स्वामी विवेकानंद के पत्र – श्री आलसिंगा पेरूमल को लिखित (मार्च, 1896)
(स्वामी विवेकानंद का श्री आलासिंगा पेरुमल को लिखा गया पत्र)
संयुक्त राज्य अमेरिका,
मार्च, १८९६
प्रिय आलासिंगा,
काम में लगे रहो। मैं जो कर सकता हूँ, करूँगा।… यदि प्रभु की इच्छा हुई, तो गेरुए वस्त्रवाले साधु यहाँ और इंग्लैण्ड में काफी संख्या में दिखायी देंगे। वत्सगण, काम करते रहो।
याद रखो कि जब तक गुरू में तुम्हारी भक्ति है, तुम्हारा विरोध कोई नहीं कर सकेगा। पाश्चात्यों की दृष्टि में तीनों भाष्यों का अनुवाद बहुत बड़ी बात होगी।
…इस बीच दो लोग मेरे संन्यासी शिष्य हुए हैं तथा दो-चार सौ गृहस्थ शिष्य। किन्तु वत्स, कुछ लोगों के सिवाय अधिकांश लोग ग़रीब हैं। फिर भी, कुछ लोग तो खूब धनी हैं। इस बात को अभी किसी से न कहना।
उपयुक्त समय आने पर मैं जनता के सम्मुख प्रचंड वेग से आत्मप्रकाश करूँगा। धैर्य धारण करो वत्स, धीरज रखकर काम करो। धैर्य, धैर्य! अगले वर्ष न्यूयार्क में एक मन्दिर बनवा सकने की आशा है, शेष प्रभु की इच्छा ।
मैं यहाँ एक पत्रिका निकालूँगा। मैं लन्दन जा रहा हूँ और यदि प्रभु की कृपा हुई, तो वहाँ भी वैसा करूँगा।
सप्रेम तुम्हारा,
विवेकानन्द