सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ हिंदी में
सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ हिंदी में (Siddha Kunjika Stotram in Hindi) करें हिंदीपथ पर। यह बहुत ही चमत्कारी स्त्रोत है और इसकी जितनी महिमा गायी जाए वह कम है। इसका पाथ प्रातःकाल करने से सभी विघ्न-बाधाओं का नाश हो जाता है। जीवन में चाहे किसी भी प्रकार की समस्या क्यों न आ रही हो, इसकी शक्ति से उसका समाधान होना निश्चित है। यद्यपि सिद्ध कुंजिका स्तोत्र के गुप्त रहस्य को बहुत कम लोग ही समझ पाते हैं, क्योंकि इसकी अकल्पनीय शक्ति स्त्रोत के बीज मंत्रों में छुपी हुई है। इसे पढ़ने से ऐसी ऊर्जा का निर्माण होता है जिसके समक्ष सभी बाधाएँ धराशायी हो जाती हैं। नियमित पढ़ने से सिद्ध कुंजिका स्तोत्र के फायदे कुछ ही दिनों में आपके जीवन में दिखाई देने लगेंगे। भगवती पार्वती के आशीर्वाद से जीवन में आप अजेय होते चले जाएंगे और हर मोर्चे पर आपको सफलता प्राप्त होने लगेगी। ऐसी अपरिमित शक्ति का भाण्डार हैं ये श्लोक व मंत्र।
सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ हिंदी में
भगवान शिव उवाच–
शृणु देवि प्रवक्ष्यामि कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम्।
येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजापः शुभो भवेत् ॥१॥
हे देवी, सुनो। मैं उत्तम कुंजिका स्तोत्र के ज्ञान का उपदेश दूंगा, जिसके प्रभाव से देवी चण्डी का जप (पाठ) सफल होता है।
न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम्।
न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम् ॥२॥
इसके लिए कवच, अर्गला, कीलक, रहस्य, सूक्त, ध्यान, न्यास तथा यहाँ तक कि अर्चन की भी आवश्यकता नहीं है।
कुञ्जिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत्।
अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम् ॥३॥
केवल कुंजिका स्तोत्र के पाठ मात्र से दुर्गापाठ का फल मिल जाता है। यह सिद्ध कुंजिका स्तोत्र बहुत गुप्त और देवताओं के लिए भी दुर्लभ है।
गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वति
मारणं मोहनं वश्यं स्तंभोच्चाटनादिकम।
पाठमात्रेण संसिध्येत् कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम् ॥४॥
हे देवी पार्वती! इसे स्वयोनि (अपने गुप्तांग) की तरह सायास गुप्त रखना चाहिए। यह उत्तम कुंजिका स्तोत्र केवल पाठ के द्वारा मारण, मोहन, वशीकरण, स्तंभन व उच्चाटन आदि (आभिचारिक) उद्देश्यों को सिद्ध करता है ॥4॥
॥ अथ मंत्रः ॥
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ॐ ग्लौं हुं क्लीं जूं सः
ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल
ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा॥
मन्त्र – ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ॐ ग्लौं हुं क्लीं जूं सः ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा॥
॥ इति मंत्रः ॥
नमस्ते रुद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि।|
नमः कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिनि ॥१॥
हे रुद्र के स्वरूप वाली देवी! हे मधु दैत्य को मारने वाली! कैटभ-विनाशिनी को नमस्कार है। महिषासुर को मारने वाली हे देवी! तुम्हें प्रणाम है।
नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिनि।
जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरुष्व मे ॥२॥
शुम्भ दानव का वध करने वाली और निशुम्भ का नाश करने वाली, हे देवी! तुम्हें नमस्कार है। हे महादेवि! मेरे इस जप को जाग्रत व सिद्ध करो।
ऐंकारी सृष्टिरुपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका।
क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोस्तु ते ॥३॥
“ऐं” के रूप में सृष्टि-स्वरूपिणी, “ह्रीं” के रूप में जगत् का पालन करने वाली और “क्लीं” के रूप में कामरूपिणी व समस्त ब्रह्माण्ड की बीज-रूपिणी हे देवी! तुम्हें नमस्कार है।
चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी।
विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मन्त्ररूपिणि ॥४॥
चामुण्डा के रूप में चण्ड का नाश करने वाली और “यै” के रूप में तुम वर देने वाली हो। “विच्चे” रूप में तुम सदैव ही निर्भयता देती हो। इस तरह तुम ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे – इस मन्त्र का स्वरूप हो।
धां धीं धूं धूर्जटेः पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी।
क्रां क्रीं क्रूं कालिका देवि शां शीं शूं मे शुभं कुरु ॥५॥
“धां धीं धूं” के रूप में धूर्जटी अर्थात शिव की तुम पत्नी हो। “वां वीं वू” रूप में तुम वाणी की अधिष्ठात्री हो। “क्रां क्रीं क्रूं” रूप में कालिका देवी हो। हे देवी! “शां शी शूं” के रूप में मेरा कल्याण करो।
हुं हुं हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी।
भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः ॥६॥
हुं हुं हुंकार स्वरूपिणी, जं जं जं जम्भनादिनी, भ्रां भ्रीं भ्रूं के रूप में हे कल्याणकारिणी भैरवी भवानी! तुम्हें पुनः-पुनः प्रणाम है।
अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं।
धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा ॥७॥
अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं धिजाग्रं धिजाग्रं इन सबको तोड़ो और दीप्त करो, करो स्वाहा।
पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा।
सां सीं सूं सप्तशती देव्या मंत्रसिद्धिं कुरुष्व मे ॥८॥
“पां पी पूं” रूप में तुम पार्वती पूर्णा हो। “खां खीं खूं” के रूप में तुम खेचरी अर्थात् आकाश-चारिणी या हठयोग की खेचरी मुद्रा हो। “सां सीं सूं” रूपी सप्तशती देवी के मन्त्र को मेरे लिये सिद्ध करो।
इदं तु कुंजिकास्तोत्रं मंत्रजागर्तिहेतवे
अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति।
यस्तु कुंजिकया देवि हीनां सप्तशतीं पठेत्
न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा ॥
यह कुंजिका स्तोत्र मन्त्र को जगाने के लिये है। इसे भक्ति हीन पुरुषको नहीं देना चाहिये। हे पार्वती! इसे गुप्त रखो। हे देवी! जो बिना सिद्ध कुंजिका स्तोत्र के सप्तशती का पाठ करता है उस व्यक्ति को उसी तरह सिद्धि नहीं मिलती जैसे वन में रोना निरर्थक होता है।
इति श्रीरुद्रयामले गौरीतन्त्रे शिवपार्वतीसंवादे कुंजिकास्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
इस प्रकार श्रीरुद्रयामलके गौरीतन्त्र में शिव-पार्वती संवाद में सिद्ध कुंजिका स्तोत्र सम्पूर्ण हुआ
विदेशों में बसे कुछ हिंदू स्वजनों के आग्रह पर सिद्ध कुंजिका स्तोत्र (Siddha Kunjika Stotram) को हम रोमन में भी प्रस्तुत कर रहे हैं। हमें आशा है कि वे इससे अवश्य लाभान्वित होंगे। पढ़ें सिद्ध कुंजिका स्तोत्र रोमन में–
bhagavāna śiva uvāca–
śṛṇu devi pravakṣyāmi kuṃjikāstotramuttamam।
yena mantraprabhāveṇa caṇḍījāpaḥ śubho bhavet ॥1॥
na kavacaṃ nārgalāstotraṃ kīlakaṃ na rahasyakam।
na sūktaṃ nāpi dhyānaṃ ca na nyāso na ca vārcanam ॥2॥
kuñjikāpāṭhamātreṇa durgāpāṭhaphalaṃ labhet।
ati guhyataraṃ devi devānāmapi durlabham ॥3॥
gopanīyaṃ prayatnena svayoniriva pārvati
māraṇaṃ mohanaṃ vaśyaṃ staṃbhoccāṭanādikama।
pāṭhamātreṇa saṃsidhyet kuṃjikāstotramuttamam ॥4॥
॥ atha maṃtraḥ ॥
oṃ aiṃ hrīṃ klīṃ cāmuṇḍāyai vicce। oṃ glauṃ huṃ klīṃ jūṃ saḥ
jvālaya jvālaya jvala jvala prajvala prajvala
aiṃ hrīṃ klīṃ cāmuṇḍāyai vicce jvala haṃ saṃ laṃ kṣaṃ phaṭ svāhā॥
॥ iti maṃtraḥ ॥
namaste rudrarūpiṇyai namaste madhumardini।|
namaḥ kaiṭabhahāriṇyai namaste mahiṣārdini ॥1॥
namaste śumbhahantryai ca niśumbhāsuraghātini।
jāgrataṃ hi mahādevi japaṃ siddhaṃ kuruṣva me ॥2॥
aiṃkārī sṛṣṭirupāyai hrīṃkārī pratipālikā।
klīṃkārī kāmarūpiṇyai bījarūpe namostu te ॥3॥
cāmuṇḍā caṇḍaghātī ca yaikārī varadāyinī।
vicce cābhayadā nityaṃ namaste mantrarūpiṇi ॥4॥
dhāṃ dhīṃ dhūṃ dhūrjaṭeḥ patnī vāṃ vīṃ vūṃ vāgadhīśvarī।
krāṃ krīṃ krūṃ kālikā devi śāṃ śīṃ śūṃ me śubhaṃ kuru ॥5॥
huṃ huṃ huṃkārarūpiṇyai jaṃ jaṃ jaṃ jambhanādinī।
bhrāṃ bhrīṃ bhrūṃ bhairavī bhadre bhavānyai te namo namaḥ ॥6॥
aṃ kaṃ caṃ ṭaṃ taṃ paṃ yaṃ śaṃ vīṃ duṃ aiṃ vīṃ haṃ kṣaṃ।
dhijāgraṃ dhijāgraṃ troṭaya troṭaya dīptaṃ kuru kuru svāhā ॥7॥
pāṃ pīṃ pūṃ pārvatī pūrṇā khāṃ khīṃ khūṃ khecarī tathā।
sāṃ sīṃ sūṃ saptaśatī devyā maṃtrasiddhiṃ kuruṣva me ॥8॥
idaṃ tu kuṃjikāstotraṃ maṃtrajāgartihetave
abhakte naiva dātavyaṃ gopitaṃ rakṣa pārvati।
yastu kuṃjikayā devi hīnāṃ saptaśatīṃ paṭhet
na tasya jāyate siddhiraraṇye rodanaṃ yathā ॥
॥ iti śrīrudrayāmale gaurītantre śivapārvatīsaṃvāde kuṃjikāstotraṃ sampūrṇam ॥
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