धर्म

कान खोल कर सुनो पार्थ – Kaan Khol Kar Suno Parth Lyrics in Hindi – Mahabharat Poetry

“कान खोल कर सुनो पार्थ” के बोल अर्थात् लिरिक्स पढ़ें हिंदी में। इस कविता में महाभारत की कथा का वर्णन किया हुआ है, इस कविता के रचयिता अमित शर्मा है।

तलवार,धनुष और पैदल सैनिक कुरुक्षेत्र मे खड़े हुये,
रक्त पिपासू महारथी इक दूजे सम्मुख अड़े हुये।
कई लाख सेना के सम्मुख पांडव पाँच बिचारे थे,
एक तरफ थे योद्धा सब, एक तरफ समय के मारे थे।
महासमर की प्रतिक्षा में सारे ताक रहे थे जी,
और पार्थ के रथ को केशव स्वयं हाँक रहे थे जी ॥

रणभूमि के सभी नजारे देखन मे कुछ खास लगे,
माधव ने अर्जुन को देखा, अर्जुन उन्हे उदास लगे।
कुरुक्षेत्र का महासमर एक पल मे तभी सजा डाला,
पाचजण्य उठा कृष्ण ने मुख से लगा बजा डाला।
हुआ शंखनाद जैसे ही सबका गर्जन शुरु हुआ,
रक्त बिखरना हुआ शुरु और सबका मर्दन शुरु हुआ।
कहा कृष्ण ने उठ पार्थ और एक आँख को मीच जड़ा,
गाण्डिव पर रख बाणो को प्रत्यंचा को खींच जड़ा।
आज दिखा दे रणभुमि मे योद्धा की तासीर यहाँ,
इस धरती पर कोई नही, अर्जुन के जैसा वीर यहाँ ॥

सुनी बात माधव की तो अर्जुन का चेहरा उतर गया,
एक धनुर्धारी की विद्या मानो चुहा कुतर गया।
बोले पार्थ सुनो कान्हा – जितने ये सम्मुख खड़े हुये है,
हम तो इन से सीख-सीख कर सारे भाई बड़े हुये है।
इधर खड़े बाबा भिष्म ने मुझको गोद खिलाया है,
गुरु द्रोण ने धनुष-बाण का सारा ग्यान सिखाया है।
सभी भाई पर प्यार लुटाया कुंती मात हमारी ने,
कमी कोई नही छोड़ी थी, प्रभू माता गांधारी ने।
ये जितने गुरुजन खड़े हुये है सभी पूजने लायक है,
माना दुर्योधन दुसासन थोड़े से नालायक है।
मैं अपराध क्षमा करता हूँ, बेशक हम ही छोटे है,
ये जैसे भी है आखिर माधव, सब ताऊ के बेटे है ॥

छोटे से भू भाग की खातिर हिंसक नही बनुंगा मैं,
छोटे से भू भाग की खातिर हिंसक नही बनुंगा मैं।
स्वर्ण ताककर अपने कुल का विध्वंसक नही बनुंगा मैं,
खून सने हाथो को होता, राज-भोग अधिकार नही।
परिवार मार कर गद्दी मिले तो सिंहासन स्वीकार नही,
रथ पर बैठ गया अर्जुन, मुँह माधव से मोड़ दिया,
आँखो मे आँसू भरकर गाण्डिव हाथ से छोड़ दिया ॥

गाण्डिव हाथ से जब छुटा माधव भी कुछ अकुलाए थे,
शिष्य पार्थ पर गर्व हुआ, और मन ही मन हर्षाए थे।
मन मे सोच लिया अर्जुन की बुद्धि ना सटने दूंगा,
समर भूमि मे पार्थ को कमजोर नही पड़ने दूंगा।
धर्म बचाने की खातिर इक नव अभियान शुरु हुआ,
उसके बाद जगत गुरु का गीता ग्यान शुरु हुआ ॥

एक नजर। एक नजर। एक नजर। एक नजर।
एक नजर में, रणभूमि के कण-कण डोल गये माधव,
टक-टकी बांधकर देखा अर्जुन एकदम बोल गये माधव –
हे! पार्थ मुझे पहले बतलाते मै संवाद नही करता,

पार्थ मुझे पहले बतलाते मै संवाद नही करता।
तुम सारे भाईयो की खातिर कोई विवाद नही करता,
पांचाली के तन पर लिपटी साड़ी खींच रहे थे वो,
दोषी वो भी उतने ही है जबड़ा भींच रहे थे जो।
घर की इज्जत तड़प रही कोई दो टूक नही बोले,
पौत्र बहू को नग्न देखकर गंगा पुत्र नही खौले।

पौत्र बहू को नग्न देखकर गंगा पुत्र नही खौले।

तुम कायर बन कर बैठे हो ये पार्थ बडी बेशर्मी है,
संबंध उन्ही से निभा रहे जो लोग यहाँ अधर्मी है।
धर्म के ऊपर यहाँ आज भारी संकट है खड़ा हुआ,
और तेरा गांडीव पार्थ, रथ के कोने में पड़ा हुआ।
धर्म पे संकट के बादल तुम छाने कैसे देते हो,
कायरता के भाव को मन में आने कैसे देते हो।

हे पांडू के पुत्र। हे पांडू के पुत्र।
धर्म का कैसा कर्ज उतारा है,
शोले होने थे। शोले होने थे। शोले होने थे।

आँखो में, पर बहती जल धारा है ॥

गाण्डिव उठाने मे पार्थ जितनी भी देर यहाँ होगी,
इंद्रप्रस्थ के राज भवन मे उतनी अंधेर वहाँ होगी।
अधर्म-धर्म की गहराई मे खुद को नाप रहा अर्जुन,
अश्रूधार फिर तेज हुई और थर-थर काँप रहा अर्जुन।

हे केशव। ये रक्त स्वयं का पीना नहीं सरल होगा,
और विजय यदि हुए हम जीना नहीं सरल होगा।

हे माधव। मुझे बतलाओ कुल नाशक कैसे बन जाँऊ,
रख सिंहासन लाशो पर मै, शासक कैसे बन जाँऊ।
कैसे उठेंगे कर उन पर जो कर पर अधर लगाते है ?
करने को जिनका स्वागत, ये कर भी स्वयं जुड़ जाते है।
इन्ही करो ने बाल्य काल मे सबके पैर दबाये है,
इन्ही करो को पकड़ करो मे, पितामह मुस्काये है।
अपनी बाणो की नोंक जो इनकी ओर करुंगा मै,
केशव मुझको म्रत्यु दे दो उससे पूर्व मरुंगा मै ॥

बाद युद्ध के मुझे ना कुछ भी पास दिखाई देता है,
माधव। इस रणभूमि मे, बस नाश दिखाई देता है।

बात बहुत भावुक थी किंतु जगत गुरु मुस्काते थे,
और ग्यान की गंगा निरंतर चक्रधारी बरसाते थे।
जन्म-मरण की यहाँ योद्धा बिल्कुल चाह नही करते,
क्या होगा अंजाम युद्ध का ये परवाह नही करते,
पार्थ। यहाँ कुछ मत सोचो बस कर्म मे ध्यान लगाओ तुम।
बाद युद्ध के क्या होगा ये मत अनुमान लगाओ तुम,
इस दुनिया के रक्तपात मे कोई तो अहसास नही।
निज जीवन का करे फैसला नर के बस की बात नही,
तुम ना जीवन देने वाले नही मारने वाले हो।
ना जीत तुम्हारे हाथो मे, तुम नही हारने वाले हो,
ये जीवन दीपक की भांति, युं ही चलता रहता है।
पवन वेग से बुझ जाता है, वरना जलता रहता है,
मानव वश मे शेष नही कुछ, फिर भी मानव डरता है,
वह मर कर भी अमर हुआ, जो धरम की खातिर मरता है।

ना सत्ता सुख से होता है, ना सम्मानो से होता है,
जीवन का सार सफल केवल, बस बलिदानो से होता है।
देहदान योद्धा ही करते है, ना कोई दूजा जाता है,
रणभूमि मे वीर मरे तो शव भी पूजा जाता है ॥

योद्धा की प्रव्रत्ति जैसे खोटे शस्त्र बदलती है,
वैसे मानव की दिव्य आत्मा दैहिक वस्त्र बदलती है।

कान्हा तो सादा नर को मन के उदगार बताते थे,
इस दुनिया के खातिर ही गीता का सार बताते थे।
हे केशव। कुछ तो समझ गया, पर कुछ-कुछ असमंजस में हूँ,
इतना समझ गया की मैं न स्वयं के वश में हूँ।

हे माधव। मुझे बतलाओ कुल नाशक कैसे बन जाँऊ,
रख सिंहासन लाशो पर, मै शासक कैसे बन जाँऊ।

ये मान और सम्मान बताओ जीवन के अपमान बताओ,
जीवन म्रत्यु क्या है माधव?

रण मे जीवन दान बताओ
काम, क्रोध की बात कही मुझको उत्तम काम बताओ,
अरे! खुद को ईश्वर कहते हो तो जल्दी अपना नाम बताओ।

इतना सुनते ही माधव का धीरज पूरा डोल गया,
तीन लोक का स्वामी फिर बेहद गुस्से मे बोल गया –

सारे सृष्टि को भगवन बेहद गुस्से में लाल दिखे,
देवलोक के देव डरे सबको माधव में काल दिखे।
अरे। कान खोल कर सुनो पार्थ मै ही त्रेता का राम हूँ।
कृष्ण मुझे सब कहता है, मै द्वापर का घनशयाम हूँ ॥
रुप कभी नारी का धरकर मै ही केश बदलता हूँ।
धर्म बचाने की खातिर, मै अनगिन वेष बदलता हूँ।
विष्णु जी का दशम रुप मै परशुराम मतवाला हूँ ॥
नाग कालिया के फन पे मै मर्दन करने वाला हूँ।
बाँकासुर और महिसासुर को मैने जिंदा गाड़ दिया ॥
नरसिंह बन कर धर्म की खातिर हिरण्यकश्यप फाड़ दिया।
रथ नही तनिक भी चलता है, बस मैं ही आगे बढता हूँ।
गाण्डिव हाथ मे तेरे है, पर रणभुमि मे मैं लड़ता हूँ ॥

इतना कहकर मौन हुए, खुद ही खुद सकुचाये केशव,
पलक झपकते ही अपने दिव्य रूप में आये केशव।

दिव्य रूप मेरे केशव का सबसे अलग दमकता था,
कई लाख सूरज जितना चेरे पर तेज़ चमकता था।
इतने ऊँचे थे भगवन सर में अम्बर लगता था,
और हज़ारों भुजा देख अर्जुन को डर लगता था ॥

माँ गंगा का पावन जल उनके कदमों को चूम रहा था,
और तर्जनी ऊँगली में भी चक्र सुदर्शन घूम रहा था।
नदियों की कल कल सागर का शोर सुनाई देता था,
केशव के अंदर पूरा ब्रम्हांड दिखाई देता था ॥

जैसे ही मेरे माधव का कद थोड़ा-सा बड़ा हुआ,
सहमा-सहमासा था अर्जुन एक-दम रथ से खड़ा हुआ।
माँ गीता के ग्यान से सीधे ह्रदय पर प्रहार हुआ,
म्रत्यु के आलिंगन हेतु फिर अर्जुन तैयार हुआ ॥

मैं धर्म भुजा का वाहक हूँ, कोई मुझको मार नहीं सकता।
जिसके रथ पर भगवन हो वो युद्ध हारे नहीं सकता ॥

जितने यहाँ अधर्मी है चुन-चुनकर उन्हे सजा दुंगा,
इतना रक्त बहाऊंगा धरती की प्यास बुझा दुंगा ॥

अर्जुन की आखों में धरम का राज दिखाई देता था,
पार्थ में केशव को बस यमराज दिखाई देता था।
रण में जाने से पहले उसने एक काम किया,
चरणों में रखा शीश अर्जुन ने, केशव को प्रणाम किया।
जिधर चले बाण पार्थ के सब पीछे हट जाते थे,
रण्भुमि के कोने कोने लाशो से पट जाते थे।
करुक्षेत्र की भूमि पे नाच नचाया अर्जुन ने,
साड़ी धरती लाल हुई कोहराम मचाया अर्जुन ने।
बड़े बड़े महारथियों को भी नानी याद दिलाई थी,
मृत्यु का वो तांडव था जो मृत्यु भी घबराई थी ॥

ऐसा लगता था सबको मृत्यु से प्यार हुआ है जी।
ऐसा धर्मयुद्ध दुनिया में पहली बार हुआ है जी ॥

अधर्म समूचा नष्ट किया पार्थ ने कसम निभाई थी,
इन्द्रप्रथ के राजभवन पर धर्म भुजा लहराई थी।
धर्मराज के शीश के ऊपर राज मुकुट की छाया थी,
पर सारी दुनिया जानती थी ये बस केशव की माया थी ॥
धरम किया स्थापित जिसने दाता दया निधान की जय।
हाथ उठा कर सारे बोलो चक्रधारी भगवान की जय ॥

विदेशों में बसे कुछ हिंदू स्वजनों के आग्रह पर कान खोल कर सुनो पार्थ महाभारत कृष्ण कविता को हम रोमन में भी प्रस्तुत कर रहे हैं। हमें आशा है कि वे इससे अवश्य लाभान्वित होंगे। पढ़ें कान खोल कर सुनो पार्थ (Kaan Khol Kar Suno Parth Lyrics) रोमन में–

Read Kaan Khol Kar Suno Parth Lyrics

talavāra,dhanuṣa aura paidala sainika kurukṣetra me khaड़e huye,
rakta pipāsū mahārathī ika dūje sammukha aड़e huye।
kaī lākha senā ke sammukha pāṃḍava pā~ca bicāre the,
eka tarapha the yoddhā saba, eka tarapha samaya ke māre the।
mahāsamara kī pratikṣā meṃ sāre tāka rahe the jī,
aura pārtha ke ratha ko keśava svayaṃ hā~ka rahe the jī ॥

raṇabhūmi ke sabhī najāre dekhana me kucha khāsa lage,
mādhava ne arjuna ko dekhā, arjuna unhe udāsa lage।
kurukṣetra kā mahāsamara eka pala me tabhī sajā ḍālā,
pācajaṇya uṭhā kṛṣṇa ne mukha se lagā bajā ḍālā।
huā śaṃkhanāda jaise hī sabakā garjana śuru huā,
rakta bikharanā huā śuru aura sabakā mardana śuru huā।
kahā kṛṣṇa ne uṭha pārtha aura eka ā~kha ko mīca jaड़ā,
gāṇḍiva para rakha bāṇo ko pratyaṃcā ko khīṃca jaड़ā।
āja dikhā de raṇabhumi me yoddhā kī tāsīra yahā~,
isa dharatī para koī nahī, arjuna ke jaisā vīra yahā~ ॥

sunī bāta mādhava kī to arjuna kā ceharā utara gayā,
eka dhanurdhārī kī vidyā māno cuhā kutara gayā।
bole pārtha suno kānhā – jitane ye sammukha khaड़e huye hai,
hama to ina se sīkha-sīkha kara sāre bhāī baड़e huye hai।
idhara khaड़e bābā bhiṣma ne mujhako goda khilāyā hai,
guru droṇa ne dhanuṣa-bāṇa kā sārā gyāna sikhāyā hai।
sabhī bhāī para pyāra luṭāyā kuṃtī māta hamārī ne,
kamī koī nahī choड़ī thī, prabhū mātā gāṃdhārī ne।
ye jitane gurujana khaड़e huye hai sabhī pūjane lāyaka hai,
mānā duryodhana dusāsana thoड़e se nālāyaka hai।
maiṃ aparādha kṣamā karatā hū~, beśaka hama hī choṭe hai,
ye jaise bhī hai ākhira mādhava, saba tāū ke beṭe hai ॥

choṭe se bhū bhāga kī khātira hiṃsaka nahī banuṃgā maiṃ,
choṭe se bhū bhāga kī khātira hiṃsaka nahī banuṃgā maiṃ।
svarṇa tākakara apane kula kā vidhvaṃsaka nahī banuṃgā maiṃ,
khūna sane hātho ko hotā, rāja-bhoga adhikāra nahī।
parivāra māra kara gaddī mile to siṃhāsana svīkāra nahī,
ratha para baiṭha gayā arjuna, mu~ha mādhava se moड़ diyā,
ā~kho me ā~sū bharakara gāṇḍiva hātha se choड़ diyā ॥

gāṇḍiva hātha se jaba chuṭā mādhava bhī kucha akulāe the,
śiṣya pārtha para garva huā, aura mana hī mana harṣāe the।
mana me soca liyā arjuna kī buddhi nā saṭane dūṃgā,
samara bhūmi me pārtha ko kamajora nahī paड़ne dūṃgā।
dharma bacāne kī khātira ika nava abhiyāna śuru huā,
usake bāda jagata guru kā gītā gyāna śuru huā ॥

eka najara। eka najara। eka najara। eka najara।
eka najara meṃ, raṇabhūmi ke kaṇa-kaṇa ḍola gaye mādhava,
ṭaka-ṭakī bāṃdhakara dekhā arjuna ekadama bola gaye mādhava –
he! pārtha mujhe pahale batalāte mai saṃvāda nahī karatā,

pārtha mujhe pahale batalāte mai saṃvāda nahī karatā।
tuma sāre bhāīyo kī khātira koī vivāda nahī karatā,
pāṃcālī ke tana para lipaṭī sāड़ī khīṃca rahe the vo,
doṣī vo bhī utane hī hai jabaड़ā bhīṃca rahe the jo।
ghara kī ijjata taड़pa rahī koī do ṭūka nahī bole,
pautra bahū ko nagna dekhakara gaṃgā putra nahī khaule।

pautra bahū ko nagna dekhakara gaṃgā putra nahī khaule।

tuma kāyara bana kara baiṭhe ho ye pārtha baḍī beśarmī hai,
saṃbaṃdha unhī se nibhā rahe jo loga yahā~ adharmī hai।
dharma ke ūpara yahā~ āja bhārī saṃkaṭa hai khaड़ā huā,
aura terā gāṃḍīva pārtha, ratha ke kone meṃ paड़ā huā।
dharma pe saṃkaṭa ke bādala tuma chāne kaise dete ho,
kāyaratā ke bhāva ko mana meṃ āne kaise dete ho।

he pāṃḍū ke putra। he pāṃḍū ke putra।
dharma kā kaisā karja utārā hai,
śole hone the। śole hone the। śole hone the।

ā~kho meṃ, para bahatī jala dhārā hai ॥

gāṇḍiva uṭhāne me pārtha jitanī bhī dera yahā~ hogī,
iṃdraprastha ke rāja bhavana me utanī aṃdhera vahā~ hogī।
adharma-dharma kī gaharāī me khuda ko nāpa rahā arjuna,
aśrūdhāra phira teja huī aura thara-thara kā~pa rahā arjuna।

he keśava। ye rakta svayaṃ kā pīnā nahīṃ sarala hogā,
aura vijaya yadi hue hama jīnā nahīṃ sarala hogā।

he mādhava। mujhe batalāo kula nāśaka kaise bana jā~ū,
rakha siṃhāsana lāśo para mai, śāsaka kaise bana jā~ū।
kaise uṭheṃge kara una para jo kara para adhara lagāte hai ?
karane ko jinakā svāgata, ye kara bhī svayaṃ juड़ jāte hai।
inhī karo ne bālya kāla me sabake paira dabāye hai,
inhī karo ko pakaड़ karo me, pitāmaha muskāye hai।
apanī bāṇo kī noṃka jo inakī ora karuṃgā mai,
keśava mujhako mratyu de do usase pūrva maruṃgā mai ॥

bāda yuddha ke mujhe nā kucha bhī pāsa dikhāī detā hai,
mādhava। isa raṇabhūmi me, basa nāśa dikhāī detā hai।

bāta bahuta bhāvuka thī kiṃtu jagata guru muskāte the,
aura gyāna kī gaṃgā niraṃtara cakradhārī barasāte the।
janma-maraṇa kī yahā~ yoddhā bilkula cāha nahī karate,
kyā hogā aṃjāma yuddha kā ye paravāha nahī karate,
pārtha। yahā~ kucha mata soco basa karma me dhyāna lagāo tuma।
bāda yuddha ke kyā hogā ye mata anumāna lagāo tuma,
isa duniyā ke raktapāta me koī to ahasāsa nahī।
nija jīvana kā kare phaisalā nara ke basa kī bāta nahī,
tuma nā jīvana dene vāle nahī mārane vāle ho।
nā jīta tumhāre hātho me, tuma nahī hārane vāle ho,
ye jīvana dīpaka kī bhāṃti, yuṃ hī calatā rahatā hai।
pavana vega se bujha jātā hai, varanā jalatā rahatā hai,
mānava vaśa me śeṣa nahī kucha, phira bhī mānava ḍaratā hai,
vaha mara kara bhī amara huā, jo dharama kī khātira maratā hai।

nā sattā sukha se hotā hai, nā sammāno se hotā hai,
jīvana kā sāra saphala kevala, basa balidāno se hotā hai।
dehadāna yoddhā hī karate hai, nā koī dūjā jātā hai,
raṇabhūmi me vīra mare to śava bhī pūjā jātā hai ॥

yoddhā kī pravratti jaise khoṭe śastra badalatī hai,
vaise mānava kī divya ātmā daihika vastra badalatī hai।

kānhā to sādā nara ko mana ke udagāra batāte the,
isa duniyā ke khātira hī gītā kā sāra batāte the।
he keśava। kucha to samajha gayā, para kucha-kucha asamaṃjasa meṃ hū~,
itanā samajha gayā kī maiṃ na svayaṃ ke vaśa meṃ hū~।

he mādhava। mujhe batalāo kula nāśaka kaise bana jā~ū,
rakha siṃhāsana lāśo para, mai śāsaka kaise bana jā~ū।

ye māna aura sammāna batāo jīvana ke apamāna batāo,
jīvana mratyu kyā hai mādhava?

raṇa me jīvana dāna batāo
kāma, krodha kī bāta kahī mujhako uttama kāma batāo,
are! khuda ko īśvara kahate ho to jaldī apanā nāma batāo।

itanā sunate hī mādhava kā dhīraja pūrā ḍola gayā,
tīna loka kā svāmī phira behada gusse me bola gayā –

sāre sṛṣṭi ko bhagavana behada gusse meṃ lāla dikhe,
devaloka ke deva ḍare sabako mādhava meṃ kāla dikhe।
are। kāna khola kara suno pārtha mai hī tretā kā rāma hū~।
kṛṣṇa mujhe saba kahatā hai, mai dvāpara kā ghanaśayāma hū~ ॥
rupa kabhī nārī kā dharakara mai hī keśa badalatā hū~।
dharma bacāne kī khātira, mai anagina veṣa badalatā hū~।
viṣṇu jī kā daśama rupa mai paraśurāma matavālā hū~ ॥
nāga kāliyā ke phana pe mai mardana karane vālā hū~।
bā~kāsura aura mahisāsura ko maine jiṃdā gāड़ diyā ॥
narasiṃha bana kara dharma kī khātira hiraṇyakaśyapa phāड़ diyā।
ratha nahī tanika bhī calatā hai, basa maiṃ hī āge baḍhatā hū~।
gāṇḍiva hātha me tere hai, para raṇabhumi me maiṃ laड़tā hū~ ॥

itanā kahakara mauna hue, khuda hī khuda sakucāye keśava,
palaka jhapakate hī apane divya rūpa meṃ āye keśava।

divya rūpa mere keśava kā sabase alaga damakatā thā,
kaī lākha sūraja jitanā cere para teज़ camakatā thā।
itane ū~ce the bhagavana sara meṃ ambara lagatā thā,
aura haज़āroṃ bhujā dekha arjuna ko ḍara lagatā thā ॥

mā~ gaṃgā kā pāvana jala unake kadamoṃ ko cūma rahā thā,
aura tarjanī ū~galī meṃ bhī cakra sudarśana ghūma rahā thā।
nadiyoṃ kī kala kala sāgara kā śora sunāī detā thā,
keśava ke aṃdara pūrā bramhāṃḍa dikhāī detā thā ॥

jaise hī mere mādhava kā kada thoड़ā-sā baड़ā huā,
sahamā-sahamāsā thā arjuna eka-dama ratha se khaड़ā huā।
mā~ gītā ke gyāna se sīdhe hradaya para prahāra huā,
mratyu ke āliṃgana hetu phira arjuna taiyāra huā ॥

maiṃ dharma bhujā kā vāhaka hū~, koī mujhako māra nahīṃ sakatā।
jisake ratha para bhagavana ho vo yuddha hāre nahīṃ sakatā ॥

jitane yahā~ adharmī hai cuna-cunakara unhe sajā duṃgā,
itanā rakta bahāūṃgā dharatī kī pyāsa bujhā duṃgā ॥

arjuna kī ākhoṃ meṃ dharama kā rāja dikhāī detā thā,
pārtha meṃ keśava ko basa yamarāja dikhāī detā thā।
raṇa meṃ jāne se pahale usane eka kāma kiyā,
caraṇoṃ meṃ rakhā śīśa arjuna ne, keśava ko praṇāma kiyā।
jidhara cale bāṇa pārtha ke saba pīche haṭa jāte the,
raṇbhumi ke kone kone lāśo se paṭa jāte the।
karukṣetra kī bhūmi pe nāca nacāyā arjuna ne,
sāड़ī dharatī lāla huī koharāma macāyā arjuna ne।
baड़e baड़e mahārathiyoṃ ko bhī nānī yāda dilāī thī,
mṛtyu kā vo tāṃḍava thā jo mṛtyu bhī ghabarāī thī ॥

aisā lagatā thā sabako mṛtyu se pyāra huā hai jī।
aisā dharmayuddha duniyā meṃ pahalī bāra huā hai jī ॥

adharma samūcā naṣṭa kiyā pārtha ne kasama nibhāī thī,
indrapratha ke rājabhavana para dharma bhujā laharāī thī।
dharmarāja ke śīśa ke ūpara rāja mukuṭa kī chāyā thī,
para sārī duniyā jānatī thī ye basa keśava kī māyā thī ॥
dharama kiyā sthāpita jisane dātā dayā nidhāna kī jaya।
hātha uṭhā kara sāre bolo cakradhārī bhagavāna kī jaya ॥

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सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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