स्वामी विवेकानंद

स्वामी विवेकानंद के पत्र – श्री आलसिंगा पेरूमल को लिखित (28 अक्टूबर, 1896)

(स्वामी विवेकानंद का श्री आलासिंगा पेरुमल को लिखा गया पत्र)

द्वारा ई. टी. स्टर्डी,
३९, विक्टोरिया स्ट्रीट, लन्दन
२८ अक्टूबर, १८९६

प्रिय आलासिंगा,

… अभी पक्का तय नहीं कर पाया हूँ कि भारत में किस महीने लौटूँगा। इसके बारे में फिर लिखूँगा। कल एक मैत्रीपूर्ण समिति की सभा में नए स्वामीजी1 ने अपनी प्रथम वक्तृता दी। यह अच्छी थी तथा मुझे पसन्द आई; उसके भीतर अच्छा वक्ता होने की शक्ति है, यह मेरा पक्का विश्वास हैं।

‘सार्वजनीन धर्म’ की तरह ‘भक्तियोग’ की छपाई सुन्दर नहीं हुई… और फिर ज्यादा बिक्री के लिए भारत में किताबों का सस्ता होना तथा खरीदने वालों की प्रसन्नता हेतु अक्षरों का मोटा होना ही चाहिए…। यदि चाहो तो … का सस्ता संस्करण प्रकाशित करवा सकते हो। जानबूझकर इसका कॉपीराइ`ट मैंने सुरक्षित नहीं करवाया है। तुमने … पुस्तक को पहले न छापकर अच्छा मौका खो दिया है, परंतु हम हिन्दु इतने दीर्घसूत्री हैं कि जब तक हमारा काम पूरा होता हैं तब तक उसकी उपयोगिता समाप्त हो जाती है, अतः इस प्रकार हम लुटे जाते हैं। तुम्हारी … पुस्तक एक वर्ष की चर्चा के बाद छपी है! तुम क्या सोचते हो कि पश्चिमी देशों के लोग इसके लिए महाप्रलय तक प्रतीक्षा करेंगे? इस देरी के कारण तुमने तीन-चौथाई बिक्री खो दी है … और वह हरमोहन तो मूर्ख है, तुमसे भी ज्यादा ढीला है, और उसकी छपाई तो एकदम भद्दी है। इस प्रकार पुस्तकें प्रकाशित करवाने का कोई अर्थ नहीं हैं, यह तो लोगों को धोखा देना हुआ, फिर ऐसा नहीं होना चाहिए।

बहुत सम्भव है कि श्रीमती तथा श्री सेवियर, कुमारी मूलर और श्री गुडविन सहित मैं भारत लौटूँगा। श्रीमती तथा श्री सेवियर सम्भवतः कुछ समय के लिए अल्मोड़ा में रह सकते हैं और गुडविन संन्यासी बनने वाला है। वह अवश्य ही मेरे साथ भ्रमण करेगा। अपनी सभी पुस्तकों के लिए हम उसके ऋणी हैं। मेरी वक्तृताओं को उसने सांकेतिक प्रणाली में लिख रखा था जिससे पुस्तकों का प्रकाशित होना सम्भव हुआ है… ये सभी वक्तृताएँ किसी भी पूर्व तैयारी के बिना, तत्काल दी गई थीं इसलिए उन्हें ध्यानपूर्वक पुनः जाँच कर उनका सम्पादन करना चाहिए।…

गुडविन मेरे साथ रहेगा … वह पक्का शाकाहारी है।

सप्रेम तुम्हारा,
विवेकानन्द

पुनश्च – डा. बैरौज का स्वागत किस प्रकार किया जाए इस विषय में एक छोटा लेख मैंने आज ‘इण्डियन मिरर’ को भेजा हैं। तुम भी उनके स्वागत में कुछ अच्छे शब्द ब्रह्मवादिन् में लिखो। यहाँ सब की ओर से प्रेम सहित

वि.



  1. स्वामी अभेदानन्द

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी पथ
error: यह सामग्री सुरक्षित है !!