स्वामी विवेकानंद के पत्र – कुमारी जोसेफिन मैक्लिऑड को लिखित (8 नवम्बर, 1901)
(स्वामी विवेकानंद का कुमारी जोसेफिन मैक्लिऑड को लिखा गया पत्र)
मठ, बेलूड़, हावड़ा,
८ नवम्बर, १९०१
प्रिय ‘जो’,
Abatement (कमी) शब्द की व्याख्या के साथ जो पत्र भेजा जा चुका है, वह निश्चय ही अब तक तुम्हें मिल गया होगा। मैंने न तो स्वयं वह पत्र ही लिखा है और न ‘तार’ ही भेजा है। मैं उस समय इतना अधिक अस्वस्थ था कि उन दोनों में से किसी भी कार्य को करना मेरे लिए सम्भव नहीं था। पूर्वी बंगाल का भ्रमण करके लौटने के बाद से ही मैं निरन्तर बीमार जैसा हूँ। इसके अलावा दृष्टि घट जाने के कारण मेरी हालत पहले से भी ख़राब है। इन बातों को मैं लिखना नहीं चाहता; किन्तु मैं यह देख रहा हूँ कि कुछ लोग पूरा विवरण जानना चाहते हैं।
अस्तु, तुम अपने जापानी मित्रों को लेकर आ रही हो – इस समाचार से मुझे . खुशी हुई। मैं अपने सामर्थ्यानुसार उन लोगों का आदर-आतिथ्य करूँगा। उस समय मद्रास में रहने की मेरी विशेष सम्भावना है। आगामी सप्ताह में कलकत्ता छोड़ देने का मेरा विचार है एवं क्रमशः दक्षिण की ओर अग्रसर होना चाहता हूँ।
तुम्हारे जापानी मित्रों के साथ उड़ीसा के मंदिरों को देखना मेरे लिए सम्भव होगा या नहीं, यह मैं नहीं जानता हूँ। मैंने म्लेच्छों का भोजन किया है, अतः वे लोग मुझे मन्दिर में जाने देंगे अथवा नहीं – यह मैं नहीं जानता। लॉर्ड कर्जन को मन्दिर में प्रवेश नहीं करने दिया गया था।
अस्तु, फिर भी तुम्हारे मित्रों के लिए जहाँ तक मुझसे सहायता हो सकती है, मैं करने को सदैव प्रस्तुत हूँ। कुमारी मूलर कलकत्ते में है, यद्यपि वे हम लोगों से नहीं मिली हैं।
सतत स्नेहशील त्वदीय,
विवेकानन्द