स्वामी विवेकानंद के पत्र – श्री ई. टी. स्टर्डी को लिखित
(स्वामी विवेकानंद का श्री ई. टी. स्टर्डी को लिखा गया पत्र)
१९ पश्चिम ३८ वीं स्ट्रीट,
न्यूयार्क
प्रिय मित्र,
तुम्हारा अन्तिम पत्र यथासमय मिला। इसी अगस्त महीने के अन्त में यूरोप जाने की व्यवस्था पहले ही हो चुकी थी, इसलिए तुम्हारे आमन्त्रण को मैं तो भगवान् का ही आह्वान समझता हूँ।
सत्यमेव जयते नानृतम्। सत्येन पन्था विततो देवयानः। मिथ्या का कुछ पुट रहने पर सत्य का प्रचार सहज ही सम्भव है – ऐसी जिनकी धारणा है, वे भ्रान्त हैं। समय आने पर वे पायेंगे कि विष की एक बूँद भी सारे खाद्य पदार्थ को दूषित कर देती है।… जो पवित्र तथा साहसी है, वही जगत् में सब कुछ कर सकता है। माया-मोह से प्रभु सदा तुम्हारी रक्षा करें। मैं तुम्हारे साथ काम करने के लिए सदैव प्रस्तुत हूँ एवं हम लोग यदि स्वयं अपने मित्र रहें तो प्रभु भी हमारे लिए सैकड़ों मित्र भेजेंगे, आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुः।
हमेशा यूरोप सामाजिक तथा एशिया आध्यात्मिक शक्तियों का उद्गम-स्थल रहा है एवं इन दोनों शक्तियों के विभिन्न प्रकार के संमिश्रण से ही जगत् का सम्पूर्ण इतिहास बना है। वर्तमान मानवेतिहास का एक और नवीन पृष्ठ धीरे धीरे विकसित हो रहा है एवं चारों ओर उसीका चिह्न दिखायी दे रहा है। सैकड़ो नयी योजनाओं का उद्भव तथा नाश होगा, किन्तु योग्यतम ही जीवित रहेगा तथा सत्य और शिव की अपेक्षा योग्यतम और हो ही क्या सकता है?
तुम्हारा,
विवेकानन्द