धर्म

गंगा स्तोत्र – Ganga Stotram Lyrics

“गंगा स्तोत्र” का पाठ गंगा सप्तमी के दिन किया जाता है। इस दिन इस गंगा स्तोत्रम् का पाठ करने से समस्त पापों से मुक्ति मिलती है।

देवि! सुरेश्वरि! भगवति! गंगे त्रिभुवनतारिणि तरलतरंगे ।
शंकरमौलिविहारिणि विमले मम मतिरास्तां तव पदकमले ॥ 1 ॥

भागीरथिसुखदायिनि मातस्तव जलमहिमा निगमे ख्यातः ।
नाहं जाने तव महिमानं पाहि कृपामयि मामज्ञानम् ॥ 2 ॥

हरिपदपाद्यतरंगिणि गंगे हिमविधुमुक्ताधवलतरंगे ।
दूरीकुरु मम दुष्कृतिभारं कुरु कृपया भवसागरपारम् ॥ 3 ॥

तव जलममलं येन निपीतं परमपदं खलु तेन गृहीतम् ।
मातर्गंगे त्वयि यो भक्तः किल तं द्रष्टुं न यमः शक्तः ॥ 4 ॥

पतितोद्धारिणि जाह्नवि गंगे खंडित गिरिवरमंडित भंगे ।
भीष्मजननि हे मुनिवरकन्ये पतितनिवारिणि त्रिभुवन धन्ये ॥ 5 ॥

कल्पलतामिव फलदां लोके प्रणमति यस्त्वां न पतति शोके ।
पारावारविहारिणि गंगे विमुखयुवति कृततरलापांगे ॥ 6 ॥

तव चेन्मातः स्रोतः स्नातः पुनरपि जठरे सोपि न जातः ।
नरकनिवारिणि जाह्नवि गंगे कलुषविनाशिनि महिमोत्तुंगे ॥ 7 ॥

पुनरसदंगे पुण्यतरंगे जय जय जाह्नवि करुणापांगे ।
इंद्रमुकुटमणिराजितचरणे सुखदे शुभदे भृत्यशरण्ये ॥ 8 ॥

रोगं शोकं तापं पापं हर मे भगवति कुमतिकलापम् ।
त्रिभुवनसारे वसुधाहारे त्वमसि गतिर्मम खलु संसारे ॥ 9 ॥

अलकानंदे परमानंदे कुरु करुणामयि कातरवंद्ये ।
तव तटनिकटे यस्य निवासः खलु वैकुंठे तस्य निवासः ॥ 10 ॥

वरमिह नीरे कमठो मीनः किं वा तीरे शरटः क्षीणः ।
अथवाश्वपचो मलिनो दीनस्तव न हि दूरे नृपतिकुलीनः ॥ 11 ॥

भो भुवनेश्वरि पुण्ये धन्ये देवि द्रवमयि मुनिवरकन्ये ।
गंगास्तवमिमममलं नित्यं पठति नरो यः स जयति सत्यम् ॥ 12 ॥

येषां हृदये गंगा भक्तिस्तेषां भवति सदा सुखमुक्तिः ।
मधुराकंता पंझटिकाभिः परमानंदकलितललिताभिः ॥ 13 ॥

गंगास्तोत्रमिदं भवसारं वांछितफलदं विमलं सारम् ।
शंकरसेवक शंकर रचितं पठति सुखीः तव इति च समाप्तः ॥ 14 ॥

विदेशों में बसे कुछ हिंदू स्वजनों के आग्रह पर यह गंगा स्तोत्र (Ganga Stotram) को हम रोमन में भी प्रस्तुत कर रहे हैं। हमें आशा है कि वे इससे अवश्य लाभान्वित होंगे। पढ़ें गंगा स्तोत्रम् रोमन में–

Ganga Stotram Lyrics

devi! sureśvari! bhagavati! gaṃge tribhuvanatāriṇi taralataraṃge ।
śaṃkaramaulivihāriṇi vimale mama matirāstāṃ tava padakamale ॥ 1 ॥

bhāgīrathisukhadāyini mātastava jalamahimā nigame khyātaḥ ।
nāhaṃ jāne tava mahimānaṃ pāhi kṛpāmayi māmajñānam ॥ 2 ॥

haripadapādyataraṃgiṇi gaṃge himavidhumuktādhavalataraṃge ।
dūrīkuru mama duṣkṛtibhāraṃ kuru kṛpayā bhavasāgarapāram ॥ 3 ॥

tava jalamamalaṃ yena nipītaṃ paramapadaṃ khalu tena gṛhītam ।
mātargaṃge tvayi yo bhaktaḥ kila taṃ draṣṭuṃ na yamaḥ śaktaḥ ॥ 4 ॥

patitoddhāriṇi jāhnavi gaṃge khaṃḍita girivaramaṃḍita bhaṃge ।
bhīṣmajanani he munivarakanye patitanivāriṇi tribhuvana dhanye ॥ 5 ॥

kalpalatāmiva phaladāṃ loke praṇamati yastvāṃ na patati śoke ।
pārāvāravihāriṇi gaṃge vimukhayuvati kṛtataralāpāṃge ॥ 6 ॥

tava cenmātaḥ srotaḥ snātaḥ punarapi jaṭhare sopi na jātaḥ ।
narakanivāriṇi jāhnavi gaṃge kaluṣavināśini mahimottuṃge ॥ 7 ॥

punarasadaṃge puṇyataraṃge jaya jaya jāhnavi karuṇāpāṃge ।
iṃdramukuṭamaṇirājitacaraṇe sukhade śubhade bhṛtyaśaraṇye ॥ 8 ॥

rogaṃ śokaṃ tāpaṃ pāpaṃ hara me bhagavati kumatikalāpam ।
tribhuvanasāre vasudhāhāre tvamasi gatirmama khalu saṃsāre ॥ 9 ॥

alakānaṃde paramānaṃde kuru karuṇāmayi kātaravaṃdye ।
tava taṭanikaṭe yasya nivāsaḥ khalu vaikuṃṭhe tasya nivāsaḥ ॥ 10 ॥

varamiha nīre kamaṭho mīnaḥ kiṃ vā tīre śaraṭaḥ kṣīṇaḥ ।
athavāśvapaco malino dīnastava na hi dūre nṛpatikulīnaḥ ॥ 11 ॥

bho bhuvaneśvari puṇye dhanye devi dravamayi munivarakanye ।
gaṃgāstavamimamamalaṃ nityaṃ paṭhati naro yaḥ sa jayati satyam ॥ 12 ॥

yeṣāṃ hṛdaye gaṃgā bhaktisteṣāṃ bhavati sadā sukhamuktiḥ ।
madhurākaṃtā paṃjhaṭikābhiḥ paramānaṃdakalitalalitābhiḥ ॥ 13 ॥

gaṃgāstotramidaṃ bhavasāraṃ vāṃchitaphaladaṃ vimalaṃ sāram ।
śaṃkarasevaka śaṃkara racitaṃ paṭhati sukhīḥ tava iti ca samāptaḥ ॥ 14 ॥

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सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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