स्वामी विवेकानंद के पत्र – श्रीमती ओलि बुल को लिखित (25 फरवरी, 1897)
(स्वामी विवेकानंद का श्रीमती ओलि बुल को लिखा गया पत्र)
आलमबाजार मठ,
कलकत्ता,
२५ फरवरी, १८९७
प्रिय श्रीमती बुल,
भारत के दुर्भिक्ष-निवारण के लिए सारदानन्द ने २० पौंड भेजे हैं। किन्तु इस समय उसके घर में ही दुर्भिक्ष है, अतः पुरानी कहावत के अनुसार पहले उसी को दूर करना मैंने अपना कर्तव्य समझा। इसलिए उस धन का प्रयोग उसी रूप से किया गया है।
जुलूस, बाजे-गाजे तथा स्वागत-समारोहों के मारे, जैसा कि लोग कहते हैं, मुझे मरने की भी फुर्सत नहीं है – इन सबसे मैं मृतप्राय हो चुका हूँ। जन्मोत्सव समाप्त होते ही मैं पहाड़ की ओर भागना चाहता हूँ। ‘केम्ब्रिज सम्मेलन’ तथा ‘ब्रुकलिन नैतिक समिति’ की ओर से मुझे एक एक मानपत्र प्राप्त हुआ है। डॉ. जेन्स ने ‘न्यूयार्क वेदान्त एसोसिएशन’ के जिस मानपत्र का उल्लेख किया है, वह अभी तक नहीं आया है।
डॉ. जेन्स का एक पत्र और भी आया है, जिसमें उन्होंने आप लोगों के सम्मेलन के अनुरूप भारत में भी कार्य करने का परामर्श दिया है। किन्तु इन बातों की ओर ध्यान देना मेरे लिए प्रायः असम्भव है। मैं इतना अधिक थका हुआ हूँ कि यदि मुझे विश्राम न मिले तो अगले छः माह तक मैं जीवित रह सकूँगा भी या नहीं, इसमें मुझे सन्देह है।
इस समय मुझे दो केन्द्र खोलने हैं – एक कलकत्ते में तथा दूसरा मद्रास में। मद्रासियों में गम्भीरता अधिक है और वे लोग ईमानदार भी खूब हैं और मेरा यह विश्वास है कि मद्रास से ही वे लोग आवश्यक धन एकत्र कर लेंगे। कलकत्ते के लोग, खासकर अभिजात्य वर्ग के लोग, अधिकांश देशभक्ति के क्षेत्र में ही उत्साही हैं और उनकी सहानुभूति कभी कार्य में परिणत नहीं होगी। दूसरी ओर इस देश में ईर्ष्यालु तथा निष्ठुर प्रकृति के लोगों की संख्या अत्यन्त अधिक है, जो मेरे तमाम कार्यों को तहस-नहस कर धूल में मिलाने में कोई कसर नहीं उठा रखेंगे।
आप तो यह अच्छी तरह से जानती हैं कि बाधा जितनी अधिक होती है, मेरे अन्दर की भावना भी उतनी ही बलवती हो उठती है। संन्यासियों तथा महिलाओं के लिए पृथक् पृथक् एक एक केन्द्र स्थापित करने के पूर्व ही यदि मेरी मृत्यु हो जाय तो मेरे जीवन का व्रत असमाप्त ही रह जायगा।
मुझे इंग्लैण्ड से ५०० पौण्ड तथा श्री. स्टर्डी से ५०० पौण्ड के लगभग प्राप्त हुए हैं। उसके साथ आपके दिए हुए धन को जोड़ने से मुझे विश्वास है कि मैं दोनों केन्द्रों का कार्य प्रारम्भ कर सकूँगा। अतः यह उचित प्रतीत होता है कि आप यथासम्भव शीघ्र अपना रुपया भेज दें। सबसे सुरक्षित उपाय यह है कि अमेरिका के किसी बैंक में आप अपने तथा मेरे संयुक्त नाम से रुपया जमा कर दें, जिससे हममें से कोई भी उसे निकाल सके। यदि रुपया निकालने के पूर्व ही मेरी मृत्यु हो जाय तो आप सम्पूर्ण रुपयों को निकालकर मेरी अभिलाषा के अनुसार व्यय कर सकेंगी। इससे मेरी मृत्यु के बाद मेरे बन्धु-बान्धवों में से कोई भी उस धन को लेकर किसी प्रकार की गड़बड़ी नहीं कर सकेंगे। इंग्लैण्ड का रुपया भी उसी प्रकार मेरे तथा श्री. स्टर्डी के नाम से बैंक में जमा किया जा चुका है।
सारदानन्द को मेरा प्यार कहना तथा आप भी मेरा असीम प्यार तथा चिरकृतज्ञता ग्रहण करें!
आपका,
विवेकानन्द