स्वामी विवेकानंद के पत्र – श्री सिंगारावेलू मुदलियार को लिखित (22 जून, 1895)
(स्वामी विवेकानंद का श्री सिंगारावेलू मुदलियार लिखा गया पत्र)
१९ पश्चिम ३८ वाँ रास्ता,
न्यूयार्क,
२२ जून, १८९५
प्रिय किडी,
एक लाइन के बजाय मैं तुमको एक पूरा पत्र लिख रहा हूँ।
मैं खूश हूँ कि तुम उन्नति कर रहे हो। तुम जो यह सोच रहे हो कि मैं अब भारत नहीं लौटूँगा – यह तुम्हारी भूल है। मैं जल्द ही भारत लौट रहा हूँ। असफल होकर किसी विषय को त्याग देना, मेरी आदत नहीं है। यहाँ पर मैंने एक बीज बोया है, शीघ्र ही वह वृक्षरूप में परिणत होने को है और अवश्य होगा। केवल मुझे यह शंका है कि यदि शीघ्रता में आकर मैं उस पर ध्यान देना छोड़ दूँ, तो उसकी अभिवृद्धि में बाधा पहुँचेगी। जहाँ तक जल्दी हो सके, तुम लोग पत्रिका प्रकाशित कर डालो। यहाँ के लोगों के साथ तुम्हारा सम्बन्ध स्थापित कर मैं शीघ्र ही भारत लौट रहा हूँ।
मेरे बच्चे, कार्य करते चलो – रोम का निर्माण एक दिन में नहीं हुआ। मैं प्रभु के द्वारा परिचालित हो रहा हूँ, अतः अंत में सब कुछ ठीक ही होगा। सदा सदा के लिए तुम्हें मेरा प्यार,
तुम्हारा,
विवेकानन्द