आशा का फल – जातक कथा
“आशा का फल” बहुत उपयोगी जातक कथा है। इस कहानी से शिक्षा मिलती है कि जो आशा का दामन नहीं छोड़ते, उन्हें सफलता ज़रूर मिलती है। अन्य जातक कथाएं पढ़ने के लिए कृपया यहाँ जाएँ – जातक कथाएँ।
The Tale Of Buddha’s Daughter: Jatak Katha In Hindi
आशंका जातक की गाथा – [नन्दन कानन में आशावती नामक लता है, जिसमें एक हजार वर्ष के पश्चात् फल लगते हैं। देवता उन फलों के लिये धैर्यपूर्वक प्रतीक्षा करते हैं। हे राजा! आशा रख! आशा का फल मधुर होता है। एक पक्षी आशा लगाए रहता है और कभी पराजय स्वीकार नहीं करता। अभीप्सित चाहे कितनी ही दूर हो, परन्तु अन्त में उसे विजय अवश्य मिलती है। हे राजा! आशा रख! आशा का फल मधुर होता है।]
वर्तमान कथा – विचलित भिक्षु और बुद्ध
एक बार जब भगवान जेतवन में निवास करते थे, एक भिक्षु को अपनी पत्नी की याद आई और वह विकल हो गया। तथागत को ऐसा प्रतीत हुआ कि भिक्षु पथ से विचलित हो रहा है, अतः उन्होंने उसे बुलाकर कहा, “स्त्री तुम्हारे लिये हानि का कारण है। पूर्व जन्म में भी तुमने उसके लिये एक बहुत बड़ी सेना की बलि चढ़ा दी थी।” भिक्षु के पूछने पर भगवान ने पूर्व जन्म की कथा नीचे लिखे अनुसार सुनाई–
अतीत कथा – आशा का मीठा फल
पूर्वकाल में जब काशी में ब्रह्मदत्त राज्य करता था, बोधिसत्व का जन्म एक ग्रामीण ब्राह्मण के परिवार में हुआ। बड़े होने पर उन्होंने तक्षशिला में जाकर विद्याध्ययन किया और फिर संन्यास लेकर हिमालय पर्वत पर जाकर तप और ध्यान में मग्न हो गए।
उस समय तैंतीस कोटि देवताओं के स्वर्ग में एक आत्मा का पतन हुआ और उसने एक सरोवर के बीच में एक कमल के भीतर कन्या रूप में जन्म लिया। बोधिसत्व प्रतिदिन उस सरोवर में स्नान करने जाते थे। उन्होंने देखा कि अन्य सब कमल मुरझा कर झड़ जाते हैं, परन्तु एक नित्य बढ़ता ही रहता है। उन्होंने कौतूहल वश उसके पास जाकर देखा तो उसमें एक परम रूपवती कन्या दिखाई दी। बोधिसत्व उसे अपनी कुटी में ले पाए और पुत्री की भांति उसका,पालन करने लगे।
इन्द्र ने देखा कि बोधिसत्व को कन्या के पालने में कष्ट होता होगा, अतः वह उनके समीप आकर बोला, “भगवन्, मुझे क्या आदेश होता है?” बोधिसत्व ने कहा, “इस कन्या के लिये समुचित प्रबंध कर दो।” इन्द्र के आदेश से आकाश से एक सुन्दर महल नीचे उतरा, जिसमें सब प्रकार के सुख साधन थे और वह कन्या उसमें रहने लगी। बोधिसत्व को कमल के विषय में आशंका होने पर ही यह कन्या मिली थी, अतः उन्होंने उसका नाम आशंका रख दिया।
एक दिन एक लकड़हारा बोधिसत्व के आश्रम में दर्शनों के लिये आया। वहाँ उसने उस कन्या को देखा। यह लकड़हारा काशी का रहने वाला था। अपने नगर में जाकर उसने राजा से सब हाल कहा। कन्या के रूप की बड़ाई सुनकर राजा सेना लेकर उसे प्राप्त करने चल पड़ा। लकड़हारे ने मार्ग बताया।
बोधिसत्व के आश्रम में जाकर राजा ने उनको प्रणाम किया। उनके साथ बातचीत करके और उपदेश सुनकर जब राजा चलने लगा, उस समय उसने बोधिसत्व से उस कन्या के विषय में पूछा। बोधिसत्व ने कहा, “वह मेरी पुत्री है।” राजा ने निवेदन किया, “हे तपस्वी! वन में रहकर कन्याओं का पालन पोषण ठीक रीति से नहीं हो सकता है। यदि इस सुकुमारी कन्या को आप मुझे दे दें तो मैं इसे सब प्रकार से सुखी कर सकता हूँ।”
बोधिसत्व ने कहा, “हे राजा! यदि तू इस कन्या का नाम जानता हो तो मुझे बता। मैं उसे तेरे हवाले कर दूंगा।” राजा ने मंत्रियों की सलाह से सुन्दर-सुन्दर नामों की सूचियाँ प्रस्तुत कीं, परन्तु बोधिसत्व ने सबको ‘यह नहीं है’ कहकर अमान्य कर दिया।
एक वर्ष तक राजा अपनी सेना सहित उस ठंडे बर्फीले हिमालय पर्वत पर आशा लगाए पड़ा रहा। उसके हाथी, घोड़े
और बहुत से मनुष्य सर्दी के कारण मर गए। कुछ को जंगली जानवर खा गये। कुछ रोग ग्रस्त हो गए और कुछ अच्छे भोजन के अभाव से अधमरे हो गए।
अब राजा एकदम निराश हो गया और वापिस लौटने की तयारी करने लगा। वह महल के नीचे इसलिए टहल रहा था कि यदि वह लडकी खिड़की से झाँके तो उसे अपने लौट जाने की बात बता दे। हुआ भी वैसा ही। जब लड़की खिड़की पर आई तो उसने अपनी यात्रा की बात उससे कही।
उस समय उस लड़की ने ऊपर दी हुई गाथा सुनाई जिसे सुनकर वह फिर एक वर्ष के लिये ठहर गया – नन्दन कानन में आशावती नामक लता है, जिसमें एक हजार वर्ष के पश्चात् फल लगते हैं। देवता उन फलों के लिये धैर्यपूर्वक प्रतीक्षा करते हैं। हे राजा! आशा रख! आशा का फल मधुर होता है। एक पक्षी आशा लगाए रहता है और कभी पराजय स्वीकार नहीं करता। अभीप्सित चाहे कितनी ही दूर हो, परन्तु अन्त में उसे विजय अवश्य मिलती है। हे राजा! आशा रख! आशा का फल मधुर होता है।
इसी प्रकार वह तीन वर्ष तक बोधिसत्व के आश्रम में रहा। जब भी वह निराश होकर चलने की बात सोचता, तभी वह लड़की उसे आशा और प्रयत्न विषयक कोई गाथा सुना देती थी और वह ठहर जाता था। इस बार वह बिलकुल निराश हो गया था। हजारों नामों की सूचियाँ बना-बनाकर उसने बोधिसत्व के सामने रखीं, परन्तु वे सब व्यर्थ गईं। उस लड़की का नाम जानना एक बहुत कठिन पहेली हो गया। अतः लौट जाने का निश्चय करके वह खिड़की के सामने उस लड़की से अंतिम बात कहने के लिए गया। लड़की के आने पर उसने कहा,
“मेरी सेना नष्ट हो गई है। मेरे खाद्य भंडार समाप्त हो गए हैं। मुझे आशंका है कि कहीं मेरा जीवन ही नष्ट न हो जाय। लौट जाने में ही मेरा मंगल है।”
लड़की खिड़की पर से खिल-खिलाकर हँस पड़ी।
“अरे! मेरा नाम तो तुम जानते हो। फिर इतने परेशान क्यों हो रहे हो।”
राजा ने कहा, “कहाँ? कौन-सा नाम?”
लड़की ने कहा, “अभी-अभी तो तुमने मेरा नाम लिया था।”
राजा ने अपने शब्दों पर ध्यान से विचार किया और समझ गया कि इस लड़की का नाम आशंका के अतिरिक्त और कुछ नहीं हो सकता। वह प्रसन्न होता हुआ बोधिसत्व के पास आया और उन्हें उनकी पुत्री का नाम बताया। बोधिसत्व ने कहा, “जिस समय तुम्हें उसका नाम मालूम हो गया उसी समय से मेरे वचन के अनुसार मेरी पुत्री तुम्हें समर्पित हो गई। जाओ, उसे ले जाकर सुख पूर्वक जीवन व्यतीत करो।”
राजा महल में गया और थोड़ी ही देर में आशंका के साथ आकर बोधिसत्व को प्रणाम किया और उनका आशीर्वाद प्राप्त कर अपने बचे हुये साथियों के साथ काशी लौट गया। उसे आशा का फल मिल चुका था।