चंद्रप्रभु चालीसा – Bhagwan Chandraprabhu Chalisa
चंद्रप्रभु चालीसा गागर में सागर के समान है। छोटी-सी यह चालीसा अपने में कोटि-कोटि शक्तियों को संचित किए हुए है। भगवान चंद्रप्रभु जैन धर्म के आठवें तीर्थंकर हैं। उनकी यह चालीसा जो भी पढ़ता है, वह जीवन में सफलता, समृद्धि और संपन्नता प्राप्त करता है। चंद्रप्रभु चालीसा दरिद्रता और दुःखों का समूल नाश कर देती है। पढ़ें चंद्रप्रभु चालीसा–
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भगवान चंद्रप्रभु का चिह्न – चंद्रमा
वीतराग सर्वज्ञ जिन,
जिन वाणी को ध्याय।
लिखने का साहस करूं,
चालीसा सिर नाय।
देहरे के श्री चन्द को,
पूजों मन वच काय।
ऋद्धि-सिद्धि मंगल करें,
विघन दूर हो जाय।
जय श्री चन्द्र दया के सागर,
देहरे वाले ज्ञान उजागर।
नासा पर है दृष्टि तुम्हारी,
मोहनी मूरति कितनी प्यारी।
देवों के तुम देव कहावो,
कष्ट भक्त के दूर हटावो।
समन्तभद्र मुनिवर ने ध्याया,
पिंडी फटी दर्श तुम पाया।
तुम जग में सर्वज्ञ कहावो,
अष्टम तीर्थंकर कहलावो।
महासेन के राजदुलारे,
मात सुलक्षणा के हो प्यारे।
चन्द्रपुरी नगरी अति नामी,
जन्म लिया चंद्रप्रभु स्वामी।
पौष वदी ग्यारस को जन्मे,
नर नारी हरषे तब मन में।
काम क्रोध तृष्णा दुखकारी,
त्याग सुखद मुनि दीक्षा धारी।
फाल्गुन वदी सप्तमी भाई,
केवल ज्ञान हुआ सुखदाई।
फिर सम्मेद शिखर पर जाके,
मोक्ष गये प्रभु आप वहाँ से।
लोभ मोह और छोड़ी माया,
तुमने मान कषाय नसाया।
रागी नहीं, नहीं तू द्वेषी,
वीतराग तू हित उपदेशी।
पंचम काल महा दुखदाई,
धर्म कर्म भूले सब भाई।
अलवर प्रान्त में नगर तिजारा,
होय जहां पर दर्शन प्यारा।
उत्तर दिशि में देहरा माहीं,
वहां आकर प्रभुता प्रगटाई।
सावन सुदि दशमी शुभ नामी,
आन पधारे त्रिभुवन स्वामी।
चिन्ह चन्द्र का लख नर नारी,
चन्द्रप्रभु की मूरत मानी।
मूर्ति आपकी अति उजियाली,
लगता हीरा भी है जाली।
अतिशय चन्द्र प्रभु का भारी,
सुनकर आते यात्री भारी।
फाल्गुन सुदी सप्तमी प्यारी,
जुड़ता है मेला यहां भारी।
कहलाने को तो शशि धर हो,
तेज पुंज रवि से बढ़कर हो।
नाम तुम्हारा जग में सांचा,
ध्यावत भागत भूत पिशाचा।
राक्षस भूत प्रेत सब भागें,
तुम सुमरत भय कभी न लागे।
कीर्ति तुम्हारी है अति भारी,
गुण गाते नित नर और नारी।
जिस पर होती कृपा तुम्हारी,
संकट झट कटता है भारी।
जो भी जैसी आश लगाता,
पूरी उसे तुरत कर पाता।
दुखिया दर पर जो आते हैं,
संकट सब खो कर जाते हैं।
खुला सभी को प्रभु द्वार है,
चमत्कार को नमस्कार है।
अन्धा भी यदि ध्यान लगावे,
उसके नेत्र शीघ्र खुल जावें।
बहरा भी सुनने लग जावे,
पगले का पागलपन जावे।
अखंड ज्योति का घृत जो लगावे,
संकट उसका सब कट जावे।
चरणों की रज अति सुखकारी,
दुख दरिद्र सब नाशनहारी।
चालीसा जो मन से ध्यावे,
पुत्र पौत्र सब सम्पति पावे।
पार करो दुखियों की नैया,
स्वामी तुम बिन नहीं खिवैया।
प्रभु मैं तुम से कुछ नहिं चाहूं,
दर्श तिहारा निश दिन पाऊँ।
करूँ वंदना आपकी,
श्री चन्द्र प्रभु जिनराज।
जंगल में मंगल कियो,
रखो ‘सुरेश’ की लाज॥
जाप – ॐ ह्रीं अर्हं चन्द्रप्रभु नमः
विदेशों में बसे कुछ हिंदू स्वजनों के आग्रह पर चंद्रप्रभु चालीसा (Bhagwan Chandraprabhu Chalisa) चालीसा को हम रोमन में भी प्रस्तुत कर रहे हैं। हमें आशा है कि वे इससे अवश्य लाभान्वित होंगे। पढ़ें चंद्रप्रभु चालीसा रोमन में–
Read Bhagwan Chandraprabhu Chalisa
vītarāga sarvajña jina,
jina vāṇī ko dhyāya।
likhane kā sāhasa karūṃ,
cālīsā sira nāya।
dehare ke śrī canda ko
pūjoṃ mana vaca kāya।
ṛddhi siddhi magala kareṃ,
vighana dūra ho jāya।
jaya śrī candra dayā ke sāgara,
dehare vāle jñāna ujāgara।
nāsā para hai dṛṣṭi tumhārī,
mohanī mūrati kitanī pyārī।
devoṃ ke tuma deva kahāvo,
kaṣṭa bhakta ke dūra haṭāvo।
samantabhadra munivara ne dhyāyā,
piṃḍī phaṭī darśa tuma pāyā।
tuma jaga meṃ sarvajña kahāvo,
aṣṭama tīrthaṃkara kahalāvo।
mahāsena ke rājadulāre,
māta sulakṣaṇā ke ho pyāre।
candrapurī nagarī ati nāmī,
janma liyā candra- prabhu svāmī।
pauṣa vadī gyārasa ko janme,
nara nārī haraṣe taba mana meṃ।
kāma krodha tṛṣṇā dukhakārī,
tyāga sukhada muni dīkṣā dhārī।
phālguna vadī saptamī bhāī,
kevala jñāna huā sukhadāī।
phira sammeda śikhara para jāke,
mokṣa gaye prabhu āpa vahā~ se।
lobha moha aura choḍa़ī māyā,
tumane māna kaṣāya nasāyā।
rāgī nahīṃ, nahīṃ tū dveṣī,
vītarāga tū hita upadeśī।
paṃcama kāla mahā dukhadāī,
dharma karma bhūle saba bhāī।
alavara prānta meṃ nagara tijārā,
hoya jahāṃ para darśana pyārā।
uttara diśi meṃ deharā māhīṃ,
vahāṃ ākara prabhutā pragaṭāī।
sāvana sudi daśamī śubha nāmī,
āna padhāre tribhuvana svāmī।
cinha candra kā lakha nara nārī,
candraprabhu kī mūrata mānī।
mūrti āpakī ati ujiyālī,
lagatā hīrā bhī hai jālī।
atiśaya candra prabhu kā bhārī,
sunakara āte yātrī bhārī।
phālguna sdī saptamī pyārī,
juḍa़tā hai melā yahāṃ bhārī।
kahalāne ko to śaśi dhara ho,
teja puṃja ravi se baḍha़kara ho।
nāma tumhārā jaga meṃ sāṃcā,
dhyāvata bhāgata bhūta piśācā।
rākṣasa bhūta preta saba bhāgeṃ,
tuma sumarata bhaya kabhī na lāge।
kīrti tumhārī hai ati bhārī,
guṇa gāte nita nara aura nārī।
jisa para hotī kṛpā tumhārī,
saṃkaṭa jhaṭa kaṭatā hai bhārī।
jo bhī jaisī āśa lagātā,
pūrī use turata kara pātā।
dukhiyā dara para jo āte haiṃ,
saṃkaṭa saba kho kara jāte haiṃ।
khulā sabhī ko prabhu dvāra hai,
camatkāra ko namaskāra hai।
andhā bhī yadi dhyāna lagāve,
usake netra śīghra khula jāveṃ।
baharā bhī sunane laga jāve,
pagale kā pāgalapana jāve।
akhaṃḍa jyoti kā ghṛta jo lagāve,
saṃkaṭa usakā saba kaṭa jāve।
caraṇoṃ kī raja ati sukhakārī,
dukha daridra saba nāśanahārī।
cālīsā jo mana se dhyāve,
putra pautra saba sampati pāve।
pāra karo dukhiyoṃ kī naiyā,
svāmī tuma bina nahīṃ khivaiyā।
prabhu maiṃ tuma se kucha nahiṃ cāhūṃ,
darśa tihārā niśa dina pāū~।
karū~ vaṃdanā āpakī,
śrī candra prabhu jinarāja।
jaṃgala meṃ maṃgala kiyo,
rakho ‘sureśa’ kī lāja॥
jāpa:- oṃ hrīṃ arha candraprabhu namaḥ
हिंदीपथ पर चन्द्रप्रभु भगवान की चालीसा (Chandra prabhu chalisa) पेश करके हम अत्यंत गौरवान्वित हैं। आप (Chandraprabhu chalisa pdf download) डाउनलोड करके आप अपने पास सेव करके या प्रिंट करवा कर भी रख सकते हैं। जैन धर्म में चन्द्रप्रभु चालीसा के पाठ का विशेष महत्व है। आइये जानते हैं भगवान चन्द्रप्रभु से जुड़े कुछ अन्य महत्वपूर्ण तथ्य।
- भगवान चंद्रप्रभु जी का जन्म पौष मास के कृष्ण पक्ष की बारहवीं तिथि को चंद्रपुरी के इक्ष्वाकु वंश में हुआ था।
- इनका जन्म चिन्ह चन्द्रमा और शरीर का वर्ण सफ़ेद था।
- चंद्र प्रभु जी की ऊंचाई 150 धनुष (छः सौ हाथ) थी।
- इनके पिता का नाम राजा महासेन और माता का नाम लक्ष्मणा देवी था।
- इन्होंने पौष माह के कृष्ण पक्ष की तेरहवीं तिथि को दीक्षा ग्रहण की थी।
- चंद्रप्रभु भगवान के यक्ष का नाम विजयदेव और यक्षिणी का नाम ज्वालामालिनी देवी था।
- इनकी कुल 3 लाख अस्सी हज़ार आर्यिका थीं।
- श्रावकों की संख्या तीन लाख एवं श्राविकाओं की संख्या पांच लाख थी।
- तीन माह की कठिन तपस्या के बाद चंद्र प्रभु जी को दीक्षावन में नाग वृक्ष के नीचे कैवल्य की प्राप्ति हुई थी। इस दिन फाल्गुन कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि थी।
- इन्हें सम्मेद शिखर जी में फाल्गुन शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को निर्वाण की प्राप्ति हुई थी।
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