सूरह बकरा की तिलावत – अल-बक़रा (सूरह 2)
सूरह बकरा की तिलावत से पहले जानते हैं कि इसे पढ़ने के क्या फायदे हैं। यह कुरान शरीफ की दूसरी सूरह है। इसमें 286 आयते हैं। दरअस्ल, यह कुरान का सबसे बड़ा अध्याय है। माना जाता है कि कुरान की सबसे अहमियत वाली आयत आयतुल कुर्सी इसी सुरे में है। सूरह बकरा की तिलावत से शैतान घर से दूर होता है और समस्याएँ समाप्त होने लगती हैं। साथ ही बुरे सपने आना भी बंद हो जाते हैं। मान्यता है कि सूरह बकरा की तिलावत बुरी नजर से भी बचाती है। आइए, करते हैं सूरह बकरा की तिलावत (Surah Bakra in Hindi)–
शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है।
अलिफ़० लाम० मीम०। यह अल्लाह की किताब है। इसमें कोई शक नहीं। राह दिखाती है डर रखने वालों को। जो यकीन करते हैं बिन देखे और नमाज़ क़ायम करते हैं। और जो कुछ हमने उन्हें दिया है उसमें से खर्च करते हैं। और जो ईमान लाते हैं उस पर जो तुम्हारे ऊपर उतरा और जो तुमसे पहले उतारा गया। और वे आख़िरत (परलोक) पर यक़ीन रखते हैं। इन्हीं लोगों ने अपने रब की राह पाई है और वही कामयाबी को पहुँचने वाले हैं। जिन लोगों ने इंकार किया, उनके लिए समान है डराओ, या न डराओ, वे मानने वाले नहीं हैं। अल्लाह ने उनके दिलों पर और उनके कानों पर मुहर लगा दी है। और उनकी आँखों पर पर्दा है। और उनके लिए बड़ा अज़ाब है। (1-7)
और लोगों में कुछ ऐसे भी हैं जो कहते हैं कि हम ईमान लाए अल्लाह पर और आख़िरत के दिन पर, हालाँकि वे ईमान वाले नहीं हैं। वे अल्लाह को और मोमिनों को धोखा देना चाहते हैं। मगर वे सिर्फ़ अपने आपको धोखा दे रहे हैं और वे इसका शुऊर नहीं रखते। उनके दिलों में रोग है तो अल्लाह ने उनके रोग को बढ़ा दिया और उनके लिए दर्दनाक अज़ाब है। इस वजह से कि वे झूठ कहते थे। और जब उनसे कहा जाता है कि धरती पर फ़साद (उपद्रव, बिगाड़) न करो तो वे जवाब देते हैं हम तो सुधार करने वाले है। जान लो, यही लोग फ़साद करने वाले हैं, मगर वे नहीं समझते | और जब उनसे कहा जाता है तुम भी उसी तरह ईमान ले आओ जिस तरह अन्य लोग ईमान लाए हैं तो कहते हैं कि क्या हम उस तरह ईमान लाएँ जिस तरह मूर्ख लोग ईमान लाए हैं। जान लो, कि मूर्ख यही लोग हैं, मगर वे नहीं जानते। और जब वे ईमान वालों से मिलते हैं तो कहते हैं कि हम ईमान लाए हैं, और जब अपने शैतानों की बैठक में पहुँचते हैं तो कहते हैं कि हम तुम्हारे साथ हैं, हम तो उनसे महज़ हंसी करते हैं। अल्लाह उनसे हंसी कर रहा है और उन्हें उनकी सरकशी में ढील दे रहा है। वे भटकते फिर रहे हैं। ये वे लोग हैं जिन्होंने हिदायत (मार्गदर्शन) के बदले गुमराही ख़रीदी तो उनकी तिजारत फ़ायदेमंद नहीं हुई, और वे न हुए राह (सन्मार्ग) पाने वाले। (8-16)
उनकी मिसाल ऐसी है जैसे एक शख़्स ने आग जलाई। जब आग ने उसके इर्द-गिर्द को रोशन कर दिया तो अल्लाह ने उनकी आँख की रोशनी छीन ली और उन्हें अंधेरे में छोड़ दिया कि उन्हें कुछ दिखाई नहीं पड़ता। वे बहरे हैं, गूँगे हैं, अंधे हैं। अब ये लौटने वाले नहीं हैं। या उनकी मिसाल ऐसी है जैसे आसमान से बारिश हो रही हो, उसमें अंधकार भी हो और गरज-चमक भी। वे कड़क से डर कर मौत से बचने के लिए अपनी उंगलियाँ अपने कानों में ठूंस रहे हों। हालाँकि अल्लाह इंकार करने वालों को अपने घेरे में लिए हुए है। क़रीब है कि बिजली उनकी निगाहों को उचक ले। जब भी उन पर बिजली चमकती है उसमें वे चल पड़ते हैं और जब उन पर अंधेरा छा जाता है तो वे रुक जाते हैं। और अगर अल्लाह चाहे तो उनके कान और उनकी आंखों को छीन ले। अल्लाह यक्रीनन हर चीज़ पर क़ादिर है। (17-20)
ऐ लोगो! अपने रब की इबादत करो जिसने तुम्हें पैदा किया और उन लोगों को भी जो तुम से पहले गुज़र चुके हैं ताकि तुम दोज़ख़ (नर्क) से बच जाओ। वह ज़ात जिसने ज़मीन को तुम्हारे लिए बिछौना बनाया और आसमान को छत बनाया, और उतारा आसमान से पानी और उससे पैदा किए फल तुम्हारी गिज़ा के लिए। पस तुम किसी को अल्लाह के बराबर न ठहराओ, हालांकि तुम जानते हो। अगर तुम इस कलाम के संबंध में शक में हो जो हमने अपने बंदे के ऊपर उतारा है तो लाओ इस जैसी एक सूरह और बुला लो अपने हिमायतियों को भी अल्लाह के सिवा, अगर तुम सच्चे हो। पस अगर तुम यह न कर सको और हरगिज़ न कर सकोगे तो डरो उस आग से जिसका ईंधन बनेंगे आदमी और पत्थर। वह तैयार की गई है हक़ (सत्य) का इंकार करने वालों के लिए। और खुशख़बरी दे दो उन लोगों को जो ईमान लाए और जिन्होंने नेक काम किए, इस बात की कि उनके लिए ऐसे बाग़ होंगे जिनके नीचे नहरें जारी होंगी। जब भी उन्हें इन बाग़ों में से कोई फल खाने को मिलेगा, तो वे कहेंगे : यह वही है जो इससे पहले हमें दिया गया था। और मिलेगा उन्हें एक-दूसरे से मिलता-जुलता। और उनके लिए वहां साफ़-सुथरी औरतें होंगी। और वे इसमें हमेशा रहेंगे। (21-25)
अल्लाह इससे नहीं शर्माता कि बयान करे मिसाल मच्छर की या इससे भी किसी छोटी चीज़ की | फिर जो ईमान वाले हैं वे जानते हैं कि वह हक़ (सत्य) है उनके रब की जानिब से और जो इंकार करने वाले हैं वे कहते हैं कि इस मिसाल को बयान करके अल्लाह ने क्या चाहा है। अल्लाह इसके ज़रिए बहुतों को गुमराह करता है और बहुतों को इससे राह (सम्मार्ग) दिखाता है। और वह गुमराह करता है उन लोगों को जो नाफ़रमानी (अवज्ञा) करने वाले हैं। जो अल्लाह के अहद (वचन) को उसके बांधने के बाद तोड़ते हैं और उस चीज़ को तोड़ते हैं जिसे अल्लाह ने जोड़ने का हुक्म दिया है और ज़मीन में बिगाड़ पैदा करते हैं। यही लोग हैं नुक़्सान उठाने वाले। तुम किस तरह अल्लाह का इंकार करते हो, हालांकि तुम बेजान थे तो उसने तुम्हें ज़िंदगी अता की। फिर वह तुम्हें मौत देगा। फिर ज़िंदा करेगा। फिर उसी की तरफ़ लौटाए जाओगे | वही है जिसने तुम्हारे लिए वह सब कुछ पैदा किया जो ज़मीन में है। फिर आसमान की तरफ़ तवज्जोह की और सात आसमान दुरुस्त किए। और वह हर चीज को जानने वाला है। (26-29)
और जब तेरे रब ने फ़रिश्तों से कहा कि मैं ज़मीन में एक ख़लीफ़ा बनाने वाला हूं। फ़रिश्तों ने कहा : क्या तू ज़मीन में ऐसे लोगों को बसाएगा जो इसमें फ़साद करें और खून बहाएँ। और हम तेरी हम्द (स्तुति, गुणगान) करते हैं और तेरी पाकी बयान करते हैं। अल्लाह ने कहा मैं जानता हूं जो तुम नहीं जानते, और अल्लाह ने सिखा दिए आदम को सारे नाम, फिर उन्हें फ़रिश्तों के सामने पेश किया और कहा कि अगर तुम सच्चे हो तो मुझे इन लोगों के नाम बताओ। फ़रिश्तों ने कहा कि तू पाक है। हम तो वही जानते हैं जो तूने हमें बताया। बेशक तू ही इल्म वाला और हिकमत (तत्वदर्शिता) वाला है। अल्लाह ने कहा ऐ आदम उन्हें बताओ उन लोगों के नाम | तो जब आदम ने बताए उन्हें उन लोगों के नाम तो अल्लाह ने कहा : क्या मैंने तुम से नहीं कहा था कि आसमानों और ज़मीन के भेद को मैं ही जानता हूं। और मुझे मालूम है जो तुम ज़ाहिर करते हो और जो तुम छुपाते हो। (30-33)
और जब हमने फ़रिश्तों से कहा कि आदम को सज्दा करो तो उन्होंने सज्दा किया, मगर इब्लीस ने नहीं किया। उसने इंकार किया और घमंड किया और मुंकिरों में से हो गया। और हमने कहा ऐ आदम! तुम और तुम्हारी बीवी दोनों जन्नत में रहो और उसमें से खाओ खुले रूप में जहां से चाहो। और उस दरख्त (वृक्ष) के नज़दीक मत जाना वर्ना तुम ज़ालिमों में से हो जाओगे। फिर शैतान ने उस दरख्त के ज़रिए दोनों को लग़ज़िश (ग़लती) में मुब्तिला कर दिया और उन्हें उस ऐश से निकलवा दिया जिसमें वे थे। और हमने कहा तुम सब उतरो यहां से। तुम एक दूसरे के दुश्मन होगे। और तुम्हारे लिए ज़मीन में ठठरना और काम चलाना है एक मुदृदत तक। फिर आदम ने सीख लिए अपने रब से कुछ बोल तो अल्लाह उस पर मुतवज्जह हुआ। बेशक वह तौबह क़ुबूल करने वाला रहम करने वाला है। हमने कहा तुम सब यहां से उतरो। फिर जब आए तुम्हारे पास मेरी तरफ़ से कोई हिदायत तो जो मेरी हिदायत की पैरवी करेंगे उनके लिए न कोई डर होगा और न वे ग़मगीन होंगे। और जो लोग इंकार करेंगे और हमारी निशानियों को झुठलाऐंगे तो वही लोग दोज़ख़ (नर्क) वाले हैं। वे उसमें हमेशा रहेंगे। (34-39)
ऐ बनी इस्राईल! याद करो मेरे उस एहसान को जो मैंने तुम्हारे ऊपर किया। और मेरे अहद (वचन) को पूरा करो, मैं तुम्हारे अहद को पूरा करूंगा। और मेरा ही डर रखो। और ईमान लाओ उस चीज़ पर जो मैंने उतारी है। तस्दीक़ (पुष्टि) करती हुई उस चीज़ की जो तुम्हारे पास है। और तुम सबसे पहले इसका इंकार करने वाले न बनो। और न लो मेरी आयतों पर मोल थोड़ा। और मुझ से डरो। और सही में ग़लत को न मिलाओ और सच को न छुपाओ हालांकि तुम जानते हो। और नमाज़ क़ायम करो और ज़कात अदा करो और झुकने वालों के साथ झुक जाओ। तुम लोगों से नेक काम करने को कहते हो और अपने आपको भूल जाते हो। हालांकि तुम किताब की तिलावत करते हो, क्या तुम समझते नहीं। और मदद चाहो सब्र और नमाज़ से, और बेशक वह भारी है मगर उन लोगों पर नहीं जो डरने वाले हैं। जो गुमान रखते हैं कि उन्हें अपने रब से मिलना है और वे उसी की तरफ़ लौटने वाले हैं। (40-46)
ऐ बनी इस्राईल मेरे उस एहसान को याद करो जो मैंने तुम्हारे ऊपर किया और इस बात को कि मैंने तुम्हें दुनिया वालों पर फ़ज़ीलत दी। और डरो उस दिन से कि कोई जान किसी दूसरी जान के कुछ काम न आएगी। न उसकी तरफ़ से कोई सिफ़ारिश क़ुबूल होगी। और न उससे बदले में कुछ लिया जाएगा और न उनकी कोई मदद की जाएगी। और जब हमने तुम्हें फ़िरऔन के लोगों से छुड़ाया। वे तुम्हें बड़ी तकलीफ़ देते थे। तुम्हारे बेटों को मार डालते और तुम्हारी औरतों को जीवित रखते। और इसमें तुम्हारे रब की तरफ़ से भारी आज़माइश थी। और जब हमने दरिया को फाड़कर तुम्हें पार कराया। फिर बचाया तुम्हें और डुबा दिया फ़िरऔन के लोगों को और तुम देखते रहे। और जब हमने मूसा से वादा किया चालीस रात का। फिर तुमने इसके बाद बछड़े को माबूद (पूज्य) बना लिया और तुम ज़ालिम थे। फिर हमने इसके बाद तुम्हें माफ़ कर दिया ताकि तुम शुक्रगुज़ार बनो | और जब हमने मूसा को किताब दी और फ़ैसला करने वाली चीज़ ताकि तुम राह पाओ। और जब मूसा ने अपनी क्रौम से कहा कि ऐ मेरी क़ौम! तुमने बछड़े को माबूद बनाकर अपनी जानों पर ज़ुल्म किया है। अब अपने पैदा करने वाले की तरफ़ मुतवज्जह हो और अपने मुजरिमों को अपने हाथों से क़त्ल करो। यह तुम्हारे लिए तुम्हारे पैदा करने वाले के नज़दीक बेहतर है। तो अल्लाह ने तुम्हारी तौबा कुबूल फ़रमाई | बेशक वही तौबा क्ुबूल करने वाला, रहम करने वाला है। और जब तुमने कहा कि ऐ मूसा हम तुम्हारा यकीन नहीं करेंगे जब तक हम अल्लाह को सामने न देख लें तो तुम्हें बिजली ने पकड़ लिया और तुम देख रहे थे। फिर हमने तुम्हारी मौत के बाद तुम्हें उठाया ताकि तुम शुक्रगुज़ार बनो। और हमने तुम्हारे ऊपर बदलियों का साया किया और तुम पर मन्न व सलवा उतारा। खाओ सुथरी चीज़ों में से जो हमने तुम्हें दी हैं और उन्होंने हमारा कुछ नुक़्सान नहीं किया, वे अपना ही नुक़्सान करते रहे। (47-57)
और जब हमने कहा कि दाख़िल हो जाओ इस शहर में और खाओ उसमें से जहां से चाहो खुले रूप में और दाख़िल हो दरवाज़े में सिर झुकाए हुए और कहो कि ऐ रब! हमारी ख़ताओं को बख्श दे। हम तुम्हारी ख़ताओं को बरुछ देंगे और नेकी करने वालों को ज़्यादा भी देंगे। तो उन्होंने बदल दिया उस बात को जो उनसे कही गई थी दूसरी बात से। इस पर हमने उन लोगों के ऊपर जिन्होंने ज़ुल्म किया, उनकी नाफ़रमानी के सबब से आसमान से अज़ाब (प्रकोप) उतारा। और जब मूसा ने अपनी क़ौम के लिए पानी मांगा तो हमने कहा अपना असा (डंडा) पत्थर पर मारो तो उससे फूट निकले बारह चश्मे (जलस्रोत)। हर गिरोह ने अपना-अपना घाट पहचान लिया। खाओ और पियो अल्लाह के रिज़्क से और न फिरो ज़मीन में फ़साद मचाने वाले बन कर | और जब तुमने कहा ऐ मूसा हम एक ही क़िस्म के खाने पर हरगिज़ सब्र नहीं कर सकते। अपने रब को हमारे लिए पुकारो कि वह निकाले हमारे लिए जो उगता है ज़मीन से साग, ककड़ी, गेहूं, मसूर, प्याज़ | मूसा ने कहा कि क्या तुम एक बेहतर चीज़ के बदले एक अदना ([तुच्छ) चीज़ लेना चाहते हो। किसी शहर में उतरो तो तुम्हें मिलेगी वह चीज़ जो तुम मांगते हो। और डाल दी गई उन पर ज़िल्लत और मोहताजी और वे अल्लाह के ग़ज़ब के मुस्तहिक़ हो गए। यह इस वजह से हुआ कि वे अल्लाह की निशानियों का इंकार करते थे और नबियों को नाहक़ क़त्ल करते थे। यह इस वजह से कि उन्होंने नाफ़र्मानी की और वे हद पर न रहते थे। (58-61)
यूं है कि जो लोग मुसलमान हुए और जो लोग यहूदी हुए और नसारा (ईसाई) और साबी, इनमें से जो शख्स ईमान लाया अल्लाह पर और आख़िरत के दिन पर और उसने नेक काम किया तो उसके लिए उसके रब के पास अज्र (प्रतिफल) है। और उनके लिए न कोई डर है और न वे ग़मगीन होंगे। और जब हमने तुमसे तुम्हारा अहद (वचन) लिया और तूर पहाड़ को तुम्हारे ऊपर उठाया। पकड़ो उस चीज़ को जो हमने तुम्हें दी है मज़बूती के साथ, और जो कुछ इसमें है उसे याद रखो ताकि तुम बचो। इसके बाद तुम इससे फिर गए। अगर अल्लाह का फ़ज़्ल और उसकी रहमत न होती तो ज़रूर तुम हलाक हो जाते। और उन लोगों का हाल तुम जानते हो जो सब्त (सनीचर) के मामले में अल्लाह के हुक्म से निकल गए तो हमने उनको कहा कि तुम लोग ज़लील बंदर बन जाओ। फिर हमने इसे इबरत बना दिया उन लोगों के लिए जो उसके रूबरू थे और उन लोगों के लिए जो इसके बाद आए। और इसमें हमने नसीहत रख दी डर वालों के लिए। (62-66)
और जब मूसा ने अपनी क़ौम से कहा कि अल्लाह तुम्हें हुक्म देता है कि तुम एक गाय ज़बह करो। उन्होंने कहा : क्या तुम हमसे हंसी कर रहे हो। मूसा ने कहा कि मैं अल्लाह की पनाह मांगता हूं कि मैं ऐसा नादान बनूं। उन्होंने कहा, अपने रब से दरख्वास्त करो कि वह हमसे बयान करे कि वह गाय कैसी हो। मूसा ने कहा, अल्लाह फ़रमाता है कि वह गाय न बूढ़ी हो न बच्चा, उनके बीच की हो। अब कर डालो जो हुक्म तुमको मिला है। उन्होंने कहा, अपने रब से दरख़्वास्त करो, वह बयान करे कि उसका रंग कैसा हो। मूसा ने कहा, अल्लाह फ़रमाता है वह सुनहरे रंग की हो, देखने वालों को अच्छी मालूम होती हो। उन्होंने कहा, अपने रब से दरख़्वास्त करो कि वह हमसे बयान कर दे कि वह कैसी हो। क्योंकि गाय में हमें शुबह पड़ गया है और अल्लाह ने चाहा तो हम राह पा लेंगे। मूसा ने कहा अल्लाह फ़रमाता है कि वह ऐसी गाय हो कि महनत करने वाली न हो, ज़मीन को जोतने वाली और खेतों को पानी देने वाली न हो। वह सालिम हो, उसमें कोई दाग़ न हो। उन्होंने कहा : अब तुम स्पष्ट बात लाए। फिर उन्होंने उसे ज़बह किया। और वे ज़बह करते नज़र न आते थे। और जब तुमने एक शख्स को मार डाला फिर एक-दूसरे पर इसका इल्ज़ाम डालने लगे। हालांकि अल्लाह को ज़ाहिर करना मंज़ूर था जो कुछ तुम छुपाना चाहते थे। पस हमने हुक्म दिया कि मारो उस मुर्दे को इस गाय का एक टुकड़ा। इस तरह ज़िंदा करता है अल्लाह मुर्दों को। और वह तुम्हें अपनी निशानियां दिखाता है ताकि तुम समझो। (67-73)
फिर इसके बाद तुम्हारे दिल सख्त हो गए। पस वे पत्थर की तरह हो गए या इससे भी ज़्यादा सख्त। पत्थरों में कुछ ऐसे भी होते हैं जिनसे नहरें फूट निकलती हैं। कुछ पत्थर फट जाते हैं और उनसे पानी निकल आता है। और कुछ पत्थर ऐसे भी होते हैं जो अल्लाह के डर से गिर पड़ते हैं। और अल्लाह इससे बेख़बर नहीं जो तुम करते हो। कया तुम यह उम्मीद रखते हो कि ये यहूद तुम्हारे कहने से ईमान ले आएंगे | हालांकि इनमें से कुछ लोग ऐसे हैं कि वे अल्लाह का कलाम सुनते थे और फिर उसे बदल डालते थे समझने के बाद, और वे जानते हैं। जब वे ईमान वालों से मिलते हैं तो कहते हैं कि हम ईमान लाए हुए हैं। और जब आपस में एक-दूसरे से मिलते हैं तो कहते हैं: कया तुम उन्हें वे बातें बताते हो जो अल्लाह ने तुम पर खोली हैं कि वे तुम्हारे रब के पास तुमसे हुज्जत करें। क्या तुम समझते नहीं। क्या वे नहीं जानते कि अल्लाह को मालूम है जो वे छुपाते हैं और जो वे ज़ाहिर करते हैं। (74-77)
और उनमें अनपढ़ हैं जो नहीं जानते किताब को मगर आरज़ुएं। इनके पास गुमान के सिवा और कुछ नहीं | पस ख़राबी है उन लोगों के लिए जो अपने हाथ से किताब लिखते हैं, फिर कहते हैं कि यह अल्लाह की जानिब से है। ताकि इसके ज़रिए थोड़ी-सी पूंजी हासिल कर लें। पस ख़राबी है उस चीज़ की बदौलत जो उनके हाथों ने लिखी। और उनके लिए ख़राबी है अपनी इस कमाई से। और वे कहते हैं हमें दोज़ख की आग नहीं छुऐगी मगर गिनती के कुछ दिन। कहो क्या तुमने अल्लाह के पास से कोई अहद (वचन) ले लिया है कि अल्लाह अपने अहद के ख़िलाफ़ नहीं करेगा। या अल्लाह के ऊपर ऐसी बात कहते हो जो तुम नहीं जानते। हां जिसने कोई बुराई की और उसके गुनाह ने उसे अपने घेरे में ले लिया। तो वही लोग दोज़ख़ वाले हैं वे इसमें हमेशा रहेंगे। और जो ईमान लाए और जिन्होंने नेक अमल किए, वे जन्नत वाले लोग हैं, वे इसमें हमेशा रहेंगे। (78-82)
और जब हमने बनी इस्राईल से अहद (वचन) लिया कि तुम अल्लाह के सिवा किसी की इबादत नहीं करोगे और नेक सुलूक करोगे मां-बाप के साथ, रिश्तेदारों के साथ, यतीमों और मिस्कीनों के साथ। और यह कि लोगों से अच्छी बात कहो। और नमाज़ क़ायम करो और ज़कात अदा करो। फिर तुम इससे फिर गए सिवा थोड़े लोगों के। और तुम इक़रार करके इससे हट जाने वाले लोग हो। और जब हमने तुमसे यह अहद (वचन) लिया कि तुम अपनों का ख़ून न बहाओगे। और अपने लोगों को अपनी बस्तियों से नहीं निकालोगे। फिर तुमने इक़रार किया और तुम इसके गवाह हो। फिर तुम ही वे हो कि अपनों को क़त्ल करते हो और अपने ही एक गिरोह को उनकी बस्तियों से निकालते हो। इनके मुक़ाबले में इनके दुश्मनों की मदद करते हो गुनाह और ज़ुल्म के साथ। फिर अगर वे तुम्हारे पास क़ैद होकर आते हैं तो तुम फ़िदया (अर्थदण्ड) देकर उन्हें छुड़ाते हो। हालांकि खुद इनका निकालना तुम्हारे ऊपर हराम था। क्या तुम किताबे इलाही के एक हिस्से को मानते हो और एक हिस्से का इंकार करते हो। पस तुममें से जो लोग ऐसा करें उनकी सज़ा इसके सिवा क्या है कि उन्हें दुनिया की ज़िंदगी में रुस्वाई हो और क्रियामत के दिन इन्हें सख्त अज़ाब में डाल दिया जाए। और अल्लाह उस चीज़ से बेख़बर नहीं जो तुम कर रहे हो। यही लोग हैं जिन्होंने आख़िरत के बदले दुनिया की ज़िंदगी ख़रीदी। पस न इनका अज़ाब हल्का किया जाएगा और न इन्हें मदद पहुंचेगी। (83-86)
और हमने मूसा को किताब दी और इसके बाद पे दरपे रसूल भेजे। और ईसा बिन मरयम को खुली-खुली निशानियां दीं और रूहे पाक से उसकी ताईद की। तो जब भी कोई रसूल तुम्हारे पास वह चीज़ लेकर आया जिसे तुम्हारा दिल नहीं चाहता था तो तुमने घमंड किया। फिर एक जमाअत को झुठलाया और एक जमाअत को मार डाला। और यहूद कहते हैं कि हमारे दिल महफ़ूज़ (सुरक्षित) हैं। नहीं, बल्कि अल्लाह ने उनके इंकार की वजह से उन पर लानत कर दी है। इसलिए वे बहुत कम ईमान लाते हैं। और जब आई अल्लाह की तरफ़ से उनके पास एक किताब जो सच्चा करने वाली है उसे जो उनके पास है और वे पहले से मुंकिरों पर फ़तह मांगा करते थे। फिर जब आई उनके पास वह चीज़ जिसे उन्होंने पहचान रखा था तो उन्होंने इसका इंकार कर दिया। पस अल्लाह की लानत है इंकार करने वालों पर। कैसी बुरी है वह चीज़ जिसमें उन्होंने अपनी जानों का मोल किया कि वे इंकार कर रहे हैं अल्लाह के उतारे हुए कलाम का इस ज़िद की बुनियाद पर कि अल्लाह अपने फ़ज़्ल से अपने बंदों में से जिस पर चाहे उतारे। पस वे गुस्से पर गुस्सा कमा कर लाए और इंकार करने वालों के लिए ज़िल्लत का अज़ाब है। (87-90)
और जब उनसे कहा जाता है उस कलाम पर ईमान लाओ जो अल्लाह ने उतारा है तो वे कहते हैं कि हम उस पर ईमान रखते हैं जो हमारे ऊपर उतरा है। और वे इसका इंकार करते हैं जो इसके पीछे आया है। हालांकि वह हक़ है और सच्चा करने वाला है उसे जो इनके पास है। कहो, अगर तुम ईमान वाले हो तो तुम अल्लाह के पैग़म्बरों को इससे पहले क्यों क़त्ल करते रहे हो। और मूसा तुम्हारे पास खुली निशानियां लेकर आया। फिर तुमने उसके पीछे बछड़े को माबूद (पूज्य) बना लिया और तुम ज़ुल्म करने वाले हो। और जब हमने तुमसे अहद (वचन) लिया और तूर पहाड़ को तुम्हारे ऊपर खड़ा किया- जो हुक्म हमने तुम्हें दिया है उसे मज़बूती के साथ पकड़ो और सुनो। उन्होंने कहा : हमने सुना और हमने नहीं माना। और उनके क़ुफ़ के सबब से बछड़ा उनके दिलों में रच-बस गया। कहो, अगर तुम ईमान वाले हो तो कैसी बुरी है वह चीज़ जो तुम्हारा ईमान तुम्हें सिखाता है। कहो, अगर अल्लाह के यहां आख़िरत का घर ख़ास तुम्हारे लिए है, तो दूसरों को छोड़कर तुम मरने की आरज़ू करो अगर तुम सच्चे हो। मगर वे कभी इसकी आरज़ू नहीं करेंगे, इस सबब से वे जो अपने आगे भेज चुके हैं। और अल्लाह ख़ूब जानता है ज़ालिमों को। और तुम उन्हें ज़िंदगी का सबसे ज़्यादा हहीस (लालसा रखने वाला) पाओगे, उन लोगों से भी ज़्यादा जो मुशरिक हैं। इनमें से हर एक यह चाहता है कि हज़ार वर्ष की उम्र पाए। हालांकि इतना जीना भी उसे अज़ाब से बचा नहीं सकता। और अल्लाह देखता है जो कुछ वे कर रहे हैं। (91-96)
कहो कि जो कोई जिब्रील का मुख़ालिफ़ है तो उसने इस कलाम को तुम्हारे दिल पर अल्लाह के हुक्म से उतारा है, वह सच्चा करने वाला है उसे जो उसके आगे है और वह हिदायत और ख़ुशख़बरी है ईमान वालों के लिए। जो कोई दुश्मन हो अल्लाह का और उसके फ़रिश्तों का और उसके रसूलों का और जिब्रील व मीकाईल का तो अल्लाह ऐसे मुंकिरों का दुश्मन है। और हमने तुम्हारे ऊपर वाज़ेह निशानियां उतारीं और कोई इनका इंकार नहीं करता मगर वही लोग जो फ़ासिक़ (अवज्ञाकारी) हैं। क्या जब भी वे कोई अहद (वचन) बाधेंगे तो उनका एक गिरोह उसे तोड़ फेंकेगा। बल्कि उनमें से अक्सर ईमान नहीं रखते। और जब उनके पास अल्लाह की तरफ़ से एक रसूल आया जो सच्चा करने वाला था उस चीज़ का जो उनके पास है तो उन लोगों ने जिन्हें किताब दी गई थी, अल्लाह की किताब को इस तरह पीठ पीछे फेंक दिया गोया वे इसे जानते ही नहीं। (97-101)
और वे उस चीज़ के पीछे पड़ गए जिसे शैतान सुलैमान की सल्तनत पर लगा कर पढ़ते थे। हालांकि सुलैमान ने कुफ्र नहीं किया बल्कि ये शैतान थे जिन्होंने कुफ् किया वे लोगों को जादू सिखाते थे। और वे उस चीज़ में पड़ गए जो बाबिल में दो फ़रिश्तों हर और मारूत पर उतारी गई, जबकि उनका हाल यह था कि जब भी किसी को अपना यह फ़न (कला) सिखाते तो उससे कह देते कि हम तो आज़माइश के लिए हैं। पस तुम मुंकिर न बनो। मगर वे उनसे वह चीज़ सीखते जिससे मर्द और उसकी औरत के दर्मियान जुदाई डाल दें। हालांकि वे अल्लाह के इज्न (आज्ञा) के बगैर इससे किसी का कुछ बिगाड़ नहीं सकते थे। और वे ऐसी चीज़ सीखते जो उन्हें नुक़्सान पहुंचाए और नफ़ा न दे। और वे जानते थे कि जो कोई इस चीज़ का ख़रीदार हो, आख़िरत में उसका कोई हिस्सा नहीं | कैसी बुरी चीज़ है जिसके बदले उन्होंने अपनी जानों को बेच डाला। काश वे इसे समझते। और अगर वे मोमिन बनते और तक़वा (ईशभय) इख़्तियार करते तो अल्लाह का बदला उनके लिए बेहतर था, काश वे इसे समझते। (102-103)
ऐ ईमान वालो तुम ‘राइना” न कहो, बल्कि उंज़ुरना” कहो और सुनो। और क्ुफ़ करने वालों के लिए दर्दनाक सज़ा है। जिन लोगों ने इंकार किया, चाहे अहले किताब हों या मुशरिकीन, वे नहीं चाहते कि तुम्हारे ऊपर तुम्हारे रब की तरफ़ से कोई भलाई उतरे। और अल्लाह जिसे चाहता है अपनी रहमत के लिए चुन लेता है। अल्लाह बड़े फ़ज़्ल वाला है। हम जिस आयत को मौक़ूफ़ (निरस्त) करते हैं या भुला देते हैं तो इससे बेहतर या इस जैसी दूसरी लाते हैं। कया तुम नहीं जानते कि अल्लाह हर चीज़ पर कुदरत रखता है। क्या तुम नहीं जानते कि अल्लाह ही के लिए आसमानों और ज़मीन की बादशाही है और तुम्हारे लिए अल्लाह के सिवा न कोई दोस्त है और न कोई मददगार। क्या तुम चाहते हो कि अपने रसूल से सवालात करो जिस तरह इससे पहले मूसा से सवालात किए गए। और जिस शख्स ने ईमान को कुफ्र से बदल दिया वह यक़ीनन सीधी राह से भटक गया। (104-108)
बहुत से अहले किताब दिल से चाहते हैं कि तुम्हारे मोमिन हो जाने के बाद वे किसी तरह फिर तुम्हें मुंकिर बना दें, अपने हसद (ईर्ष्या) की वजह से, बावजूद यह कि हक़ उनके सामने वाज़ेह हो चुका है। पस माफ़ करो और दरगुज़र करो यहां तक कि अल्लाह का फ़ैसला आ जाए। बेशक अल्लाह हर चीज़ पर कुदरत रखता है। और नमाज़ क़ायम करो और ज़कात अदा करो। और जो भलाई तुम अपने लिए आगे भेजोगे उसे तुम अल्लाह के पास पाओगे। जो कुछ तुम करते हो अल्लाह यक्रीनन उसे देख रहा है। और वे कहते हैं कि जन्नत में सिर्फ़ वही लोग जाऐंगे जो यहूदी हों या ईसाई हों, यह महज़ उनकी आरज़ुए हैं। कहो कि लाओ अपनी दलील अगर तुम सच्चे हो। बल्कि जिसने अपने आपको अल्लाह के हवाले कर दिया और वह मुख्लिस भी है तो ऐसे शख्स के लिए अज्र है उसके रब के पास, इनके लिए न कोई डर है और न कोई ग़म। (109-112)
और यहूद ने कहा कि नसारा (ईसाई) किसी चीज़ पर नहीं और नसारा ने कहा कि यहूद किसी चीज़ पर नहीं। और वे सब आसमानी किताब पढ़ते हैं। इसी तरह उन लोगों ने कहा जिनके पास इल्म नहीं, उन्हीं का सा क़ौल। पस अल्लाह क्रियामत के दिन इस बात का फ़ैसला करेगा जिसमें ये झगड़ रहे थे। और उससे बढ़कर ज़ालिम और कौन होगा जो अल्लाह की मस्जिदों को इससे रोके कि वहां अल्लाह के नाम की याद की जाए और उन्हें उजाड़ने की कोशिश करे। उनका हाल तो यह होना चाहिए था कि मस्जिदों में अल्लाह से डरते हुए दाख़िल हों। उनके लिए दुनिया में रुस्वाई है और आख़िरत में उनके लिए भारी सज़ा है। और पूरब और पश्चिम अल्लाह ही के लिए है। तुम जिधर रुख़ करो उसी तरफ़ अल्लाह है। यक़ीनन अल्लाह वुस्ञत (व्यापकता) वाला है, इल्म वाला है। और कहते हैं कि अल्लाह ने बेटा बनाया है। वह इससे पाक है। बल्कि आसमानों और ज़मीन में जो कुछ है सब उसी का है। उसी का हुक्म मानने वाले हैं सारे। वह आसमानों और ज़मीन को वुजूद में लाने वाला है। वह जब किसी काम को करना ते कर लेता है तो बस उसके लिए फ़रमा देता है कि हो जा तो वह हो जाता है। (113-117)
और जो लोग इल्म नहीं रखते, उन्होंने कहा : अल्लाह क्यों नहीं कलाम करता हमसे या हमारे पास कोई निशानी क्यों नहीं आती। इसी तरह उनके अगले भी उन्हीं की-सी बात कह चुके हैं, इन सबके दिल एक जैसे हैं, हमने पेश कर दी हैं निशानियां उन लोगों के लिए जो यक़ीन करने वाले हैं। हमने तुम्हें ठीक बात लेकर भेजा है, ख़ुशख़बरी सुनाने वाला और डराने वाला बना कर | और तुम से दोज़ख़ में जाने वालों की बाबत कोई पूछ नहीं होगी। और यहूद और नसारा हरगिज़ तुमसे राज़ी नहीं होंगे जब तक कि तुम उनके पंथ पर न चलने लगो। तुम कहो कि जो राह अल्लाह दिखाता है वही असल राह है। और अगर बाद उस इल्म के जो तुम तक पहुंच चुका है तुमने उनकी ख़्वाहिशों की पैरवी की तो अल्लाह के मुक़ाबले में न तुम्हारा कोई दोस्त होगा और न कोई मददगार | जिन लोगों को हमने किताब दी है वे इसे पढ़ते हैं जैसा कि हक़ है पढ़ने का। यही लोग ईमान लाते हैं इस पर। और जो इसका इंकार करते हैं वही घाटे में रहने वाले हैं। (118-121)
ऐ बनी इस्राईल मेरे उस एहसान को याद करो जो मैंने तुम्हारे ऊपर किया और उस बात को कि मैंने तुम्हें दुनिया की तमाम क्रौमों पर फ़ज़ीलत दी। और उस दिन से डरो जिसमें कोई शख्स किसी शख्स के कुछ काम न आयेगा और न किसी की तरफ़ से कोई मुआवज़ा क़ुबूल किया जायेगा और न किसी को कोई सिफ़ारिश फ़ायदा देगी और न कहीं से उन्हें कोई मदद पहुंचेगी। और जब इब्राहीम को उसके रब ने कई बातों में आज़माया तो उसने पूरा कर दिखाया। अल्लाह ने कहा मैं तुम्हें सब लोगों का इमाम बनाऊंगा। इब्राहीम ने कहा : और मेरी औलाद में से भी अल्लाह ने कहा : मेरा अहद (वचन) ज़ालिमों तक नहीं पहुंचता। (122-124)
और जब हमने काबे को लोगों के इज्तिमाअ (जमा होने) की जगह और अम्न का मक़ाम ठहराया और हुक्म दिया कि मक़ामे इब्राहीम को नमाज़ पढ़ने की जगह बना लो। और इब्राहीम और इस्माईल को ताकीद की कि मेरे घर को तवाफ़ (परिक्रमा) करने वालों, एतकाफ़ करने वालों और रुकूअ व सज्दे करने वालों के लिए पाक रखो। और जब इब्राहीम ने कहा के ऐ मेरे रब इस शहर को अम्न का शहर बना दे। और इसके बाशिंदों को, जो इनमें से अल्लाह और आख़िरत के दिन पर ईमान रखें, फलों की रोज़ी अता फ़रमा। अल्लाह ने कहा जो इंकार करेगा मैं उसे भी थोड़े दिनों फ़ायदा दूंगा। फिर उसे आग के अज़ाब की तरफ़ धकेल दूंगा, और वह बहुत बुरा ठिकाना है। (125-126)
और जब इब्राहीम और इस्माईल बैतुल्लाह की दीवारें उठा रहे थे और यह कहते जाते थे: ऐ हमारे रब, क्रुबूल कर हमसे, यक़ीनन तू ही सुनने वाला जानने वाला है। ऐ हमारे रब हमें अपना फ़रमांबरदार बना और हमारी नस्ल में से अपनी एक फ़रमांबरदार उम्मत उठा और हमें हमारे इबादत के तरीक़ बता और हमको माफ़ फ़रमा, तू माफ़ करने वाला रहम करने वाला है। ऐ हमारे रब और इनमें इन्हीं में का एक रसूल उठा जो इन्हें तेरी आयतें सुनाये और इन्हें किताब और हिकमत की तालीम दे और इनका तज़्किया (पवित्रीकरण, शुद्धीकरण) करे। बेशक तू ज़बरदस्त है हिक्मत वाला है। (127-129)
और कौन है जो इब्राहीम के दीन को पसंद न करें मगर वह जिसने अपने आपको अहमक़ (मूर्ख) बना लिया हो। हालांकि हमने उसे दुनिया में चुन लिया था और आख़िरत में वह सालेहीन (सत्यवादी लोगों) में से होगा। जब उसके रब ने कहा कि अपने आपको हवाले कर दो तो उसने कहा : मैंने अपने आपको सारे जहान के रब के हवाले किया। और इसी की नसीहत की इब्राहीम ने अपनी औलाद को और इसी की नसीहम की याकूब ने अपनी औलाद को। ऐ मेरे बेटो! अल्लाह ने तुम्हारे लिए इसी दीन को चुन लिया है। पस इस्लाम के सिवा किसी और हालत पर तुम्हें मौत न आए। क्या तुम मौजूद थे जब याकूब की मौत का वक़्त आया। जब उसने अपने बेटों से कहा कि मेरे बाद तुम किसकी इबादत करोगे। उन्होंने कहा : हम उसी ख़ुदा की इबादत करेंगे जिसकी इबादत आप और आपके बुज़ुर्ग इब्राहीम, इस्माईल, इस्हाक़ करते आए हैं। वही एक माबूद है और हम उसके फ़रमांबरदार हैं। यह एक जमाअत थी जो गुज़र गई। उसे मिलेगा जो उसने कमाया और तुम्हें मिलेगा जो तुमने कमाया | और तुमसे उनके किए हुए की पूछ न होगी। (130-134)
और कहते हैं कि यहूदी या ईसाई बन जाओ तो हिदायत पाओगे। कहो कि नहीं, बल्कि हम तो पैरवी करते हैं इब्राहीम के दीन की जो अल्लाह की तरफ़ यकसू (एकाग्रचित्त) था और वह शरीक करने वालों में न था। कहो हम अल्लाह पर ईमान लाए और उस चीज़ पर ईमान लाए जो हमारी तरफ़ उतारी गई है। और उस पर भी जो इब्राहीम, इस्माईल, इस्हाक़, याकूब और उसकी औलाद पर उतारी गई और जो मिला मूसा और ईसा को और जो मिला सब नबियों को उनके रब की तरफ़ से। हम इनमें से किसी के दर्मियान फ़र्क़ नहीं करते और हम अल्लाह ही के फ़रमांबरदार हैं। फिर अगर वे ईमान लाएं जिस तरह तुम ईमान लाए हो तो बेशक वे राह पा गए और अगर वे फिर जाएं तो अब वे ज़िद पर हैं। पस तुम्हारी तरफ़ से अल्लाह इनके लिए काफ़ी है और वह सुनने वाला जानने वाला है। कहो हमने लिया अल्लाह का रंग और अल्लाह के रंग से किसका रंग अच्छा है और हम उसी की इबादत करने वाले हैं। कहो कया तुम अल्लाह के बारे में हमसे झगड़ते हो। हालांकि वह हमारा रब भी है और तुम्हारा रब भी | हमारे लिए हमारे आमाल हैं और तुम्हारे लिए तुम्हारे आमाल हैं। और हम ख़ालिस उसके लिए हैं। क्या तुम कहते हो कि इब्राहीम और इस्माईल और इस्हाक़ और याक़ूब और उसकी औलाद सब यहूदी या ईसाई थे। कहो कि तुम ज़्यादा जानते हो या अल्लाह। और उससे बड़ा ज़ालिम और कौन होगा जो उस गवाही को छुपाए जो अल्लाह की तरफ़ से उसके पास आई हुई है। और जो कुछ तुम करते हो अल्लाह उससे बेख़बर नहीं। यह एक जमाअत थी जो गुज़र गई। उसे मिलेगा जो उसने कमाया और तुम्हें मिलेगा जो तुमने कमाया। और तुमसे उनके किए हुए की पूछ न होगी। (135-141)
अब बेवक़ूफ़ लोग कहेंगे कि मुसलमानों को किस चीज़ ने उनके क़िबले से फेर दिया। कहो कि पूरब और पश्चिम अल्लाह ही के हैं। वह जिसे चाहता है सीधा रास्ता दिखाता है। और इस तरह हमने तुम्हें बीच की उम्मत बना दिया ताकि तुम हो बताने वाले लोगों पर और रसूल हो तुम पर बताने वाला। और जिस क़्िबले पर तुम थे, हमने उसे सिर्फ़ इसलिए ठहराया था कि हम जान लें कि कौन रसूल की पैरवी करता है और कौन उससे उल्टे पांव फिर जाता है। और बेशक यह बात भारी है मगर उन लोगों पर जिन्हें अल्लाह ने हिदायत दी है। और अल्लाह ऐसा नहीं कि तुम्हारे ईमान को ज़ाये (विनष्ट) कर दे। बेशक अल्लाह लोगों के साथ शफ़क़त (स्नेह) करने वाला मेहरबान है। (142-143)
हम तुम्हारे मुंह का बार-बार आसमान की तरफ़ उठना देख रहे हैं। पस हम तुम्हें उसी क्रिबले की तरफ़ फेर देंगे जिसे तुम पसंद करते हो। अब अपना रुख़ मस्जिदे हराम (काबा) की तरफ़ फेर दो। और तुम जहां कहीं भी हो अपने रुख़ को उसी की तरफ़ करो। और अहले किताब ख़ूब जानते हैं कि यह हक़ है और उनके रब की जानिब से है। और अल्लाह बेख़बर नहीं उससे जो वे कर रहे हैं। और अगर तुम इन अहले किताब के सामने तमाम दलीलें पेश कर दो तब भी वे तुम्हारे क्रिबले को नहीं मानेंगें। और न तुम उनके क़िबले की पैरवी कर सकते हो। और न वे ख़ुद एक-दूसरे के क्रिबले को मानते हैं। और इस इल्म के बाद जो तुम्हारे पास आ चुका है, अगर तुम उनकी ख़्वाहिशों की पैरवी करोगे तो यक़्ीनन तुम ज़ालिमों में हो जाओगे। जिन्हें हमने किताब दी है वे उसे इस तरह पहचानते हैं जिस तरह अपने बेटों को पहचानते हैं। और उनमें से एक गिरोह हक़ को छुपा रहा है हालांकि वह उसे जानता है। हक़ वह है जो तेरा रब कहे। पस तुम हरगिज़ शक करने वालों में से न बनो। (144-147)
हर एक के लिए एक रुख़ है जिधर वह मुंह करता है। पस तुम भलाइयों की तरफ़ दौड़ो | तुम जहां कहीं होगे अल्लाह तुम सबको ले आएगा। बेशक अल्लाह सब कुछ कर सकता है। और तुम जहां से भी निकलो अपना रुख़ मस्जिदे हराम की तरफ़ करो। बेशक यह हक़ है, तुम्हारे रब की तरफ़ से है। और जो कुछ तुम करते हो अल्लाह उससे बेख़बर नहीं। और तुम जहां से भी निकलो अपना रुख़ मस्जिदे हराम की तरफ़ करो और तुम जहां भी हो अपना रुख़ उसी की तरफ़ रखो ताकि लोगों को तुम्हारे ऊपर कोई हुज्जत बाक़ी न रहे, सिवाए उन लोगों के जो इनमें बेइंसाफ़ हैं। पस तुम उनसे न डरो और मुझसे डरो। और ताकि मैं अपनी नेमत तुम्हारे ऊपर पूरी कर दूं। और ताकि तुम राह पा जाओ। जिस तरह हमने तुम्हारे दर्मियान एक रसूल तुम्हीं में से भेजा जो तुम्हें हमारी आयतें पढ़कर सुनाता है और तुम्हें पाक करता है और तुम्हें किताब की और हिकमत (तत्वदर्शिता, सूझबूझ) की तालीम देता है और तुम्हें वे चीज़ें सिखा रहा है जिन्हें तुम नहीं जानते थे। पस तुम मुझे याद रखो मैं तुम्हें याद रखूंगा। और मेरा एहसान मानो, मेरी नाशुक्री मत करो। (148-152)
ऐ ईमान वालो, सब्र और नमाज़ से मदद हासिल करो। यक़ीनन अल्लाह सत्र करने वालों के साथ है। और जो लोग अल्लाह की राह में मारे जाएं उन्हें मुर्दा मत कहो बल्कि वे ज़िंदा हैं मगर तुम्हें ख़बर नहीं। और हम ज़रूर तुम्हें आज़माऐंगे कुछ डर और भूख से और मालों और जानों और फलों की कमी से और साबित क़दम रहने वालों को ख़ुशख़बरी दे दो जिनका हाल यह है कि जब उन्हें कोई मुसीबत पहुंचती है तो वे कहते हैं : हम अल्लाह के हैं और हम उसी की तरफ़ लौटने वाले हैं। यही लोग हैं जिनके ऊपर उनके रब की शाबाशियां हैं और रहमत है। और यही लोग हैं जो राह पर हैं। सफ़ा और मरवह बेशक अल्लाह की यादगारों में से हैं। पस जो शख्स बैतुल्लाह का हज करे या उमरा करे तो उस पर कोई हरज नहीं कि वह इनका तवाफ़ (परिक्रमा) करे ओर जो कोई शौक़ से कुछ नेकी करे तो अल्लाह क़द्र करने वाला है, जानने वाला है। जो लोग छुपाते हैं हमारी उतारी हुई खुली निशानियों को और हमारी हिदायत को, बाद इसके कि हम इसे लोगों के लिए किताब में खोल चुके हैं तो वही लोग हैं जिन पर अल्लाह लानत करता है और उन पर लानत करने वाले लानत करते हैं। अलबत्ता जिन्होंने तोबा की और इस्लाह कर ली और बयान किया तो उन्हें मैं माफ़ कर दूंगा और मैं हूं माफ़ करने वाला, मेहरबान | बेशक जिन लोगों ने इंकार किया और उसी हाल में मर गए तो वही लोग हैं कि उन पर अल्लाह की, फ़रिश्तों की और आदमियों की सबकी लानत है। उसी हाल में वे हमेशा रहेंगे। उन पर से अज़ाब हल्का नहीं किया जाएगा और न उन्हें ढील दी जाएगी। (153-162)
और तुम्हारा माबूद एक ही माबूद है। उसके सिवा कोई माबूद नहीं। वह बड़ा मेहरबान है, निहायत रहम वाला है। बेशक आसमानों और ज़मीन की बनावट में और रात और दिन के आने जाने में और उन कश्तियों में जो इंसानों के काम आने वाली चीज़ें लेकर समुद्र में चलती हैं और उस पानी में जिसको अल्लाह ने आसमान से उतारा, फिर उससे मुर्दा ज़मीन को ज़िंदगी बख़्शी, और उसने ज़मीन में सब क्रिस्म के जानवर फ़ैला दिए। और हवाओं की गर्दिश में और बादलों में जो आसमान और ज़मीन के दर्मियान हुक्म के ताबेअ हैं, उन लोगों के लिए निशानियां हैं जो अक़्ल से काम लेते हैं। (163-164)
और कुछ लोग ऐसे हैं जो अल्लाह के सिवा दूसरों को उसके बराबर ठहराते हैं। उनसे ऐसी मुहब्बत रखते हैं जैसी मुहब्बत अल्लाह से रखना चाहिए। और जो ईमान वाले हैं वे सबसे ज़्यादा अल्लाह से मुहब्बत रखने वाले हैं। और अगर ये ज़ालिम उस वक़्त को देख लें जबकि वे अज़ाब को देखेंगे कि ज़ोर सारा का सारा अल्लाह का है और अल्लाह बड़ा सख्त अज़ाब देने वाला है। जबकि वे लोग जिनके कहने पर दूसरे चलते थे उन लोगों से अलग हो जाऐंगे जो इनके कहने पर चलते थे। अज़ाब उनके सामने होगा और उनके सब तरफ़ के रिश्ते टूट चुके होंगे। वे लोग जो पीछे चले थे कहेंगे काश हमें दुनिया की तरफ़ लौटना मित्र जाता तो हम भी उनसे अलग हो जाते जैसे ये हमसे अलग हो गए। इस तरह अल्लाह इनके आमाल को उन्हें हसरत बना कर दिखाएगा और वे आग से निकल नहीं सकेंगे। लोगो! ज़मीन की चीज़ों में से हलाल और सुथरी चीज़ें खाओ और शैतान के क़दमों पर मत चलो, बेशक वह तुम्हारा खुला हुआ दुश्मन है। वह तुमको सिर्फ़ बुरे काम और बेहयाई की तलक़ीन करता है और इस बात की कि तुम अल्लाह की तरफ़ वे बाते मंसूब करो जिनके बारे में तुम्हें कोई इल्म नहीं। और जब उनसे कहा जाता है कि उस पर चलो जो अल्लाह ने उतारा है तो वे कहते हैं कि हम उस पर चलेंगे जिस पर हमने अपने बाप दादा को पाया है। क्या उस सूरत में भी कि उनके बाप दादा न अक़्ल रखते हों और न सीधी राह जानते हों। और इन मुंकिरों की मिसाल ऐसी है जैसे कोई शख्स ऐसे जानवर के पीछे चिल्ला रहा हो जो बुलाने और पुकारने के सिवा और कुछ नहीं सुनता। ये बहरे हैं, गूंगे हैं, अंधे हैं। वे कुछ नहीं समझते। (165-171)
ऐ ईमान वालो हमारी दी हुई पाक चीज़ों को खाओ और अल्लाह का शुक्र अदा करो अगर तुम उसकी इबादत करने वाले हो। अल्लाह ने तुम पर हराम किया है सिर्फ़ मुर्दार कों और ख़ून को और सुअर के गोश्त को। और जिस पर अल्लाह के सिवा किसी और का नाम लिया गया हो। फिर जो शख्स मजबूर हो जाए, वह न ख़्वाहिशमंद हो और न हद से आगे बढ़ने वाला हो तो उस पर कोई गुनाह नहीं। बेशक अल्लाह बख्शने वाला, मेहरबान है। जो लोग उस चीज़ को छुपाते हैं जो अल्लाह ने अपनी किताब में उतारी है और इसके बदले में थोड़ा मोल लेते हैं, वे अपने पेट में सिर्फ़ आग भर रहे हैं। क्रियामत के दिन अल्लाह न उनसे बात करेगा और न उन्हें पाक करेगा और उनके लिए दर्दनाक अज़ाब है। ये वे लोग हैं जिन्होंने हिदायत के बदले गुमराही का सौदा किया और बख्शिश के बदले अज़ाब का, तो कैसी सहार है उन्हें आग की। यह इसलिए कि अल्लाह ने अपनी किताब को ठीक-ठीक उतारा मगर जिन लोगों ने किताब में कई राहें निकाल लीं वे ज़िद में दूर जा पड़े। (172-176)
नेकी यह नहीं कि तुम अपने मुंह पूर्व और पश्चिम की तरफ़ कर लो। बल्कि नेकी यह है कि आदमी ईमान लाए अल्लाह पर और आख़िरत के दिन पर और फ़रिश्तों पर और किताब पर और पैग़म्बरों पपर। और माल दे अल्लाह की मुहब्बत में रिश्तेदारों को और यतीमों को और मोहताजों को और मुसाफ़िरों को और मांगने वालों को और गर्दनें छुड़ने में। और नमाज़ क़ायम करे और ज़कात अदा करे और जब अहद कर लें तो उसे पूरा करें। और सब्र करने वाले सख्ती और तकलीफ़ में और लड़ाई के वक़्त। यही लोग हैं जो सच्चे निकले और यही हैं डर रखने वाले। (177)
ऐ ईमान वालो तुम पर मक़्तूलों (मारे जाने वालों) का क्रिसास (समान बदला) लेना फ़र्ज़ किया जाता है। आज़ाद के बदले आज़ाद, गुलाम के बदले गुलाम, औरत के बदले औरत | फिर जिसे उसके भाई की तरफ़ से कुछ माफ़ी हो जाए तो उसे चाहिए कि मारूफ़ [सामान्य तरीक़ा) की पैरवी करे और ख़ूबी के साथ उसे अदा करे। यह तुम्हारे रब की तरफ़ से एक आसानी और मेहरबानी है। अब इसके बाद भी जो शख्स ज़्यादती करे उसके लिए दर्दनाक अज़ाब है। और ऐ अक़्ल वालो, क़िसास में तुम्हारे लिए ज़िंदगी है ताकि तुम बचो। तुम पर फ़र्ज़ किया जाता है कि जब तुम में से किसी की मौत का वक़्त आ जाए और वह अपने पीछे, माल छोड़ रहा हो तो वह मारूफ़ के मुताबिक़ वसीअत कर दे अपने मां-बाप के लिए और अपने रिश्तेदारों के लिए। यह ज़रूरी है ख़ुदा से डरने वालों के लिए। फिर जो कोई वसीयत को सुनने के बाद उसे बदल डाले तो इसका गुनाह उसी पर होगा जिसने इसे बदला, यक़रीनन अल्लाह सुनने वाला, जानने वाला है। अलबत्ता जिसे वसीयत करने वाले के बारे में यह अंदेशा हो कि उसने जानिबदारी या हक़तलफ़ी की है और वह आपस में सुलह करा दे तो उस पर कोई गुनाह नहीं। अल्लाह माफ़ करने वाला, रहम करने वाला है। (178-182)
ऐ ईमान वालो तुम पर रोज़ा फ़र्ज़ किया गया जिस तरह तुम से अगलों पर फ़र्ज़ किया गया था ताकि तुम परहेज़गार बनो। गिनती के कुछ दिन। फिर जो कोई तुममें बीमार हो या सफ़र में हो तो दूसरे दिनों में तादाद पूरी कर ले। और जिनको ताक़त है तो एक रोज़े का बदला एक मिस्कीन का खाना है। जो कोई मज़ीद (अतिरिक्त) नेकी करे तो वह उसके लिए बेहतर है। और तुम रोज़ा रखो तो यह तुम्हारे लिए ज़्यादा बेहतर है, अगर तुम जानो। रमज़ान का महीना जिसमें क़रआन उतारा गया, हिदायत है लोगों के लिए और खुली निशानियां रास्ते की और हक़ व बातिल के दर्मियान फ़ैसला करने वाला। पस तुम में से जो कोई इस महीने को पाए वह इसके रोज़े रखे। और जो बीमार हो या सफ़र पर हो तो दूसरे दिनों में गिनती पूरी कर ले। अल्लाह तुम्हारे लिए आसानी चाहता है, वह तुम्हारे साथ सख्ती करना नहीं चाहता। और इसलिए कि तुम गिनती पूरी कर लो और अल्लाह की बड़ाई करो इस पर कि उसने तुम्हें राह बताई और ताकि तुम उसके शुक्रगुज़ार बनो। (183-185)
और जब मेरे बंदे तुम से मेरे बारे में पूछें तो मैं नज़दीक हूं, पुकारने वाले की पुकार का जवाब देता हूं जबकि वह मुझे पुकारता है। तो चाहिए कि वे मेरा हुक्म मानें और मुझ पर यक़ीन रखें ताकि वे हिदायत पाएं। तुम्हारे लिए रोज़े की रात में अपनी बीवियों के पास जाना जाइज़ किया गया। वे तुम्हारे लिए लिबास हैं और तुम उनके लिए लिबास हो। अल्लाह ने जाना कि तुम अपने आप से ख़ियानत कर रहे थे तो उसने तुम पर इनायत की और तुम्हें माफ़ कर दिया। तो अब तुम उनसे मिलो और चाहो जो अल्लाह ने तुम्हारे लिए लिख दिया है। और खाओ और पियो यहां तक कि सुबह की सफ़ेद धारी काली धारी से अलग ज़ाहिर हो जाए। फिर पूरा करो रोज़ा रात तक | और जब तुम मस्जिद में एतकाफ़ में हो तो बीवियों से ख़लवत (संभोग) न करो। ये अल्लाह की हदें हैं तो इनके नज़दीक न जाओ। इस तरह अल्लाह अपनी आयतें लोगों के लिए बयान करता है ताकि वे बचें। और तुम आपस में एक-दूसरे के माल को नाहक़ तौर पर न खाओ और उन्हें हाकिमों तक न पहुंचाओ ताकि दूसरों के माल का कोई हिस्सा गुनाह के तौर पर खा जाओ। हालांकि तुम इसे जानते हो। (186-188)
वे तुम से चांदों के बारे में पूछते हैं। कह दो कि वे औक़ात (समय) हैं लोगों के लिए और हज के लिए। और नेकी यह नहीं कि तुम घरों में आओ छत पर से। बल्कि नेकी यह है कि आदमी परहेज़गारी करे। और घरों में उनके दरवाज़ों से आओ और अल्लाह से डरो ताकि तुम कामयाब हो। और अल्लाह की राह में उन लोगों से लड़ो जो लड़ते हैं तुमसे। और ज़्यादती न करो। अल्लाह ज़्यादती करने वालों को पसंद नहीं करता। और क़त्ल करो उन्हें जिस जगह पाओ, और निकाल दो उन्हें जहां से उन्होंने तुम्हें निकाला है। और फ़ितना सख्ततर है क़त्ल से। और उनसे मस्जिदे हराम के पास न लड़ो जब तक कि वे तुमसे इसमें जंग न छेड़ें। पस अगर वे तुमसे जंग छेड़ें तो उन्हें क़त्ल करो। यही सज़ा है इंकार करने वालों की। फिर अगर वे बाज़ आ जाएं तो अल्लाह बझुशने वाला, मेहरबान है। और उनसे जंग करो यहां तक कि फ़ितना बाक़ी न रहे और दीन अल्लाह का हो जाए। फिर अगर वे बाज़ आ जाएं तो इसके बाद सख्ती नहीं है मगर ज़ालिमों पर। (189-193)
हुरमत (प्रतिष्ठा) वाला महीना हुस्मत वाले महीने का बदला है और हुरमतों का भी क़िसास (समान बदला) है। पस जिसने तुम पर ज़्यादती की तुम भी उस पर ज़्यादती करो जैसी उसने तुम पर ज़्यादती की है। और अल्लाह से डरो और जान लो कि अल्लाह परहेज़गारों के साथ है। और अल्लाह की राह में ख़र्च करो और अपने आपको हलाकत में न डालो। और काम अच्छी तरह करो। बेशक अल्लाह पसंद करता है अच्छी तरह काम करने वालों को। (194-195)
और पूरा करो हज और उमरा अल्लाह के लिए। फिर अगर तुम घिर जाओ तो जो कुर्बानी का जानवर मयस्सर हो वह पेश कर दो और अपने सिरों को न मुंडबाओ जब तक कि कुर्बानी अपने ठिकाने पर न पहुंच जाए। तुममें से जो बीमार हो या उसके सिर में कोई तकलीफ़ हो तो वह अर्थदण्ड फ़िदया दे रोज़ा या सदक़ा या कुर्बानी का। जब अम्न की हालत हो और कोई हज तक उमरा का फ़ायदा हासिल करना चाहे तो वह कुर्बानी पेश करे जो उसे मयस्सर आए। फिर जिसे मयस्सर न आए तो वह हज के दिनों में तीन दिन के रोज़े रखे और सात दिन के रोज़े जबकि तुम घरों को लौटो। ये पूरे दस हुए। यह उस शख्स के लिए है जिसका ख़ानदान मस्जिदे हराम के पास आबाद न हो। अल्लाह से डरो और जान लो कि अल्लाह सख्त अज़ाब देने वाला है। हज के निर्धारित महीने हैं। पस जिसने हज का अज़्म कर लिया तो फिर उसे हज के दौरान न कोई फ़हेश (अश्लील) बात करनी चाहिए और न गुनाह की और न लड़ाई झगड़े की। और जो नेक काम तुम करोगे अल्लाह उसे जान लेगा। और तुम ज़ादेराह (यात्रा-सामग्री) लो। बेहतरीन ज़ादेराह तक़वा का ज़ादेराह है। और ऐ अक़्ल वालो मुझ से डरो। (196-197)
इसमें कोई गुनाह नहीं कि तुम अपने रब का फ़ज़्ल भी तलाश करो। फिर जब तुम लोग अरफ़ात से वापस हो तो अल्लाह को याद करो मशअरे हराम के नज़दीक। और उसे याद करो जिस तरह अल्लाह ने बताया है। इससे पहले यक़ीनन तुम राह भटके हुए लोगों में थे। फिर तवाफ़ को चलो जहां से सब लोग चलें और अल्लाह से माफ़ी मांगों। यक्रीनन अल्लाह बख्शने वाला, रहम करने वाला है। फिर जब तुम अपने हज के आमाल पूरे कर लो तो अल्लाह को याद करो जिस तरह तुम पहले अपने पूर्वजों को याद करते थे, बल्कि इससे भी ज़्यादा। पस कोई आदमी कहता है : ऐ हमारे रब हमें इसी दुनिया में दे दे और आख़िरत में उसका कोई हिस्सा नहीं। और कोई आदमी है जो कहता है कि हमारे रब हमें दुनिया में भलाई दे और आख़िरत में भी भलाई दे और हमें आग के अज़ाब से बचा। इन्हीं लोगों के लिए हिस्सा है उनके किए का और अल्लाह जल्द हिसाब लेने वाला है। और अल्लाह को याद करो मुक़र्रर दिनों में। फिर जो शख्स जल्दी करके दो दिन में मक्का वापस आ जाए उस पर कोई गुनाह नहीं और जो शख्स ठहर जाए उस पर भी कोई गुनाह नहीं। यह उसके लिए है जो अल्लाह से डरे। और तुम अल्लाह से डरते रहो और ख़ूब जान लो कि तुम उसी के पास इकट्ठा किए जाओगे। (198-203)
और लोगों में से कोई है कि उसकी बात दुनिया की ज़िंदगी में तुम्हें ख़ुश लगती है और वह अपने दिल की बात पर अल्लाह को गवाह बनाता है। हालांकि वह सख्त झगड़ालू है। और जब वह पीठ फेरता है तो वह इस कोशिश में रहता है कि ज़मीन में फ़लाद फैलाए और खेतियों और जानवरों को हलाक करे। हालांकि अल्लाह फ़साद को पसंद नहीं करता। और जब उससे कहा जाता है कि अल्लाह से डर तो वक़ार (प्रतिष्ठा) उसे गुनाह पर जमा देता है। पस ऐसे शख्स के लिए जहन्नम काफ़ी है और वह बहुत बुरा ठिकाना है। और लोगों में कोई है कि अल्लाह की ख़ुशी की तलाश में अपनी जान को बेच देता है और अल्लाह अपने बंदों पर निहायत मेहरबान है। (204-207)
ऐ ईमान वालो इस्लाम में पूरे-पूरे दाखिल हो जाओ और शैतान के क़दमों पर मत चलो, वह तुम्हारा खुला हुआ दुश्मन है। अगर तुम फिसल जाओ बाद इसके कि तुम्हारे पास वाज़ेह दलीलें आ चुकी हैं तो जान लो कि अल्लाह ज़बरदस्त है और हिक्मत (तत्वदर्शिता) वाला है। क्या लोग इस इंतज़ार में हैं कि अल्लाह बादल के सायबानों में आए और फ़रिश्ते भी आ जाएं और मामले का फ़ैसला कर दिया जाए और सारे मामलात अल्लाह ही की तरफ़ फेरे जाते हैं। बनी इस्राईल से पूछो, हमने उन्हें कितनी खुली-खुली निशानियां दीं। और जो शख्स अल्लाह की नेमत को बदल डाले जबकि वह उसके पास आ चुकी हो तो अल्लाह यक़ीनन सख्त सज़ा देने वाला है। ख़ुशनुमा कर दी गई है दुनिया की ज़िंदगी उन लोगों की नज़र में जो मुंकिर हैं और वे ईमान वालों पर हंसते हैं, हालांकि जो परहेज़गार हैं वे क्रियामत के दिन उनके मुक़ाबले में ऊंचे होंगे। और अल्लाह जिसे चाहता है बेहिसाब रोज़ी देता है। (208-212)
लोग एक उम्मत थे। उन्होंने इख़्तेलाफ़ (मतभेद) किया तो अल्लाह ने पैग़म्बरों को भेजा ख़ुशख़बरी देने वाले और डराने वाले। और उनके साथ उतारी किताब हक़ के साथ ताकि वह फ़ैसला कर दे उन बातों का जिनमें लोग इख़्तेलाफ़ कर रहे हैं। और ये इख्तेलाफ़ उन्हीं लोगों ने किए जिन्हें हक़ दिया गया था, बाद इसके कि उनके पास खुली-खुली हिदायतें आ चुकी थीं, आपस की ज़िद की वजह से। पस अल्लाह ने अपनी तौफ़ीक़ से हक़ के मामले में ईमान वालों को राह दिखाई जिसमें वे झगड़ रहे थे और अल्लाह जिसे चाहता है सीधी राह दिखा देता है। क्या तुमने यह समझ रखा है कि तुम जन्नत में दाख़िल हो जाओगे हालांकि अभी तुम पर वे हालात गुज़रे ही नहीं जो तुम्हारे अगलों पर गुज़रे थे। उन्हें सख्ती और तकलीफ़ पहुंची और वे हिला मारे गए। यहां तक कि रसूल और उनके साथ ईमान लाने वाले पुकार उठे कि अल्लाह की मदद कब आएगी। याद रखो, अल्लाह की मदद क़रीब है। (213-214)
लोग तुमसे पूछते हैं कि क्या खर्च करें। कह दो कि जो माल तुम ख़र्च करो तो उसमें हक़ है तुम्हारे मां-बाप का और रिश्तेदारों का और यतीमों का और मोहताजों का और मुसाफ़िरों का। और जो भलाई तुम करोगे वह अल्लाह को मालूम है। तुम पर लड़ाई का हुक्म हुआ है और वह तुम्हें भार महसूस होती है। हो सकता है कि तुम एक चीज़ को नागवार समझो और वह तुम्हारे लिए भली हो। और हो सकता है कि तुम एक चीज़ को पसंद करो और वह तुम्हारे लिए बुरी हो। और अल्लाह जानता है तुम नहीं जानते। लोग तुमसे हुरमत (प्रतिष्ठा) वाले महीने की बाबत पूछते हैं कि इसमें लड़ना कैसा है। कह दो कि इसमें लड़ना बहुत बुरा है। मगर अल्लाह के रास्ते से रोकना और इसका इंकार करना और मस्जिदे हराम से रोकना और उसके लोगों को इससे निकालना, अल्लाह के नज़दीक इससे भी ज़्यादा बुरा है। और फ़ितना क़त्ल से भी ज़्यादा बड़ी बुराई है। और ये लोग तुमसे निरंतर लड़ते रहेंगे यहां तक कि तुम्हें तुम्हारे दीन से फेर दें अगर क़ाबू पाएं। और तुममें से जो कोई अपने दीन से फिरेगा और कुफ़ की हालत में मर जाए तो ऐसे लोगों के अमल ज़ाए (विनष्ट) हो गए दुनिया में और आख़िरत में | और वे आग में पड़ने वाले हैं, वे इसमें हमेशा रहेंगे। वे लोग जो ईमान लाए और जिन्होंने हिजर्त की और अल्लाह की राह में जिहाद किया, वे अल्लाह की रहमत के उम्मीदवार हैं। और अल्लाह बख्शने वाला मेहरबान है। (215-218)
लोग तुमसे शराब और जुवे के बारे में पूछते हैं। कह दो कि इन दोनों चीज़ों में बड़ा गुनाह है और लोगों के लिए कुछ फ़ायदे भी हैं। और इनका गुनाह बहुत ज़्यादा है इनके फ़ायदे से। और वे तुमसे पूछते हैं कि क्या ख़र्च करें। कह दो कि जो हाजत (ज़रूरत) से ज़्यादा हो। इस तरह अल्लाह तुम्हारे लिए अहकाम को बयान करता है ताकि तुम ध्यान करो दुनिया और आख़िरत के मामलों में। और वे तुमसे यतीमों के बारे में पूछते हैं। कह दो कि जिसमें उनकी बहबूद (बेहतरी) हो वह बेहतर है। और अगर तुम उन्हें अपने साथ शामिल्र कर लो तो वे तुम्हारे भाई हैं। और अल्लाह को मालूम है कि कौन ख़राबी पैदा करने वाला है और कौन दुरुस्तगी पैदा करने वाला। और अगर अल्लाह चाहता तो तुम्हें मुश्किल में डाल देता। अल्लाह ज़बरदस्त है तदबीर वाला है। (219-220)
और मुशरिक औरतों से निकाह न करो जब तक वे ईमान न लाएं और मोमिन कनीज़ (दासी) बेहतर है एक मुशरिक औरत से, अगरचे वह तुम्हें अच्छी मालूम हो। और अपनी औरतों को मुशरिक मर्दों के निकाह में न दो जब तक वे ईमान न लाएं, मोमिन गुलाम बेहतर है एक आज़ाद मुशरिक से, अगरचे वह तुम्हें अच्छा मालूम हो। ये लोग आग की तरफ़ बुलाते हैं और अल्लाह जन्नत की तरफ़ और अपनी बख्शिश की तरफ़ बुलाता है। वह अपने अहकाम लोगों के लिए खोलकर बयान करता है ताकि वे नसीहत पकड़ें। और वे तुमसे हैज़ (मासिक धर्म) का हुक्म पूछते हैं। कह दो कि वह एक गंदगी है, इसमें औरतों से अलग रहो। और जब तक वे पाक न हो जाएं उनके क़रीब न जाओ | फिर जब वे अच्छी तरह पाक हो जाएं तो उस तरीक़े से उनके पास जाओ जिसका अल्लाह ने तुम्हें हुक्म दिया है। अल्लाह दोस्त रखता है तौबा करने वालों को और वह दोस्त रखता है पाक रहने वालों को। तुम्हारी औरतें तुम्हारी खेतियां हैं। पल अपनी खेती में जिस तरह चाहो जाओ और अपने लिए आगे भेजो और अल्लाह से डरो और जान लो कि तुम्हें ज़रूर उससे मिलना है। और ईमान वालो को ख़ुशख़बरी दे दो। (221-223)
और अल्लाह को अपनी क़समों का निशाना न बनाओ कि तुम भलाई न करो और परहेज़गारी न करो और लोगों के दर्मियान सुलह न करो। अल्लाह सुनने वाला, जानने वाला है। अल्लाह तुम्हारी बेइरादा क़समों पर तुम को नहीं पकड़ता, मगर वह उस काम पर पकड़ता है जो तुम्हारे दिल करते हैं। और अल्लाह बख्छने वाला, तहम्मुल (धैर्य) वाला है। जो लोग अपनी बीवियों से न मिलने की क़सम खा लें उनके लिए चार महीने तक की मोहलत है। फिर अगर वे रुजूअ कर लें तो अल्लाह माफ़ करने वाला, मेहरबान है। और अगर वे तलाक़ का फ़ैसला करें तो यक़ीनन अल्लाह सुनने वाला, जानने वाला है। और तलाक़ दी हुई औरतें अपने आपको तीन हैज़ तक रोके रखें। और अगर वे अल्लाह और आख़िरत के दिन पर ईमान रखती हैं तो उनके लिए जाइज़ नहीं कि वे उस चीज़ को छुपाएं जो अल्लाह ने पैदा किया है उनके पेट में। और इस दौरान में उनके शौहर उन्हें फिर लौटा लेने का हक़ रखते हैं अगर वे सुलह करना चाहें। और इन औरतों के लिए दस्तूर के मुताबिक़ उसी तरह हुक़ूक़ हैं जिस तरह दस्तूर के मुताबिक़ उन पर ज़िम्मेदारियां हैं। और मर्दों का उनके मुक़ाबले में कुछ दर्जा बढ़ा हुआ है। और अल्लाह ज़बरदस्त है, तदबीर वाला है। (224-228)
तलाक़ दो बार है। फिर या तो क़ायदे के मुताबिक़ रख लेना है या ख़ुशउस्लूबी के साथ रुख्सत कर देना। और तुम्हारे लिए यह बात जाइज़ नहीं कि तुमने जो कुछ इन औरतों को दिया है उसमें से कुछ ले लो मगर यह कि दोनों को डर हो कि वे अल्लाह की हदों पर क़ायम न रह सकेंगे। फिर अगर तुम्हें यह डर हो कि दोनों अल्लाह की हदों पर कायम न रह सकेंगे तो दोनों पर गुनाह नहीं उस माल में जिसे औरत फ़िदये में दे। ये अल्लाह की हदें हैं तो इनसे बाहर न निकलो। और जो शख्स अल्लाह की हदों से निकल जाए तो वही लोग ज़ालिम हैं। फिर अगर वह उसे तलाक़ दे दे तो इसके बाद वह औरत उसके लिए हलाल नहीं जब तक कि वह किसी दूसरे मर्द से निकाह न करे। फिर अगर वह मर्द उसे तलाक़ दे दे तब गुनाह नहीं उन दोनों पर कि फिर मिल जाएं बशर्ते कि उन्हें अल्लाह की हदों पर क्रायम रहने की उम्मीद हो। ये ख़ुदावंदी हदें (सीमाएं) हैं जिन्हें वह बयान कर रहा है उन लोगों के लिए जो दानिशमंद हैं। और जब तुम औरतों को तलाक़ दे दो और वे अपनी इद्दत तक पहुंच जाएं तो उन्हें या तो क़ायदे के मुताबिक़ रख लो या क़ायदे के मुताबिक़ रुख्सत कर दो। और तकलीफ़ पहुंचाने की ग़र्ज़ से न रोको ताकि उन पर ज़्यादती करो। और जो ऐसा करेगा उसने अपना ही बुरा किया। और अल्लाह की आयतों को खेल न बनाओ। और याद करो अपने ऊपर अल्लाह की नेमत को और उस किताब व हिक्मत (तत्वदर्शिता) को जो उसने तुम्हारी नसीहत के लिए उतारी है। और अल्लाह से डरो और जान लो कि अल्लाह हर चीज़ को जानने वाला है। (229-231)
और जब तुम अपनी औरतों को तलाक़ दे दो और वे अपनी इद्द्त पूरी कर लें तो उन्हें न रोको कि वे अपने शोहरों से निकाह कर लें। जबकि वे दस्तूर (सामान्य नियम) के अनुसार आपस में राज़ी हो जाएं। यह नसीहत की जाती है उस शख्स को जो तुममें से अल्लाह और आख़िरत के दिन पर यक्रीन रखता हो। यह तुम्हारे लिए ज़्यादा पाकीज़ा और सुथरा तरीक़ा है। और अल्लाह जानता है तुम नहीं जानते। और माएं अपने बच्चों को पूरे दो साल तक दूध पिलाएं उन लोगों के लिए जो पूरी मुददत तक दूध पिलाना चाहते हों। और जिसका बच्चा है उसके ज़िम्मे है इन मांओं का खाना और कपड़ा दस्तूर के मुताबिक़। किसी को हुक्म नहीं दिया जाता मगर उसकी बर्दाश्त के मुवाफ़िक़ | न किसी मां को उसके बच्चे के सबब से तकलीफ़ दी जाए। और न किसी बाप को उसके बच्चे के सबब से। और यही ज़िम्मेदारी वारिस पर भी है। फिर अगर दोनों आपसी रज़ामंदी और मशवरे से दूध छुड़ाना चाहें तो दोनों पर कोई गुनाह नहीं। और अगर तुम चाहो कि अपने बच्चे को किसी और से दूध पिलवाओ तब भी तुम पर कोई गुनाह नहीं। बशर्ते कि तुम क़ायदे के मुताबिक़ वह अदा कर दो जो तुमने उन्हें देना ठहराया था। और अल्लाह से डरो और जान लो कि जो कुछ तुम करते हो अल्लाह उसे देख रहा है। (232-233)
और तुममें से जो लोग मर जाएं और बीवियां छोड़ जाएं वे बीवियां अपने आप को चार महीने दस दिन तक इंतज़ार में रखें। फिर जब वे अपनी मुदृदत को पहुंचें तो जो कुछ वे अपने बारे में क़ायदे के मुवाफ़िक़ करें उसका तुम पर कोई गुनाह नहीं। और अल्लाह तुम्हारे कामों से पूरी तरह बाख़बर है। और तुम्हारे लिए इस बात में कोई गुनाह नहीं कि इन औरतों को पैग़ाम देने में कोई बात इशारे में कहो या अपने दिल में छुपाए रखो। अल्लाह को मालूम है कि तुम ज़रूर इनका ध्यान करोगे। मगर छुपकर इनसे वादा न करो, तुम इनसे सिर्फ़ दस्तूर के मुताबिक़ कोई बात कह सकते हो। और निकाह का इरादा उस वक़्त तक न करो जब तक निर्धारित मुदृदत पूरी न हो जाए। और जान लो कि अल्लाह जानता है जो कुछ तुम्हारे दिलों में है। पल उससे डरो और जान लो कि अल्लाह बख्शने वाला, तहम्मुल (संयम) वाला है। अगर तुम औरतों को ऐसी हालत में तलाक़ दो कि न इन्हें तुमने हाथ लगाया है और इनके लिए कुछ महर मुक़र्रर किया है तो इनके महर का तुम पर कुछ मुवाख़िज़ा (देय) नहीं। अलबत्ता उन्हें दस्तूर के मुताबिक़ कुछ सामान दे दो, वुस्अत वाले पर अपनी हैसियत के मुताबिक़ है और तंगी वाले पर अपनी हैसियत के मुताबिक़, यह नेकी करने वालों पर लाज़िम है। और अगर तुम उन्हें तलाक़ दो इससे पहले कि उन्हें हाथ लगाओ और तुम उनके लिए कुछ महर भी मुक़र्रर कर चुके थे तो जितना महर तुमने मुक़र्रर किया हो उसका आधा अदा करो। यह और बात है यह कि वे माफ़ कर दें या वह मर्द माफ़ कर दे जिसके हाथ में निकाह की गिरह है। और तुम्हारा माफ़ कर देना ज़्यादा क़रीब है तक़वा से। और आपस में एहसान करने से ग़फ़लत मत करो। जो कुछ तुम करते हो अल्लाह उसे देख रहा है। (234-237)
पाबंदी करो नमाज़ों की और पाबंदी करो बीच की नमाज़ की। और खड़े हो अल्लाह के सामने आजिज़ बने हुए | अगर तुम्हें अंदेशा हो तो पैदल या सवारी पर पढ़ लो। फिर जब अमन की हालत आ जाए तो अल्लाह को उस तरीक़े से याद करो जो उसने तुम्हें सिखाया है, जिसे तुम नहीं जानते थे। और तुममें से जो लोग वफ़ात पा जाएं और बीवियां छोड़ रहे हों वे अपनी बीवियों के बारे में वसीयत कर दें कि एक साल तक उन्हें घर में रखकर ख़र्च दिया जाए। फिर अगर वे ख़ुद से घर छोड़ दें तो जो कुछ वे अपने मामले में दस्तूर के मुताबिक़ करें उसका तुम पर कोई इल्ज़ाम नहीं। अल्लाह ज़बरदस्त है, हिक्मत वाला है। और तलाक़ दी हुई औरतों को भी दस्तूर के मुताबिक़ ख़र्च देना है, यह लाज़िम है परहेज़गारों के लिए। इस तरह अल्लाह तुम्हारे लिए अपने अहकाम खोलकर बयान करता है ताकि तुम समझो। (238-242)
क्या तुमने उन लोगों को नहीं देखा जो अपने घरों से भाग खड़े हुए मौत के डर से, और वे हज़ारों की तादाद में थे। तो अल्लाह ने उनसे कहा कि मर जाओ। फिर अल्लाह ने इन्हें ज़िंदा किया। बेशक अल्लाह लोगों पर फ़ज़्ल करने वाला है। मगर अक्सर लोग शुक्र नहीं करते। और अल्लाह की राह में लड़ो और जान लो कि अल्लाह सुनने वाला, जानने वाला है। कौन है जो अल्लाह को क़र्ज़े हसन दे कि अल्लाह इसे बढ़ाकर उसके लिए कई गुना कर दे। और अल्लाह ही तंगी भी पैदा करता है और कुशादगी भी। और तुम सब उसी की तरफ़ लौटाए जाओगे। (243-245)
क्या तुमने बनी इस्राईल के सरदारों को नहीं देखा मूसा के बाद, जबकि उन्होंने अपने नबी से कहा कि हमारे लिए एक बादशाह मुक़र्रर कर दीजिए ताकि हम अल्लाह की राह में लड़ें। नबी ने जवाब दिया : ऐसा न हो कि तुम्हें लड़ाई का हुक्म दिया जाए तब तुम न लड़ो। उन्होंने कहा यह कैसे हो सकता है कि हम न लड़ें अल्लाह की राह में। हालांकि हमें अपने घरों से निकाला गया है और अपने बच्चों से जुदा किया गया है। फिर जब उन्हें लड़ाई का हुक्म हुआ तो थोड़े लोगों के सिवा सब फिर गए। और अल्लाह ज़ालिमों को ख़ूब जानता है। और उनके नबी ने उनसे कहा : अल्लाह ने तालूत को तुम्हारे लिए बादशाह मुक़र्रर किया है। उन्होंने कहा कि उसे हमारे ऊपर बादशाही कैसे मिल सकती है। हालांकि उसके मुक़ाबले में हम बादशाही के ज़्यादा हक़दार हैं। और उसे ज़्यादा दौलत भी हासिल नहीं। नबी ने कहा अल्लाह ने तुम्हारे मुक़ाबले में उसे चुना है और इल्म और जिस्म में उसे ज़्यादती दी है। और अल्लाह अपनी सल्तनत जिसे चाहता है देता है। अल्लाह बड़ी वुस्अत (व्यापकता) वाला, जानने वाला है। और उनके नबी ने उनसे कहा कि तालूत के बादशाह होने की निशानी यह है कि तुम्हारे पास वह संदूक़ आ जाएगा जिसमें तुम्हारे रब की तरफ़ से तुम्हारे लिए तस्कीन है। और मूसा के समुदाय और हारून के समुदाय छोड़ी हुई यादगारें हैं। इस संदूक़ को फ़रिश्ते ले आएंगे इसमें तुम्हारे लिए बड़ी निशानी है, अगर तुम यक्रीन रखने वाले हो। (246-248)
फिर जब तालूत फ़ौजों को लेकर चला तो उसने कहा : अल्लाह तुम्हें एक नदी के ज़रिए आज़माने वाला है। पस जिसने उसका पानी पिया वह मेरा साथी नहीं और जिसने उसे न चखा वह मेरा साथी है। मगर यह कि कोई अपने हाथ से एक चुल्लू भर ले। तो उन्होंने इसमें से ख़ूब पिया सिवाए थोड़े आदमियों के। फिर जब तालूत और जो उसके साथ ईमान पर क़ायम रहे थे दरिया पार कर चुके तो वे लोग बोले कि आज हमें जालूत और उसकी फ़ौजों से लड़ने की ताक़त नहीं। जो लोग यह जानते थे कि वे अल्लाह से मिलने वाले हैं उन्होंने कहा कि कितनी ही छोटी जमाअतें अल्लाह के हुक्म से बड़ी जमाअतों पर ग़ालिब आई हैं। और अल्लाह सब्र करने वालों के साथ है। और जब जालूत और उसकी फ़ौजों से उनका सामना हुआ तो उन्होंने कहा : कि ऐ हमारे रब हमारे ऊपर सब्र डाल दे और हमारे क़दमों को जमा दे और इन मुंकिरों के मुक़ाबले में हमारी मदद कर। फिर उन्होंने अल्लाह के हुक्म से उन्हें शिकस्त दी। और दाऊद ने जालूत को क़त्ल कर दिया। और अल्लाह ने दाऊद को बादशाहत और दानाई (सूझबूझ) अता की और जिन चीज़ों का चाहा इल्म बख़्शा। और अगर अल्लाह कुछ लोगों को कुछ लोगों के ज़रिए हटाता न रहे तो ज़मीन फ़साद से भर जाए। मगर अल्लाह दुनिया वालों पर बड़ा फ़ज़्ल फ़रमाने वाला है। (249-251)
ये अल्लाह की आयतें हैं जो हम तुम्हें सुनाते हैं ठीक-ठीक | और बेशक तू पैग़म्बरों में से है इन पैग़म्बरों में से कुछ को हमने कुछ पर फ़ज़ीलत दी। इनमें से कुछ से अल्लाह ने कलाम किया। और कुछ के दर्जे बुलंद किए। और हमने ईसा बिन मरयम को खुली निशानियां दीं और हमने उसकी मदद की रूहुल क़ुदूस से। अल्लाह अगर चाहता तो इनके बाद वाले साफ़ हुक्म आ जाने के बाद न लड़ते मगर उन्होंने मतभेद किया। फिर इनमें से कोई ईमान लाया और किसी ने इंकार किया। और अगर अल्लाह चाहता तो वे न लड़ते। मगर अल्लाह करता है जो वह चाहता है। (252-253)
ऐ ईमान वालो ख़र्च करो उन चीज़ों से जो हमने तुम्हें दिया है उस दिन के आने से पहले जिसमें न ख़रीद-फ़रोख़त है और न दोस्ती है और न सिफ़ारिश | और जो इंकार करने वाले हैं वही हैं ज़ुल्म करने वाले। अल्लाह, इसके सिवा कोई माबूद (पूज्य) नहीं। वह ज़िंदा है, सबको थामने वाला। उसे न ऊंध आती है और न नींद। उसी का है जो कुछ आसमानों और ज़मीन में है। कौन है जो उसके पास उसकी इजाज़त के बगैर सिफ़ारिश करे। वह जानता है जो कुछ उनके आगे है और जो कुछ उनके पीछे है। और वे उसके इल्म में से किसी चीज़ का इहाता (ग्रहण) नहीं कर सकते, मगर जो वह चाहे। उसकी हुकूमत आसमानों और ज़मीन में छाई हुई है। वह थकता नहीं इनके थामने से | और वही है बुलंद मर्तबा, बड़ा। दीन के मामले में कोई ज़बरदस्ती नहीं। हिदायत गुमराही से अलग हो चुकी है। पस जो शख्स शैतान का इंकार करे और अल्लाह पर ईमान लाए उसने मज़बूत हल्क़ा पकड़ लिया जो टूटने वाला नहीं। और अल्लाह सुनने वाला, जानने वाला है। अल्लाह काम बनाने वाला है ईमान वालों का, वह उन्हें अंधेरों से निकाल कर उजाले की तरफ़ लाता है, और जिन लोगों ने इंकार किया उनके दोस्त शैतान हैं, वे उन्हें उजाले से निकाल कर अंधेरों की तरफ़ ले जाते हैं। ये आग में जाने वाले लोग हैं, वे उसमें हमेशा रहेंगे। (254-257)
क्या तुमने उसे नहीं देखा जिसने इब्राहीम से उसके रब के बारे में हुज्जत की। क्योंकि अल्लाह ने उसे सल्तनत दी थी। जब इब्राहीम ने कहा कि मेरा रब वह है जो जिलाता और मारता है। वह बोला कि मैं भी जिलाता हूं और मारता हूं। इब्राहीम ने कहा कि अल्लाह सूरज को पूर्व से निकालता है तुम उसे पश्चिम से निकाल दो। तब वह मुंकिर हैरान रह गया। और अल्लाह ज़ालिमों को राह नहीं दिखाता। (258)
या जैसे वह शख्स जिसका गुज़र एक बस्ती पर से हुआ। और वह अपनी छतों पर गिरी हुई थी। उसने कहा : हलाक हो जाने के बाद अल्लाह इस बस्ती को दुबारा कैसे ज़िंदा करेगा। फिर अल्लाह ने उस पर सौ वर्षों तक के लिए मौत तारी कर दी। फिर उसे उठाया। अल्लाह ने पूछा तुम कितनी देर इस हालत में रहे। उसने कहा एक दिन या एक दिन से कुछ कम | अल्लाह ने कहा नहीं बल्कि तुम सौ वर्ष रहे हो। अब तुम अपने खाने पीने की चीज़ों को देखो कि वे सड़ी नहीं हैं और अपने गधे को देखो। और ताकि हम तुम्हें लोगों के लिए एक निशानी बना दें। और हड़िडियों की तरफ़ देखो, किस तरह हम उनका ढांचा खड़ा करते हैं। फिर उन पर गोश्त चढ़ाते हैं। पस जब उस पर वाज़ेह हो गया तो कहा मैं जानता हूं कि बेशक अल्लाह हर चीज़ पर कुदरत रखता है। और जब इब्राहीम ने कहा कि ऐ मेरे रब, मुझे दिखा दे कि तू मुर्दों को किस तरह ज़िंदा करेगा। अल्लाह ने कहा, क्या तुमने यकीन नहीं किया। इब्राहीम ने कहा क्यों नहीं, मगर इसलिए कि मेरे दिल को तस्कीन हो जाए। फ़रमाया तुम चार परिंदे लो और उन्हें अपने से हिला लो। फिर उनमें से हर एक को अलग-अलग पहाड़ी पर रख दो, फिर उन्हें बुलाओ | वे तुम्हारे पास दौड़ते हुए चले आऐँगे। और जान लो कि अल्लाह ज़बरदस्त है, हिक्मत वाला है। (259-260)
जो लोग अपने माल अल्लाह की राह में ख़र्च करते हैं उनकी मिसाल ऐसी है जैसे एक दाना हो जिससे सात बालें पैदा हों, हर बाली में सौ दानें हों। और अल्लाह बढ़ाता है जिसके लिए चाहता है। और अल्लाह वुस्अत (व्यापकता) वाला, जानने वाला है। जो लोग अपने माल को अल्लाह की राह में ख़र्च करते हैं फिर खर्च करने के बाद न एहसान रखते हैं और न तकलीफ़ पहुंचाते हैं उनके लिए उनके रब के पास उनका अज् (प्रतिफल) है। और उनके लिए न कोई डर है और न वे ग़मग़ीन होंगे। मुनासिब बात कह देना और दरगुज़र (क्षमा) करना उस सदक़े से बेहतर है जिसके पीछे सताना हो। और अल्लाह बेनियाज़ (निस्पृहठ) है, तहम्मुल (संयम) वाला है। ऐ ईमान वालो एहसान रख कर और सता कर अपने सदक़े को ज़ाया न करो, जिस तरह वह शख्स जो अपना माल दिखावे के लिए ख़र्च करता है और वह अल्लाह पर और आख़िरत के दिन पर ईमान नहीं रखता। पस उसकी मिसाल ऐसी है जैसे एक चट्टान हो जिस पर कुछ मिट्टी हो, फिर उस पर ज़ोर की बारिश हो जो उसे बिल्कुल साफ़ कर दे। ऐसे लोगों को अपनी कमाई कुछ भी हाथ नहीं लगेगी। और अल्लाह इंकार करने वालों को राह नहीं दिखाता। (261-264)
और उन लोगों की मिसाल जो अपने माल को अल्लाह की रिज़ा चाहने के लिए और अपने नफ़्स में पुख्तगी के लिए खर्च करते हैं एक बाग़ की तरह है जो बुलंदी पर हो। उस पर ज़ोर की बारिश पड़ी तो वह दुगना फल लाया। और अगर ज़ोर की बारिश न पड़े तो हल्की फुवार भी काफ़ी है। और जो कुछ तुम करते हो अल्लाह उसे देख रहा है। कया तुममें से कोई यह पसंद करता है कि उसके पास खजूरों और अंगूरों का एक बाग़ हो, उसके नीचे नहरें बह रही हों। उसमें उसके लिए हर क़िस्म के फल हों। और वह बूढ़ा हो जाए और उसके बच्चे अभी कमज़ोर हों। तब उस बाग़ पर एक बगूला आए जिसमें आग हो। फिर वह बाग़ जल जाए। अल्लाह इस तरह तुम्हारे लिए खोल कर निशानियां बयान करता है ताकि तुम ग़ौर करो। (265-266)
ऐ ईमान वालो ख़र्च करो उम्दा चीज़ को अपनी कमाई में से और उसमें से जो हमने तुम्हारे लिए ज़मीन में से पैदा किया है। और घटिया चीज़ का इरादा न करो कि उसमें से ख़र्च करो। हालांकि तुम कभी इसे लेने वाले नहीं, यह और बात है कि चश्मपोशी कर जाओ। और जान लो कि अल्लाह बेनियाज़ (निस्पृष्ठ) है, ख़ूबियों वाला है। शैतान तुम्हें मोहताजी से डराता है और बुरी बात पर उभारता है और अल्लाह वादा देता है अपनी बख़्शिश का और फ़ज़्ल का और अल्लाह वुस्अत व्यापकता) वाला है, जानने वाला है। वह जिसे चाहता है हिक्मत दे देता है और जिसे हिक्मत मिली उसे बड़ी दौलत मिल गई। और नसीहत वही हासिल करते हैं जो अक़्ल वाले हैं। (267-269)
और तुम जो खर्च करते हो या जो नज़्र (मन्नत) मानते हो उसे अल्लाह जानता है। और ज़ालिमों का कोई मददगार नहीं। अगर तुम अपने सदक़ात ज़ाहिर करके दो तब भी अच्छा है और अगर तुम उन्हें छुपाकर मोहताजों को दो तो यह तुम्हारे लिए ज़्यादा बेहतर है। और अल्लाह तुम्हारे गुनाहों को दूर कर देगा और अल्लाह तुम्हारे कामों से वाक़िफ़ है। उन्हें हिदायत पर लाना तुम्हारा ज़िम्मा नहीं। बल्कि अल्लाह जिसे चाहता है हिदायत देता है। और जो माल तुम ख़र्च करोगे अपने ही लिए करोगे। और तुम न ख़र्च करो मगर अल्लाह की रिज़ा चाहने के लिए। और तुम जो माल ख़र्च करोगे वह तुम्हें पूरा कर दिया जाएगा और तुम्हारे लिए इसमें कमी नहीं की जाएगी। ये उन हाजतमंदों के लिए हैं जो अल्लाह की राह में घिर गए हों, ज़मीन में दौड़ धूप नहीं कर सकते। नावाक़रिफ़ आदमी उन्हें ग़नी ख़्याल करता है उनके न मांगने की वजह से। तुम उन्हें उनकी सूरत में पहचान सकते हो। वे लोगों से लिपट कर नहीं मांगते। और जो माल तुम ख़र्च करोगे वह अल्लाह को मालूम है। जो लोग अपने मालों को रात और दिन, छुपे और खुले ख़र्च करते हैं, उनके लिए उनके रब के पास अज् है। और उनके लिए न ख़ौफ़ है और न वे ग़मगीन होंगे। (270-274)
जो लोग सूद खाते हैं वे क़ियामत में न उठेंगे मगर उस शख्स की तरह जिसे शैतान ने छूकर ख़बती बना दिया हो। यह इसलिए कि उन्होंने कहा कि तिजारत करना भी वैसा ही है जैसा सूद लेना। हालांकि अल्लाह ने तिजारत को हलाल ठहराया है और सूद को हराम किया है। फिर जिस शख्स के पास उसके रब की तरफ़ से नसीहत पहुंची और वह इससे रुक गया तो जो कुछ वह ले चुका वह उसके लिए है। और उसका मामला अल्लाह के हवाले है। और जो शख्स फिर वही करे तो वही लोग दोज़ख़ी हैं, वे उसमें हमेशा रहेंगे। अल्लाह सूद को घटाता है और सदक़ात को बढ़ाता है। और अल्लाह पसंद नहीं करता नाशुक्रों को, गुनाहगारों को | बेशक जो लोग ईमान लाए और लेक अमल किए और नमाज़ की पाबंदी की और ज़कात अदा की, उनके लिए उनका अज् है उनके रब के पास। उनके लिए न कोई अंदेशा है और न वे ग़मगीन होंगे। (275-277)
ऐ ईमान वालो, अल्लाह से डरो और जो सूद बाक़ी रह गया है उसे छोड़ दो, अगर तुम मोमिन हो। अगर तुम ऐसा नहीं करते तो अल्लाह और उसके रसूल की तरफ़ से लड़ाई के लिए ख़बरदार हो जाओ। और अगर तुम तौबा कर लो तो असल रक़म के तुम हक़दार हो, न तुम किसी पर ज़ुल्म करो और न तुम पर ज़ुल्म किया जाए। और अगर एक #र्स तंगी वाला है तो उसकी फ़राख़ी तक मोहलत दो। और अगर माफ़ कर दो तो यह तुम्हारे लिए ज़्यादा बेहतर है, अगर तुम समझो। और उस दिन से डरो जिस दिन तुम अल्लाह की तरफ़ लौटाए जाओगे। फिर हर शख्स को उसका किया हुआ पूरा-पूरा मिल जाएगा। और उन पर ज़ुल्म न होगा। (278-281)
ऐ ईमान वालो, जब तुम किसी निर्धारित मुदृदत के लिए उधार का लेनेदेन करो तो उसे लिख लिया करो। और इसे लिखे तुम्हारे दर्मियान कोई लिखने वाला इंसाफ़ के साथ। और लिखने वाला लिखने से इंकान न करे, जैसा अल्लाह ने उसे सिखाया उसी तरह उसे चाहिए कि लिख दे। और वह शख्स लिखवाए जिस पर अदायगी का हक़ आता है। और वह डरे अल्लाह से जो उसका रब है और इसमें कोई कमी न करे। और अगर वह शख्स जिस पर अदायगी का हक़ आता है बेसमझ हो, या कमज़ोर हो या ख़ुद लिखवाने की क़ुदरत न रखता हो तो चाहिए कि उसका वली (संरक्षक) इंसाफ़ के साथ लिखवा दे। और अपने मर्दों में से दो आदमियों को गवाह कर लो। और अगर दो मर्द न हों तो फिर एक मर्द और दो औरतें, उन लोगों में से जिन्हें तुम पसंद करते हो। ताकि अगर एक औरत भूल जाए तो दूसरी औरत उसे याद दिला दे। और गवाह इंकार न करें जब वे बुलाए जाएं। और मामला छोटा हो या बड़ा, मीआद (अवधि) के निर्धारण के साथ इसे लिखने में काहिली न करो। यह लिख लेना अल्लाह के नज़दीक ज़्यादा इंसाफ़ का तरीक़ा है और गवाही को ज़्यादा दुरुस्त रखने वाला है और ज़्यादा संभावना है कि तुम शुबह में न पड़ो। लेकिन अगर कोई सौदा नक़द हो जिसका तुम आपस में लेनदेन किया करते हो तुम पर कोई इल्ज़ाम नहीं कि तुम उसे न लिखो। मगर जब यह सौदा करो तो गवाह बना लिया करो। और किसी लिखने वाले को या गवाह को तकलीफ़ न पहुंचाई जाए। और अगर ऐसा करोगे तो यह तुम्हारे लिए गुनाह की बात होगी। और अल्लाह से डरो अल्लाह तुम्हें सिखाता है और अल्लाह हर चीज़ का जानने वाला है। और अगर तुम सफ़र में हो और कोई लिखने वाला न पाओ तो रहन (गिरवी) रखने की चीज़ें क़ब्ज़े में दे दी जाएं। और अगर एक दूसरे का एतबार करता हो तो चाहिए कि जिस पर एतबार किया गया वह एतबार को पूरा करे। और अल्लाह से डरे जो उसका रब है। और गवाही को न छुपाओ और जो शख्स छुपाएगा उसका दिल गुनाहगार होगा। और जो कुछ तुम करते हो, अल्लाह उसे जानने वाला है। (282-283)
अल्लाह का है जो कुछ आसमानों में है और जो ज़मीन में है। तुम अपने दिल की बातों को ज़ाहिर करो या छुपाओ, अल्लाह तुमसे इसका हिसाब लेगा। फिर जिसे चाहेगा बछ्शेगा और जिसे चाहेगा सज़ा देगा। और अल्लाह हर चीज़ पर कुदरत रखने वाला है। रसूल ईमान लाया है उस पर जो उसके रब की तरफ़ से उस पर उतरा है। और मुसलमान भी उस पर ईमान लाए हैं। सब ईमान लाए हैं अल्लाह पर और उसके फ़रिश्तों पर और उसकी किताबों पर और उसके रसूलों पर। हम उसके रसूलों में से किसी के दर्मियान फ़र्क़ नहीं करते। और वे कहते हैं कि हमने सुना और माना। हम तेरी बख्शिश चाहते हैं ऐ हमारे रब। और तेरी ही तरफ़ लौटना है। अल्लाह किसी पर ज़िम्मेदारी नहीं डालता मगर उसकी ताक़त के मुताबिक़ | उसे मिलेगा वही जो उसने कमाया और उस पर पड़ेगा वही जो उसने किया। ऐ हमारे रब हमें न पकड़ अगर हम भूलें या हम ग़लती कर जाएं। ऐ हमारे रब हम पर बोझ न डाल जैसा तूने डाला था हम से अगलों पर। ऐ हमारे रब हमसे वह न उठवा जिसकी ताक़त हम में नहीं। और दरगुज़र कर हम से। और हमें बख़्श दे और हम पर रहम कर। तू हमारा कारसाज़ है। पस इंकार करने वालों के मुक़ाबले में हमारी मदद कर। (284-286)