धर्म

राधा कृपा कटाक्ष स्तोत्र – Radha Kripa Kataksh Stotra

राधा कृपा कटाक्ष स्तोत्र बहुत ही मधुर स्तोत्र है जिसका पाठ हृदय को पवित्र कर अन्तस् में भक्ति को स्वयमेव उत्पन्न करने वाला है। मथुरा-वृंदावन के मंदिरों में तो प्रतिदिन राधा कृपा कटाक्ष स्तोत्र (Radha Kripa Kataksh Stotra) का विधिवत पाठ किया जाता है। जो भक्त नित्य ही सायास इस सुमधुर राधा कृपा कटाक्ष स्तोत्र को पढ़ता है या इसका गायन करता है, उसे सहज ही राधारानी और बांकेबिहारी की कृपा प्राप्त हो जाती है। जगज्जननी राधा मैया तो अपने भक्तों पर कृपा-वृष्टि करने के लिए सदैव तैयार हैं, आवश्यकता है तो बस श्री राधा जी का शुद्ध अन्तःकरण से स्मरण करने की। कहते हैं कि राधा कृपा कटाक्ष स्तोत्र पढ़ने से तीनों लोकों का शोक दूर हो जाता है और चित्त आह्लादित होने लगता है। पढ़ें राधा कृपा कटाक्ष स्तोत्र–

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राधा कृपा कटाक्ष स्तोत्र पाठ

मुनीन्द्र-वृन्द-वन्दिते त्रिलोक-शोक-हारिणि
प्रसन्न-वक्त्र-पङ्कजे निकुञ्ज-भू-विलासिनि।
व्रजेन्द्र-भानु-नन्दिनि व्रजेन्द्र-सूनु-संगते
कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष-भाजनम् ॥१॥

अशोक-वृक्ष-वल्लरी वितान-मण्डप-स्थिते
प्रवालबाल-पल्लव प्रभारुणांघ्रि-कोमले।
वराभयस्फुरत्करे प्रभूतसम्पदालये
कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष-भाजनम् ॥२॥

अनङ्ग-रण्ग मङ्गल-प्रसङ्ग-भङ्गुर-भ्रुवां
सविभ्रमं ससम्भ्रमं दृगन्त-बाणपातनैः।
निरन्तरं वशीकृतप्रतीतनन्दनन्दने
कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष-भाजनम् ॥३॥

तडित्-सुवर्ण-चम्पक -प्रदीप्त-गौर-विग्रहे
मुख-प्रभा-परास्त-कोटि-शारदेन्दुमण्डले।
विचित्र-चित्र सञ्चरच्चकोर-शाव-लोचने
कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष-भाजनम् ॥४॥

मदोन्मदाति-यौवने प्रमोद-मान-मण्डिते
प्रियानुराग-रञ्जिते कला-विलास – पण्डिते।
अनन्यधन्य-कुञ्जराज्य-कामकेलि-कोविदे
कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष-भाजनम् ॥५॥

अशेष-हावभाव-धीरहीरहार-भूषिते
प्रभूतशातकुम्भ-कुम्भकुम्भि-कुम्भसुस्तनि।
प्रशस्तमन्द-हास्यचूर्ण पूर्णसौख्य -सागरे
कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष-भाजनम् ॥६॥

मृणाल-वाल-वल्लरी तरङ्ग-रङ्ग-दोर्लते
लताग्र-लास्य-लोल-नील-लोचनावलोकने।
ललल्लुलन्मिलन्मनोज्ञ-मुग्ध-मोहिनाश्रिते
कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष-भाजनम् ॥७॥

सुवर्णमलिकाञ्चित -त्रिरेख-कम्बु-कण्ठगे
त्रिसूत्र-मङ्गली-गुण-त्रिरत्न-दीप्ति-दीधिते।
सलोल-नीलकुन्तल-प्रसून-गुच्छ-गुम्फिते
कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष-भाजनम् ॥८॥

नितम्ब-बिम्ब-लम्बमान-पुष्पमेखलागुणे
प्रशस्तरत्न-किङ्किणी-कलाप-मध्य मञ्जुले।
करीन्द्र-शुण्डदण्डिका-वरोहसौभगोरुके
कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष-भाजनम् ॥९॥

अनेक-मन्त्रनाद-मञ्जु नूपुरारव-स्खलत्
समाज-राजहंस-वंश-निक्वणाति-गौरवे।
विलोलहेम-वल्लरी-विडम्बिचारु-चङ्क्रमे
कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष-भाजनम् ॥१०॥

अनन्त-कोटि-विष्णुलोक-नम्र-पद्मजार्चिते
हिमाद्रिजा-पुलोमजा-विरिञ्चजा-वरप्रदे।
अपार-सिद्धि-ऋद्धि-दिग्ध-सत्पदाङ्गुली-नखे

कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष-भाजनम् ॥११॥

मखेश्वरि क्रियेश्वरि स्वधेश्वरि सुरेश्वरि
त्रिवेद-भारतीश्वरि प्रमाण-शासनेश्वरि।
रमेश्वरि क्षमेश्वरि प्रमोद-काननेश्वरि
व्रजेश्वरि व्रजाधिपे श्रीराधिके नमोस्तुते ॥१२॥

इती ममद्भुतं-स्तवं निशम्य भानुनन्दिनी
करोतु सन्ततं जनं कृपाकटाक्ष-भाजनम्।
भवेत्तदैव सञ्चित त्रिरूप-कर्म नाशनं

लभेत्तदा व्रजेन्द्र-सूनु-मण्डल-प्रवेशनम् ॥१३॥

राकायां च सिताष्टम्यां दशम्यां च विशुद्धधीः।
एकादश्यां त्रयोदश्यां यः पठेत्साधकः सुधीः ॥१४॥

यं यं कामयते कामं तं तमाप्नोति साधकः।
राधाकृपाकटाक्षेण भक्तिःस्यात् प्रेमलक्षणा ॥१५॥

ऊरुदघ्ने नाभिदघ्ने हृद्दघ्ने कण्ठदघ्नके।
राधाकुण्डजले स्थिता यः पठेत् साधकः शतम् ॥१६॥

तस्य सर्वार्थ सिद्धिः स्याद् वाक्सामर्थ्यं तथा लभेत्।
ऐश्वर्यं च लभेत् साक्षाद्दृशा पश्यति राधिकाम् ॥१७॥

तेन स तत्क्षणादेव तुष्टा दत्ते महावरम्।
येन पश्यति नेत्राभ्यां तत् प्रियं श्यामसुन्दरम् ॥१८॥

नित्यलीला-प्रवेशं च ददाति श्री-व्रजाधिपः।
अतः परतरं प्रार्थ्यं वैष्णवस्य न विद्यते ॥१९॥

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॥ इति श्रीमदूर्ध्वाम्नाये श्रीराधिकायाः कृपाकटाक्षस्तोत्रं सम्पूर्णम ॥

विदेशों में बसे कुछ हिंदू स्वजनों के आग्रह पर राधा कृपा कटाक्ष स्तोत्र (Radha Kripa Kataksh Stotra) को हम रोमन में भी प्रस्तुत कर रहे हैं। हमें आशा है कि वे इससे अवश्य लाभान्वित होंगे। पढ़ें राधा कृपा कटाक्ष स्तोत्र रोमन में–

Read Radha Kripa Kataksh Stotra

munīndra-vṛnda-vandite triloka-śoka-hāriṇi
prasanna-vaktra-paṅkaje nikuñja-bhū-vilāsini।
vrajendra-bhānu-nandini vrajendra-sūnu-saṃgate
kadā kariṣyasīha māṃ kṛpākaṭākṣa-bhājanam ॥1॥

aśoka-vṛkṣa-vallarī vitāna-maṇḍapa-sthite
pravālabāla-pallava prabhāruṇāṃghri-komale।
varābhayasphuratkare prabhūtasampadālaye
kadā kariṣyasīha māṃ kṛpākaṭākṣa-bhājanam ॥2॥

anaṅga-raṇga maṅgala-prasaṅga-bhaṅgura-bhruvāṃ
savibhramaṃ sasambhramaṃ dṛganta-bāṇapātanaiḥ।
nirantaraṃ vaśīkṛtapratītanandanandane
kadā kariṣyasīha māṃ kṛpākaṭākṣa-bhājanam ॥3॥

taḍit-suvarṇa-campaka -pradīpta-gaura-vigrahe
mukha-prabhā-parāsta-koṭi-śāradendumaṇḍale।
vicitra-citra sañcaraccakora-śāva-locane
kadā kariṣyasīha māṃ kṛpākaṭākṣa-bhājanam ॥4॥

madonmadāti-yauvane pramoda-māna-maṇḍite
priyānurāga-rañjite kalā-vilāsa – paṇḍite।
ananyadhanya-kuñjarājya-kāmakeli-kovide
kadā kariṣyasīha māṃ kṛpākaṭākṣa-bhājanam ॥5॥

aśeṣa-hāvabhāva-dhīrahīrahāra-bhūṣite
prabhūtaśātakumbha-kumbhakumbhi-kumbhasustani।
praśastamanda-hāsyacūrṇa pūrṇasaukhya -sāgare
kadā kariṣyasīha māṃ kṛpākaṭākṣa-bhājanam ॥6॥

mṛṇāla-vāla-vallarī taraṅga-raṅga-dorlate
latāgra-lāsya-lola-nīla-locanāvalokane।
lalallulanmilanmanojña-mugdha-mohināśrite
kadā kariṣyasīha māṃ kṛpākaṭākṣa-bhājanam ॥7॥

suvarṇamalikāñcita -trirekha-kambu-kaṇṭhage
trisūtra-maṅgalī-guṇa-triratna-dīpti-dīdhite।
salola-nīlakuntala-prasūna-guccha-gumphite
kadā kariṣyasīha māṃ kṛpākaṭākṣa-bhājanam ॥8॥

nitamba-bimba-lambamāna-puṣpamekhalāguṇe
praśastaratna-kiṅkiṇī-kalāpa-madhya mañjule।
karīndra-śuṇḍadaṇḍikā-varohasaubhagoruke
kadā kariṣyasīha māṃ kṛpākaṭākṣa-bhājanam ॥9॥

aneka-mantranāda-mañju nūpurārava-skhalat
samāja-rājahaṃsa-vaṃśa-nikvaṇāti-gaurave।
vilolahema-vallarī-viḍambicāru-caṅkrame
kadā kariṣyasīha māṃ kṛpākaṭākṣa-bhājanam ॥10॥

ananta-koṭi-viṣṇuloka-namra-padmajārcite
himādrijā-pulomajā-viriñcajā-varaprade।
apāra-siddhi-ṛddhi-digdha-satpadāṅgulī-nakhe
kadā kariṣyasīha māṃ kṛpākaṭākṣa-bhājanam ॥11॥

makheśvari kriyeśvari svadheśvari sureśvari
triveda-bhāratīśvari pramāṇa-śāsaneśvari।
rameśvari kṣameśvari pramoda-kānaneśvari
vrajeśvari vrajādhipe śrīrādhike namostute ॥12॥

itī mamadbhutaṃ-stavaṃ niśamya bhānunandinī
karotu santataṃ janaṃ kṛpākaṭākṣa-bhājanam।
bhavettadaiva sañcita trirūpa-karma nāśanaṃ
labhettadā vrajendra-sūnu-maṇḍala-praveśanam ॥13॥

rākāyāṃ ca sitāṣṭamyāṃ daśamyāṃ ca viśuddhadhīḥ।
ekādaśyāṃ trayodaśyāṃ yaḥ paṭhetsādhakaḥ sudhīḥ ॥14॥

yaṃ yaṃ kāmayate kāmaṃ taṃ tamāpnoti sādhakaḥ।
rādhākṛpākaṭākṣeṇa bhaktiḥsyāt premalakṣaṇā ॥15॥

ūrudaghne nābhidaghne hṛddaghne kaṇṭhadaghnake।
rādhākuṇḍajale sthitā yaḥ paṭhet sādhakaḥ śatam ॥16॥

tasya sarvārtha siddhiḥ syād vāksāmarthyaṃ tathā labhet।
aiśvaryaṃ ca labhet sākṣāddṛśā paśyati rādhikām ॥17॥

tena sa tatkṣaṇādeva tuṣṭā datte mahāvaram।
yena paśyati netrābhyāṃ tat priyaṃ śyāmasundaram ॥18॥

nityalīlā-praveśaṃ ca dadāti śrī-vrajādhipaḥ।
ataḥ parataraṃ prārthyaṃ vaiṣṇavasya na vidyate ॥19॥

॥ iti śrīmadūrdhvāmnāye śrīrādhikāyāḥ kṛpākaṭākṣastotraṃ sampūrṇama ॥

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सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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