धर्म

सूरह हूद – सूरह 11

सूरह हूद का नाम पैगंबर हूद के नाम पर रखा गया जो कि तरतीब-ए-तिलावत के हिसाब से कुरान शरीफ का ग्यारहवाँ सूरह और तरतीब-ए-नुज़ूल के हिसाब से 52वां सूरह है। यह सूरह मक्की है, जिसमें 123 आयतें और 10 रुकुस हैं। यह सूरह पैगंबर हूद की कहानी से जुड़ा है, जो ‘अद’ जनजाति के पैगंबर हैं। इसके अलावा, छह अन्य नबियों के लोगों जैसे नूह, सालेह, इब्राहिम, लूत, शुएब और मूसा की कहानियाँ भी इसमें मिलती हैं। सूरह हूद की फ़ज़ीलत यह है कि इसमें विभिन्न विषयों जैसे एक अल्लाह, पैगंबर हूद, इंतकाल (मृत्यु) के बाद हयात (जीवन), और कयामत के दिनपर करमातों का इनाम शामिल है। इमाम मुहम्मद बाकिर ने कहा है कि जो कोई भी हर शुक्रवार को इस सूरह हूद का पाठ करता है, उसका हिसाब क़यामत के दिन नबियों के साथ लिया जाता है और उसको सभी गुनाहों की माफ़ी मिल जाती है। इसके अलावा जो व्यक्ति सूरह हूद का पाठ करता है उसे पैगंबर साहब के समय जितने लोग थे, उनके बराबर इनाम मिलता है और उनकी गिनती शहीदों में होती है। अगर इस सूरह का पाठ न किया जा सके तो इसे कागज़ पर लिखवा कर अपने पास रखा जा सकता है। सूरह हूद की फ़ज़ीलत के हिसाब से शोक और मुश्किल समय में अल्लाह अपने बंदों का ख़्याल रखता है जबकि काफ़िर मगरूर हो जाता है। पढ़ें सूरह हूद-

शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान, निहायत रहम वाला है।

अलिफ़० लाम० रा०। यह किताब है जिसकी आयतें पहले मोहकम (दृढ़) की गईं फिर एक दाना (तत्वदर्शी) और ख़बीर (सर्वज्ञ) हस्ती की तरफ़ से उनकी तफ़्सील की गई कि तुम अल्लाह के सिवा किसी और की इबादत न करो। मैं तुम्हें उसकी तरफ़ से डराने वाला और ख़ुशख़बरी देने वाला हूं। और यह कि तुम अपने रब से माफ़ी चाहो और उसकी तरफ़ पलट आओ, वह तुम्हें एक मुद्दत तक बरतवाएगा अच्छा बरतवाना, और हर ज़्यादा के मुस्तहिक़ को अपनी तरफ़ से ज़्यादा अता करेगा। और अगर तुम फिर जाओ तो मैं तुम्हारे हक़ में एक बड़े दिन के अज़ाब से डरता हूं। तुम सबको अल्लाह की तरफ़ पलटना है और वह हर चीज़ पर क़ादिर है। देखो, ये लोग अपने सीनों को लपेटते हैं ताकि उससे छुप जाएं। ख़बरदार, जब वे कपड़ों से अपने आपको ढांपते हैं, अल्लाह जानता है जो कुछ वे छुपाते हैं और जो वे ज़ाहिर करते हैं। वह दिलों की बात तक जानने वाला है। और ज़मीन पर कोई चलने वाला ऐसा नहीं जिसकी रोज़ी अल्लाह की ज़िम्मे न हो। और वह जानता है जहां कोई ठहरता है और जहां वह सौंपा जाता है। सब कुछ एक खुली किताब में मौजूद है। और वही है जिसने आसमानों और ज़मीन को छः दिनों में पैदा किया। और उसका अआर्श (सिंहासन) पानी पर था, ताकि तुम्हें आज़माए कि कौन तुम में अच्छा काम करता है। और अगर तुम कहो कि मरने के बाद तुम लोग उठाए जाओगे तो मुंकिरीन कहते हैं यह तो खुला हुआ जादू है। और अगर हम कुछ मुदृदत तक उनकी सज़ा को रोक दें तो कहते हैं कि क्या चीज़ उसे रोके हुए है। आगाह, जिस दिन वह उन पर आ पड़ेगा तो वह उनसे फेरा न जा सकेगा और उन्हें घेर लेगी वह चीज़ जिसका वे मज़ाक़ उड़ा रहे थे। (1-8) और अगर हम इंसान को अपनी किसी रहमत से नवाज़ते हैं फिर उससे उसे महरूम कर देते हैं तो वह मायूस और नाशुक्रा बन जाता है। और अगर किसी तकलीफ़ के बाद जो उसे पहुंची थी, उसे हम नेमत से नवाज़ते हैं तो वह कहता है कि सारी मुसीबतें मुझसे दूर हो गईं, वह इतराने वाला और अकड़ने वाला बन जाता है। मगर जो लोग सब्र करने वाले और नेक अमल करने वाले हैं उनके लिए बख्िशिश (क्षमा) है और बड़ा अज् (प्रतिफल)। (9-11) 

कहीं ऐसा न हो कि तुम उस चीज़ का कुछ हिस्सा छोड़ दो जो तुम्हारी तरफ़ “वही! (प्रकाशना) की गई है। और तुम इस बात पर दिलतंग हो कि वे कहते हैं कि उस पर कोई ख़ज़ाना क्‍यों नहीं उतारा गया या उसके साथ कोई फ़रिश्ता क्यों नहीं आया। तुम तो सिर्फ़ डराने वाले हो और अल्लाह हर चीज़ का ज़िम्मेदार है। क्या वे कहते हैं कि पैग़म्बर ने इस किताब को गढ़ लिया है। कहो, तुम भी ऐसी ही दस सूरतें बना कर ले आओ और अल्लाह के सिवा जिसे बुला सको बुला लो, अगर तुम सच्चे हो। पस अगर वे तुम्हारा कहा पूरा न कर सकें तो जान लो कि यह अल्लाह के इल्म से उतरा है और यह कि उसके सिवा कोई माबूद (पूज्य) नहीं, फिर क्‍या तुम हुक्म मानते हो। जो लोग दुनिया की ज़िंदगी और उसकी ज़ीनत (वैभव) चाहते हैं, हम उनके आमाल का बदला दुनिया ही में दे देते हैं। और इसमें उनके साथ कोई कमी नहीं की जाती | यही लोग हैं जिनके लिए आख़िरत में आग के सिवा कुछ नहीं है। उन्होंने दुनिया में जो कुछ बनाया था वह बर्बाद हुआ और ख़राब गया जो उन्होंने कमाया था। (12-16)

भला एक शख्स जो अपने रब की तरफ़ से एक दलील पर है, इसके बाद अल्लाह की तरफ़ से उसके लिए एक गवाह भी आ गया, और इससे पहले मूसा की किताब रहनुमा और रहमत की हैसियत से मौजूद थी, ऐसे ही लोग उस पर ईमान लाते हैं और जमाअतों में से जो कोई इसका इंकार करे तो उसके वादे की जगह आग है। पस तुम इसके बारे में किसी शक में न पड़ो। यह हक़ है तुम्हारे रब की तरफ़ से मगर अक्सर लोग नहीं मानते। (17)

और उससे बढ़कर ज़ालिम कौन है जो अल्लाह पर झूठ गढ़े। ऐसे लोग अपने रब के सामने पेश होंगे और गवाही देने वाले कहेंगे कि ये वे लोग हैं जिन्होंने अपने रब पर झूठ गढ़ा था। सुनो, अल्लाह की लानत है ज़ालिमों के ऊपर। उन लोगों के ऊपर जो अल्लाह के रास्ते से लोगों को रोकते हैं और उसमें कजी (टेढ़) ढूंढते हैं। यही लोग आख़िरत के मुंकिर हैं। वे लोग ज़मीन में अल्लाह को बेबस करने वाले नहीं और न अल्लाह के सिवा उनका कोई मददगार है, उन पर दोहरा अज़ाब होगा। वे न सुन सकते थे और न देखते थे। ये वे लोग हैं जिन्होंने अपने आपको घाटे में डाला। और वे सब कुछ उनसे खोया गया जो उन्होंने गढ़ रखा था। इसमें शक नहीं कि यही लोग आख़िरत (परलोक) में सबसे ज़्यादा घाटे में रहेंगे। (18-22)

जो लोग ईमान लाए और जिन्होंने नेक अमल किए और अपने रब के सामने आजिज़ी (समर्पण) की वही लोग जन्नत वाले हैं। वे उसमें हमेशा रहेंगे। इन दोनों फ़रीक़ों (पक्षों) की मिसाल ऐसी है जैसे एक अंधा और बहरा हो और दूसरा देखने और सुनने वाला। क्या ये दोनों यकसां (समान) हो जाएंगे। कया तुम ग़ौर नहीं करते | और हमने नूह को उसकी क़ौम की तरफ़ भेजा कि मैं तुम्हें खुला हुआ डराने वाला हूं। यह कि तुम अल्लाह के सिवा किसी की इबादत न करो। मैं तुम पर एक दर्दनाक अज़ाब के दिन का अंदेशा रखता हूं। उसकी क़ौम के सरदारों ने कहा, जिन्होंने इंकार किया था कि हम तो तुम्हें बस अपने जैसा एक आदमी देखते हैं। और हम नहीं देखते कि कोई तुम्हारे ताबेअ हुआ हो सिवाए उनके जो हम में पस्त लोग हैं, बेसमझे बूझे | और हम नहीं देखते कि तुम्हें हमारे ऊपर कुछ बड़ाई हासिल हो, बल्कि हम तो तुम्हें झूठा ख्याल करते हैं। (23-27)

नूह ने कहा ऐ मेरी क़ौम, बताओ अगर मैं अपने रब की तरफ़ से एक रोशन दलील पर हूं और उसने मुझ पर अपने पास से रहमत भेजी है, मगर वह तुम्हें नज़र न आई तो क्‍या हम उसे तुम पर चिपका सकते हैं जबकि तुम उससे बेज़ार (खिन्‍न) हो। और ऐ मेरी क़ौम, मैं उस पर तुमसे कुछ माल नहीं मांगता। मेरा अज् (प्रतिफल) तो बस अल्लाह के ज़िम्मे है और मैं हरगिज़ उन्हें अपने से दूर करने वाला नहीं जो ईमान लाए हैं। उन लोगों को अपने रब से मिलना है। मगर मैं देखता हूं तुम लोग जहालत में मुब्तिला हो। और ऐ मेरी क़ौम, अगर मैं उन लोगों को धुत्कार दूं तो ख़ुदा के मुक़ाबले में कौन मेरी मदद करेगा। क्या तुम ग़ौर नहीं करते। और मैं तुमसे नहीं कहता कि मेरे पास अल्लाह के ख़ज़ाने हैं। और न मैं गैब की ख़बर रखता हूं। और न यह कहता हूं कि मैं फ़रिश्ता हूं। और मैं यह भी नहीं कह सकता कि जो लोग तुम्हारी निगाहों में हक़ीर (तुच्छ) हैं उन्हें अल्लाह कोई भलाई नहीं देगा। अल्लाह ख़ूब जानता है जो कुछ उनके दिलों में है। अगर मैं ऐसा कहूं तो मैं ही ज़ालिम हूंगा। (28-31)

उन्होंने कहा कि ऐ नूह तुमने हमसे झगड़ा किया और बहुत झगड़ा कर लिया। और वह चीज़ ले आओ जिसका तुम हमसे वादा करते रहे हो, अगर तुम सच्चे हो। नूह ने कहा उसे तो तुम्हारे ऊपर अल्लाह ही लाएगा अगर वह चाहेगा और तुम उसके क़ाबू से बाहर न जा सकोगे। और मेरी नसीहत तुम्हें फ़ायदा नहीं देगी अगर मैं तुम्हें नसीहत करना चाहूं जबकि अल्लाह यह चाहता हो कि वह तुम्हें गुमराह करे। वही तुम्हारा रब है और उसी की तरफ़ तुम्हें लौट कर जाना है। (32-34)  

क्या वे कहते हैं कि पैग़म्बर ने उसे गढ़ लिया है। कहो कि अगर मैंने इसको गढ़ा है तो मेरा जुर्म मेरे ऊपर है और जो जुर्म तुम कर रहे हो उससे मैं बरी हूं। और नूह की तरफ़ “वही” (प्रकाशना) की गई कि अब तुम्हारी क्रौम में से कोई ईमान नहीं लाएगा सिवा उसके जो ईमान ला चुका। पस तुम उन कामों पर ग़मगीन न हो जो वे कर रहे हैं। और हमारे रूबरू और हमारे हुक्म से तुम कश्ती बनाओ और ज़ालिमों के हक़ में मुझसे बात न करो, बेशक ये लोग ग़र्क़ होंगे। और नूह कश्ती बनाने लगा। और जब उसकी क़ौम का कोई सरदार उस पर गुज़रता तो वह उसकी हंसी उड़ाता, उन्होंने कहा अगर तुम हम पर हंसते हो तो हम भी तुम पर हंस रहे हैं। तुम जल्द जान लोगे कि वे कौन हैं जिन पर वह अज़ाब आता है जो उसे रुसवा कर दे और उस पर वह अज़ाब उतरता है जो दाइमी है। (35-39)

यहां तक कि जब हमारा हुक्म आ पहुंचा और तूफ़ान उबल पड़ा हमने नूह से कहा कि हर क्रिस्म के जानवरों का एक-एक जोड़ा कश्ती में रख लो और अपने घर वालों को भी, सिवा उन लोगों के जिनकी बाबत पहले कहा जा चुका है और सब ईमान वालों को भी। और थोड़े ही लोग थे जो नूह के साथ ईमान लाए थे। और नूह ने कहा कि कश्ती में सवार हो जाओ, अल्लाह के नाम से इसका चलना है और इसका ठहरना भी। बेशक मेरा रब बख़्शने वाला मेहरबान है। और कश्ती पहाड़ जैसी मौजों के दर्मियान उन्हें लेकर चलने लगी। और नूह ने अपने बेटे को पुकारा जो उससे अलग था। ऐ मेरे बेटे, हमारे साथ सवार हो जा और मुंकिरों के साथ मत रह। उसने कहा मैं किसी पहाड़ की पनाह ले लूंगा जो मुझे पानी से बचा लेगा। नूह ने कहा कि आज कोई अल्लाह के हुक्म से बचाने वाला नहीं मगर वह जिस पर अल्लाह रहम करें। और दोनों के दर्मियान मौज हायल (बाधित) हो गई और वह डूबने वालों में शामिल हो गया। और कहा गया कि ऐ ज़मीन, अपना पानी निगल ले और ऐ आसमान थम जा। और पानी सुखा दिया गया। और मामले का फ़ैसला हो गया और कश्ती जूदी पहाड़ पर ठहर गई और कह दिया गया कि दूर हो ज़ालिमों की क़ौम। (40-44)

और नूह ने अपने रब को पुकारा और कहा कि ऐ मेरे रब, मेरा बेटा मेरे घर वालों में है, और बेशक तेरा वादा सच्चा है। और तू सबसे बड़ा हाकिम है। ख़ुदा ने कहा ऐ नूह, वह तेरे घर वालों में नहीं। उसके काम ख़राब हैं। पस मुझसे उस चीज़ के बारे में सवाल न करो जिसका तुम्हें इल्म नहीं। मैं तुम्हें नसीहत करता हूं कि तुम जाहिलों में से न बनो। नूह ने कहा कि ऐ मेरे रब, मैं तेरी पनाह चाहता हूं कि तुझसे वह चीज़ मांगूं जिसका मुझे इल्म नहीं। और अगर तू मुझे माफ़ न करे और मुझ पर रहम न फ़रमाए तो मैं बर्बाद हो जाऊंगा। (45-47) 

कहा गया कि ऐ नूह, उतरो, हमारी तरफ़ से सलामती के साथ और बरकतों के साथ, तुम पर और उन गिरोहों पर जो तुम्हारे साथ हैं। और (उनसे ज़ुहूर में आने वाले) गिरोह कि हम उन्हें फ़ायदा देंगे, फिर उन्हें हमारी तरफ़ से एक दर्दनाक अज़ाब पकड़ लेगा। ये गैब की ख़बरें हैं जिनको हम तुम्हारी तरफ़ “वही” (प्रकाशना) कर रहे हैं। इससे पहले न तुम उन्हें जानते थे और न तुम्हारी क़ौम। पस सब्र करों बेशक आख़िरी अंजाम डरने वालों के लिए है। (48-49)

और आद की तरफ़ हमने उनके भाई हूद को भेजा। उसने कहा कि ऐ मेरी क़ौम, अल्लाह की इबादत करो | उसके सिवा तुम्हारा कोई माबूद नहीं। तुमने महज़ झूठ गढ़ रखे हैं। ऐ मेरी क़ौम, मैं इस पर तुमसे कोई अज्र (प्रतिफल) नहीं मांगता। मेरा अज़ तो उस पर है जिसने मुझे पैदा किया है। कया तुम नहीं समझते | और ऐ मेरी क़ौम, अपने रब से माफ़ी चाहो, फिर उसकी तरफ़ पलटो। वह तुम्हारे ऊपर ख़ूब बारिशें बरसाएगा। और तुम्हारी क्रुब्वत पर मज़ीद क्रुव्बत का इज़ाफ़ा करेगा। और तुम मुजरिम होकर रूगर्दानी (अवहेलना) न करो। उन्होंने कहा कि ऐ हूद, तुम हमारे पास कोई खुली निशानी लेकर नहीं आए हो, और हम तुम्हारे कहने से अपने माबूदों (पूज्यों) को छोड़ने वाले नहीं हैं। और हम हरगिज़ तुम्हें मानने वाले नहीं हैं। हम तो यही कहेंगे कि तुम्हारे ऊपर हमारे माबूदों में से किसी की मार पड़ गई है। हूद ने कहा, मैं अल्लाह को गवाह ठहराता हूं और तुम भी गवाह रहो कि मैं बरी हूं उनसे जिनको तुम शरीक करते हो उसके सिवा। पस तुम सब मिलकर मेरे ख़िलाफ़ तदबीर (युक्ति) करो, फिर मुझे मोहलत न दो। मैंने अल्लाह पर भरोसा किया जो मेरा रब है और तुम्हारा रब भी। कोई जानदार ऐसा नहीं जिसकी चोटी उसके हाथ में न हो। बेशक मेरा रब सीधी राह पर है। (50-56)

अगर तुम एराज़ (उपेक्षा) करते हो तो मैंने तुम्हें वह पैगाम पहुंचा दिया जिसे देकर मुझे तुम्हारी तरफ़ भेजा गया था। और मेरा रब तुम्हारी जगह तुम्हारे सिवा किसी और गिरोह को जानशीन [ख़लीफ़ा, उत्तराधिकारी) बनाएगा। तुम उसका कुछ न बिगाड़ सकोगे। बेशक मेरा रब हर चीज़ पर निगहबान है। और जब हमारा हुक्म आ पहुंचा, हमने अपनी रहमत से बचा दिया हृद को और उन लोगों को जो उसके साथ ईमान लाए थे। और हमने उन्हें एक सख्त अज़ाब से बचा दिया। और ये आद थे कि उन्होंने अपने रब की निशानियों का इंकार किया | और उसके रसूलों को ना माना और हर सरकश और मुख़ालिफ़ की बात की इत्तिबाअ (अनुसरण) की। और उनके पीछे लानत लगा दी गई इस दुनिया में और क्रियामत के दिन। सुन लो, आद ने अपने रब का इंकार किया। सुन लो, दूरी है आद के लिए जो हूद की क़ौम थी। (57-60) और समूद की तरफ़ हमने उनके भाई सालेह को भेजा। उसने कहा, ऐ मेरी क़ौम, अल्लाह की इबादत करो। उसके सिवा तुम्हारा कोई माबूद (पूज्य) नहीं। उसी ने तुम्हें ज़मीन से बनाया, और उसमें तुम्हें आबाद किया। पस माफ़ी चाहो, फिर उसकी तरफ़ रुजूअ करो। बेशक मेरा रब क़रीब है, क़ुबूल करने वाला है। उन्होंने कहा कि ऐ सालेह इससे पहले हमें तुमसे उम्मीद थी। क्‍या तुम हमें उनकी इबादत से रोकते हो जिनकी इबादत हमारे बाप दादा करते थे। और जिस चीज़ की तरफ़ तुम हमें बुलाते हो उसके बारे में हमें सख्त शुबह है और हम बड़े ख़लजान (दुविधा) में हैं। उसने कहा कि ऐ मेरी क़ौम, बताओ अगर मैं अपने रब की तरफ़ से एक वाज़ेह (सुस्पष्ट) दलील पर हूं और उसने मुझे अपने पास से रहमत दी है तो मुझे ख़ुदा से कौन बचाएगा अगर मैं उसकी नाफ़रमानी करूँ। पस तुम कुछ नहीं बढ़ाओगे मेरा सिवाए नुक्सान के। (61-63)

 और ऐ मेरी क़ौम, यह अल्लाह की ऊंटनी तुम्हारे लिए एक निशानी है। पस इसे छोड़ दो कि वह अल्लाह की ज़मीन में खाए। और इसे कोई तकलीफ़ न पहुंचाओ वर्ना बहुत जल्द तुम्हें अज़ाब पकड़ लेगा। फिर उन्होंने उसके पांव काट डाले। तब सालेह ने कहा कि तीन दिन और अपने घरों में फ़ायदा उठा लो। यह एक वादा है जो झूठा न होगा। फिर जब हमारा हुक्म आ गया तो हमने अपनी रहमत से सालेह को और उन लोगों को जो उसके साथ ईमान लाए थे बचा लिया और उस दिन की रुस्वाई से (महफ़ूज़ रखा)। बेशक तेरा रब ही क़वी (शक्तिमान) और ज़बरदस्त है। और जिन लोगों ने ज़ुल्म किया था उन्हें एक हौलनाक आवाज़ ने पकड़ लिया फिर सुबह को वे अपने घरों में औंधे पड़े रह गए। जैसे कि वे कभी उनमें बसे ही नहीं। सुनो, समूद ने अपने रब से कुफ़ किया। सुनो, फिटकार है समूद के लिए। और इब्राहीम के पास हमारे फ़रिश्ते ख़ुशख़बरी लेकर आए। कहा तुम पर सलामती हो। इब्राहीम ने कहा तुम पर भी सलामती हो। फिर देर न गुज़री कि इब्राहीम एक भुना हुआ बछड़ा ले आया। फिर जब देखा कि उनके हाथ खाने की तरफ़ नहीं बढ़ रहे हैं तो वह खटक गया और दिल में उनसे डरा। उन्होंने कहा कि डरो नहीं, हम लूत की क़ौम की तरफ़ भेजे गए हैं। और इब्राहीम की बीवी खड़ी थी, वह हंस पड़ी। पस हमने उसे इस्हाक़ की ख़ुशख़बरी दी और इस्हाक़ के आगे याकूब की। उसने कहा, ऐ ख़राबी, कया मैं बच्चा जनूंगी, हालांकि मैं बुढ़िया हूं और यह मेरा ख़ाविंद भी बूढ़ा है। यह तो एक अजीब बात है। फ़रिश्तों ने कहा, क्या तुम अल्लाह के हुक्म पर तअज्जुब करती हो। इब्राहीम के घर वालो, तुम पर अल्लाह की रहमतें और बरकतें हैं। बेशक अल्लाह निहायत क्राबिले तारीफ़ और बड़ी शान वाला है। (64-73)

फिर जब इब्राहीम का ख़ौफ़ दूर हुआ और उसे ख़ुशख़बरी मिली तो वह हमसे क़ौमे लूत के बारे में झगड़ने लगा। बेशक इब्राहीम बड़ा हलीम (उदार) और नर्म दिल था और रुजूअ करने वाला था। ऐ इब्राहीम उसे छोड़ो | तुम्हारे रब का हुक्म आ चुका है और उन पर एक ऐसा अज़ाब आने वाला है जो लौटाया नहीं जाता। और जब हमारे फ़रिश्ते लूत के पास पहुंचे तो वह घबराया और उनके आने से दिल तंग हुआ। उसने कहा आज का दिन बड़ा सख्त है। और उसकी क़ौम के लोग दौड़ते हुए उसके पास आए। और वे पहले से बुरे काम कर रहे थे। लूत ने कहा ऐ मेरी क़ौम, ये मेरी बेटियां हैं, वे तुम्हारे लिए ज़्यादा पाकीज़ा हैं। पस तुम अल्लाह से डरो और मुझे मेरे मेहमानों के सामने रुसवा न करो। क्या तुम में कोई भल्ला आदमी नहीं है। उन्होंने कहा, तुम जानते हो कि हमें तुम्हारी बेटियों से कुछ ग़रज़ नहीं, और तुम जानते हो कि हम क्या चाहते हैं। (74-79)

लूत ने कहा, काश मेरे पास तुमसे मुक़ाबले की क्रुव्वत होती या मैं जा बैठता किसी मुस्तहकम (सुदृढ़) पनाह में | फ़रिश्तों ने कहा कि ऐ लूत, हम तेरे रब के भेजे हुए हैं। वे हरगिज़ तुम तक न पहुंच सकेंगे। पस तुम अपने लोगों को लेकर कुछ रात रहे निकल जाओ। और तुम में से कोई मुड़कर न देखे। मगर तुम्हारी औरत कि उस पर वही कुछ गुज़रने वाला है जो उन लोगों पर गुज़रेगा | उनके लिए सुबह का वक़्त मुक़र्रर है, क्या सुबह क़रीब नहीं। फिर जब हमारा हुक्म आया तो हमने उस बस्ती को तलपट कर दिया और उस पर पत्थर बरसाए कंकर के, तह-ब-तह, तुम्हारे रब के पास से निशान लगाए हुए। और वह बस्ती उन ज़ालिमों से कुछ दूर नहीं। और मदयन की तरफ़ उनके भाई शुऐब को भेजा। उसने कहा ऐ मेरी क्रौम, अल्लाह की इबादत करो, उसके सिवा तुम्हारा कोई माबूद (पूज्य) नहीं। और नाप और तोल में कमी न करो। मैं तुम्हें अच्छे हाल में देख रहा हूं, और मैं तुम पर एक घेर लेने वाले दिन के अज़ाब से डरता हूं। और ऐ मेरी क्रौम, नाप और तोल को पूरा करो इंसाफ़ के साथ | और लोगों को उनकी चीज़ें घटाकर न दो। और ज़मीन पर फ़साद न मचाओ। जो अल्लाह का दिया बच रहे वह तुम्हारे लिए बेहतर है अगर तुम मोमिन हो। और मैं तुम्हारे ऊपर निगहबान (रखवाला) नहीं हूं। (80-86)

उन्होंने कहा कि ऐ शुऐब, क्या तुम्हारी नमाज़ तुम्हें यह सिखाती है कि हम उन चीज़ों को छोड़ दें जिनकी इबादत हमारे बाप दादा करते थे। या अपने माल में अपनी मर्ज़ी के मुताबिक़ तसर्रुफ़ (उपभोग) करना छोड़ दें। बस तुम ही तो एक दानिश्मंद (प्रबुद्धे और नेक चलन आदमी हो। शुऐब ने कहा कि ऐ मेरी क़ौम, बताओ, अगर मैं अपने रब की तरफ़ से एक वाज़ेह दलील पर हूं और उसने अपनी जानिब से मुझे अच्छा रिज़्क़ भी दिया। और मैं नहीं चाहता कि मैं ख़ुद वही काम करूं जिससे मैं तुम्हें रोक रहा हूं। मैं तो सिर्फ़ इस्लाह (सुधार) चाहता हूं, जहां तक हो सके। और मुझे तौफ़ीक़ तो अल्लाह ही से मिलेगी। उसी पर मैंने भरोसा किया है। और उसी की तरफ़ मैं रुजूअ करता हूं। और ऐ मेरी क़ौम, ऐसा न हो कि मैरा विरोध करके तुम पर वह आफ़त पड़े जो क़ौमे नूह या क़ौमे हूद या क़ौमे सालेह पर आई थी, और लूत की क़ौम तो तुमसे दूर भी नहीं। और अपने रब से माफ़ी मांगो फिर उसकी तरफ़ पलट आओ। बेशक मेरा रब मेहरबान और मुहब्बत वाला है। (87-90)

उन्होंने कहा कि ऐ शुऐब, जो तुम कहते हो उसका बहुत सा हिस्सा हमारी समझ में नहीं आता। और हम तो देखते हैं कि तू हम में कमज़ोर है। और अगर तेरी बिरादरी न होती तो हम तुम्हें संगसार (पत्थरों से मार डालना) कर देते। और तुम हम पर कुछ भारी नहीं। शुऐब ने कहा कि ऐ मेरी क़ौम, क्या मेरी बिरादरी तुम पर अल्लाह से ज़्यादा भारी है। और अल्लाह को तुमने पसेपुश्त (पीछे) डाल दिया। बेशक मेरे रब के क़ाबू में है जो कुछ तुम करते हो। और ऐ मेरी क्ौम, तुम अपने तरीक़े पर काम किए जाओ और मैं अपने तरीक़े पर करता रहूंगा। जल्द ही तुम्हें मालूम हो जाएगा कि किसके ऊपर रुसवा करने वाला अज़ाब आता है और कौन झूठा है। और इंतिज़ार करो, मैं भी तुम्हारे साथ इंतिज़ार करने वालों में हूं। और जब हमारा हुक्म आया हमने शुऐब को और जो उसके साथ ईमान लाए थे अपनी रहमत से बचा लिया। और जिन लोगों ने ज़ुल्म किया था उन्हें कड़क ने पकड़ लिया। पस वे अपने घरों में औंधे पड़े रह गए। गोया कि कभी उनमें बसे ही न थे। सुनो, फिटकार है मदयन को जैसे फिटकार हुई थी समूद को। (91-95) 

और हमने मूसा को अपनी निशानियों और वाज़ेह सनद (स्पष्ट प्रमाण) के साथ भेजा, फ़िरऔन और उसके सरदारों की तरफ़। फिर वे फ़िरऔन के हुक्म पर चले हालांकि फ़िरऔन का हुक्म रास्ती (भलाई) पर न था। क़ियामत के दिन वह अपनी क़ौम के आगे होगा और उन्हें आग पर पहुंचाएगा। और कैसा बुरा घाट है जिस पर वे पहुंचेंगें। और इस दुनिया में उनके पीछे लानत लगा दी गई और क़ियामत के दिन भी। कैसा बुरा इनाम है जो उन्हें मिला। ये बस्तियों के कुछ हालात हैं जो हम तुम्हें सुना रहे हैं। इनमें से कुछ अब तक क़ायम हैं और कुछ मिट गईं। और हमने उन पर ज़ुल्म नहीं किया। बल्कि उन्होंने ख़ुद अपने ऊपर ज़ुल्म किया। फिर जब तेरे रब का हुक्म आ गया तो उनके माबूद (पूज्य) उनके कुछ काम न आए जिनको वे अल्लाह के सिवा पुकारते थे। और उन्होंने उनके हक़ में बर्बादी के सिवा और कुछ नहीं बढ़ाया। (96-101)

और तेरे रब की पकड़ ऐसी ही है जबकि वह बस्तियों को उनके ज़ुल्म पर पकड़ता है। बेशक उसकी पकड़ बड़ी दर्दनाक और सख्त है। इसमें उन लोगों के लिए निशानी है जो आख़िरत के अज़ाब से डरें। वह एक ऐसा दिन है जिसमें सब लोग जमा होंगे। और वह हाज़िरी का दिन होगा। और हम उसे एक मुद्ृदत के लिए टाल रहे हैं जो मुक़र्रर है। जब वह दिन आएगा तो कोई जान उसकी इजाज़त के बगैर कलाम न कर सकेगी। पस उनमें कुछ बदबख़्त (अभागे) होंगे। और कुछ नेकबख्त (भाग्यशाली)। (102-105)

पस जो लोग बदबख्त हैं वे आग में होंगे। उन्हें वहां चीख़ना है और दहाड़ना। वे उसमें रहेंगे जब तक आसमान और ज़मीन क़ायम हैं, मगर जो तेरा रब चाहे। बेशक तेरा रब कर डालता है जो चाहता है। और जो लोग नेकबख्त हैं तो वे जन्नत में होंगे, वे उसमें रहेंगे जब तक आसमान और ज़मीन क़ायम हैं, मगर जो तेरा रब चाहे बसख्शिश है बेइंतिहा। पस तू उन चीज़ों से शक में न रह जिनकी ये लोग इबादत कर रहे हैं। ये तो बस उसी तरह इबादत कर रहे हैं जिस तरह उनसे पहले उनके बाप दादा इबादत कर रहे थे। और हम उनका हिस्सा उन्हें पूरा पूरा देंगे बगैर किसी कमी के। और हमने मूसा को किताब दी। फिर उसमें फूट पड़ गई। और अगर तेरे रब की तरफ़ से पहले ही एक बात न आ चुकी होती तो उनके दर्मियान फ़ैसला कर दिया जाता। और उन्हें इसमें शुबह है कि वह मुतमइन (संतुष्ट) नहीं होने देता और यक्रीनन तेरा रब हर एक को उसके आमाल का पूरा बदला देगा। वह बाख़बर है उससे जो वे कर रहे हैं। (106-111)

पस तुम जमे रहो जैसा कि तुम्हें हुक्म हुआ है और वे भी जिन्होंने तुम्हारे साथ तौबा की है और हद से न बढ़ो बेशक वह देख रहा है जो तुम करते हो। और उनकी तरफ़ न झुको जिन्होंने ज़ुल्म किया, वर्ना तुम्हें आग पकड़ लेगी और अल्लाह के सिवा तुम्हारा कोई मददगार नहीं, फिर तुम कहीं मदद न पाओगे और नमाज़ क़ायम करो दिन के दोनों हिस्सों में और रात के कुछ हिस्से में। बेशक नेकियां दूर करती हैं बुराइयों को। यह याददिहानी (अनुस्मरण) है याददिहानी हासिल करने वालों के लिए और सब्र करो अल्लाह नेकी करने वालों का अज्र ज़ाए (नष्ट) नहीं करता। पस क्‍यों न ऐसा हुआ कि तुमसे पहले की क़ौमों में ऐसे अहले खैर होते जो लोगों को ज़मीन में फ़साद करने से रोकते। ऐसे थोड़े लोग निकले जिनको हमने उनमें से बचा लिया। और ज़ालिम लोग तो उसी ऐ में पड़े रहे जो उन्हें मिला था और वे मुजरिम थे। और तेरा रब ऐसा नहीं कि वह बस्तियों को नाहक़ तबाह कर दे हालांकि उसके बाशिंदे इस्लाह (सुधार) करने वाले हों। (112-117)

और अगर तेरा रब चाहता तो लोगों को एक ही उम्मत बना देता मगर वे हमेशा इख़्तेलाफ़ (मत-भिन्‍नता) में रहेंगे सिवा उनके जिन पर तेरा रब रहम फ़रमाए। और उसने इसीलिए उन्हें पैदा किया है। और तेरे रब की बात पूरी हुई कि मैं जहन्नम को जिन्‍नों और इंसानों से इकट्ठे भर दूंगा। और हम रसूलों के अहवाल से सब चीज़ तुम्हें सुना रहे हैं। जिससे तुम्हारे दिल को मज़बूत करें और इसमें तुम्हारे पास हक़ आया है और मोमिनों के लिए नसीहत और याददिहानी (अनुस्मरण)। और जो लोग ईमान नहीं लाए उनसे कहो कि तुम अपने तरीक़े पर करते रहो और हम अपने तरीक़े पर कर रहे हैं। और इंतिज़ार करो हम भी मुंतज़िर हैं। और आसमानों और ज़मीन की छुपी बात अल्लाह के पास है और वही तमाम मामलों का मरजअ (उन्मुख-केन्द्र) है। पस तुम उसकी इबादत करो और उसी पर भरोसा रखो और तुम्हारा रब उससे बेख़बर नहीं जो तुम कर रहे हो। (118-123)

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी पथ
error: यह सामग्री सुरक्षित है !!