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पंचतंत्र की कहानी – बुद्धिमान बलवान

“बुद्धिमान बलवान” कथा पंचतंत्र की पिछली कहानी शत्रु को तरकीब से मारो के आगे शुरू होती है। इस कहानी में बड़ी दिलचस्प शैली में बताया गया है कि असली ताक़त होशियारी में ही है। अन्य कहानियाँ पढ़ने के लिए कृपया यहाँ जाएँ – पंचतंत्र की कहानियां

किसी जंगल में एक शेर रहता था। वह नित्य ही हिरण, मोर खरगोश इत्यादि जानवरों को मारकर खा जाता। बेचारे जानवर शेर के आतंक से बड़े दुःखी हो गये थे। इस दमन से तंग आकर एक दिन जंगल के जानवरों मोर, हिरण, भैंसे, खरगोश आदि ने मिलकर यह निर्णय किया कि वे सब-के-सब शेर के पास जाएंगे और उससे सारी बात तय करेंगे। इस प्रकार सभी जानवर इकट्ठे होकर शेर के पास पहुंच गए और कहा–

हे जंगल के राजा! आप हमारे साथ यह समझौता कर लें कि आप हम सबको एक साथ तंग नहीं करेंगे। हम आपके भोजन के लिए नित्य एक जानवर को यहीं पर बैठे-बैठे भेज दिया करेंगे। इससे आपको भी कष्ट नहीं होगा और हमें भी पता चल जाएगा कि हमारा जीवन कितना बाकी है। इसके लिए कहा भी गया है–

बुद्धि और ढंग से जोती हुई कठोर और बंजर धरती भी बहुत उपजाऊ होती है। जैसे पत्थर के रगड़ने से आग पैदा होती है।

प्रजा का पालन करना ही प्रशंसा के योग्य है और स्वर्ग रूपी कोष को बढ़ाने वाला है। प्रजा को पीड़ा देना धर्म नाश, पाप व निन्दा के लिए होता है।

गोपाल रूपी राजा को प्रजारूपी गौ से धनरूपी दूध धीरे-धीरे पीना चाहिए। वह भी तब जब उसका अच्छी तरह से पालन-पोषण करें।

जो राजा मोहवश बकरी की तरह प्रजा को एक ही बार में मार देता है वह एक ही बार तृप्त हो सकता है, दोबारा नहीं।

फल का इच्छुक राजा प्रजा का यत्नपूर्वक दान-मान रूपी जल से इस प्रकार पालन करे जैसे माली अंकुरों को निरन्तर सींच-सींचकर उनका पालन-पोषण करता है ।

नृप-रूपी दीप प्रजा से धन-रूपी तेल लेते हुए भी अपने आंतरिक गुणों के कारण किसी की निन्दा का लक्ष्य नहीं बनता। जैसे गाय पहले पाली-पोसी जाती है और फिर समय पर दोही जाती है, उसी प्रकार प्रजा का पालन-पोषण करते हुए राजा उससे यथा समय उचित कर ले। सींची बेल समय पर फूल-फल देती है।

जैसे छोटा बीजांकुर ठीक ढंग से रक्षा किया हुआ समय आने पर फल देता है, उसी प्रकार रक्षा की हुई प्रजा।

सोना, अन्न, रत्न, नाना प्रकार की सवारियां और भी जो कुछ राजा के पास होता है, वह सब प्रजा से ही मिला होता है। प्रजा पर अनुग्रह करने वाला राजा ही वृद्धि को प्राप्त होता है और प्रजा का नाश करके स्वयं भी नाश हो जाता है।

उन सबकी बातें सुनकर शेर बोला, “वाह! आप लोग भी ठीक ही कहते हैं। परन्तु यदि मेरे यहां बैठे-बैठे एक जानवर नहीं आएगा, तो मैं सबको ही खा जाऊंगा।”

“नहीं महाराज! ऐसा नहीं होगा। आप हम पर विश्वास रखिए। हम अपने वचन का पालन करेंगे। यह कहकर सभी जानवर वहां से आ गए और अपने वचन के अनुसार रोजाना ही एक जानवर शेर के पास उसके भोजन के रूप में चला जाता।

एक बार जब छोटे खरगोश की बारी आई तो वह बेचारा भाग्य का मारा सोचता जा रहा था कि किसी प्रकार उसकी जान बच सके। यही सोचते-सोचते वह धीरे-धीरे चला जा रहा था। रास्ते में उसने एक पुराना कुआं देखा। उस कुएं में जैसे ही उसने झांककर देखा तो उसे अपनी ही छाया नजर आई।

“बस बन गया काम”, खरगोश के उदास चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई। वह धीरे-धीरे शेर की ओर जाने लगा। उधर शेर जी महाराज क्रोध से पागल हुए अपने भोजन की प्रतीक्षा कर रहे थे, क्योंकि समय के हिसाब से उसका भोजन काफी लेट हो गया था। जैसे ही शेर ने खरगोश को आते देखा, तो वह क्रोध से भर उठा व बोला–

“क्यों ओ पिद्दे! एक तो तू पहले ही जरा-सा है। दूसरे, तू इतना देर से आया। याद रख, आज तेरी वजह से मैं सारे जानवरों को खा जाऊंगा।”

खरगोश शेर के क्रोध को देखकर डर गया था। मगर फिर भी वह बड़े धैर्य से बोला–

हे जंगल के राजा! मैं अपनी भूल को स्वीकर करते हुए आपसे वही कहूंगा कि मैं निर्दोष हूँ। मैंने और मेरे साथियों ने यह जान लिया था कि मेरे अकेले को खाने से आपका पेट नहीं भरेगा। इसीलिए हम वहां से पांच खरगोश इकट्ठे चले थे। पर वाह रे नसीब! अभी हम रास्ते में ही थे कि एक गुफा में से जंगल का राजा शेर निकल आया। उसने निकलते ही कहा, “अरे ओ खरगोश के बच्चों! इधर आओ।”

हम उस शेर की आवाज सुनकर डर गए। फिर भी मैंने आगे बढ़कर कहा, “देखो महाराज, हम अपने राजा के पास जा रहे हैं। आप हमें रोकने का कष्ट न करें।”

“कौन राजा, कैसा राजा? अरे इस जंगल के तो असली राजा हम हैं। हमारे होते हुए दूसरा कोई राजा नहीं बन सकता। यदि कोई तुम्हारा राजा है तो चार खरगोशों को मेरे पास छोड़ जाओ और तुम अकेले जाकर उस राजा को हमारे पास ले आओ। आज हम निर्णय करके ही रहेंगे कि कौन इस जंगल का राजा है।” बस, मैं वहां से भाग आया। अब आप ही बतलाओ कि हम क्या करें?

यह सुनते ही शेर को और भी क्रोध आ गया। उसने खरगोश की ओर देखकर कहा – मेरे मित्र, चलो आज हम उसे देखते हैं। भला मेरे होते हुए दूसरा कोई राजा कैसे बन सकता है। आज मैं उसके मांस से अपना भोजन करूंगा। इसलिए कहा गया है कि–

लड़ाई के तीन फल हैं –

१. भूमि
२. स्त्री
३. धन आदि।

इन तीनों में से एक भी प्राप्त न होता हो, तो कभी भी लड़ाई न करें। जहाँ भारी लाभ न हो और जहां हार दिखती हो, बुद्धिमान लोग वहां पर युद्ध नहीं करते। खरगोश ने कहा, “महाराज! यह सत्य है। अपनी भूमि पर और ऐश्वर्य के कारण से ही बहादुर लोग युद्ध करते हैं, किन्तु वह किले के सहारे में है। किले से निकलकर ही उसने हमें रोका था। किले के अन्दर रहने वाले शत्रु को बड़ी कठिनाई से जीता जा सकता है।”

राजा जिस कार्य को एक किले के सहारे से सिद्ध करता है, वह न तो हथियारों से और न लाखों घोड़ों से सिद्ध होता है। किले के अन्दर से लड़ने वाला अकेले ही सैकड़ों से युद्ध करता है। इसीलिए नीति शास्त्र में विद्वान किले की प्रशंसा करते हैं। उसे बहुत महत्व देते हुए इस प्रकार से कहते हैं–

प्राचीन काल में हिरण्यकश्यप के डर के कारण गुरु (बृहस्पति) की आज्ञा से विश्वकर्मा के प्रभाव से इन्द्र ने क़िला बनवाया था। उसने यह वर दिया था कि जिसके पास किला होगा, वही इस पृथ्वी पर विजयी होगा। तभी से हजारों किले बन गए।

जैसे दांतों के बिना सांप, मस्ती के बिना हाथी सबके वश में आ जाते हैं, उसी प्रकार किले के बिना राजा को सभी जीत सकते हैं।

खरगोश की बात सुनकर शेर गर्जकर बोला – मेरे भाई, तू मुझे जल्दी से उस शेर को दिखा, ताकि मैं उसे ठिकाने लगा सकूँ। कहा गया है कि जो व्यक्ति, शत्रु और रोग को पैदा होते ही शांत नहीं करता, वे महाबली होते हुए भी उस रोग या शत्रु से मारा जा सकता है। और भी – कल्याण के इच्छुक को उठते हुए शत्रु की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए, क्योंकि शिष्ट पुरुषों ने बढ़ते हुए रोग और शत्रु को एक-सा ही समझा है।

अपनी ताकत, इज्जत, मर्यादा और उत्साह को देखकर जो राजा युद्ध के लिए जाता है, वह अकेले ही परशुराम की भांति बहुतों को मारता है।

खरगोश बोला – महाराज! मैं आपकी सब बातों को मानता हूं, किन्तु यह बात याद रखें कि वह बड़ा बलवान है। मैंने उसे निकट से देखा है। उसकी ताकत जाने बिना आपको उसके पास नहीं जाना चाहिए।

जो जोश में अंधा होकर अपनी और दूसरे की ताकत देखे बिना युद्ध के लिए निकल पड़ता है, वह पतंगे की भांति जलकर नाश हो जाता है।

जो स्वयं बलवान होते हुए भी अपने से अधिक ताकत वाले शत्रु को मारने निकलता है, वह नीचा देखता हुआ ऐसे वापस आता है जैसे टूटे दांत वाला हाथी।

“ओ पागल खरगोश! तुझे इन बातों से क्या लेना? मैं जंगल का राजा हूं। मैं किसी चीज से नहीं डरता। चल, तू मेरे को उसका किला दिखा। फिर कोई और बात करेंगे। समझे?”

खरगोश की चाल सफल हो गई थी। वह शेर को साथ लेकर कुएं के पास पहुंचा, जिसे पहले से देख आया था। वहीं पर रुककर खरगोश बोला–

“देखो महाराज, यह रहा उस शेर का किला। आप उसे देखो और लड़ो।”

शेर ने कुएं में जैसे ही झांककर देखा, तो उसे पानी में वैसा ही शेर नजर आया। वास्तव में यह उसी की छाया थी। दूसरे शेर को सामने देखकर शेर क्रोध से गरज उठा। उसकी गर्जना कुएं से टकराकर फिर उसके ही कानों में पड़ी, तो उसने समझा कि नीचे का शेर गरज रहा है। शेर का क्रोध और भी बढ़ गया। क्रोध में अंधे होकर उसने शेर को मारने के लिए उस कुएं में ही छलांग लगा दी।

पास खड़ा खरगोश खुशी से नाचते हुए बोला – वाह रे मेरे शेर, तू भी भूखा मरा!

खुशी से नाचता हुआ खरगोश अपने दूसरे साथियों के पास पहुंचा। उसने जाते ही उन्हें शेर के मरने की खबर सुनाई। सब लोग खरगोश की बुद्धि पर बहुत खुश हुए। उन्हें नई आजादी मिल गई थी।


इसीलिए तो कहता हूं, जिसकी बुद्धि उसी का बल।

“भाई, यदि आप कहें तो मैं भी अपनी बुद्धि को वहां जाकर आजमाऊं? इससे उन दोनों की मित्रता को तोड़ दूँ।”

“अवश्य जाओ मेरे मित्र, सफलता तुम्हारी प्रतीक्षा कर रही है”, करटक ने कहा।

दमनक वहां से चल पड़ा। उसने जाते ही पिंगलक सिंह को अकेले बैठा देखा। बस, मौका अच्छा था। उसने जाते ही उसे प्रणाम किया और उसके चरणों में बैठ गया।

“क्या बात है दमनक! बहुत दिनों के पश्चात् नजर आ रहे हो।”

“महाराज! ऐसा लगता है आपको हमसे कोई लगाव नहीं रहा। मगर जब मैंने यह देखा कि हमारे राज्य की हालत खराब हो रही है, तब मुझसे नहीं रहा गया। मैं सीधा आपके पास चला आया।”

“नहीं मित्र, मैं तुम्हें कभी नहीं भूल सकता। तुमने तो मुझे एक ऐसा मित्र लाकर दिया, जिसने हमारा जीवन ही बदल दिया। ऐसा शक्तिशाली मित्र पाकर तो हम बिल्कुल ही चिन्ता-मुक्त हो गए हैं।”

दमनक ने मौका ताड़ा और झट से बोला, “महाराज! आपकी सब बातें ठीक होते हुए भी गलत हैं, क्योंकि आप तो यह भूल ही गए कि आपका यह मित्र घास खाने वाला है। यदि किसी मांस खाने वाले शत्रु ने आप पर हमला कर दिया, तो यह उसका मुकाबला नहीं कर सकेगा। इस प्रकार आप धोखे में ही मारे जाएंगे। इससे तो अच्छा है आप पहले इसे दांव लगाकर मार डालें।”

दमनक! प्रतिज्ञा भंग से डरने वाले को चाहिए कि सभा में जिसको पहले गुणी बताया हो, उसे फिर दोषी न कहो। तुम्हारे कहने से तो मैंने इसे मित्र बनाया है। अब मैं स्वयं ही इसे कैसे मार सकता हूं। इसके विरुद्ध कोई इल्जाम नहीं है। कहा गया है–

जिस वृक्ष को अपने ही हाथों से लगाया गया हो, उसे स्वयं काटना बड़ा कठिन ही नहीं पाप भी है।

पहले या तो किसी से प्रेम करना ही नहीं चाहिए। यदि प्रेम कर लिया तो उसे प्रतिदिन बढ़ाना चाहिए। जो लोग प्रेम से दूर भागते हैं, उन्हें लज्जित होना पड़ता है। इससे तो प्रेम करना ही नहीं चाहिए। धरती के नीचे बने भवन के गिरने का डर नहीं होता।

जो उपकारी के साथ अच्छा व्यवहार करता है, उसके अच्छेपन की क्या प्रशंसा। जो उपकार करने वाले से सज्जनता का-सा बर्ताव करता है, वह सज्जनों द्वारा साधू कहा जाता है। इसलिए यदि यह मेरे विरुद्ध द्रोह भी करता है, तो भी मुझे उसके विरुद्ध कुछ नहीं कहना चाहिए।

नहीं महाराज! यह राजनीति के विरुद्ध है। द्रोह करने वाले को कभी क्षमा नहीं करना चाहिए। इसके लिए कहा गया है–

समान धन वालों को, बराबर शक्ति वाले को, भेद जानने वाले को, अपना धंधा जानने वाले को और आधा राज्य लेने वाले को जो नहीं मारता, वह स्वयं मारा जाता है।

दूसरे, इसकी मित्रता के कारण आपने सारा कर्तव्य छोड़ दिया। आपके कर्तव्य छोड़ने से विशेष साथी भी उदास हो गए। फिर यह बैल घास खाता है। आप स्वयं मांस खाते हैं। आपकी अधिकांश प्रजा भी मांस खाती है। यह तो हिंसा और अहिंसा का युद्ध आरम्भ हो गया है। शायद आपको पता नहीं कि इस बैल के आने से आपकी प्रजा को मांस मिलना बन्द हो गया है। इससे ये सब लोग धीरे-धीरे आपको छोड़कर चले जाएंगे। फिर आप नष्ट ही हैं। इस बैल के साथ रहकर आप शिकार करना भी भूल जाएंगे। इसके लिए कहा गया है राजा जिस पर अधिक कृपा करता है, वह चाहे कुलीन है या अकुलीन, वह मनुष्य ऐश्वर्य का भागी होता है। आप किस गुण-विशेष के कारण उस बैल को अपने साथ रखते हैं? महाराज, यदि आप यह सोचते हैं कि यह भारी शरीर वाला है, इसके द्वारा शत्रुओं को मारा जा सकता है, तो इससे यह कार्य भी सिद्ध न होगा। क्योंकि यह घास चरने वाला है। आपके सारे शत्रु मांसाहारी हैं। इससे कोई शत्रु मारा नहीं जाएगा। इसलिए जितना जल्दी हो सके इसे दोष लगाकर मार दीजिए।

शेर बोला, “देखो मित्र! प्रतिज्ञा भंग करने वाले को चाहिए कि सभा में पहले जिसको गुणवान बताया हो, उसको फिर दोषी न कहो। तुम्हारे कहने से ही इसे मैंने अपना साथी बनाया है, तो अब तुम ही बताओ कि मैं इसे कैसे मारूं? यह बैल हमारा मित्र है। इसके विरुद्ध कोई भी दोष नहीं है।”

“महाराज! एक बात याद रखो। जिसके स्वभाव का ज्ञान न हो, उसे सहारा मत दो। खटमल के दोष पर धीरे-धीरे सरकने वाली जूँ मारी गई थी।

“वह कैसे?”, शेर बोला।

सुनो महाराज – उस जूं की कहानी

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