स्वामी विवेकानंद के पत्र – हेल बहनों को कलकत्ता में (4 सितम्बर, 1894 को)
(स्वामी विवेकानंद का हेल बहनों को कलकत्ता में 4 सितम्बर, 1894 को लिखा गया पत्र)
आयोजित सभा के सम्बन्ध में लिखित)
न्यूयार्क,
४ सितम्बर १८९४ ,
मेरी बहनों,
जगदम्बा की जय हो! मुझे आशातीत उपलब्धि हुई है। हमारे पैग़म्बर सम्मानित किये गये हैं, और वह भी अत्यधिक उत्साह के साथ। उनकी दया पर मैं शिशुवत् रो रहा हूँ। बहनों, वे कभी अपने सेवक को नहीं छोड़ते। इस पत्र से, जिसे मै तुम्हें भेज रहा हूँ, सब कुछ की व्याख्या हो जायेगी, और प्रकाशित सामग्री अमेरिका के लोगों के लिए आ रही है। उनमें जिन व्यक्तियों के नाम हैं, वे हमारे देश के रत्न हैं। सभापति कलकत्ते के मुख्य अभिजात पुरुष हैं और दूसरे सज्जन महेशचन्द्र न्यायरत्न संस्कृत कॉलेज के प्रधानाचार्य हैं और सम्पूर्ण भारत के ब्राह्मणश्रेष्ठ हैं और सरकार द्वारा इसी रूप में माने जाते हैं। पत्र तुम्हें सब कुछ बता देगा। बहनों! मैं कितना श्रद्धारहित हूँ कि इस प्रकार की कृपाओं के बावजूद कभी-कभी मेरी आस्था विचलित हो जाती है। यह प्रतिक्षण जानते हुए भी कि मैं उनके हाथों में हूँ, मन कभी-कभी निराश हो उठता है। बहनों, एक ऐसा ईश्वर है – एक पिता – एक माता, जो कभी भी अपने बच्चों को नहीं छोड़ता है, कभी नहीं, कभी नहीं, कभी नहीं। अलौकिक सिद्धान्तों को एक ओर रख दो और शिशुवत् भगवान् की शरण लो। मैं अधिक नहीं लिख सकता – एक अबला की भाँति मैं रो रहा हूँ।
प्रभु की, मेरी अन्तरात्मा की जय हो।
सस्नेह तुम्हारा,
विवेकानन्द