धर्म

अभिनंदननाथ चालीसा – Bhagwan Abhinandannath Chalisa

अभिनंदननाथ चालीसा अत्यन्त शक्तिप्रद मानी जाती है। जो श्रद्धा से इसे पढ़ता या गाता है, उसके सारे कष्ट स्वतः ही दूर हो जाते हैं। इसमें सभी पापों को दूर करने की क्षमता है। भगवान अभिनन्दननाथ जैन धर्म के चौथे तीर्थंकर हैं। उनके दिव्य चरित का गायन इसमें किया गया है। मान्यता है कि अभिनंदननाथ चालीसा का पाठ जन्म-मृत्यु के चक्र से भी मुक्ति दिलाने में सक्षम है। पढ़ें अभिनंदननाथ चालीसा–

भगवान अभिनंदननाथ का चिह्न – बंदर

ऋषभअजितसम्भव अभिनन्दन,
दया करें सब पर दुखभंजन!
जनम-मरण के टूटें बन्धन,
मनमन्दिर तिष्ठं अभिनन्दन॥

अयोध्या नगरी अति सुन्दर,
करते राज्य भूपति संवर॥

सिद्धार्था उनकी महारानी,
सुन्दरता में थीं लासानी॥

रानी ने देखें शुभ सपने,
बरसे रतन महल के अंगने॥

मुख में देखा हस्ति समाता,
कहलाईं तीर्थंकर माता॥

जननी उदर प्रभु अवतारे,
स्वर्गों से आए सुर सारे॥

मात-पिता की पूजा करते,
गर्भ कल्याणक उत्सव करते॥

द्वादशी माघ शुक्ला की आई,
जन्मे अभिनन्दन जिनराई॥

देवों के भी आसन काँपे,
शिशु को लेकर गए मेरु पे॥

न्हवन किया शत-आठ कलश से।
‘अभिनन्दन’ कहा प्रेम भाव से॥

सूर्य समान प्रभु तेजस्वी,
हुए जगत में महायशस्वी॥

बोलें हित-मित वचन सुबोध,
वाणी में नहीं कहीं विरोध॥

यौवन से जब हुए विभूषित,
राज्यश्री को किया सुशोभित॥

साढ़े तीन सौ धनुष प्रमाण,
उन्नत प्रभु- तन शोभावान॥

परणाईं कन्याएँ अनेक,
लेकिन छोड़ा नहीं विवेक॥

नित प्रति नूतन भोग भोगते,
जल में भिन्न कमल सम रहते॥

इक दिन देखे मेघ अम्बर में,
मेघ – महल बनते पल भर में॥

हुए विलीन पवन चलने से,
उदासीन हो गए जगत से॥

राजपाट निज सुत को सौंपा,
मन में समता-वृक्ष को रोपा॥

गए उग्र नामक उद्यान,
दीक्षित हुए वहाँ गुणखान॥

शुक्ला द्वादशी थी माघ मास,
दो दिन का धारा उपवास॥

तीसरे दिन फिर किया विहार,
इन्द्रदत्त नृप ने दिया आहार॥

वर्ष अठारह किया घोर तप,
सहे शीत- वर्षा और आतप॥

एक दिन ‘असन’ वृक्ष के नीचे,
ध्यान वृष्टि से आतम सींचे॥

उदय हुआ केवल दिनकर का,
लोकालोक ज्ञान में झलका॥

हुई तब समोशरण की रचना,
खिरी प्रभु की दिव्य देशना॥

जीवाजीव और धर्माधर्म,
आकाश-काल षटद्रव्य मर्म॥

जीव द्रव्य ही सारभूत है,
स्वयंसिद्ध ही परमपूत है॥

रूप तीन लोक-समझाया,
ऊर्ध्व-मध्य-अधोलोक बताया॥

नीचे नरक बताए सात,
भुगतें पापी अपने पाप॥

ऊपर सोलह स्वर्ग सुजान,
चतुर्निकाय देव विमान॥

मध्य लोक में द्वीप असँख्य,
ढाई द्वीप में जायें भव्य॥

भटकों को तन्मार्ग दिखाया,
भव्यों को भव-पार लगाया॥

पहुँचे गढ़ सम्मेद अन्त में,
प्रतिमा योग धरा एकान्त में॥

शुक्लध्यान में लीन हुए तब,
कर्म प्रकृति क्षीण हुईं सब॥

वैसाख शुक्ला षष्ठी पुण्यवान,
प्रात: प्रभु का हुआ निर्वाण॥

मोक्ष कल्याणक करें सुर आकर,
‘आनन्दकूट’ पूजें हर्षाकर॥

चालीसा श्रीजिन अभिनन्दन,
दूर करें सबके भवक्रन्दन।

स्वामी तुम हो पापनिकन्दन,
‘अरुणा’ करती शत-शत वन्दन॥

जाप – ॐ ह्रीं अर्हं श्री अभिनन्दननाथाय नमः

विदेशों में बसे कुछ हिंदू स्वजनों के आग्रह पर अभिनंदननाथ चालीसा (Abhinandannath Chalisa) को हम रोमन में भी प्रस्तुत कर रहे हैं। हमें आशा है कि वे इससे अवश्य लाभान्वित होंगे। पढ़ें अभिनंदननाथ चालीसा रोमन में–

Read Abhinandannath Chalisa

ṛṣabha-ajita-sambhava abhinandana,
dayā kareṃ saba para dukhabhaṃjana!
janama-maraṇa ke ṭūṭeṃ bandhana,
manamandira tiṣṭhaṃ abhinandana॥

ayodhyā nagarī ati sundara,
karate rājya bhūpati saṃvara॥

siddhārthā unakī mahārānī,
sundaratā meṃ thīṃ lāsānī॥

rānī ne dekheṃ śubha sapane,
barase ratana mahala ke aṃgane॥

mukha meṃ dekhā hasti samātā,
kahalāīṃ tīrthaṃkara mātā॥

jananī udara prabhu avatāre,
svargoṃ se āe sura sāre॥

māta-pitā kī pūjā karate,
garbha kalyāṇaka utsava karate॥

dvādaśī māgha śuklā kī āī,
janme abhinandana jinarāī॥

devoṃ ke bhī āsana kā~pe,
śiśu ko lekara gae meru pe॥

nhavana kiyā śata-āṭha kalaśa se।
‘abhinandana’ kahā prema bhāva se॥

sūrya samāna prabhu tejasvī,
hue jagata meṃ mahāyaśasvī॥

boleṃ hita-mita vacana subodha,
vāṇī meṃ nahīṃ kahīṃ virodha॥

yauvana se jaba hue vibhūṣita,
rājyaśrī ko kiyā suśobhita॥

sāḍha़e tīna sau dhanuṣa pramāṇa,
unnata prabhu- tana śobhāvāna॥

paraṇāīṃ kanyāe~ aneka,
lekina choḍa़ā nahīṃ viveka॥

nita prati nūtana bhoga bhogate,
jala meṃ bhinna kamala sama rahate॥

ika dina dekheṃ megha ambara meṃ,
megha – mahala banate pala bhara meṃ॥

hue vilīna pavana calane se,
udāsīna ho gae jagata se॥

rājapāṭa nija suta ko sauṃpā,
mana meṃ samatā-vṛkṣa ko ropā॥

gae ugra nāmaka udyāna,
dīkṣita hue vahā~ guṇakhāna॥

śuklā dvādaśī thī māgha māsa,
do dina kā dhārā upavāsa॥

tīsare dina phira kiyā vihāra,
indradatta nṛpa ne diyā āhāra॥

varṣa aṭhāraha kiyā ghora tapa,
sahe śīta- varṣā aura ātapa॥

eka dina ‘asana’ vṛkṣa ke nīce,
dhyāna vṛṣṭi se ātama sīṃce॥

udaya huā kevala dinakara kā,
lokāloka jñāna meṃ jhalakā॥

huī taba samośaraṇa kī racanā,
khirī prabhu kī divya deśanā॥

“jīvājīva aura dharmādharma,
ākāśa-kāla ṣadravya marma॥

jīva dravya hī sārabhūta hai,
svayaṃsiddha hī paramapūta hai॥

rūpa tīna loka-samajhāyā,
ūrdhva-madhya-adholoka batāyā॥

nīce naraka batāe sāta,
bhugateṃ pāpī apane pāpa॥

ūpara solaha svarga sujāna,
caturnikāya deva vimāna॥

madhya loka meṃ dvīpa asa~khya,
ḍhāī dvīpa meṃ jāyeṃ bhavya॥

bhaṭakoṃ ko tanmārga dikhāyā,
bhavyoṃ ko bhava-pāra lagāyā॥

pahu~ce gaḍha़ sammeda anta meṃ,
pratimā yoga dharā ekānta meṃ॥

śukladhyāna meṃ līna hue taba,
karma prakṛti kṣīṇa huīṃ saba॥

vaisākha śuklā ṣaṣṭhī puṇyavāna,
prāta: prabhu kā huā nirvāṇa॥

mokṣa kalyāṇaka kareṃ sura ākara,
‘ānandakūṭa’ pūjeṃ harṣākara॥

cālīsā śrījina abhinandana,
dūra kareṃ sabake bhavakrandana।

svāmī tuma ho pāpanikandana,
‘aruṇā’ karatī śata-śata vandana॥

jāpa:- oṃ hrīṃ arha śrī abhinandananāthāya namaḥ

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सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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