स्वामी विवेकानंद के पत्र – भगिनी निवेदिता को लिखित (25 मार्च, 1900)
(स्वामी विवेकानंद का भगिनी निवेदिता को लिखा गया पत्र)
सैन फ़्रांसिस्को,
२५ मार्च, १९००
प्रिय निवेदिता,
मैं पहले से बहुत कुछ स्वस्थ हूँ एवं क्रमशः मुझे अधिक शक्ति मिल रही है। अब कभी कभी मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि बहुत शीघ्र ही मैं रोगमुक्त हो जाऊँगा, गत दो वर्षों के कष्ट ने मुझे पर्याप्त शिक्षा प्रदान की है। रोग तथा दुर्भाग्य का फल हमारे लिए कल्याणप्रद ही होता है, यद्यपि उस समय ऐसा प्रतीत होता है कि मानो हम अथाह पानी में डूब रहे हैं।
मैं मानो सीमाहीन नील आकाश हूँ, कभी कभी बादलों से घिर जाने पर भी सदा के लिए मैं वही असीम नील ही हूँ।
मेरी तथा प्रत्येक जीव की जो चिरस्थायी प्रकृति है – मैं इस समय उस शाश्वत शान्ति के आस्वादन के लिए प्रयत्नशील हूँ। यह हाड़-मांस का पिंजरा तथा सुख-दुःख के व्यर्थ स्वप्न – इनकी फिर पृथक् सत्ता ही क्या है? मेरा स्वप्न दिनोंदिन दूर होता जा रहा है। ॐ तत्सत्।
तुम्हारा,
विवेकनन्द