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अकबर-बीरबल और मोती की खेती

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Akbar Birbal Aur Moti Ki Kheti

एक दिन की घटना है कि बादशाह अकबर और बेगम दोनों भोजनोपरान्त बाग़ में झूला झूलते हुए सानन्द गपशप लड़ा रहे थे। अचानक बेगम की उर्ध्ववायु खुली, जिससे बादशाह बहुत चिढ़ गया और बेगम को तुरंत महल से बाहर निकल जाने की आज्ञा दी। बेगम शहर से बाहर एक बाग़ में क़ैदी की सूरत में नज़रबन्द कर दी गई। बादशाह अकबर को वही धुन सवार थी। दूसरे दिन जब सबेरे दरबार लगा तो बादशाह ने सभासदों से पूछा, “क्या कभी तुम लोगों को भी अधोवायु निकलती है?” अधोवायु निकलने के कारण बेगम का दण्डित होना सब पर विदित था, इस कारण एक स्वर से सभी ने इन्कार कर दिया और उस दिन का दरबार समाप्त हुआ।

जिस दिन की यह बात थी उस दिन बीरबल किसी सरकारी काम से बाहर गया था। इसलिये जब कई दिन पश्चात वह लौटा तो बादशाह ने वही प्रश्न बीरबल से भी किया। भला बीरबल कब चूकने वाला था, वह झट बोला–“पृथ्वीनाथ! जिस तरह से अन्य लोगों को अधोवायु होती है, उसी तरह मुझे भी होती है।” बीरबल के इस उत्तर से बादशाह बहुत नाराज़ हुआ और उससे बोला, “वाह ख़ूब अच्छे रहे! इस सभा में ऐसा एक भी आदमी नहीं है जिसे अधोवायु सरती हो, फिर तुम्हें कैसे सरने लगी? जब यही बात है तो तुम दरबार से बाहर चले जाओ और जब तक मैं तुम्हें आने की आज्ञा न दूँ, कदापि न आना।”

बीरबल हाज़िर-जवाब था। उसे उत्तर-प्रत्युत्तर करने में हिचकिचाहट नहीं होती थी। परन्तु मौक़ा देखकर काम करना बुद्धिमानों का काम है। बादशाह अकबर को अपने ऊपर बहुत नाराज़ देख वहाँ से वह तत्काल बाहर चला गया। बेगम को नज़रबन्द हुए जब बहुत दिन हो गए, तो एक दिन उसने अपने नज़रबन्दी के कष्टों से ऊबकर बीरबल को बुलवाया और उससे आजिजी कर बोली, “बीरबल! आपकी मदद के बिना मेरा उद्धार नहीं हो सकता। कोई तरक़ीब निकालकर मुझे इस निविड़ क़ैद से मुक्त करो। मेरा जीवन असंभव हो रहा है।” बीरबल ने कहा, “दूसरे की वक़ालत वही कर सकता है, जो निर्दोष हो। मैं तो ख़ुद ही तुम्हारे दोष में शामिल हूँ। तुम्हारी मदद कैसे कर सकता हूँ?

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बेगम बीरबल को भलीभांति जानती थी। अतएव उसकी बात बीच में ही काटकर बोली, “बीरबल! तुमको मैं भलीभाँति जानती हूँ। मेरा दृढ़ विश्वास है कि चाहे बादशाह अकबर तुम से भले ही नाख़ुश हों, परन्तु उनको मना लेना तुम्हारे बायें हाथ का खेल है! बेगम की इस युक्तिसंगत बात को सुनकर बीरबल ख़ुश हो गया और उसने कार्य-साधन के निमित्त दस हज़ार रुपये की माँग पेश की। उसे तत्क्षण दस हज़ार की थैली समर्पण की गई।

बीरबल ने घर पहुँचकर एक सुनार को बुलवाया। वह अपने काम का बड़ा पक्का था। बीरबल उसको रुपये की एक थैली देकर बोला, “सेठ जी, मुझे मोती मंडित सुवर्ण का एक जव की बाली दरकार है। इसलिये आप उत्तम-उत्तम मोतियों को बाज़ार से संग्रह कर उन्हें सोने में इस प्रकार जड़ें कि देखने में हू-ब-हू जव की बाली ही जान पड़े।” सुनार कुछ कालोपरान्त एक उत्कृष्ट बाली बना लाया। बीरबल उसे देखकर बड़ा प्रसन्न हुआ और उसे कुछ द्रव्य इनाम में देकर विदा किया। आप उस बाली को लेकर बादशाह के महल की तरफ़ चला। दरबार में पहुँचते-पहुँचते आधा दिन ढल गया।

पहरेदारों से अपने आने का सन्देशा बादशाह के पास यह भेजा–“पृथ्वीनाथ! मैं एक बड़े आवश्यक कार्यवश आपसे मिलने आया हूँ। यदि आज्ञा हो तो अन्दर आऊँ।” बादशाह ने आज्ञा देकर बीरबल को दरबार में बुलवा लिया। बीरबल बादशाह के पास पहुँचकर नियम अनुसार सलाम कर बगल में बैठ गया और मोती उसके हाथ में देकर बोला, “ग़रीब-परवर! यह मोती का बीज एक बाहरी व्यापारी लेकर आया था ,जिसे मैंने बड़ी कठिनता से प्राप्त किया है। इसमें एक ख़ासियत यह है कि यदि कोई पाक साफ़ आदमी इसको अच्छी ज़मीन में बोयेगा, तो इसी के समान और बहुत-से मोती पैदा होंगे। मैंने देखा कि यह काम सिवा आपके दूसरा कोई न कर सकेगा। अतएव आपकी सेवा में लेकर उपस्थित हुआ हूँ। कृपया इसको किसी अच्छी ज़मीन पर बो दीजिये, आपको आगे चलकर इससे बड़ा लाभ होगा। बादशाह ने उसकी बात मानकर तुरंत आज्ञा दी, “बीरबल! इसके योग्य ज़मीन ढूँढकर सूचना दो।” परवाने में यह भी लिखा था कि जिस ज़मीन को बीरबल इस कार्य के लिये पसन्द करेगा, वह चाहे बड़े आलीशान मकानों से ही क्यों न सुशोभित की गई हो, तुरंत साफ़ करा दी जायगी।

बीरबल की ख़ूब बन आई। उसने अपने पुराने वैरियों के मकानातों को ऑर्डर देकर तुड़वा दिया। कितने लोगों ने तो बीरबल के आतंक से बचने के लिये बड़ी-बड़ी रक़मों की घूसें दीं। पहले वह नाक-भौं सिकोड़कर लोगों को टरकाता, परन्तु जब न मानते और बहुत मिन्नत करते, तो किसी से कम और किसी से बेस लेकर उनका मकान छोड़ देता। जब बीरबल को ख़ासी रक़म मिल गई, तो बड़े बड़े महलों को गिरवाना बन्द कर दिया। बाद को ग़रीबों की झोपड़ियों की चौगुनी क़ीमत देकर कुछ झोपड़ियाँ गिरवाकर एक ख़ासी चौरस ज़मीन बना ली और उसे ख़ूब जोतवाकर उसमें उत्तम प्रकार की खाद डलवा दी। पंक्ति से आवपाशी कराकर उसको भली-भाँति सिंचवाकर खेत को दुरुस्त करवा लिया। जब बीज बोने के क़ाबिल खेत तैयार हुआ, तब बीरबल ने एक दूत द्वारा बादशाह के पास ख़बर भेजी, “पृथ्वीनाथ! आपका खेत तैयार हो गया है। अब आप सभासदों के सहित पधारकर खेत का मुलाहिज़ा फ़र्माएँ।”

बीरबल उस मोती के बीज को लेकर सभा के सन्मुख आया और उसे अकबर को दिखाकर बोला, “हुज़ूर! इस बीज को बोने वाला ख़ूब पाक-साफ़ मनुष्य होना चाहिये। जिससे दुर्गन्धि आती होगी, उसके बोने से बीज से हरगिज़ मोती नहीं उगेगा। इसलिये जिसके शरीर से कभी वायु न सरती हो, वही इसको बोये। आपके दरबार में तो ऐसों की कमी भी नहीं है। किसी एक को आज्ञा दीजिये कि जो इस काम को प्रसन्नता पूर्वक करे।”

बादशाह अकबर ने एक-एक कर अपने सभी उपस्थित सभासदों से पूछा, परन्तु किसी ने बीज बोने के लिये हामी न भरी। लगभग हज़ारों की संख्या में लोग उपस्थित थे, पर सभी ने मना कर दिया। कारण कि यदि कोई यह कहकर कि मुझे हवा नहीं सरती, मोती बोने का साहस करता और कहीं बाद में मोती न उगता; तो उसकी गर्दन मारी जाती।

तब बादशाह अकबर ने बीरबल को बीज बोने के लिये कहा। बीरबल बोला, “पृथ्वीनाथ! यह तो मैं आपसे पहले ही कह चुका हूँ कि मुझको वायु सरती है। आपके सामने बहुतेरे लोगों ने इस बात की साक्षी दी है कि उनको वायु नहीं सरती, तो बड़े अफ़सोस की बात है कि बीज बोने के लिये कोई तैयार क्यों नहीं होता। श्रीमान को भी वायु नहीं सरती। अतएव अब इस काम को स्वयं आप ही करें तो कितना उत्तम हो। बादशाह ने बीरबल के प्रस्ताव को यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया कि मुझे भी तो वायु सरती है। इस संसार में ऐसा एक भी मनुष्य न निकलेगा, जिसे वायु न सरती हो।” तब बीरबल ने मौक़ा देखकर कहा, “पृथ्वीनाथ! जब यही बात है, तो बेगम और मैंने ऐसा कौन-सा अपराध किया था, जिसके लिये हम दंडित किये गये।” बीरबल की इस युक्ति से बादशाह का ग़ुस्सा शान्त हो गया और बेगम को महल में बुलवाने की आज्ञा दी। बीरबल भी दीवान पद पर नियुक्त किया गया।

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