पुस्तक चर्चा

एक पुस्तक जिसने मेरा जीवन बदल दिया

अब एक अरसे के बाद लिख रहा हूँ–ख़ास तौर पर हिन्दी में। लिखने की शुरुआत तो २००४ में हिंदी ब्लॉगिंग से की थी और काफ़ी समय लिखते हुए बिताया। तरह-तरह के ब्लॉग विभिन्न विषयों पर बनाए। फिर लिखने की गति सुस्त होती गई और अन्ततः लिखाई थम ही गई।

इस बार प्रयास है पुस्तकों को लेकर। किताबें… पन्नों की महक… साथ में चाय की चुस्कियाँ… सब अजीब-सा नॉस्टेल्जिया रचते हैं।

सबसे पहले बात करते हैं कि पुस्तकें ही क्यों–इस विषय को चुनने का क्या कारण है?

दरअस्ल, हिन्दीपथ.कॉम के पीछे वजह ही किताबें हैं। इस वेबसाइट को बनाने का सबसे बड़ा उद्देश्य ही है अधिकाधिक लोगों तक हिन्दी भाषा की पुस्तकें पहुँचाना और लोगों को हिंदी में पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करना।

यह विचार आया ही एक पुस्तक को पढ़कर कि इसे ज़्यादा-से-ज़्यादा लोगों तक पहुँचना चाहिए। वह पुस्तक है स्वामी विवेकानंद का सम्पूर्ण साहित्य। जब यह विचार मैंने अपनी धर्मपत्नी सुरभि को बताया, तो उन्होंने तुरंत इस वेबसाइट को शुरू कर दिया। वैसे तो स्वामी जी के संपूर्ण साहित्य में दस खण्ड हैं यानी कि दस किताबें हैं, लेकिन मेरे लिए तो यह एक पुस्तक की ही तरह है। क्योंकि प्रत्येक खंड आपस में कहीं-न-कहीं जुड़ा हुआ है।

मैं शायद कक्षा ११ में रहा हूंगा जब सबसे पहली बार स्वामी विवेकानन्द की एक पुस्तक हाथ लगी थी। जहाँ तक मुझे याद है उसका नाम था “उत्तिष्ठत् जाग्रत्”, जिसे एकनाथ रानाडे ने संकलित किया था।

इस किताब का मेरे ऊपर कुछ यूँ असर हुआ कि फिर पहली बार स्वयं ही अद्वैत आश्रम, मायावती की वेबसाइट से स्वामी विवेकानंद संपूर्ण साहित्य वीपीपी से ऑर्डर कर दिया। अच्छी बात यह थी कि विवेकानन्द साहित्य का अनुदानित संस्करण उपलब्ध था। दसों खण्ड मात्र ₹२०० में मिल गए।

उस समय अपन ठन-ठन गोपाल थे। २०० रुपये भी बड़ी चीज़ थी। सो पिताजी से लेकर डाकिए को दिए। मन में थोड़ा भय भी था कि जाने क्या कहेंगे, पैसे देंगे भी या नहीं। लेकिन न उन्होंने कोई सवाल किया और न ही ना-नुकर। तुरन्त पैसे निकालकर दे दिए।

हाथ में स्वामी विवेकानंद का संपूर्ण साहित्य आते ही मानो सारी दुनिया बदल गई। वेदान्त की गहराइयों से परिचय प्राप्त हुआ, अद्वैत के ऐश्वर्य को निहारा, प्रचण्ड कर्म के मध्य शान्ति के आदर्श को जाना और स्वामी जी के तेजस्वी विचारों से स्वयं को ओत-प्रोत पाया।

तबसे लेकर आज-तक बहुत-सी किताबें पढ़ीं। कई ने मन पर गहरी छाप भी छोड़ी। फिर भी जो जादू-सा असर विवेकानंद साहित्य को पढ़कर हुआ, उसे ही मैं गंभीरतम महसूस करता हूँ। आज भी कभी ज़रूरत होती है तो विवेकानंद साहित्य की गहराइयों में गोता लगाकर कुछ मोती चुन लाता हूँ, जिनमें सारी समस्याओं के समाधान छुपे होते हैं।

स्वामी जी के विचारों की सबसे बड़ी विशेषता है उनमें अन्तर्निहित तेजस्विता। वे हमारे सामने केवल और केवल एक ही आदर्श रखते हैं–शक्ति का, आत्मविश्वास का। विवेकानंद अपनी ओजस्वी वाणी में कहते हैं–

संसार का इतिहास उन थोड़े से व्‍यक्‍तियों का इतिहास है, जिनमें आत्‍मविश्‍वास था। यह विश्‍वास अन्‍तःस्‍थित देवत्‍व को ललकार कर प्रकट कर देता है। तब व्‍यक्‍ति कुछ भी कर सकता है, सर्व समर्थ हो जाता है। असफलता तभी होती है, जब तुम अन्‍तःस्‍थ अमोघ शक्‍ति को व्‍यक्‍त करने का यथेष्‍ट प्रयत्‍न नहीं करते। जिस क्षण व्‍यक्‍ति अथवा राष्‍ट्र आत्‍मविश्‍वास खो देता है, उसी क्षण उसकी मृत्‍यु हो जाती है।

वेदांत के सिद्धान्तों को आम जीवन में कैसे उपयोग में लाया जाए, इसकी कुंजी भी स्वामी जी के साहित्य से हमें मिलती है। वे इसे “व्यावहारिक वेदान्त” कहा करते थे। स्वामी विवेकानंद का मानना था कि केवल मत-वाद या सिद्धान्त व्यर्थ हैं, जब तक कि उन्हें व्यावहारिकता के धरातल पर नहीं उतारा जाता। वेदान्त को व्यावहारिक जीवन में कैसे इस्तेमाल किया जाए, इसका सूत्र देते हुए वे बतलाते हैं–

यह कभी न सोचना कि आत्‍मा ‍के लिये कुछ असम्‍भव है। ऐसा कहना ही भयानक नास्‍तिकता है। यदि पाप नामक कोई वस्‍तु है तो यह कहना ही एकमात्र पाप है कि मैं दुर्बल हूं अथवा अन्‍य कोई दुर्बल है।

आत्म-शक्ति की अभिव्यक्ति को प्रकाशित करते हुए स्वामी जी कहते हैं–

हे मेरे युवक बन्‍धुगण! बलवान बनो – यही तुम्‍हारे लिए मेरा उपदेश है। गीता पाठ करने की अपेक्षा फुटबॉल खेलने से तुम स्‍वर्ग के अधिक समीप पहुंचोगे। मैंने अत्‍यन्‍त साहसपूर्वक ये बातें कहीं हैं और इनको कहना अत्‍यावश्‍यक है, कारण मैं तुमको प्‍यार करता हूं। मैं जानता हूं कि कंकड़ कहां चुभता है। मैंने कुछ अनुभव प्राप्‍त किया है। बलवान शरीर से और मज़बूत पुट्ठों से तुम गीता को अधिक समझ सकोगे।

विवेकानन्द साहित्य पढ़ते-पढ़ते रक्त-प्रवाह तीव्र हो जाता है, मन-मस्तिष्क सकारात्मक विचारों से भर जाता है, आत्म-श्रद्धा अन्तःकरण से प्रस्फुटित हो पड़ती है और जीवन में जो कुछ सृजनात्मक है स्वयमेव घटित होता महसूस होता है। क्या इन शब्दों को पढ़ते ही साहस अपने आप मन में पैदा न हो जाएगा? –

जिसका जो जी चाहे कहे, आपे में मस्‍त रहो – दुनिया तुम्‍हारे पैरों तले आ जाएगी, चिन्‍ता मत करो। लोग कहते हैं – इस पर विश्‍वास करो, उस पर विश्‍वास करो; मैं कहता हूं – पहले अपने आप पर विश्‍वास करो। अपने पर विश्‍वास करो – सब शक्‍ति तुम में है – इसकी धारणा करो और शक्‍ति जगाओ – कहो हम सब कुछ कर सकते हैं। ‘‘नहीं-नहीं कहने से सांप का विष भी असर नहीं करता।’’

मैंने स्वामी विवेकानंद के विचारों से स्वयं के जीवन को रूपान्तरित पाया। साथ ही यह अन्तःप्रेरणा भी हुई कि स्वामी जी के संपूर्ण साहित्य को जन-जन तक पहुँचाया जाए।

इंटरनेट पर खोजा तो पाया कि अंग्रेज़ी भाषा में तो The Complete Works Of Swami Vivekananda उपलब्ध है, लेकिन हिंदी भाषियों के लिए इसका सर्वथा अभाव है। यह भी महसूस हुआ कि न केवल स्वामी जी का सत्साहित्य, बल्कि हिंदी से जुड़ी सामग्री अभी भी इंटरनेट पर बहुत कम उपलब्ध है।

इसी विचार के साथ हिन्दीपथ.कॉम की शुरुआत की कि हिंदी की अधिकाधिक सामग्री को आधुनिक तकनीक के माध्यम से जनसामान्य तक पहुँचाया जा सके।

कार्य के पहले चरण में स्वामी विवेकानंद की पुस्तक कर्मयोग को यहाँ प्रस्तुत किया जा चुका है। उनकी एक अन्य पुस्तक राजयोग पर भी काम चल रहा है। जल्दी ही यह पुस्तक भी यहाँ आपको मिल जाएगी।

(यह लेख जब लिखा था, तब राजयोग पर काम चल रहा था। अब स्वामी जी की कई पुस्तकें हिंदीपथ पर आ चुकी हैं, यहाँ देखें – स्वामी विवेकानंद का संपूर्ण साहित्य। तेज़ी-से काम जारी है। उम्मीद है कि स्वामी विवेकानन्द के संपूर्ण साहित्य को शीघ्र ही जनसुलभ करा सकूंगा।)

मेरा सभी पाठकों से यही निवेदन है कि स्वामी विवेकानंद का संपूर्ण साहित्य अवश्य पढ़ें। शायद आपके जीवन में भी मेरी ही तरह जादू का सा असर हो और कुछ करने की प्रेरणा प्राप्त हो।

– प्रतीक पाण्डे

8 thoughts on “एक पुस्तक जिसने मेरा जीवन बदल दिया

    • HindiPath

      Thanks for appreciating the article, Surbhi. Do buy The Complete Works of Swami Vivekananda in Hindi. In case you need any help in it, please let us know.

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      • Thanks
        Meditation and it’s Method books in hindi. Is available???

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        • HindiPath

          Yes, it is. We will soon be uploading it on Hindi Path.

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  • abhishek

    bhai maine bhi college se hi vivekananda ko padna shuru kiya tha.mere man mein unke prati apar shraddha hai,ab main UPSC ki taiyaari kar raha hu.kaash unke manav-seva ke aadarsh ko charitarth kar saku.

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    • HindiPath

      टिप्पणी द्वारा अपने विचारों से हमें अवगत कराने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद, अभिषेक जी। हिंदी पथ की पूरी टीम की ओर से UPSC के लिए ढेरों शुभकामनाएँ। हमें विश्वास है कि आप स्वामी विवेकानंद की शिक्षाओं को कार्य रूप में परिणत करेंगे। इसी तरह हिंदी पथ पढ़ते रहें और अपने विचारों व सुझावों से हमें अवगत कराते रहें।

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  • Avinash Shukla

    प्रतीक जी आपने बहुत ही सराहनीय कार्य किया है हिंदी भाषा को एक नए पथ पर लाकर। मै आशा करता हूँ की इस साइट पर नए नए कंटेंट आते रहेंगे

    हिंदी को जन -जन तक पहुँचाने के इस प्रयास के लिए बहुत बहुत धन्यवाद्।

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    • HindiPath

      अविनाश जी, आपके प्रेरक वचनों के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद। इसी तरह आप हिंदी पथ पढ़ते रहें और मार्गदर्शन करते रहें।

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