स्वामी विवेकानंद के पत्र – हेल बहनों को लिखित (7 जुलाई, 1896)
(स्वामी विवेकानंद का हेल बहनों को लिखा गया पत्र)
लन्दन,
७ जुलाई, १८९६
प्रिय बच्चियों,
यहाँ कार्य में आश्चर्यजनक प्रगति हुई। भारत का एक संन्यासी यहाँ मेरे साथ था, जिसे मैंने अमेरिका भेज दिया। भारत से एक और संन्यासी बुला भेजा है। कार्य का समय समाप्त हो गया है, इसलिए कक्षाओं के लगने तथा रविवासरीय व्याख्यानों का कार्य भी आगामी १६ तारीख से बन्द हो जायगा। १९ तारीख को मैं करीब एक महीने के लिए शान्तिपूर्ण आवास तथा विश्राम के निमित्त स्विट्जरलैण्ड के पहाड़ों पर चला जाऊँगा और आगामी शरद् ऋतु में लन्दन वापस आकर फिर कार्य आरम्भ करूँगा। यहाँ का कार्य बड़ा सन्तोषजनक रहा है। यहाँ लोगों में दिलचस्पी पैदा कर मैं भारत के लिए उसकी अपेक्षा सचमुच कहीं अधिक कार्य कर रहा हूँ, जो भारत में रहकर करता। माँ ने मुझको लिखा है कि यदि तुम लोग अपना मकान किराये पर उठा दो तो तुम लोगों को साथ लेकर मिस्त्र-भ्रमण करने में उन्हें प्रसन्नता होगी। मैं तीन अंग्रेज मित्रों के साथ स्विट्जरलैण्ड के पहाड़ों पर जा रहा हूँ। बाद में, शीत ऋतु के अन्त के करीब कुछ अंग्रेज मित्रों के साथ भारत जाने की मुझे आशा है। ये लोग वहाँ मेरे मठ में रहने वाले हैं, जिसके निर्माण की अभी तो केवल कल्पना भर है। हिमालय पर्वत के अंचल में किसी जगह उसके निर्माण का उद्योग किया जा रहा है।
तुम लोग कहाँ पर हो? ग्रीष्म ऋतु का पूरा जोर है, यहाँ तक कि लन्दन में भी बड़ी गरमी पड़ रही है। कृपया श्रीमती ऐडम्स, श्रीमती कोंगोर और शिकागो के अन्य सभी मित्रों के प्रति मेरा हार्दिक प्रेम ज्ञापित करना।
तुम्हारा सस्नेह भाई,
विवेकानन्द