य है। हिन्दू कानून के अनुसार शिष्य ही गुरु का उत्तराधिकारी होता है, यदि संन्यास ग्रहण करने से पूर्व उसका कोई पुत्र भी हो, तो भी वह उत्तराधिकारी नहीं हो सकता। इस तरह तुम देख सकते हो कि यह नाता पक्का आध्यात्मिक नाता है – ‘यांकी’ लोगों की तरह ‘शिक्षक’ बनने का पेश नहीं!
तुम्हारी सफलता के लिए प्रार्थना तथा आशीर्वाद सहित,
तुम्हारा
विवेकानन्द
- स्वामीजी के एक अमेरिकन शिष्य, जिनका संन्यासी नाम कृपानन्द था।