संभवनाथ चालीसा – Sambhavnath Chalisa
संभवनाथ चालीसा का पाठ असंभव को भी संभव करने वाला है। इसका हर अक्षर शक्ति से परिपूर्ण है। जो सच्चे मन से इसे पढ़ता है उसके सारे दुःख दूर हो जाते हैं, इसमें कोई संशय नहीं है। संभवनाथ चालीसा (Sambhavnath Chalisa) का श्रद्धापूर्वक किया गया पाठ मनोवांछित फल देता है। केवल इतना ही नहीं, यह पाठ जन्म-मरण के चक्र से भी मुक्ति देने वाला है। पढ़ें सम्भवनाथ चालीसा–
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भगवान संभवनाथ का चिह्न – अश्व
श्री जिनदेव को करके वन्दन,
जिनवाणी को मन में ध्याय।
काम असम्भव कर दें सम्भव,
समदर्शी सम्भव जिनराय॥
जगतपूज्य श्री सम्भव स्वामी।
तीसरे तीर्थंकर हैं नामी॥
धर्म तीर्थ प्रगटाने वाले।
भव दुख दूर भगाने वाले॥
श्रावस्ती नगरी अति सोहे।
देवों के भी मन को मोहे॥
मात सुषेणा पिता दृढ़राज।
धन्य हुए जन्मे जिनराज॥
फाल्गुन शुक्ला अष्टमी आए।
गर्भ कल्याणक देव मनायें॥
पूनम कार्तिक शुक्ला आई।
हुई पूज्य प्रगटे जिनराई॥
तीन लोक में खुशियाँ छाई।
शची प्रभु को लेने आई॥
मेरु पर अभिषेक कराया।
सम्भवप्रभु शुभ नामधराया॥
बीता बचपन यौवन आया।
पिता ने राज्याभिषेक कराया॥
मिलीं रानियाँ सब अनुरुप।
सुख भोगे चवालिस लक्ष पूर्व॥
एक दिन महल की छत के ऊपर।
देख रहे वन-सुषमा मनहर॥
देखा मेघ-महल हिमखण्ड।
हुआ नष्ट चली वायु प्रचण्ड॥
तभी हुआ वैराग्य एकदम।
गृहबन्धन लगा नागपाश सम॥
करते वस्तु-स्वरूप चिन्तवन।
देव लौकान्तिक करें समर्थन॥
निज सुत को देकर के राज।
वन को गमन करें जिनराज॥
हुए सवार ‘सिद्धार्थ’ पालकी।
गए राह सहेतुक वन की॥
मंगसिर शुक्ल पूर्णिका प्यारी।
सहस भूप संग दीक्षा धारी॥
तजा परिग्रह केश लौंच कर।
ध्यान धरा पूरब को मुख कर॥
धारण कर उस दिन उपवास।
वन में ही फिर किया निवास॥
आत्मशुद्धि का प्रबल प्रमाण।
तत्क्षण हुआ मनः पर्याय ज्ञान॥
प्रथमाहार हुआ मुनिवर का।
धन्य हुआ जीवन ‘सुरेन्द्र’ का॥
पंचाश्चर्यों से देवों के।
हुए प्रजाजन सुखी नगर के॥
चौदह वर्ष की आतम-सिद्धि।
स्वयं ही उपजी केवल ऋद्धि॥
कृष्ण चतुर्थी कार्तिक सार।
समोशरण रचना हितकार॥
खिरती सुखकारी जिनवाणी।
निज भाषा में समझे प्राणी॥
विषयभोग हैं विषसम विषमय।
इनमें मत होना तुम तन्मय॥
तृष्णा बढ़ती है भोगों से।
काया घिरती है रोगों से॥
जिनलिंग से निज को पहचानो।
अपना शुद्धातम सरधानो॥
दर्शन-ज्ञान-चरित्र बतायें।
मोक्ष मार्ग एकत्व दिखायें॥
जीवों का सन्मार्ग बताया।
भव्यों का उद्धार कराया॥
गणधर एक सौ पाँच प्रभु के।
मुनिवर पन्द्रह सहस संघ के॥
देवी- देव- मनुज बहुतेरे।
सभा में थे तिर्यंच घनेरे॥
एक महीना उम्र रही जब।
पहुँच गए सम्मेद शिखर तब॥
अचल हुए खड़गासन में प्रभु।
कर्म नाश कर हुए स्वयम्भू॥
चैत सुदी षष्ठी था न्यारी।
‘धवल कूट’ की महिमा भारी॥
साठ लाख पूर्व का जीवन।
पग में ‘अश्व’ का था शुभ लक्षण॥
चालीसा श्री सम्भवनाथ,
पाठ करो श्रद्धा के साथ।
मनवांछित सब पूरण होवें,
‘अरुणा’ जनम-मरण दुख खोवे॥
जाप – ॐ ह्रीं अर्हं श्री सम्भवनाथाय नमः
विदेशों में बसे कुछ हिंदू स्वजनों के आग्रह पर संभवनाथ चालीसा (Sambhavnath Chalisa) को हम रोमन में भी प्रस्तुत कर रहे हैं। हमें आशा है कि वे इससे अवश्य लाभान्वित होंगे। पढ़ें संभवनाथ चालीसा रोमन में–
Read Sambhavnath Chalisa
śrī jinadeva ko karake vandana,
jinavāṇī ko mana meṃ dhyāya।
kāma asambhava kara deṃ sambhava,
samadarśī sambhava jinarāya॥
jagatapūjya śrī sambhava svāmī।
tīsare tīrthaṃkara haiṃ nāmī॥
dharma tīrtha pragaṭāne vāle।
bhava dukha dūra bhagāne vāle॥
śrāvastī nagarī ati sohe।
devoṃ ke bhī mana ko mohe॥
māta suṣeṇā pitā dṛḍha़rāja।
dhanya hue janme jinarāja॥
phālguna śuklā aṣṭamī āe।
garbha kalyāṇaka deva manāyeṃ॥
pūnama kārtika śuklā āī।
huī pūjya pragaṭe jinarāī॥
tīna loka meṃ khuśiyā~ chāī।
śacī prabhu ko lene āī॥
meru para abhiṣeka karāyā।
sambhavaprabhu śubha nāmadharāyā॥
bītā bacapana yauvana āyā।
pitā ne rājyābhiṣeka karāyā॥
milīṃ rāniyā~ saba anurupa।
sukha bhoge cavālisa lakṣa pūrva॥
eka dina mahala kī chata ke ūpara।
dekha rahe vana-suṣamā manahara॥
dekhā megha-mahala himakhaṇḍa।
huā naṣṭa calī vāyu pracaṇḍa॥
tabhī huā vairāgya ekadama।
gṛhabandhana lagā nāgapāśa sama॥
karate vastu-svarūpa cintavana।
deva laukāntika kareṃ samarthana॥
nija suta ko dekara ke rāja।
vana ko gamana kareṃ jinarāja॥
hue savāra ‘siddhārtha’ pālakī।
gae rāha sahetuka vana kī॥
maṃgasira śukla pūrṇikā pyārī।
sahasa bhūpa saṃga dīkṣā dhārī॥
tajā parigraha keśa lauṃca kara।
dhyāna dharā pūraba ko mukha kara॥
dhāraṇa kara usa dina upavāsa।
vana meṃ hī phira kiyā nivāsa॥
ātmaśuddhi kā prabala pramāṇa।
tatkṣaṇa huā mana: paryāya jñāna॥
prathamāhāra huā munivara kā।
dhanya huā jīvana ‘surendra’ kā॥
paṃcāścaryoṃ se devoṃ ke।
hue prajājana sukhī nagara ke॥
caudaha varṣa kī ātama-siddhi।
svayaṃ hī upajī kevala ṛddhi॥
kṛṣṇa caturthī kārtika sāra।
samośaraṇa racanā hitakāra॥
khiratī sukhakārī jinavāṇī।
nija bhāṣā meṃ samajhe prāṇī॥
“viṣayabhoga haiṃ viṣasama viṣamaya।
inameṃ mata honā tuma tanmaya॥
tṛṣṇā baḍha़tī hai bhogoṃ se।
kāyā ghiratī hai rogoṃ se॥
jinaliṃga se nija ko pahacāno।
apanā śuddhātama saradhāno॥
darśana-jñāna-caritra batāyeṃ।
mokṣa mārga ekatva dikhāyeṃ॥
jīvoṃ kā sanmārga batāyā।
bhavyoṃ kā uddhāra karāyā॥
gaṇadhara eka sau pā~ca prabhu ke।
munivara pandraha sahasa saṃgha ke॥
devī- deva- manuja bahutere।
sabhā meṃ the tiryaṃca ghanere॥
eka mahīnā umra rahī jaba।
pahu~ca gae sammeda śikhara taba॥
acala hue khaḍa़gāsana meṃ prabhu।
karma nāśa kara hue svayambhū॥
caita sudī ṣaṣṭhī thā nyārī।
‘dhavala kūṭa’ kī mahimā bhārī॥
sāṭha lākha pūrva kā jīvana।
paga meṃ ‘aśva’ kā thā śubha lakṣaṇa॥
cālīsā śrī sambhavanātha,
pāṭha karo śraddhā ke sātha।
manavāṃchita saba pūraṇa hoveṃ,
‘aruṇā’ janama-maraṇa dukha khove॥
jāpa:- oṃ hrīṃ aha~ śrī sambhāvanāthāya namaḥ