स्वामी विवेकानंद

स्वामी विवेकानंद के पत्र – श्रीमती ओलि बुल को लिखित (1 अप्रैल, 1900)

(स्वामी विवेकानंद का श्रीमती ओलि बुल को लिखा गया पत्र)

१७१९, टर्क स्ट्रीट,
सैन फ़्रांसिस्को,
१ अप्रैल, १९००

प्रिय धीरा माता,

आपका स्नेह पूर्ण पत्र आज सुबह मुझे प्राप्त हुआ। न्यूयार्क के सभी मित्र श्रीमती मिल्टन की चिकित्सा से आरोग्य-लाभ कर रहे हैं, यह जानकर मुझे अत्यन्त ख़ुशी हुई। ऐसा मालूम होता है कि लॉस एंजिलिस में उन्हें नितान्त विफल होना पड़ा था, क्योंकि हमने जिन व्यक्तियों को उनसे परिचित कराया था, उन सभी लोगों ने मुझसे कहा कि मर्दन चिकित्सा से उनकी दशा पहले से भी खराब हो गयी। श्रीमती मिल्टन से मेरा स्नेह कहना। कम से कम उनकी ‘मसाज’ उस समय मुझे कुछ लाभ पहुँचाती थी। बेचारा डाक्टर हीलर! हम लोगों ने उसे तत्क्षण ही उसकी पत्नी के इलाज के लिए लॉस एंजिलिस भेजा था। यदि उस दिन सुबह उसके साथ आपकी भेंट तथा बातचीत हुई होती, तो बहुत ही अच्छा होता। मर्दन चिकित्सा के बाद ऐसा मालूम होता है कि श्रीमती हीलर की दशा पहले से भी अधिक ख़राब हो गयी है – उसके शरीर में केवल हाड़ ही हाड़ रह गये हैं, और डाक्टर हीलर को लॉस एंजिलिस में ५०० डालर व्यय करना पड़ा है। इससे उनका मन बहुत ख़राब हो गया है। किन्तु मैं ‘जो’ को ये सारी बातें लिखना नहीं चाहता हूँ। उसके द्वारा ग़रीब रोगियों की इतनी सहायता हो रही है, इसी कल्पना में वह मस्त है। किन्तु ओह! यदि वह कदाचित् लॉस एंजिलिस के लोगों तथा उस वृद्ध डाक्टर हीलर के अभिमत सुनती, तो उसे उस पुरानी बात का मर्म विदित होता कि किसीके लिए दवा बतलाना उचित नहीं है। यहाँ से डाक्टर हीलर को लॉस एंजिलिस भेजनेवालों में मैं नहीं था, मुझे इसकी ख़ुशी है। ‘जो’ ने मुझे लिखा है कि उसके समीप से रोग के इलाज का समाचार पाते ही डाक्टर हीलर अत्यन्त आग्रह के साथ लॉस एंजिलिस जाने के लिए तैयार हो उठे थे। वह वृद्ध महोदय मेरी कोठरी में जिस प्रकार कूदते डोल रहे थे, वह दृश्य भी ‘जो’ को देखना चाहिए था! ५०० डालर ख़र्च करना उस वृद्ध के लिए अधिक था! वे जर्मन हैं। वे कूदते रहे तथा अपने जेब में थप्पड़ जमाते हुए यह कहते रहे – ‘यदि इस प्रकार के इलाज की बेवकूफी में मैं न फँसता, तो ५०० डालर आपको भी तो प्राप्त हो सकते थे।’ इनके अलावा और भी ग़रीब रोगी हैं – जिनको मर्दन के लिए कभी कभी प्रति व्यक्ति ३ डालर खर्च करना पड़ा है और अभी तक ‘जो’ मेरी तारीफ ही कर रही है। ‘जो’ से आप ये बातें न कहें। वह और आप किसी भी व्यक्ति के लिए यथेष्ट अर्थ-व्यय कर सकती हैं, आप लोग इतनी सम्पन्न हैं। जर्मन डाक्टर के बारे में भी ऐसा कहा जा सकता है। किन्तु सीधे-साधे बेचारे ग़रीबों के लिए इस प्रकार की व्यवस्था करना नितान्त ही कठिन है। वृद्ध डाक्टर की अब ऐसी धारणा हो गयी है कि कुछ भूत-प्रेत आपस में मिलकर उसके घर को इस प्रकार नष्ट-भ्रष्ट कर रहे हैं! उन्होंने मुझे अतिथि बनाकर इसका प्रतिकार तथा अपनी पत्नी को स्वस्थ करना चाहा था, किन्तु उन्हें लॉस एंजिलिस दौड़ना पड़ा; और उसके फलस्वरूप सब कुछ उलट-फेर हो गया। और अभी तक यद्यपि वे मुझे अतिथिरूप से पाने के लिए विशेष सचेष्ट हैं, किन्तु मैं किनारा काट रहा हूँ – यद्यपि उनसे नहीं, किन्तु उनकी पत्नी तथा साली से। उनकी निश्चित धारणा है कि ये सब भूतों के काण्ड हैं। थियोसाफी के वे एक सदस्य रह चुके हैं। कुमारी मैक्लिऑड को लिखकर कहीं से कोई भूत झाड़नेवाले गुणी को बुलाने की मैंने उन्हें सलाह दी थी, जिससे कि वे अपनी पत्नी के साथ झटपट वहाँ पहुँच कर पुनः ५०० डालर व्यय कर सकें!

दूसरों का भला करना सर्वदा निर्विवाद विषय नहीं है।

मैं अपने बारे में यह कह सकता हूँ कि ‘जो’ जब तक ख़र्च करती रहेगी, तब तक मजा लूटने को मैं तैयार हूँ – चाहे वे हड्डी चटकानेवाले हों अथवा मर्दन करनेवाले। किन्तु मर्दन-चिकित्सा के लिए लोगों को एकत्र कर इस प्रकार भाग जाना तथा सारी ‘प्रशंसा’ के बोझ को मेरे कन्धों पर डालना – ऐसा आचरण ‘जो’ के लिए उचित नहीं था! वह और कहीं से किसीको मर्दन-प्रक्रिया के लिए नहीं बुला रही हैं – इससे मैं . खुश हूँ। अन्यथा ‘जो’ को पेरिस भागना पड़ता और श्रीमती लेगेट को सारी प्रशंसाओं को बटोरने का भार अपने ऊपर लेना पड़ता। मैंने केवल दोष ढँकने के लिए डाक्टर हीलर के समीप एक ईसाई चिकित्सक को, जो वैज्ञानिक तरीकों से (अर्थात् मानसिक शक्ति की सहायता द्वारा) रोग दूर करते हैं, भेज दिया था; किन्तु उनकी पत्नी ने उस चिकित्सक को देखते ही किवाड़ बन्द कर लिये – एवं यह स्पष्ट कह दिया कि इन अद्भुत चिकित्साओं के साथ वे किसी प्रकार का सम्पर्क रखना नहीं चाहती हैं। अस्तु, मैं यह विश्वास करता हूँ तथा सर्वान्तःकरण से प्रार्थना करता हूँ कि इस बार श्रीमती लेगेट स्वस्थ हो उठें।

मैं आशा करता हूँ कि वसीयतनामा भी शीघ्र पहुँच जायगा ; इसके लिए मैं थोड़ा सा चिन्तित हूँ। भारत से इस डाक के द्वारा वसीयतनामे की एक प्रति मिलने की भी मुझे आशा थी ; कोई पत्र नहीं आया, यहाँ तक कि ‘प्रबुद्ध भारत’ भी नहीं, यद्यपि मैं देखता हूँ कि ‘प्रबुद्ध भारत’ सैन फ़्रांसिस्को पहुँच चुका है।

उस दिन समाचारपत्र से यह विदित हुआ कि कलकत्ते में एक सप्ताह के अन्दर ५०० व्यक्ति प्लेग से मर चुके हैं। माँ ही जानती हैं कि कैसे मंगल होगा।

मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा है श्री लेगेट ने वेदान्त-समिति को चालू कर दिया है। बहुत अच्छी बात है!

ओलिया किस प्रकार है? निवेदिता कहाँ है? उस दिन मैंने ‘२१वाँ मकान, पश्चिम ३४’ – इस पते पर उसे एक पत्र लिखा था। यह देखकर कि वह कार्य में अग्रसर हो रही है, मैं अत्यन्त आनन्दित हूँ। मेरा आन्तरिक स्नेह ग्रहण करें।

आपकी चिरसन्तान,
विवेकानन्द

पुनश्च – मेरे लिए जितना करना सम्भव है, उतना अथवा उससे अधिक कार्य मुझे मिल रहा है। जैसे भी हो, मैं अपना मार्ग-व्यय अवश्य एकत्र करूँगा। ये लोग यद्यपि मेरी अधिक सहायता करने में असमर्थ हैं, फिर भी मुझे कुछ न कुछ देते रहते हैं; तथा मै भी निरन्तर परिश्रम कर जिस तरह भी होगा अपना मार्ग व्यय एकत्र कर सकूँगा और उसके अतिरिक्त कुछ सौ रूपये भी प्राप्त करूँगा। अतः मेरे ख़र्च के लिए आप कुछ भी चिन्ता न करें।

वि.

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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