अनंतनाथ चलीसा – Bhagwan Anantnath Chalisa
अनंतनाथ चलीसा में नामानुरूप ही अनंत शक्ति विद्यमान है। जिस तरह बीज में वृक्ष गुप्त रूप से निहित होता है, उसी तरह अनंतनाथ चलीसा में शक्तिपुंज स्थित है। इस शक्ति को बाहर लाकर अभिव्यक्त करने के लिए आवश्यकता है तो बस श्रद्धापूर्वक अनंतनाथ चलीसा के नियमित पाठ की। इसे जो भी व्यक्ति भक्तिभाव से नियमित पढ़ता है, उसे अभीष्ट की प्राप्ति होती है। अनंतनाथ चलीसा का पाठ करें–
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भगवान अनन्तनाथ का चिह्न – सेही
अनन्त चतुष्टय धारी ‘अनन्त’।
अनन्त गुणों की खान ‘अनन्त’॥
सर्वशुद्ध ज्ञायक हैं अनन्त।
हरण करें मम दोष अनन्त॥
नगर अयोध्या महा सुखकार।
राज्य करें सिंहसेन अपार॥
सर्वयशा महादेवी उनकी।
जननी कहलाईं जिनवर की॥
द्वादशी ज्येष्ठ कृष्ण सुखकारी।
जन्मे तीर्थंकर हितकारी॥
इन्द्र प्रभु को गोद में लेकर।
न्हवन करें मेरु पर जाकर॥
नाम ‘अनन्तनाथ’ शुभ दीना।
उत्सव करते नित्य नवीना॥
सार्थक हुआ नाम प्रभुवर का।
पार नहीं गुण के सागर का॥
वर्ण सुवर्ण समान प्रभु का।
ज्ञान धरें मति- श्रुत-अवधि का॥
आयु तीस लख वर्ष उपाई।
धनुष अर्धशत तन ऊंचाई॥
बचपन गया जवानी आई।
राज्य मिला उनको सुखदाई॥
हुआ विवाह उनका मंगलमय।
जीवन था जिनवर का सुखमय॥
पन्द्रह लाख बरस बीते जब।
उल्कापात से हुए विरत तब॥
जग में सुख पाया किसने – कब?
मन से त्याग राग भाव सब॥
बारह भावना मन में भाये।
ब्रह्मर्षि वैराग्य बढ़ाये॥
‘अनन्तविजय’ सुत तिलक – कराकर।
देवोमई शिविका पधरा कर॥
गए सहेतुक वन जिनराज।
दीक्षित हुए सहस नृप साथ॥
द्वादशी कृष्ण ज्येष्ठ शुभ मास।
तीन दिन का धारा उपवास॥
गए अयोध्या प्रथम योग कर।
धन्य ‘विशाख’ आहार करा कर॥
मौन सहित रहते थे वन में।
एक दिन तिष्ठे पीपल-तल में॥
अटल रहे निज योग ध्यान में।
झलके लोकालोक ज्ञान में॥
कृष्ण अमावस चैत्र मास की।
रचना हुई शुभ समवशरण की॥
जिनवर की वाणी जब खिरती।
अमृत सम कानों को लगती॥
चतुर्गति दुख चित्रण करते।
भविजन सुन पापों से डरते॥
“जो चाहो तुम मुक्ति पाना।
निज आतम की शरण में जाना॥
सम्यग्दर्शन-ज्ञान- चरित हैं।
कहे व्यवहार में रतनत्रय हैं॥
निश्चय से शुद्धातम ध्याकर।
शिवपद मिलता सुख रत्नाकर॥
श्रद्धा करके भव्य जनों ने।
यथाशक्ति व्रत धारे सबने॥
हुआ विहार देश और प्रान्त।
सत्पथ दर्शायें जिननाथ॥
अन्त समय गए सम्मेदाचल।
एक मास तक रहे सुनिश्चल॥
कृष्ण चैत्र अमावस पावन।
मोक्षमहल पहुँचे मनभावन॥
उत्सव करते सुरगण आकर।
कूट स्वयंप्रभ मन में ध्याकर॥
शुभ लक्षण प्रभुवर का ‘सेही’।
शोभित होता प्रभु- पद में ही॥
‘अरुणा’ अरज करे बस ये ही।
पार करो भवसागर से ही॥
हे प्रभु लोकालोक अनन्त।
झलकें सब तुम ज्ञान अनन्त॥
हुआ अनन्त भवों का अन्त।
अद्भुत तुम महिमा है ‘अनन्त’॥
जाप – ॐ ह्रीं अर्हं श्री अनन्तनाथाय नमः
विदेशों में बसे कुछ हिंदू स्वजनों के आग्रह पर अनंतनाथ चलीसा (Bhagwan Anantnath Chalisa) चालीसा को हम रोमन में भी प्रस्तुत कर रहे हैं। हमें आशा है कि वे इससे अवश्य लाभान्वित होंगे। पढ़ें अनंतनाथ चलीसा रोमन में–
Read Bhagwan Anantnath Chalisa
ananta catuṣṭaya dhārī ‘ananta’।
ananta guṇoṃ kī khāna ‘ananta’॥
sarvaśuddha jñāyaka haiṃ ananta।
haraṇa kareṃ mama doṣa ananta॥
nagara ayodhyā mahā sukhakāra।
rājya kareṃ siṃhasena apāra॥
sarvayaśā mahādevī unakī।
jananī kahalāīṃ jinavara kī॥
dvādaśī jyeṣṭha kṛṣṇa sukhakārī।
janme tīrthaṃkara hitakārī॥
indra prabhu ko goda meṃ lekara।
nhavana kareṃ meru para jākara॥
nāma ‘anantanātha’ śubha dīnā।
utsava karate nitya navīnā॥
sārthaka huā nāma prabhuvara kā।
pāra nahīṃ guṇa ke sāgara kā॥
varṇa suvarṇa samāna prabhu kā।
jñāna dhareṃ mati- śruta-avadhi kā॥
āyu tīsa lakha varṣa upāī।
dhanuṣa ardhaśata tana ūṃcāī॥
bacapana gayā javānī āī।
rājya milā unako sukhadāī॥
huā vivāha unakā maṃgalamaya।
jīvana thā jinavara kā sukhamaya॥
pandraha lākha barasa bīte jaba।
ulkāpāta se hue virata taba॥
jaga meṃ sukha pāyā kisane – kaba?
mana se tyāga rāga bhāva saba॥
bāraha bhāvanā mana meṃ bhāye।
brahmarṣi vairāgya baḍha़āye॥
‘anantavijaya’ suta tilaka – karākara।
devomaī śivikā padharā kara॥
gae sahetuka vana jinarāja।
dīkṣita hue sahasa nṛpa sātha॥
dvādaśī kṛṣṇa jyeṣṭha śubha māsa।
tīna dina kā dhārā upavāsa॥
gae ayodhyā prathama yoga kara।
dhanya ‘viśākha’ āhāra karā kara॥
mauna sahita rahate the vana meṃ।
eka dina tiṣṭhe pīpala-tala meṃ॥
aṭala rahe nija yoga dhyāna meṃ।
jhalake lokāloka jñāna meṃ॥
kṛṣṇa amāvasa caitra māsa kī।
racanā huī śubha samavaśaraṇa kī॥
jinavara kī vāṇī jaba khiratī।
amṛta sama kānoṃ ko lagatī॥
caturgati dukha citraṇa karate।
bhavijana suna pāpoṃ se ḍarate॥
“jo cāho tuma mukti pānā।
nija ātama kī śaraṇa meṃ jānā॥
samyagdarśana-jñāna- carita haiṃ।
kahe vyavahāra meṃ ratanatraya haiṃ॥
niścaya se śuddhātama dhyākara।
śivapada milatā sukha ratnākara॥
śraddhā karake bhavya janoṃ ne।
yathāśakti vrata dhāre sabane॥
huā vihāra deśa aura prānta।
satpatha darśāyeṃ jinanātha॥
anta samaya gae sammedācala।
eka māsa taka rahe suniścala॥
kṛṣṇa caitra amāvasa pāvana।
mokṣamahala pahu~ce manabhāvana॥
utsava karate suragaṇa ākara।
kūṭa svayaṃprabha mana meṃ dhyākara॥
śubha lakṣaṇa prabhuvara kā ‘sehī’।
śobhita hotā prabhu- pada meṃ hī॥
‘aruṇā’ araja kare basa ye hī।
pāra karo bhavasāgara se hī॥
he prabhu lokāloka ananta।
jhalakeṃ saba tuma jñāna ananta॥
huā ananta bhavoṃ kā anta।
adbhuta tuma mahimā hai ‘ananta’॥
jāpa:- oṃ hīṃ arha śrī anantanāthāya namaḥ