सच्चा गुणी कौन? – जातक कथा
“सच्चा गुणी कौन?” कहानी जातक कथाओं में आती है। इसमें बताया गया है कि कौन-से गुण व्यक्ति को साधारण से असाधारण महान बनाते हैं। अन्य जातक कथाएँ पढ़ने के लिए कृपया यहाँ जाएँ – जातक कथाएं।
The Story Of Real Merits: Jathak Katha In Hindi
राजोवाद जातक की गाथा – [राजा मल्लिक दुष्ट के साथ दुष्टता का बर्ताव करता है, विनम्र को अपनी नम्रता से वश में करता है, भले को अपनी नेकी से प्रभावित करता है और पापी का ऋण उसी के सिक्कों में चुकाता है। ऐ सारथी मार्ग छोड़ दे। हमारे राजा का यही तरीका है।]
वर्तमान कथा – उचित निर्णय
एक दिन कोशल के महाराज को भगवान बुद्ध की सेवा में उपस्थित होने में बहुत देर हो गई। भगवान के कारण पूछने पर उसने बताया, “आज एक बहुत पेचीदा मामले का फैसला करना पड़ा जिसमें बहुत समय लग गया। दरबार से उठकर शीघ्रतापूर्वक भोजनादि से निबटकर गीले हाथों ही मैं चला पाया हूँ।”
भगवान ने कहा, “हे राजन्! किसी मामले पर न्यायपूर्वक तथा निष्पक्षपात होकर विचार करना ही उचित है। ऐसा करने से ही स्वर्ग का मार्ग खुलता है। जब तुम मुझ जैसे सर्वज्ञ का परामर्श प्रथम ही प्राप्त करते हो, तो यदि तुम्हारा निर्णय उचित और न्यायपूर्ण होता है तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है। आश्चर्य तो तब होता है जब राजा के परामर्शदाता विद्वान होते हुए भी सर्वज्ञ नहीं होते, और फिर भी वह चार प्रकार की धूर्तताओं से बचकर और दश शीलों का पालन करते हुए उचित और न्यायपूर्ण निर्णय देता है और राज्य करने के पश्चात् स्वर्ग का अधिकारी होता है।”
राजा के जिज्ञासा करने पर भगवान ने “सच्चा गुणी कौन” नामक पूर्व जन्म की कथा इस प्रकार कही–
अतीत कथा – सच्चा गुणी कौन-सा राजा है?
एक बार काशी के राजा ब्रह्मदत्त की पटरानी के गर्भ से बोधिसत्व ने जन्म ग्रहण किया। पण्डितों ने नामकरण के दिन उनका नाम ब्रह्मदत्त रखा। उनके सब संस्कार विधिपूर्वक सम्पन्न हुए। सोलह वर्ष की आयु में उन्हें शिक्षार्थ तक्षशिला भेजा गया जहां उन्होंने सम्पूर्ण विद्याओं और कलाओं का विधिवत अध्ययन किया। पिता की मृत्यु के पश्चात् राजकुमार ब्रह्मदत्त काशी के अधिपति हुए।
राजा ब्रह्मदत्त के शासन में सब कार्य न्यायपूर्वक होते थे। मंत्री भी सदा न्याय की रक्षा का ध्यान रखते थे। थोड़े दिनों में राज्य से विग्रह का उन्मूलन हो गया। राजा तथा मन्त्रियों के पास निर्णयार्थ कोई प्रसंग उपस्थित न होने पर राजा ने सोचा, शायद लोग भय के कारण मेरे सम्मुख नहीं आ पाते। उसने प्रत्यक्ष और गुप्त रूप से जांच कराई। सर्वत्र प्रजा राजा के न्याय-विचार की बड़ाई करती ही पाई गई। राजा को संतोष न हुआ। वह चाहता था कि कहीं से कुछ विपरीत आलोचना सुनने को मिले तो रही-सही त्रुटियों को भी दूर कर दूं।
अंत में एक दिन वह भेष बदलकर रथ पर बैठकर राज्य से बाहर के लोगों के विचार जानने को चल पड़ा। जहाँ-जहाँ वह गया, सर्वत्र लोगों को काशी के राजा की बड़ाई ही करते पाया।
ठीक इसी समय कोशल के राजा मल्लिक के मन में भी ऐसा ही विचार उत्पन्न हुआ। वह भी अपने विषय में लोकमत जानने के विचार से भेष बदलकर अपने राज्य से बाहर निकला। संयोगवश जिस समय ब्रह्मदत्त यात्रा समाप्त कर काशी की ओर लौट रहे थे, एक नदी के छोटे पुल पर उनका सामना मल्लिक से हो गया। नदी का पुल छोटा था और दो रथ उस पर से किसी भी अवस्था में आमने-सामने से नहीं जा सकते थे।
कोशलराज के सारथी ने सामने वाले सिरे से आवाज लगाई, “सारथी! मार्ग छोड़ दो। अपने रथ को एक ओर कर लो।”
काशिराज के सारथी ने दूसरे सिरे से उत्तर दिया, “सारथी! शायद तुम नहीं जानते कि इस विशाल रथ पर स्वयम् काशी के अधिपति महाराज ब्रह्मदत्त विराजमान हैं। उचित यही है कि अपने रथ को एक ओर हटाकर मार्ग दे दो।”
कोशल के सारथी ने फिर पुकार कर कहा, “सारथी, हठ मत करो। यह रथ कोशल के विशाल साम्राज्य के अधीश्वर सम्राट मल्लिक का है। तुम्हें उचित है कि उनका सम्मान करो और अपना रथ एक ओर हटाकर मार्ग दे दो।”
काशी का सारथी सोचने लगा कि दोनों ही बड़े राज्यों के अधिपति हैं, फिर निर्णय कैसे हो? उसने सोचा वय का सम्मान होना उचित है, जो आयु में छोटा हो उसी को अपना रथ हटाना उचित होगा। परन्तु पूछने पर विदित हुआ कि दोनों राजा समवयस्क हैं। उसने राज्य विस्तार, कुल-मर्यादा, वंश-गौरव साम्पत्तिक स्थिति आदि के विषय में प्रश्न किये। परन्तु किसी भी दृष्टि से एक राजा को दूसरे से हीन कह सकना कठिन था। अंत में उसने गुणों पर से निर्णय करने की ठानी और जानना चाहा कि सच्चा गुणी कौन है। उसने कोशल के सारथी से कहा, “अपने राजा के गुणों का वर्णन करो।” कोशल के सारथी ने बड़े दर्प के साथ यह गाथा कही–
“राजा मल्लिक दुष्ट के साथ दुष्टता का बर्ताव करता है। विनम्र को अपनी नम्रता से वश में करता है। भले को अपनी नेकी से प्रभावित करता है और पापी का ऋण उसी के सिक्कों में चुकाता है। ऐ सारथी! मार्ग छोड़ दे। हमारे राजा का यही तरीका है।”
काशी के सारथी ने कहा, “यही तुम्हारे राजा की गुणावली है?”
कोशल के सारथी ने कहा, “हाँ।”
काशी के सारथी ने फिर कहा, “यदि इसे गुणावली मान लें तो दोष किसे कहेंगे?”
“तो तुम इसे दोषावली ही मान लो।” कोशल के सारथी ने खीझकर उत्तर दिया, “परन्तु अपने राजा की गुणावली के विषय में भी तो कुछ कहो।” इस पर काशी के सारथी ने कहा–
“वह क्रोध को नम्रता से जीतता है। बुराई पर भलाई के द्वारा विजय प्राप्त करता है। उदारता से कृपणता को परास्त करता है। झूठ का ऋण सत्य के सिक्कों में चुकाता है। ऐ सारथी! मार्ग छोड़ दे। हमारे राजा का यही तरीका है।”
इन शब्दों को सुनकर राजा मल्लिक सारथी सहित रथ से नीचे उतर पड़े और रथ को मोड़कर महाराज ब्रह्मदत्त के रथ को मार्ग दे दिया। राजा मल्लिक ने जान लिया था कि सच्चा गुणी कौन है।